महोबा जिला

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पर्यावरण विनाश की कीमत चुका रहा बुंदेलखंड
Posted on 20 Apr, 2012 02:53 PM

जो हाल यहां पानी का मई-जून की भीषण गर्मियों में होता था इस बार अप्रैल में ही देखने को मिल रहा है। जालौन जिले पर

मनमानी खुदाई पहाड़ बना खाई
Posted on 01 Aug, 2011 03:19 PM

उत्तर प्रदेश के एक-तिहाई खनन क्षेत्र वाले बुंदेलखंड में जहां भी पहाड़ हैं, वहां बेधड़क धमाके क

हरबोलों की जमीं पर हाहाकार
Posted on 21 Jun, 2011 01:43 PM

बुंदेलखंड के किसान बेहाल हैं। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार के पास पर्याप्त धन नहीं है। जो पैसा पैकेज के तौर पर मिला भी है उसे तेजी से जमीन पर उतारा नहीं जा रहा है। विकास योजनाओं के पैसे की लूटखसोट जमकर हो रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

बुंदेले हरबोलों की सरजमीं पानी, पलायन, भुखमरी और कर्ज के दबाव में हो रही मौतों से जूझ रही है। राज्य की मायावती सरकार ने सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होते ही केंद्र सरकार से इलाके के लिए 80 हजार करोड़ के पैकेज की मांग तो कर दी लेकिन नवंबर, 2009 में संयुक्त बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश) के लिए केंद्र सरकार ने जो 7, 622 करोड़ रुपए का पैकेज दिया उसे जमीन पर विकास के रूप में उतारने में कोई तत्परता नहीं दिखाई। नतीजा यह कि जो थोड़ी-बहुत धनराशि केंद्र से बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर मिली उसका बड़ा हिस्सा अधिकारियों की जेब में चला गया। पैसों के सही इस्तेमाल के लिए जिला स्तर पर सफल मॉनीटरिंग तो दूर इसके संपूर्ण जानकारी संकलन की व्यवस्था तक नहीं है। बुंदेलखंड पैकेज का एक अरब 33 करोड़ रुपया आज भी विभागों में यूं ही पड़ा है।
पानी के साधनों पर दबंगों के कब्जे से आम लोग परेशान
Posted on 23 May, 2011 01:58 PM

इन तालाबों का सुध न लेकर मॉडल तालाबों का निर्माण कराकर करोड़ों रुपए फूंके, लेकिन एक भी मॉडल त

बुंदेलखंड में पीने के पानी के लिए हाहाकार
Posted on 04 May, 2011 11:15 AM

घटिया क्वालिटी की बेतरतीब बिछाई गई 90 किमी पाइप लाइन इस परियोजना में धांधली की पोल खोल रही है।

वजूद खोने लगे है चंदेलों के बारह सौ साल पुराने तालाब
Posted on 20 Apr, 2011 01:42 PM

पानी के लिए शुरू हुई बुंदेलखंड में जंग


कीरत सागर तालाबमहोबा, 17 अप्रैल। बुंदेलखंड में पानी के लिए जंग शुरू हो गई है। पानी के लिए एक हफ्ते में बुंदेलखंड में दो हत्याएं हो चुकी हैं। एक हत्या महोबा में दो दिन पहले हुई तो 10 अप्रैल को पानी के लिए ही टीकमगढ़ में एक की जान ले ली गई। आल्हा उदल की इस जमीन पर पहले जान ली जाती थी आन, बान, शान के लिए अब पानी के लिए लोग जान ले सकते हैं।

बुंदेलखंड में जल संकट का इन घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है।
कीरत सागर तालाब
गागर में सिमटते सागर
Posted on 16 Oct, 2010 09:48 AM
सरकार संसद में बता चुकी है कि देश की 11 फीसदी आबादी साफ पेयजल से महरूम है। जबकि कुछ दशक पहले लोग स्थानीय स्रोतों की मदद से ही पीने और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी जुटाते थे। एक दौर आया जब अंधाधुंध नलकूप लगाए जाने लगे। जब तक संभलते तब तक भूगर्भ का कोटा साफ हो चुका था। एक बार फिर लोगों को पुराने जल-स्रोतों की ओर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। लेकिन पीढ़ियों का अंतर सामने खड़ा है। पारंपरि
drinking water
बुन्देली में जल का महत्व
Posted on 10 Mar, 2010 08:39 AM अनादिकाल से मनुष्य के जीवन में नदियों का महत्व रहा है। विश्व की प्रमुख संस्कृतियाँ नदियों के किनारे विकसित हुई हैं। भारत में सिन्धु घाटी की सभ्यता इसका प्रमाण है। इसके अलावा भारत का प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास भी गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा तट का इतिहास है। ऐसा माना जाता है कि सरस्वती नदी के तट पर वेदों की ऋचायें रची गईं, तमसा नदी के तट पर क्रौंच-वध की घटना ने रामायण संस्कृति को जन्म दिया। आश्रम
बुन्देलखण्ड की नदियाँ
Posted on 16 Feb, 2010 07:56 AM

बुन्देलखण्ड का पठारी भाग मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग में 2406’ से 24022’ उत्तरी अक्षांश तथा 77051’ पूर्वी देशांतर से 80020’ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। इस पठार के अन्तर्गत छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया, शिवपुरी, ग्वालियर और भिण्ड जिलों के कुछ भाग आते हैं। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल मध्यप्रदेश के कुल क्षेत्रफल 23,733 वर्ग किलोमीटर का 5.4 प्रतिशत है। इसके पूर्वोत्तर में उत्तर प्रदेशीय बुन्देलखण्ड के जालौन, झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर और बाँदा, महोबा, चित्रकूट जिले हैं।

बुन्देलखण्ड का पठार प्रीकेम्बियन युग का है। पत्थर ज्वालामुखी पर्तदार और रवेदार चट्टानों से बना है। इसमें नीस और ग्रेनाइट की अधिकता पायी जाती है। इस पठार की समुद्र तल से ऊँचाई 150 मीटर उत्तर में और दक्षिण में 400 मीटर है। छोटी पहाड़ियाँ भी इस क्षेत्र में है। इसका ढाल दक्षिण से उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर है।

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बुंदेलखंड को चाहिए एक देशज नजरिया
Posted on 21 Oct, 2009 09:21 AM बुंदेलखंड को विकास के एक ऐसे देशज क्रांतिकारी नजरिए की जरूरत है जो सूखे को हरियाली में बदल दे। ऐतिहासिक रूप से भी बुंदेलखंड प्रकृति के प्रकोपों से जूझता रहा है। पानी का संकट वहां इसलिए गहराता है क्योंकि वहां की भौगोलिक स्थितियां पानी को टिकने ही नहीं देती हैं। यहां जमीन पथरीली भी है और कुछ इलाकों में उपजाऊ भी।
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