हरबोलों की जमीं पर हाहाकार

बुंदेलखंड के किसान बेहाल हैं। उनकी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार के पास पर्याप्त धन नहीं है। जो पैसा पैकेज के तौर पर मिला भी है उसे तेजी से जमीन पर उतारा नहीं जा रहा है। विकास योजनाओं के पैसे की लूटखसोट जमकर हो रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

बुंदेले हरबोलों की सरजमीं पानी, पलायन, भुखमरी और कर्ज के दबाव में हो रही मौतों से जूझ रही है। राज्य की मायावती सरकार ने सत्ता की कुर्सी पर विराजमान होते ही केंद्र सरकार से इलाके के लिए 80 हजार करोड़ के पैकेज की मांग तो कर दी लेकिन नवंबर, 2009 में संयुक्त बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश) के लिए केंद्र सरकार ने जो 7, 622 करोड़ रुपए का पैकेज दिया उसे जमीन पर विकास के रूप में उतारने में कोई तत्परता नहीं दिखाई। नतीजा यह कि जो थोड़ी-बहुत धनराशि केंद्र से बुंदेलखंड पैकेज के नाम पर मिली उसका बड़ा हिस्सा अधिकारियों की जेब में चला गया। पैसों के सही इस्तेमाल के लिए जिला स्तर पर सफल मॉनीटरिंग तो दूर इसके संपूर्ण जानकारी संकलन की व्यवस्था तक नहीं है। बुंदेलखंड पैकेज का एक अरब 33 करोड़ रुपया आज भी विभागों में यूं ही पड़ा है।

वर्ष 2009 में जो पैकेज मिला था उसमें उत्तर प्रदेश में पड़ने वाले बुंदेलखंड इलाके के लिए 3,506 करोड़ रुपए निर्धारित थे। पैकेज की धनराशि अगले तीन वर्षों में खर्च होनी है। चित्रकूटधाम मंडल के लिए वित्तीय वर्ष 2010-11 में 1,02,951.16 लाख रुपए स्वीकृत किए गए लेकिन सरकारी मशीनरी 9,324.63 लाख रुपए ही व्यय कर सकी है। महोबा जिले के लिए स्वीकृत हुए 31,834.86 लाख रुपए और खर्च हो सके महज 956.87 लाख रुपए। बांदा जिला 2,878.31 लाख रुपए खर्च करने में सफल रहा। इसी तरह हमीरपुर 22,710.99 की स्वीकृति में से 2,508.65 लाख रुपए ही व्यय कर सका। पैकेज के इस्तेमाल के पहले ही साल में एक अरब 33 करोड़ रुपए खर्च नहीं हो पाना सरकारी तंत्र के नाकारापन को पुख्ता करते हैं।

पलायन के बाद गांवों में शेष रह गए हैं वृद्धपलायन के बाद गांवों में शेष रह गए हैं वृद्धअब सरकारी विभागों की लूटखसोट पर एक नजर डालें। वन विभाग ने आवंटित 1798.92 लाख रुपए में से 1,780.60 लाख रुपए का व्यय दर्शाया है लेकिन वन विभाग ने नालों में चैकडैम और कटान रोकने के लिए बंधिया बनाने के नाम पर पुराने कार्यों को ही फिर से नया दिखा दिया है। इस हेराफेरी में 18 करोड़ रुपए का वारा-न्यारा किया गया है। कहते हैं कि भूजल स्तर बढ़ाने एवं जल संरक्षण के नाम पर भूमि विकास एवं जल संसाधन विभाग ने भी यही कारस्तानी की है। रामगंगा कमांड ने 1,714.85 लाख रुपए में से 640.39 लाख का व्यय दर्शाया है। लघु सिंचाई विभाग ने आवंटित 9,987.69 लाख रुपए में से 1, 843.80 लाख रुपए ही खर्च किए हैं लेकिन इस रकम से लघु सीमांत किसानों के खेतों में निःशुल्क बोरिंग के नाम पर लूट-खसोट जारी है। चैकडैम कहां बनाए गए या बनाए जा रहे हैं इस पर लघु सिंचाई विभाग ने चुप्पी साध रखी है। सिंचाई विभाग ने आवंटित 3,467 लाख रुपए में से 1,494 लाख रुपए व्यय किए हैं लेकिन इस रकम का मोटा हिस्सा इंजीनियरों और सत्ता के करीबी ठेकेदारों की मिलीभगत की भेंट चढ़ गया है। जाहीर है, बुंदेलखंड पैकेज किसानों के मुर्झाए चेहरों को हरा नहीं कर सका। पैकेज आने से पहले किसान उम्मीद लगाए बैठा था कि उसे पैकेज से कुछ सहायता मिलेगी जिससे वह सूखे से लड़ सकेगा।बुंदेलखंड के जनपद जालौन को ही लें तो यहां आवंटित 5272.44 लाख रुपए में से अब तक 2,823.43 लाख रुपए खर्च किए जा चुके हैं। पर जालौन के मीगनीं गांव में बिना किसी सरकारी मदद के 50 हजार से अधिक वृक्ष लगा चुके किसान माता प्रसाद तिवारी कहते हैं कि पैकेज से किसानों के मुर्झाए चेहरों पर खुशिया नहीं आएंगी, सूखे बुंदेलखंड में हरियाली लानी है तो किसानों को सीधी मदद पहुंचाने वाले राहत कार्य हों।

सरकारी हैंडपंप पर जल के लिए लगी कतारसरकारी हैंडपंप पर जल के लिए लगी कतारबुंदेलखंड पैकेज की बंदरबांट हो रही है और योजनाएं जरूरतमंद तक नहीं पहुंच पा रही हैं। जालौन के ही रामहेतपुरा गांव के किसान बलवान कहते हैं कि बुंदेलखंड पैकेज में किसानों के लिए कुछ नहीं है लेकिन अधिकारियों के खाने-कमाने के लिए पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं। हमारे गांव में सबसे अधिक बैंगन की खेती होती है। 90 फीसदी किसान छोटे और मझोले हैं लेकिन इन किसानों के उत्पाद को सही बाजार उपलब्ध कराने व अन्य सहायक सुविधाएं देने के लिए पैकेज में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। जनपद जालौन के अत्यंत गरीब पंचायत मिर्जापुरा जागीर के प्रधान तेज सिंह पाल कहते हैं कि उनके गांव में सबसे अधिक गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी है जिसका सबसे प्रमुख कारण सिंचाई की सुविधाओं का अभाव है लेकिन उनके गांव में भी पैकेज के तहत क्या कार्य स्वीकृत कराए गए हैं यह उन्हें आज तक पता नहीं है।

बुंदेलखंड आपदा निवारक मंच के संयोजक रामकृष्ण शुक्ला कहते हैं कि बुंदेलखंड पैकेज के लिए कार्ययोजना का निर्धारण अधिकारियों ने बिना स्थलीय निरीक्षण किए ही कर लिया। जबकि योजनाओं का निर्माण समुदाय, जनप्रतिनिधि और विशेषज्ञों की सहमति के आधार पर किया जाना चाहिए था। हद तो यह है कि जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को यह तक पता नहीं है कि किस विभाग द्वारा किस गांव या क्षेत्र में इस पैकेज के तहत क्या कार्य कराया जा रहा है? विभागों की रिपोर्ट स्वीकृत, अवमुक्त और व्यय राशि ही दर्शा रही है। खर्चे गए पैसों का प्रभाव जमीन पर दिखे इसकी चिंता किसी को नहीं है। किसान नेता साहब सिंह कहते हैं कि जालौन में रामगंगा कमांड द्वारा भूमि एवं जल संरक्षण के कार्य के तहत विभाग ने पूर्व के कार्य को ही नया बता कर फिर से पैसों की हेराफेरी की है।

मसलन, उरई से कानपुर की तरफ जाने वाले एनएच 25 के किनारे आटा मौजे से लेकर भदरेखी तक के संपर्क मार्ग को रिपेयर कराकर नया दर्शाया गया है। इसी तरह अधिकांश गांवों में पुराने कार्य को नया बताकर भुगतान प्राप्त किया गया है। कदौरा क्षेत्र के हांसा गांव के देवीदीन किसान कहते हैं कि पैकेज के तहत जालौन में कूप बनाए जाने थे लेकिन इस दिशा में प्रगति दिखाई नहीं दे रही है। अधिकारियों में इलाके का इतना कम ज्ञान है कि भले ही जालौन में ब्लास्ट वेल नहीं बनाए जा सकते लेकिन कार्ययोजना में जनपद जालौन के लिए ब्लास्ट वेल डाल दिया गया है। सामाजिक कार्यकर्ता बलिराम निनावली कहते हैं कि बुंदेलखंड पैकेज रिश्वतखोरी के मकड़जाल में फंस गया है। जिले के स्तर पर इसकी सफल मॉनीटरिंग तो दूर संपूर्ण जानकारी के संकलन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। उन्होंने लूट-खसोट की एक नजीर के तौर पर बताया कि चार विभागों ने किसानों के प्रशिक्षण के नाम पर लगभग 20 लाख रुपए चट कर डाले हैं।

यूपी एग्रो से जब पूछा गया कि आपने कितने रुपए की धनराशि के उपकरण बांटे हैं तो वह संतोषजनक जवाब नहीं दे पाया। कृषि विभाग द्वारा जनपद के किसानों को प्रशिक्षण देने के लिए लगभग 20 लाख रुपए की धनराशि का व्यय ठीक ढंग से नहीं किया। किसानों के अध्ययन भ्रमण में अधिकारियों ने अपने मनपसंद एनजीओ के माध्यम से किसानों के टूर कराए जिनमें फर्जी ढंग से किसानों की संख्या दिखाई गई। उरई सदर के कांग्रेस के विधायक विनोद चतुर्वेदी कहते हैं कि वह चाहकर भी पैकेज के तहत कराए जा रहे कार्यों की सही जानकारी नहीं पा सके। बुंदेलखंड में खेती संवर नहीं रही। किसान संभल नहीं पा रहे। कर्ज लेकर उबरने के प्रयास बेकार चले गए हैं और अब कर्ज वसूली को लेकर बैंकों के साथ ही साहूकारों ने जिस तरह शिकंजा कसना शुरू किया है उससे किसानों के जीने का हौसला एक बार फिर जवाब देने लगा है। पिछले कुछ हफ्तों में बांदा जिले में आधा दर्जन किसानों ने आत्महत्या कर ली है। भुखमरी और तंगहाली भी जानलेवा साबित हो रही है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के नुमाइंदे इन मौतों के वास्तविक कारणों पर पर्दा डाल रहे हैं। आत्महत्या करने वाले किसानों में किसी को विक्षिप्त तो किसी को नशेड़ी बताकर उनके परिजनों के जख्मों पर नमक छिड़का जा रहा है।

जानलेवा बनी तंगहाली और भुखमरी के साथ ही कर्ज से लदे किसानों की आत्महत्याओं के मामले लगातार सुर्खियों में छाए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राहुल गांधी बीते 30 अप्रैल को बांदा आए थे। इसके दो दिन पहले 28 अप्रैल को नरैनी इलाके के पड़मई गांव में जगप्रसाद नामक किसान ने कमजोर फसल देखकर खेत में बबूल के पेड़ से लटक फांसी लगा ली थी। अगले दिन 29 अप्रैल को नरैनी इलाके के ही नहरी गांव में भुखमरी जैसे हालातों से जूझते हुए हीरामन की मौत हो गई थी। इसी नहरी गांव में नौ लोगों के भूख से दम तोड़ देने पर वर्ष 2007 में कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने आधी रात को पहुंचकर ग्रामीणों को हालात बदलने का भरोसा दिलाया था। बैंकों और साहूकारों की कथित सख्ती से त्रस्त होकर जान देने वाले पड़मई गांव के किसान जगप्रसाद तिवारी को जिले के अधिकारियों ने भले ही आनन-फानन में विक्षिप्त करार दे दिया हो लेकिन मनमोहन-राहुल की रैली को लेकर बांदा में कैंप कर रहीं कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रीता जोशी ने अगले दिन मृतक के घर पहुंचकर बसपा सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। मनमोहन-राहुल के मंच से भी जग प्रसाद और हीरामन की मौत की गूंज सुनाई दी थी लेकिन इसके बाद यह गूंज कहीं गुम सी हो गई है।

कई गांवों में पुराने कुएं ही है पेय जल के स्रोतकई गांवों में पुराने कुएं ही है पेय जल के स्रोत

इसी बीच बांदा में चार और किसानों ने आत्महत्या कर ली। कर्ज चुकाने की चिंता सभी की चिता का कारण बनी है। बीते 16 मई को प्रमुख सचिव नवतेज सिंह जब अंबेडकर गांव छिबांव का स्थलीय निरीक्षण कर रहे थे, तभी इस इलाके के अनथुआ गांव में कर्ज में डूबा किसान मइयादीन फांसी के फंदे पर झूल गया लेकिन नवतेज सिंह ने किसान की आत्महत्या का कोई संज्ञान नहीं लिया। इसके साथी ही जिले के अधिकारियों ने आत्महत्या के वास्तविक कारणों को झुठलाने में तनिक भी देर नहीं लगाई। मृतक को नशेड़ी बता दिया गया। दो दिन बाद ही 18 मई को बदौसा गांव में ट्रैक्टर की किस्त बैंक में जमा न कर पाने से चिंत्तित किसान प्रमोद तिवारी ने आग लगाकर जान दे दी। मृतक का भाई उदय तिवारी भी कुछ साल पहले कर्ज के चलते आग लगाकर जान दे चुका है।

इससे पहले नौ और 10 मई को भी कर्ज न चुका पाने की चिंता में दो किसान फांसी के फंदे पर झूल गए। नौ मई को बबेरू इलाके के भदवारी गांव में छोटू नामक युवा किसान ने विषम परिस्थितियों में शादी का सेहरा बांधने से पहले फांसी के फंदे को चूम लिया। पहले से लिए गए कर्ज को चुकाने का दबाव झेल रहे छोटू ने किसान क्रेडिट कार्ड बनवाकर हालातों से उबरने का भरोसा बांधा था लेकिन बैंकों की कमीशनखोरी पर खुद को खरा न पाकर उसे मौत वरण करने के सिवाय कुछ नहीं सूझा। जबकि 10 मई को तिंदवारी इलाके के पपरेंदा गांव में कर्ज आदायगी को लेकर बैंकों और साहूकारों की तथाकथित सख्ती के बीच श्याम सिंह नामक किसान पत्नी की हत्या करने के बाद खुद भी फांसी के फंदे पर झूल गया। यह सारे मामले सुर्खियों का हिस्सा बनने के बावजूद प्रशासनिक संवेदनशीलता से अछूते रह गए हैं।

डेढ़ लाख किसान और साढ़े चार अरब रुपए का कर्ज


बकाएदार किसानों से जब्त ट्रैक्टरबकाएदार किसानों से जब्त ट्रैक्टरबुंदेलखंड में कर्ज के चलते किसानों के जान देने का यह सिलसिला तब सामने आया है जब किसानों को कर्जे से उबारने के लिए शासन-प्रशासन की ओर से तथाकथित राहत का पिटारा खोला गया। दरअसल, योजनाएं चाहे जैसे लागू की गई हों लेकिन कर्ज वसूली में सख्ती से किसानों की आत्महत्याओं के कारण बुंदेलखंड एक बार फिर चर्चा में आ गया है। पिछले कुछ सालों से बांदा-बुंदेलखंड के बद से बदतर होते हालातों के कारण किसानों ने खेती संवारने और निजी रोजगार शुरू करने के लिए अपने ऊपर अरबों रुपए का कर्ज चढ़ा रखा है। अकेले बांदा जिले में तकरीबन डेढ़ लाख किसानों ने बैंकों से लगभग साढ़े चार अरब रुपए का कर्ज लिया हुआ है। वैध-अवैध साहूकारों से कर्ज ली गई रकम भी करोड़ों मे बताई जाती है। बांदा के लगभग 13 हजार किसानों पर किसान क्रेडिट कार्ड से लिए गए करीब 25 करोड़ रुपए की देनदारी चढ़ी है। तीन हजार से ज्यादा किसानों को डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया है। इससे किसानों में हड़कंप है। दबाव नहीं झेल पा रहे किसान आत्महत्या कर रहे हैं।

इसके उलट बुंदेलखंड के सातों जिलों में सहकारी, ग्रामीण और राष्ट्रीयकृत बैंकों के 50 हजार रुपए तक के कर्ज पर बकाया ब्याज माफ कर दिए जाने के लिए मायावती सरकार के कसीदे काढ़े जा रहे हैं। सरकारी नुमाइंदों का कहना है कि इसके अलावा प्रदेश के प्रमुख सचिव राहत के.के. सिन्हा ने वसूली के लिए बकाएदार किसानों के खिलाफ किसी भी उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगा रखी है। आरसी जारी करने की सीमा एक लाख से बढ़ाकर दो लाख रुपए कर दी गई है। इलाहाबाद बैंक ने समझौता योजना जोर-शोर से लागू कर रखी है। योजना के तहत 75 फीसदी बकाया कर्ज जमा करने पर 25 फीसदी की एकमुश्त छूट के साथ अगला ऋण तुरंत स्वीकृत करने के बाद लुभावना प्रावधान शामिल किया गया है।

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