अंबरीश कुमार

अंबरीश कुमार
शारदा नदी के तट पर किसानों का जल सत्याग्रह
Posted on 06 Mar, 2013 10:07 AM
शारदा नदी ने बीते कई बरसों में सीतापुर जिले के चार विकास खंडों- रेऊसा, सकरन, रामपुर मथुरा और बेहटा के
बहुराष्ट्रीय कंपनियों की चली तो गर्मी में सूख जाएगी गंगा
Posted on 13 Feb, 2013 01:00 PM

कुंभ की जल संसद में उठेगा गंगा और यमुना के पानी के संकट का सवाल

कमलनाथ के क्षेत्र में बिना मंजूरी के बन रहा है बांध, किसान आंदोलन पर
Posted on 05 Nov, 2012 11:08 AM
1984 में जब पर्यावरण मंत्रालय नहीं था तब एक सादे कागज पर मंजूरी दी
बुंदेलखंड में सूखे का संकट
Posted on 26 Jul, 2012 04:20 PM
जिस बुन्देलखंड में कुंओं की खुदाई के समय पानी की पहली बूंद के दिखते ही गंगा माई की जयकार गूंजने लगती थी, वहां अब अकाल की छाया मंडराने लगी है। सूखे खेतों में ऐसी मोटी और गहरी दरारें पड़ गई हैं, जैसे जन्म के बैरियों के दिलों में होती हैं। बुंदेलखंड में पानी का संकट की नया नहीं है। लेकिन जिस तरह से कुछ सालों में प्राकृतिक संसाधनों की लूट ही है उससे हालत पुरी तरह बिगड़ गई है। चंदेलकालीन सैकड़ों ताल
बुंदेलखंड की नदियों पर मंडरा रहा संकट
Posted on 28 Jun, 2012 02:21 PM
चंबल, नर्मदा, यमुना और टोंस आदि नदियों की सीमाओं में बसने वाला क्षेत्र बुंदेलखंड तेजी से रेगिस्तान बनने की दिशा में अग्रसर है। बुंदेलखंड की धड़कन मानी जाने वाली बेतवा नदी के साथ हो रही छेड़-छाड़ से जल संकट बढ़ गया है। जालौन और झांसी में बालू माफिया के कारण सबसे बड़ा संकट बेतवा नदी पर है। झांसी में बजरी की बढ़ती मांग और चढ़ते दामों के चलते अवैध खनन बढ़ गया है। केन, बेतवा, धसान, और पहुज जैसी ज्या
अपने उद्गम पर बेदम शिप्रा नदी
Posted on 28 Jun, 2012 08:44 AM
मानव समाज विकास के अंधी दौड़ में इतना पागल हो गया है कि अपने जीवनदायिनी नदियों को खत्म करता जा रहा है। जो नदियां कभी मानव समाज तथा जंगलों को अपने जल से सिंचती थीं आज अपने अस्तित्व को बचाने में लगी हैं। इसी तरह हल्द्वानी में बरसाती नदी शिप्रा अपने उद्गम स्थल श्यामखेत में ही आबादी वाले इलाके के रूप में बदल चुकी है। इन छोटे-छोटे बरसाती नदियों के वजह से ही बड़ी नदियों में हमेशा पानी रहता है। लोगों
पर्यावरण विनाश की कीमत चुका रहा बुंदेलखंड
Posted on 20 Apr, 2012 02:53 PM

जो हाल यहां पानी का मई-जून की भीषण गर्मियों में होता था इस बार अप्रैल में ही देखने को मिल रहा है। जालौन जिले पर

बागमती को बांधे जाने के खिलाफ खड़े हुए किसान
Posted on 11 Apr, 2012 06:02 PM

नदी व बाढ़ विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार मिश्र ने कहा-तटबंध बांध कर नदियों को नियंत्रित करने के बदले सरकार इसके पानी को निर्बाध रूप से निकासी की व्यवस्था करे। तटबंध पानी की निकासी को प्रभावित करता है। टूटने पर जान-माल की व्यापक क्षति होती है। सीतामढ़ी जिले में बागमती पर सबसे पहला तटबंध बनने से मसहा आलम गाँव प्रभावित हुआ था। उस गाँव के 400 परिवारों को अब तक पुनर्वास का लाभ नहीं मिला है और रुन्नीसैदपुर से शिवनगर तक के 1600 परिवार पुनर्वास के लाभ के लिए भटक रहे हैं।

नेपाल से निकलने वाली बागमती नदी को कई दशकों से बांधा जा रहा है। यह वह बागमती है जिसकी बाढ़ का इंतजार होता रहा है बिहार में वह भी बहुत बेसब्री से। जिस साल समय पर बाढ़ न आए उस साल पूजा पाठ किया जाता एक नहीं कई जिलों में। मुजफ्फरपुर से लेकर दरभंगा, सीतामढ़ी तक। वहां इस बागमती को लेकर भोजपुरी में कहावत है, बाढ़े जियली-सुखाड़े मरली। इसका अर्थ है बाढ़ से जीवन मिलेगा तो सूखे से मौत।
संकट में समुद्र तट
Posted on 30 Jan, 2012 06:04 PM
केरल का मशहूर कोवलम तट सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहा है। लेकिन बाजार के बढ़ते प्रभाव ने कोवलम की खूबसूरती को संकट में डाल दिया है। इस तट की खूबसूरती और खतरे की जानकारी दे रहे हैं अंबरीश कुमार।
महुआ फूले सारा गाँव
Posted on 22 Aug, 2011 04:39 PM

सरस मूर्तियों के लिए मशहूर खजुराहो के आसपास महुआ के फूलों को झड़ते देखना एक अलग तरह का अनुभव है। ये फूल आदिवासी समाज के लिए रोजी-रोटी का जरिया भी है। इन फूलों की मादकता और सामाजिक सरोकार खजुराहो के आसपास के गाँवों में महसूस किया जा सकता है। मध्य प्रदेश का मशहूर पर्यटन स्थल खजुराहो आज भी एक गाँव जैसा नजर आता है। खजुराहो से बहार निकलते ही महुआ के फूलों की मादकता महसूस की जा सकती है। अप्रैल से मई

खजुराहो के मंदिरों के सामने झाड़ू से महुआ बटोरता नंदलाल
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