पंकज चतुर्वेदी

पंकज चतुर्वेदी
उम्मीदों की जल बूँदों से तृप्त बुन्देलखण्ड
Posted on 04 Jul, 2016 10:51 AM


एक साल की अतिवर्षा और लगातार तीन साल से सूखे की मार से बेहाल बुन्देलखण्ड में आषाढ़ की पहली फुहारें उम्मीदें लेकर आई हैं। ना तो बुन्देलखण्ड में यह सूखा पहली बार पड़ा है और ना ही यहाँ की यह पहली बारिश है, फिर भी इस बार आसमान से टपकती रजत बूँदें कुछ अलग अनुभूति दे रही हैं।

सूखे का निदान परम्परागत जल प्रणाली
Posted on 21 Jun, 2016 12:57 PM

देश की महज पाँच प्रतिशत जमीन पर पाँच मीटर औसत गहराई में बारिश
भोग संस्कृति के विकास से संकट में है धरती
Posted on 19 Jun, 2016 12:19 PM


भारतीय ज्ञापनीठ की पहचान प्राय ‘स्तरीय कथा साहित्य प्रकाशित करने वाली संस्था के तौर पर होती है, लेकिन हाल ही में उन्होंने प्रकृति पर मँडरा रहे अस्तित्व के संकट की ओर आम लोगों का ध्यान आकृष्ट करवाने के उद्देश्य से ‘ज्ञान गरिमा’ पुस्तकमाला के अन्तर्गत पर्यावरण से जुड़े कुछ आलेखों का संकलन प्रकाशित किया है।

कहीं घर में तो नहीं घुटता है दम
Posted on 31 May, 2016 09:35 AM

प्रदूषण का नाम लेते ही हम वाहनों या कारखनों से निकलने वाले का
भारत के लिये लाभकारी भी हो सकता है धरती का बढ़ता तापमान
Posted on 26 May, 2016 01:29 PM

दो दशक पहले प्रिंस्टन विश्वविद्यायल के एक शोध में बताया गया थ
पाबन्दी जरूरी है प्लास्टिक बोतलों पर
Posted on 17 May, 2016 12:44 PM

हाल ही में केन्द्र सरकार ने आदेश दिया है कि अब सरकारी आयोजनों में टेबल पर बोतलबन्द पानी की बोतलें नहीं सजाई जाएँगी, इसके स्थान पर साफ पानी को पारम्परिक तरीके से गिलास में परोसा जाएगा। सरकार का यह शानदार कदम असल में केवल प्लास्टिक बोतलों के बढ़ते कचरे पर नियंत्रण मात्र नहीं है, बल्कि साफ पीने का पानी को आम लोगों तक पहुँचाने की एक पहल भी है।
कमी भोजन की नहीं प्रबन्धन की है
Posted on 13 May, 2016 09:55 AM


सूखे और पानी से त्रस्त बुन्देलखण्ड में जहाँ भूख से मौतें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर केन्द्र और राज्य सरकार के बीच पानी एक्सप्रेस को लेकर विवाद में मशगूल हैं।

यह वक्त भविष्य सँवारने का है
Posted on 06 May, 2016 10:54 AM

देश में इस समय गर्मी चरम पर है और साथ ही आजादी के बाद के भयंकरतम सूखे की त्रासदी भी विकट रूप से सामने आ रही है। ऐसी विपरीत परिस्थितयों में भी कुछ गाँव-मजरे ऐसे भी हैं जो रेगिस्तान में ‘नखलिस्तान’ की तरह इस जलसंकट से निरापद हैं। असल में वे लोग पानी जैसी जरूरतों के लिये सरकार पर निर्भरता और प्रकृति को कोसने की आदतों से पहले ही मुक्त हो चुके थे।
जिन्होंने सूखे को मात दे दी
Posted on 03 May, 2016 01:32 PM

टीकमगढ़ जिले में पारम्परिक ज्ञान पर आधारित बराना गाँव के चन्द
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