वजूद खोने लगे है चंदेलों के बारह सौ साल पुराने तालाब

कीरत सागर तालाब
कीरत सागर तालाब

पानी के लिए शुरू हुई बुंदेलखंड में जंग


कीरत सागर तालाबमहोबा, 17 अप्रैल। बुंदेलखंड में पानी के लिए जंग शुरू हो गई है। पानी के लिए एक हफ्ते में बुंदेलखंड में दो हत्याएं हो चुकी हैं। एक हत्या महोबा में दो दिन पहले हुई तो 10 अप्रैल को पानी के लिए ही टीकमगढ़ में एक की जान ले ली गई। आल्हा उदल की इस जमीन पर पहले जान ली जाती थी आन, बान, शान के लिए अब पानी के लिए लोग जान ले सकते हैं।

बुंदेलखंड में जल संकट का इन घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है। महोबा में कोई नदी नहीं है। इसी वजह से चंदेल राजाओं ने बड़े-बड़े तालाब बनवाए जिन पर यहां की समूची आबादी बारह सौ साल तक निर्भर रही। लेकन चंदेल राजाओं के बनाए बारह सौ साल पुराने तालाब अब वजूद खोने लगे हैं। यह हाल चंदेलों के बनवाए सभी छह बड़े तालाबों का है। करीब आठ वर्ग किलोमीटर कीरत सागर तालाब में सब्जियों की खेती हो रही है तो एक इलाके में लोगों ने तालाब पाट कर घर बना लिए हैं। कीरत सागर तालाब का बड़ा हिस्सा सूखा पड़ा है और कुछ जगह एक दो फुट पानी में भैसों के साथ बच्चे छपकी लगाते नजर आते हैं। चंदेलों के बनाए तालाबों में कीरत सागर, मदन सागर, रहील्य सागर, कल्याण सागर, विजय सागर और दिसरापुर सागर जैसे तालाबों का यही हाल नजर आया।

महोबा में चंदेलों के बनाए छह बड़े तालाबों के अलावा 270 तालाब, पाँच बांध और डेढ़ हजार कुएं हैं। सब बदहाली की दशा में हैं। तालाब तो पाटे ही जा रहे हैं, कुंए भी पाट कर घर बनाए जा रहे हैं। इस पूरे इलाके में गर्मी बढ़ती जा रही है साथ ही जल संकट बढ़ गया है। पानी के परंपरागत स्रोतों को खत्म करने से यह संकट और गहराता जा रहा है । महोबा में चंदेलों के बनाए इन तालाबों की दशा देख कर आने वाले संकट का अंदाजा लगाया जा सकता है।

समद नगर मोहल्ला कल्याण सागर ताल के एक हिस्से पर खड़ा है। इस पर सत्तारूढ़ दल के सांसद विजय बहादुर सिंह के सिपहसलार मजबूत सिंह की महलनुमा कोठी साफ बताती है कि इन तालाबों को कौन और किसकी शह पर पाटा जा रहा है। यह पूरा इलाका राजनीतिक लूट-खसोट का जीता जागता उदाहरण है। कबरई में 400 स्टोन क्रशर पर्यावरण को बुरी तरह चौपट कर चुके हैं ये क्रशर इलाके के मजबूत लोगों के हैं। ये लोग रोज दस क्विंटल बारूद का विस्फोट कर पहाड़ों को खाई में बदल रहे हैं। कबरई का लोडा पहाड़ अब तीन सौ मीटर खाई में तब्दील हो चुका है और अब नीचे पानी आने से पहले पानी निकाला जाता है, फिर खनन का काम होता है।

कुछ साल पहले जब इस संवाददाता ने महोबा की तत्कालीन कलेक्टर अनीता चटर्जी से इस समस्या पर बात की तो उनका मनोरंजक जवाब था- पहाड़ अगर खाई में बदल जाएगा तो बरसात में पानी उसमे भर जाएगा और जल संकट दूर हो जाएगा। महोबा में जल संकट तो दूर नहीं हुआ, लेकिन अनीता चटर्जी जरुर दूर भेज दी गईं।महोबा के मौजूदा कलेक्टर वीवी पंत का मानना है कि उर्मिल योजना से महोबा का जल संकट हल हो जाएगा। लेकिन महोबा में पानी के संकट के पीछे चंदेलों के बनाए तालाबों का बदहाल होना है। सिर्फ महोबा ही नही आसपास के इलाकों का भी यही हाल है चाहे टीकमगढ़, छतरपुर, हमीरपुर, जालौन, ललितपुर या फिर बांदा हो, हर जिले में चंदेल राजाओं के बनाए तालाब मिटते जा रहे हैं। बुंदेलखंड में सूखा और अकाल कोई नई बात नहीं है। लेकिन बुंदेलखंड इनका मुकाबला इन्हीं तालाबों से आसानी से कर लेता था। अब जब ये तालाब वजूद खोने लगे हैं तो संकट और बढ़ रहा है। इन तालाबों को बचा लिया जाए तो आज भी बुंदेलखंड की पानी की समस्या काफी हद तक दुरुस्त हो जाएगी।

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