बुन्देलखण्ड का पठारी भाग मध्यप्रदेश के उत्तरी भाग में 2406’ से 24022’ उत्तरी अक्षांश तथा 77051’ पूर्वी देशांतर से 80020’ पूर्वी देशांतर के मध्य स्थित है। इस पठार के अन्तर्गत छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया, शिवपुरी, ग्वालियर और भिण्ड जिलों के कुछ भाग आते हैं। इसका भौगोलिक क्षेत्रफल मध्यप्रदेश के कुल क्षेत्रफल 23,733 वर्ग किलोमीटर का 5.4 प्रतिशत है। इसके पूर्वोत्तर में उत्तर प्रदेशीय बुन्देलखण्ड के जालौन, झाँसी, ललितपुर, हमीरपुर और बाँदा, महोबा, चित्रकूट जिले हैं।
बुन्देलखण्ड का पठार प्रीकेम्बियन युग का है। पत्थर ज्वालामुखी पर्तदार और रवेदार चट्टानों से बना है। इसमें नीस और ग्रेनाइट की अधिकता पायी जाती है। इस पठार की समुद्र तल से ऊँचाई 150 मीटर उत्तर में और दक्षिण में 400 मीटर है। छोटी पहाड़ियाँ भी इस क्षेत्र में है। इसका ढाल दक्षिण से उत्तर और उत्तर-पूर्व की ओर है।
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बुन्देलखण्ड का पठार तीन ओर से अर्द्ध-चन्द्रकार पन्ना श्रेणी, बिजावर श्रेणी, नरहर स्कार्प तथा चंदेरी पाट से घिरा है। इस पठार की साधारण ढाल उत्तर की ओर है। यहां उत्तर की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ बेतवा और धसान हैं, जो यमुना की सहायक नदियाँ हैं। बुन्देलखण्ड का पठार मध्यप्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, दतिया, ग्वालियर तथा शिवपुरी जिलों में विस्तृत है। सिद्धबाबा पहाड़ी (1722 मीटर) इस प्रदेश की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है। इस पठार प्रदेश के धरातल पर समतलप्राय मैदान, टोर (ग्रेनाइटयुक्त) छोटी-छोटी पहाड़ियाँ और डाइक भी देखने को मिलते हैं।
बुन्देलखण्ड के अधिकतर भाग में हल्की ढलवा और समतल प्राय भूमि है। जिसके बीच-बीच में कहीं-कहीं छोटी पहाड़ियाँ हैं। मिट्टी बलुई दोमट है। दोमट मिट्टी काली और लाल मिट्टी के मिश्रण से बनती है। जलोढ़ मिट्टी का जनक पदार्थ बुन्देलखण्ड, नीस तथा चम्बल द्वारा निक्षेपित पदार्थ है। मध्यप्रदेश का उत्तर-पश्चिमी भाग गंगा की घाटी का सीमांत है। अतः यहाँ जलोढ़ मिट्टी मिलती है। जलोढ़ मिट्टी मुरैना, भिण्ड, ग्वालियर, शिवपुरी जिलों में मिलती है। जलोढ़ मिट्टी में बालू सिल्ट तथा मृतिका अनुपात 150:19:6:29:4 पाया जाता है।
चम्बल, केन, सिन्धु, बेतवा और सोन नदियों की प्रकृति पर्वतीय है क्योंकि यह पर्वतों से जन्मी और पर्वतों के साथ ही अपनी जीवन यात्रा करती हैं। ग्रीष्म ऋतु में नाले के रूप की ये नदियाँ सूख जाती है। किन्तु बरसात में यहीं अपने पाट और घाट को असीम विस्तार देती हैं। ‘क्षुद्र नदी भर जल उतराई’ की कहावत इन पर चरितार्थ होती है। बाढ़ के कारण जन-धन की हानि का भी ये सबब बनती हैं। अमूमन इनके बाढ़ के कारण बुन्देलखण्ड में जन-धन की हानि हो जाती है। यह मिट्टी के अपरदन को भी उत्पन्न करती हैं। मिट्टी का कटाव भी ये नदियाँ बड़ी मात्रा में करती हैं, क्योंकि इनका अपवाह परवर्ती है।
विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा पर्वत प्राचीन काल से उत्तर एवं दक्षिण भारत के मध्य प्राकृतिक और सांस्कृतिक अवरोध के रूप में अडिग खड़े हैं, इसीलिए दक्षिण भारत में उत्तर भारत से अलग एक विशिष्ट संस्कृति ने जन्म लिया जो संवर्धित और समृद्ध हुई है। भारत का हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश का बुन्देलखण्ड भू-भाग वीर भूमि है। जिसे जैजाक भुक्ति, युद्ध देश, चेदि, दशार्ण, पुलिंग देश, मध्यप्रदेश और जिजौती आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। महाराजा छत्रसाल के शौर्य पराक्रम और वीरता से विजित बुन्देलखण्ड की तत्कालीन सीमा इस प्रकार थी-
इत जमना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टौंस,
छत्रसाल सौं लरन की, रही न काहू हौंस।
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मध्यप्रदेश के पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, दतिया, सागर, दमोह और भिण्ड जिले के लहार, ग्वालियर की भाण्डेर इसके अतिरिक्त रायसेन, नरसिंहपुर, शिवपुरी की पिछोर तथा करैरा तहसीलें, गुना की मुंगावली, अशोक नगर, विदिशा की विदिशा, करबई विदिशा, बासौदा और सिरोंज और होशंगाबाद तथा सोहागपुर, जबलपुर और पाटन तेरह जिलों के अतिरिक्त शेष बुन्देलखण्ड जनपद में मानी जाती हैं। यह विभाजन भाषाई और सांस्कृतिक इकाई मानकर किया गया है। इसी प्रकार उत्तर प्रदेशीय बुन्देलखण्ड में झाँसी, ललितपुर, जालौन, महोबा, बाँदा और चित्रकूट शामिल हैं।
ऐसा कहा जाता है कि रघुवंशी हेमकरण बुन्देला के नाम से इस भूमि का नामकरण बुन्देलखण्ड हुआ। यह वीर भूमि अनेकों बार रक्तरंजित हुई है। खून की बूंदें गिरने से इसको बुन्देलखण्ड कहते हैं।
पं. बनारसी दास चतुर्वेदी ने एक बार ‘मधुकर’ पत्रिका (15 मई 1941) में लिखा था कि शांति निकेतन का प्राकृतिक सौंदर्य बुन्देलखण्ड की छटा के सामने पानी भरता है।
महर्षि पाराशर, वेदव्यास, कुंभज, उद्दालक और लोमश ऋषि-मुनियों की बुन्देलखण्ड प्राकट्य स्थली यह पावन धरती रही है। यहाँ तुलसीदास, केशवदास, भूषण, जगनिक, बीरबल, लक्ष्मीबाई, छत्रसाल, हरदौल, आल्हा, ऊदल जैसे विभूतियों ने जन्म लिया है।
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