सुरेश मालवीय

सुरेश मालवीय
बुन्देली में जल का महत्व
Posted on 10 Mar, 2010 08:39 AM अनादिकाल से मनुष्य के जीवन में नदियों का महत्व रहा है। विश्व की प्रमुख संस्कृतियाँ नदियों के किनारे विकसित हुई हैं। भारत में सिन्धु घाटी की सभ्यता इसका प्रमाण है। इसके अलावा भारत का प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास भी गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा तट का इतिहास है। ऐसा माना जाता है कि सरस्वती नदी के तट पर वेदों की ऋचायें रची गईं, तमसा नदी के तट पर क्रौंच-वध की घटना ने रामायण संस्कृति को जन्म दिया। आश्रम
ज्यौ पनहरिया भरे कुंआ जल, हांत जोर सिर नावै
Posted on 13 Jun, 2010 11:58 AM

कबीर भजन


जैसे नटिया नट करत है, लंबी सरद पसारें
कुम्भकरन अधर चलत है, ऐसी सादन सादें।
माटी को वरतन बनो है, पानी मिलकर सानों,
विकसजात दिन एक में भैया, क्या राजा क्या रानी।
कहावतें/लोकोक्तियाँ
Posted on 13 Jun, 2010 10:59 AM 1. सेत बरसें खेत भर, कारे बरसें पारे भर।
जब उठें धुआंधारे, तब आंय नदिया नारे।

2. तीतर पारवी बादरी, विधवा काजर देय।
वे बरसे वे घर करें, ईमें नयी सन्देह

3. धूनी दीजे भांग की, बबासीर नहीं होय।
जल में घोलो फिटकरी, शौच समय नित धोय।

4. निन्नें पानी जो पियें, हर्र भूंजके खांय।
मैं सरजू जल भरन जात
Posted on 12 Jun, 2010 07:11 PM

रसिया


रसिया बिन देखे मोये कल न परत
मैं सरजू जल भरन जात, मृदु मुस्क्या कें अंक भरे।

रसिक को देखे बिना मन में अशांति रहती है। मैं सरजू का जल भरने गयी तो उन्होंने मुस्कुराकर मुझे अपने हृदय से लगा लिया।

ख्याल


रतन कुंआ मुख सांकरे, अलबेली पनहार
अचला छोरें जल भरे, कोऊ हीन पुरस की नार
धीरें चलो पनहारी गगर छलके न तुमारी।
चौकड़िया
Posted on 12 Jun, 2010 05:30 PM सावन में मनभावन मोपै एसी विछरन डारी
मोरी जा है बारी बैस, जाये कैसे सहो कलेश
आपुन छाये सौत के देश, न खबर लई।
भादों जल बरसे गंभीर,
मोरे उठे करेजें पीर
थर-थर कांपै मोर शरीर,
सुध बुध भूल गई।
गज उर ग्राह लड़े जल भीतर जब
Posted on 12 Jun, 2010 05:03 PM गज उर ग्राह लड़े जल भीतर जब।
गज ने पुकार करी, करूणा से हरी की तब।

एक समय गज और ग्राह पानी के भीतर लड़े थे। तब गजराज ने प्रभु का स्मरण किया तो भक्त की करुणा भरी पुकार सुनकर प्रभु ने उसकी रक्षा की थी।

बांदकपुर नये धाम बनाये,
जागेसुर महराज
काहे की कांउर काहे को सीसा,
काहे को जल भर ल्याई
बंसा की कांउर कांच को सीसा,
जग में को पानी की सानी
Posted on 12 Mar, 2010 09:25 AM जग में को पानी की सानी, सब चीजें हरयानी।
ई पानी से प्रगट भये हैं, ऋषि मुनि और ज्ञानी।
पानी की तरवार सीसते, तरवा जाय समानी।
बेपानी बेकार होत हैं, मानुस की जिन्दगानी।
पानी से सब होत नरायन, वहाँ से पैदा पानी।
फाग गणेश वंदना
Posted on 12 Mar, 2010 08:58 AM अरे हाँ देवा सेवा तुम्हारी ना जानों-
गन्नेसा गरीब निवाज
अरे हाँ काहे के गनपति करो,
कहाँ देऊं पौढ़ाय-
अरे हाँ गोवर के गनपति करों,
पटा देऊ पौढ़ाय-
अरे हाँ देवा काहे के भोजन करों,
कहो देऊ अचवाय
अरे हाँ देवा दूध-भात भोजन करो,
गंगाजल अचवाय
कुआँ पूजन
Posted on 10 Mar, 2010 09:04 AM ऊपर बदर घुमड़ाय री गोरी धना पनियां खों निकरीं।
जाय जो कईयो उन राजा ससुर सें, अंगना में कुंअला खुदाव रे
तुमारी बहू पनियां खों निकरीं
चौकड़िया
Posted on 10 Mar, 2010 08:50 AM सब सों बोलो मीठी बानी, थोड़ी सी जिन्दगानी
येई बानी सुरलोक पठावै, येई नरक निशानी
येई बानी हाथी चढ़वायै, येई उतारे पानी
येई बानी सें तरें ईसुरी, बड़े-बड़े मुनी ज्ञानी।
×