जल गुणवत्ता पखवाड़ा : जल गुणवत्ता नियंत्रण उपायों के लिए 15 दिवसीय अभियान
इस अभियान के माध्यम से पानी की गुणवत्ता, भंडारण, सुरक्षित जल रख-रखाव और प्रबंधन से संबंधित नियंत्रण उपायों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने के लिए 1,00,000 जल बहिनियां, 273 पैनल में शामिल आईएसए और 19,000+ वीडब्ल्यूएससी राज्य के 19,676 गांवों में पहुंचेंगी।
पानी की गुणवत्ता की पर्यवेक्षण और निगरानी
सूख रहे झरनों का पुनरुत्थान
खासकर सर्दी के आते ही लोगों को पानी की किल्लत का सामना करने की आदत हो गई है। साल-दर-साल समस्या विकराल होती जा रही है।  विशेषज्ञ मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, खनन और खेती के स्लेश एंड बर्न सिस्टम (झूम खेती) को झरनों के सूखने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। सख्त सरकारी निषेध के बावजूद, अनियंत्रित कटाई की समस्या एक चिंताजनक मुद्दा बनी हुई है।
सूख रहे झरनों का पुनरुत्थान
बुरहानपुर : देश का पहला 'हर घर जल' सर्टिफाइड ज़िला
कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान, बुरहानपुर जिला प्रशासन द्वारा किए गए निरंतर कार्य के फलस्वरूप 34 महीने की अवधि के भीतर इसके सभी 1.01 लाख ग्रामीण परिवारों को कार्यात्मक नल के पानी के कनेक्शन प्राप्त हो गए हैं। इसके अलावा, सभी 640 स्कूलों, 547 आंगनवाड़ी केंद्रों और 440 सार्वजनिक संस्थाओं में भी पीने योग्य पानी सुलभ है। 440 सार्वजनिक संस्थाओं में 167 ग्राम पंचायतें, 50 स्वास्थ्य देखरेख केंद्र, 109 सामुदायिक केंद्र, 45 आश्रमशाला, 2 सामुदायिक शौचालय और 67 सरकारी कार्यालय शामिल हैं।
दूर-दराज़ इलाकों की महिलाओं को सदियों पुरानी मजबूरी से मिली मुक्ति,Pc-जल जीवन संवाद
जल गुणवत्ता जांच के लिए कौशल विकास का भरपूर लाभ
भविष्य के बारे में सोचते हुए हम उपर्युक्त से दो बातें सीखते हैं। एक, हम इस प्रक्रिया में और अधिक विश्वास कैसे ला सकते हैं ताकि पानी के आंकड़ों को अधिक विश्वसनीय माना जा सके। दूसरी बात का संबंध इससे है कि कोई इस प्रक्रिया के माध्यम से बनाई गई विशाल कौशल पूंजी को कैसे पहचानता है और लंबी अवधि तक इससे कैसे लाभ प्राप्त करता है।
जल गुणवत्ता जांच के लिए कौशल विकास का भरपूर लाभ
10 करोड़ ग्रामीण घर : प्रधानमंत्री ने जल जीवन मिशन द्वारा हासिल इस पड़ाव को 'सबका प्रयास' का अनुपम उदाहरण बताते हुए सराहा
गोवा ने देश का पहला 'हर घर जल सर्टिफ़ाइड' राज्य बनने का गौरव प्राप्त किया है, जिसका तात्पर्य है कि उसके हर गाँव के हर घर में नल से शुद्ध पेयजल की उपयुक्त मात्रा में नियमित रूप से आपूर्ति हो रही है, और इस तथ्य को उसके सभी गांवों ने अपनी-अपनी ग्राम सभा में विचार-विमर्श के बाद सत्यापित और प्रमाणित किया है
10 करोड़ ग्रामीण घरों में नल से शुद्ध पेयजल पहुंचा
जेजेएम कर रहा है WASH क्षेत्र में प्रगति के लिए दुनिया का मार्गदर्शन
इस कार्ययोजना के तहत भारत और डेनमार्क, नीति आयोजना, विनियमन और कार्यान्वयन के साथ-साथ प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास तथा कौशल के क्षेत्र में मिलकर समाधान की खोज करेंगे। इस कार्य योजना को लागू करने और नियमित आधार पर प्रगति की समीक्षा करने के लिए एनजेजेएम, डीईपीए और भारत में डेनमार्क के दूतावास के उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों के साथ संचालन समिति का गठन किया गया है। इसके अलावा, डेनिश सरकार, डीडीडब्ल्यूएस और डीओडब्ल्यूआर के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
जेजेएम कर रहा है WASH क्षेत्र में प्रगति के लिए दुनिया का मार्गदर्शन
वायु प्रदूषण घटा रहा है उम्र
शिकागो यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स-2023 भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित देश और दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में एक भी जगह ऐसी नहीं है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वच्छ हवा के मानकों पर खरी उतरती हो ।
वायु प्रदूषण घटा रहा है उम्र
हरियाली से है प्रकृति का श्रृंगार
प्रकृति का विषय जब आता है तो हरी-भरी धरती, गहरा- गहरा विशाल समुद्र, सफेद चमकते पर्वतआदि की कल्पना मन में आ जाती है, जो आज सफेद कागजों पर लिखी नीली स्याही के समान समय के साथ धीरे- धीरे विलीन होता जा रहा है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति और मिट्टी की बनावट का संरक्षण किए बिना सघन खेती करते रहे तो हरी- भरी जमीनें रेगिस्तानों में बदल जाएंगी। पानी के निकास का प्रबंध किए बिना सिंचाई करते रहे तो मिट्टियां कल्लर या रेतीली हो जाएंगी।
हरियाली से है प्रकृति का श्रृंगार
पर्यावरण चेतना के बुनियादी आधार
विश्व में बढ़ते बंजर इलाके फैलते रेगिस्तान, कटते जंगल, लुप्त हो पेड़-पौधे और जीव जंतु, प्रदूषणों दूषित पानी, कस्बों एवं शहरों पर गहरा गंदी हवा, हर वर्ष बढ़ते बाढ़ एवं सूखे प्रकोप इस बात के साक्षी हैं कि हम अपनी धरती, अपने पर्यावरण की ठीक देखभाल नहीं की और इससे होने वा संकटों का प्रभाव बिना किसी भेदभाव समस्त विश्व, वनस्पति जगत और प्राण मात्र पर समान रूप से पड़ा है।
पर्यावरण चेतना के बुनियादी आधार
भारत में 2080 तक भूजल में तीन गुना कमी का खतरा
भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले ही कहीं ज्यादा तेजी से अपने भूजल दोहन कर रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत में हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग किया जा रहा है, जोकि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत कृषि के लिए की जा रही है। देश में गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की सिंचाई के लिए भारत बड़े पैमाने पर भूजल पर निर्भर है।
भारत में 2080 तक भूजल में तीन गुना कमी का खतरा
भारत के वनों और शहरी हरियाली के संरक्षण द्वारा ही पर्यावरण बचाना संभव
भारतीय शहरों में पर्यावरण के प्रति लापरवाही से बचने और देश के जंगलों और शहरी हरियाली की रक्षा करने की दिशा में सशक्त नीति और अनुसंधान की अनिवार्यता पर बल दिया है। यह एक बेहद खतरनाक संकेत है कि हमारे देश में सन 1901-2018 की अवधि में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण औसत तापमान पहले ही लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और अनुमान है कि यदि हमने माकूल कदम नहीं उठाये तो 2100 के अंत तक यह बढ़ोतरी लगभग 4.4 डिग्री सेल्सियस हो जायेगी।
भारत के वनों और शहरी हरियाली के संरक्षण द्वारा ही पर्यावरण बचाना संभव
सीसा एक खतरे अनेक (Lead Poisoning Causes and Prevention in Hindi)
विगत कुछ वर्षों से इन भारी धातुओं में से कैडमियम, लैड, मरकरी, क्रोमियम निकेल जैसी धातुएँ अपनी विषाक्तता के कारण चर्चा का विषय बनी हुई हैं। इनमें से कुछ तो इतनी अधिक घातक है कि यदि दस लाख भाग में इनका एक भाग भी विद्यमान रहे तो ये जानलेवा सिद्ध हो सकती हैं। लैंड यानी सीसा एक ऐसी ही भारी धातु है जो अब पर्यावरण में प्रदूषण के रूप में जानी जाती है। शहरों में वाहनों के पेट्रोल से निकला सीसा वायुमंडल में व्याप्त रहता है अतएव यह श्वास द्वारा शरीर में प्रविष्ट होता है।
सीसा एक खतरे अनेक
Grassroot lenders achieve breakthrough in WASH financing with support from NABSAMRUDDHI and Water.org
40,000 beneficiaries have been facilitated through the ‘WASH lending program’ with a cumulative lending of Rs. 233 crores over the last 2 years
Program achieves breakthrough in gender equity, with 90% women beneficiaries to clean water, sanitation, and hygiene (Image: India Water Portal Flickr)
पेड़ों द्वारा जल का शुद्धीकरण
पेड़ वायुमण्डल को शुद्ध करने का कार्य भी करते हैं। पेड़ों से वायुमण्डल का तापमान कम होता है। पेड़ वर्षा लाने में सहायक होते हैं। वर्षा से खेती होती है। पेड़ों की अनगिनत संख्या से सघन वनों का निर्माण होता है। पेड़ों के उगने और विकसित होने में जल की महत्वपूर्ण भूमिका है। जीव के लिए जल आवश्यक है। जल जीवन का आधार है।
पेड़ों द्वारा जल का शुद्धीकरण
पर्यावरण के दुश्मन सैनेटरी पैडस
भारतीय शोधकर्ताओं ने 'ग्रीनडिस्पो' नामक एक ऐसी पर्यावरण हितैषी भट्टी का निर्माण किया है, जो सैनेटरी नैपकिन और इसके जैसे अन्य अपशिष्टों के निपटारे में मददगार हो सकती है। इस भट्टी का निर्माण हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मैटलर्जी एंड न्यू मैटीरियल्स (एआरसीआई), नागपुर स्थित सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरणीय अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) और सिकंदराबाद की कंपनी सोबाल एरोथर्मिक्स ने मिलकर किया है।
पर्यावरण के दुश्मन सैनेटरी पैडस
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं वर्तमान प्रदूषण रहित, चुनौतियों
जलवायु परिवर्तन से मिट्टी पर पड़े प्रभाव का सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि होती है और वाष्पीकरण का संतुलन खराब हो जाता है व हमारी मिट्टी की आर्द्रता असंतुलित हो जाती है। इसके परिणाम स्वरूप हमें सूखे की मार झेलनी पड़ सकती है। अगर यह स्थिति लगातार बनी रही तो मिट्टी मरूस्थल में तब्दील हो जाती है।
जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव एवं वर्तमान प्रदूषण रहित, चुनौतियों
पर्यावरण विज्ञान में बेहतर संभावनाएं
पर्यावरण रक्षक वे सभी व्यक्ति होते हैं, जिन्हें प्रकृति से प्रेम है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञ जनमानस में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के साथ पर्यावरण सुरक्षा के उपाय बताते हैं। पर्यावरण में फैलते खतरों के प्रति लोगों को आगाह कर ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के टिप्स देते हैं।
पर्यावरण विज्ञान में बेहतर संभावनाएं
पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन एवं पर्यावरण प्रबंधन
पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ई.आई.ए.) एक ऐसी महत्वपूर्ण विधा है जिसके द्वारा किसी भी परियोजना / क्रियाकलाप से संबंधित निर्णय लेते समय, उससे पर्यावरण प्रबंधन संबंधित मुद्दों को शामिल किया जाता है ताकि सतत् विकास सुनिश्चित किया जा सके कुछ वर्षों पूर्व परियोजनाओं को केवल तकनीकी एवं वित्तीय व्यावहारिकता (फाइनेंशियल लायबिलिटी) के आधार पर ही आंकलन किया जाता था एवं अनुमति दी जाती थी, लेकिन ई.आई.ए. की विधा किसी भी परियोजना क्रियाकलाप के क्रियान्वयन सहमति के लिए यह भी आवश्यक हो गया कि यह पर्यावरण की दृष्टि से भी अनुकूल हो
पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन एवं पर्यावरण प्रबंधन
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