संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई वर्ल्ड वाटर डेवलेपमेंट रिपोर्ट 2023 में जारी आंकड़ो से पता चला है कि 2050 तक शहरों में पानी की मांग 80 फीसद तक बढ़ जाएगी। वहीं यदि मौजूदा अकड़ों पर गौर करें तो दुनिया भर में शहरों में रहने वाले करीब 100 करोड़ लोग सकट से जूझ रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इससे भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा जहां पानी को लेकर होने वाली खींचातानी कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेगी।
दुनिया भर में बढ़ता तापमान अपने साथ अनगिनत समस्याएं भी साथ ला रहा है, जिनकी जद से भारत भी बाहर नहीं है। ऐसी ही एक समस्या देश में गहराता जल संकट है जो जलवायु में आते बदलावों के साथ और गंभीर रूप ले रहा है। इस बारे में अंतरराष्ट्रीय शोधकताओं द्वारा किए नए अध्ययन से पता चला है कि बढ़ते तापमान और गर्म जलवायु के चलते भारत आने वाले दशकों में अपने भूजल का कहीं ज्यादा तेजी से दोहन कर सकता है। अनुमान है कि इसके चलते 2040 से 2080 के बीच भूजल में आती गिरावट की दर तीन गुणा बढ़ सकती है। इस शोध के नतीजे एक सितंबर 2023 को अंतरराष्ट्रीय जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं।
भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले ही कहीं ज्यादा तेजी से अपने भूजल दोहन कर रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत में हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग किया जा रहा है, जोकि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत कृषि के लिए की जा रही है। देश में गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की सिंचाई के लिए भारत बड़े पैमाने पर भूजल पर निर्भर है। लेकिन जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है, खेत तेजी से सूख रहे हैं। इसके साथ ही मिट्टी में नमी को सोखने की क्षमता भी घट रही है, जिसकी वजह से भारत में भूजल स्रोतों को रीचार्ज होने के लिए पर्याप्त जल नहीं मिल रहा है। नतीजन साल दर साल देश में भूजल का स्तर तेजी से नीचे गिरता जा रहा है।
अनुमान है कि बढ़ते तापमान के साथ जल उपलब्धता में आने वाली इस गिरावट के चलते एक तिहाई लोगों की जीविका पर खतरा मंडराने लगेगा। इसके न केवल भारत में बल्कि वैश्विक परिणाम भी सामने आएंगें। साथ ही इससे देश में खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरा पैदा हो जाएगा। इस बारे में अध्ययन से जुड़ी वरिष्ठ लेखक और यूनिवर्सिटी आफ मिशिगन के स्कूल फॉर एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी में सहायक प्रोफेसर मेहा जैन का कहना है कि भारत में किसान बढ़ते तापमान से निपटने के लिए अधिक सिंचाई का उपयोग कर रहे हैं। यह एक ऐसी रणनीति जिस पर भूजल में आती गिरावट के पिछले अनुमानों के बारे में विचार नहीं किया गया है। उनके मुताबिक यह चिंताजनक है। क्योंकि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा भूजल का उपयोग करने वाला देश है जो क्षेत्रीय और वैश्विक खाद्य उत्पादन दोनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
अध्ययन में इस बात पर गौर किया गया है कि देश में बढ़ते तापमान के चलते फसलों पर पड़ने वाले दबाव से निपटने के लिए पानी की मांग बढ़ सकती है। इसकी वजह से किसानों को फसलों की सिंचाई में वृद्धि कर सकती है। शोध के अनुसार बढ़ते तापमान और सर्दियों में बारिश में आती गिरावट के चलते भूजल में गिरावट आ रही है, जिसकी भरपाई मानसून में होने वाली अतिरिक्त बारिश भी नहीं कर पा रही।
अंतरराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि 2050 तक दुनिया के 79 फीसद तक भूजल स्रोत खत्म हो जाएंगे वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उत्तर भारत जोकि देश में गेहूं और चावल का प्रमुख उत्पादक क्षेत्र है, वहां 5,400 करोड़ घन मीटर प्रति वर्ष की दर से भूजल घट रहा है ।
नीति आयोग ने भी अपनी एक रिपोर्ट में देश में लगातार घटते भूजल के स्तर को लेकर चिंता जताई थी। इस रिपोर्ट के अनुसार भूजल यह गिरावट 2030 तक गंभीर खतरे का रूप ले लेगी। इतना ही नहीं 2020 तक दिल्ली, बेंगलरू, चेन्नई और हैदराबाद सहित 21 शहरों में भूजल करीब-करीब खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगा। एक अन्य अध्ययन से पता चला है कि पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले में भूजल का स्तर औसत से 27.8 फीसद तक घट गया है। वहीं कोलकाता में भी भूजल में 18.6 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है। इतना ही नहीं अनुमान है कि 2025 तक कोलकाता के जल स्तर में 44 फीसद की गिरावट आ सकती है।
स्रोत- जनसत्ता
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