The occurrence of floods and droughts is increasing in India. However, they don't have to evolve into disasters. The outcome hinges on society's approach to their management.
ग्लोबल वार्मिंग यानी गर्माती धरती की समस्या से निपटने के लिए पहला अन्तर्राष्ट्रीय करार क्योटो प्रोटोकॉल है जो 1997 में किए गए यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कंवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) का संशोधित रूप है। जापान के क्योटो शहर में "क्योटो प्रोटोकाल" नामक मसौदा पर्यावरण विध्वंस को रोकने की विश्व इच्छा का प्रतीक बनकर सामने आया था। विश्व के अधिकतर देशों ने जलवायु परिवर्तन की समस्या पर चिंता व्यक्त की ।
प्रकृति के सजृनात्मक एवं ममतामयी रूप के चलते ही जीवन अपने सब रंग रूपों में इस धरती पर बिखरा पड़ा है। लेकिन इसी जीवनदायनी प्रकृति का एक डरावना चेहरा भी है जिसे हम आमतौर पर प्राकृतिक आपदाओं के नाम से जानते है। प्राकृतिक आपदाएं वह शक्तियां है जिनके सामने मानव पूरी तरह बेबस है। भूकंप, ज्वालामुखीय विस्फोट, बाढ़, चक्रवात, सुनामी आदि प्रकृति की ऐसी ही विध्वंसकारी ताकतें हैं जो जीवन के नामोंनिशान को पूरी तरह मिटाने में सक्षम हैं।
भावी पीढ़ियों के लिए इस ग्रह को बेहतर बनाए रखने के लिए हमें प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर जलवायु परिवर्तन की समस्या का सामना करना होगा। इसके लिए कार्बन की कम मात्रा उत्सर्जन करने वाले ईंधनों के राष्ट्रीय मानक तय करने के साथ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके जीवाश्म ईंधन की खपत में कमी करनी होगी।
जैव विविधता के कारण पृथ्वी जीवन के विविध रंगों को संजोए हुए है। यहां पाए जाने वाली लाखों तरह की वनस्पतियां पृथ्वी के प्राकृतिक सौंदर्य का एक अंग हैं। जहां पृथ्वी की वनस्पतियों में गुलाब जैसे सुंदर फूलदार पौधे, नागफनी जैसे रेगिस्तानी पौधे, सुगंधित चन्दन और वट जैसे विशालकाय वृक्ष शामिल हैं वहीं यहां जीव-जंतुओं की दुनिया भी अद्भुत विविधता लिए हुए है।
प्रदूषण का मानव के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। प्रदूषण जनित जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ एवं सूखे की स्थिति में विस्थापन के कारण कुपोषण, भुखमरी एवं संक्रामक रोगों का भी खतरा बढ़ जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वर्ष 1970 के बाद हुए जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप विकासशील देशों में प्रतिवर्ष 1,50,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है।
बढ़ते प्रदूषण के कारण तापमान में बदलाव का विश्व भर में व्यापक प्रभाव दिखाई दे रहा है । आज बदलती जलवायु के प्रभाव कुछ क्षेत्रों विशेष रूप से आर्कटिक क्षेत्र, अफ्रीका और छोटे द्वीपों को अधिक प्रभावित कर रहा है। उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) दुनिया की तुलना में दोगुनी दर से गर्म हो रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार आगामी कुछ वर्षों में ग्रीष्म ऋतु के दौरान उत्तरी ध्रुव की बर्फ पिघल जाएगी । एक अन्य अध्ययन के अनुसार ऐसा छह वर्ष के दौरान भी हो सकता है। पिछले 100 वर्षों में अंटार्कटिका के तापमान में दोगुनी वृद्धि हुई है।
Improving intermittent water supply systems can be challenging due to complexities of the systems and lack of adequate data. This study proposes new methods to measure efficiency and outreach of intermittent supply schedules by discussing examples of Delhi and Bengaluru.
किसी स्थान का मौसम ही उस स्थान की जलवायु को निर्धारित करने वाला सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक होता है। लंबे समय तक चलने वाला मौसम ही जलवायु का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार किसी क्षेत्र के दीर्घकालीन लगभग 30 वर्षों तक के मौसम को जलवायु कहा जाता है।
बढ़ते प्रदूषण के कारण आज सबसे अधिक चिंता का विषय धरती के औसत तापमान का बढ़ना है। इस परिघटना को ग्लोबल वार्मिंग यानी वैश्विक तापन भी कहा जाता है । ग्लोबल वार्मिंग से आशय पृथ्वी की सतह के निकट वायुमंडल तथा क्षोभ मंडल में तापमान के बढ़ने से है
ठंडी जलवायु वाले स्थानों में पौधों को गर्माहट देने के लिए बनाए जाने वाले पारदर्शी कांच के पौधा घर यानी ग्रीन हाउस में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प आदि ठीक इसी तरह ऊष्मा को रोक कर ग्रीन हाउस के अंदर गर्माहट बनाए रखते हैं। इसीलिए ऊष्मा को रोकने की इस प्रक्रिया को 'ग्रीन हाउस प्रभाव' नाम दिया गया है और इस प्रभाव को उत्पन्न करने वाली गैसों को ग्रीन हाउस गैसें कहते हैं।
वायुमंडल पृथ्वी ग्रह पर जीवन के लिए आवश्यक कारकों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक है । वायुमंडल ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, हीलियम, ओजोन आदि अनेक गैसों का आवरण है जो पृथ्वी के चारों और फैला हुआ है। लेकिन अब हवा में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
विभिन्न प्राकृतिक कारकों के आपसी समन्वय के परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवन कायम है। हवा, जल, मिट्टी, वन एवं ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले अहम कारक हैं। इन कारकों ने पृथ्वी को जीवनदायी ग्रह बनाने में अहम भूमिका निभाई। इस अध्याय में हम प्रकृति के इन अमूल्य उपहारों की चर्चा करेंगे।
सूरज से पृथ्वी की दूरी लगभग 14 करोड़ 96 लाख किलोमीटर है। यह दूरी ही पृथ्वी ग्रह को पूरे सौर मंडल में विशिष्ट स्थान देती है। इसी दूरी के कारण यहां पानी से भरे महासागर बने, रेगिस्तान, पठार और सूरज की लगातार मिलती ऊर्जा और पृथ्वी के गर्भ में मौजूद ताप से पृथ्वी पर जीवन के विभिन्न रूप मिलने संभव हुए। पेड़-पौधे सभी वनस्पति, पशु-पक्षी सभी जीव-जंतु, यहां तक कि सूक्ष्मजीव (जो पृथ्वी पर जीवन के लिए अति आवश्यक हैं) में भी ऊर्जा का स्रोत सूर्य की ऊष्मा ही है।
जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारणों में जीवाश्म उत्सर्जन, वनस्पति कटाई, औद्योगिक प्रदूषण, और जलवायु परिवर्तन से जुड़े अन्य विकार शामिल हैं। फॉसिल ईंधनों का उपयोग और वायुमंडलीय गैसों की अत्यधिक उत्सर्जन के कारण ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि हो रही है, जिससे ग्लोबल तापमान में वृद्धि हो रही है।
गुर्दों से 1500 ग्राम, त्वचा से 650 ग्राम, फेफड़ों में 350 ग्राम और मलद्वार से 150 ग्राम पानी खर्च होता है। इस खर्च हुए पानी की पूर्ति भोजन में घुले पानी से होती है, परन्तु सन्तुलन के लिए प्रतिदिन ढाई किलो पानी पीना जरूरी समझा जाता है। शरीर के तापमान के अनुसार पानी घूंट-घूंट पीना चाहिए। हमें शुद्ध पानी ही पीना चाहिए, इसे तुलसी के पत्ते डालकर भी शुद्ध किया जा सकता है। प्लास्टिक बोतल से पानी पीने से बचना चाहिए, क्योंकि प्लास्टिक के जहरीले रसायन पानी में मिल जाते हैं फ्लोराइडयुक्त पानी पीने से जोड़ों में दर्द, चलने फिरने में कष्ट, दांत पीले-पीले हो जाते हैं तथा हड्डियों में भी दोष हो जाते हैं।