क्या यमुनोत्री में केदारनाथ जैसी बाढ़ सम्भव है
केदारनाथ एवं यमुनोत्री में अतिवृष्टि की अनेक घटनाएं भारी वर्षापात के रूप में हो चुकी हैं 18-19 अगस्त 1998 को केदार घाटी में मन्दाकिनी नदी की सहायक नदियों जैसे मद्यमहेश्वर तथा कालीगंगा में हुई भारी वर्षा से सक्रिय हुए भूस्खलनों में 100 से अधिक जानें गई थीं
क्या यमुनोत्री में केदारनाथ जैसी बाढ़ सम्भव है,फोटो क्रेडिट-IWP Flicker
जलवायु अनुकूल वर्षा आधारित कृषि नीतियां
भारत जैसे देश में जलवायु परिवर्तन एक बहुत बड़ी समस्या है, विशेषकर कृषक समुदायों के लिए मानसून पर अधिक आश्रित होने एवं दक्षिण-पश्चिम मानसून के  असामान्य व्यवहार के कारण वर्षा आधारित कृषि पर इसका प्रभाव सबसे अधिक है।

जलवायु अनुकूल वर्षा आधारित कृषि,फोटो क्रेडिट-IWP flicker
बाँध हिमालय की पुष्ठभूमि में
1947 में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष जल की प्राप्यता 6008 घनमीटर थी वहीं पचास वर्षों में यह घट कर 2266 घनमीटर रह गई। इसलिये यह भावना तीव्र होती गई कि वर्षा के जल को सागरों और प्राकृतिक झीलों में समाने से पहले ही धरती की तनिक ऊँचाइयों में रोक लिया जाये  जिसे आवश्यकतानुसार वर्ष के सूखे दिनों में उपयोग किया जा सके। इस विचार से प्रेरित होकर पूरे विश्व में विशाल बाँधों की रचना हुई।
 टेहरी बांध भारत का सबसे ऊंचा बांध है,फोटो क्रेडिट- ​​​wikipedia
अम्लीय वर्षा पर्यावरण के लिए चुनौती
उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थानप्राकृतिक कारणों से भी शुद्ध वर्षा का जल अम्लीय होता है। इसका प्रमुख कारण वायुमंडल में मानवीय क्रियाकलापों के कारण सल्फर ऑक्साइड व नाइट्रोजन ऑक्साइड के अत्यधिक उत्सर्जन के द्वारा बनती हैं। यही गैसें वायुमंडल में पहुँचकर जल से रासायनिक क्रिया करके सल्फेट तथा सल्फ्यूरिक अम्ल का निर्माण करती है।
अम्लीय वर्षा का प्रभाव,फोटो क्रेडिट- IWP Flicker
जल प्रबंधन आज और कल
वायु के बाद मानव समाज के लिए जल की महत्ता प्रकृति द्वारा प्रदत वरदानों में से एक है। जल ने पृथ्वी पर जीवन और हरियाली विकसित होने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जल  ही जीवन है एक लोकोक्ति है कि जल है तो कल हैं

जल प्रबंधन आज और कल,फोटो क्रेडिट- IWP Flicker
भूमि जल में वृद्धि के लिए वर्षा जल के संचयन की तकनीकें
केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड ने आठवीं योजना से कृत्रिम जल भरण पर काफी अध्ययन किया है एवं विभिन्न तरीकों की उपयोगिता को समझा है। इस संस्करण में कुछ तकनीकों की जानकारी दी गई है जो विभिन्न भौगोलिक एवं जमीन के नीचे की स्थितियों के लिए उपयुक्त है।
भूमि जल में वृद्धि के लिए वर्षा जल के संचयन की तकनीकें, फोटो क्रेडिट-  wikipedia
पीने योग्य जल
किसी भी आपदा के बाद सबसे पहली जरूरत संकटग्रस्त लोगों के लिए पीने योग्य जल की व्यवस्था करना होता है। शुद्ध पीने योग्य जल उपलब्ध कराने से महामारी को फैलने से रोका जा सकता है
पीने योग्य जल,फोटो- flicker-Indiawaterportal
नैनीताल में नदियों को बचाने को हुआ सम्मेलन
विश्व पर्यावरण दिवस के निमित्त हम कलशा की सहायक धाराओं के किनारे साझा संकल्प लेंगे और उन लोगों से मार्गदर्शन लेंगे, जिन्होंने पूरा जीवन नदी, जंगलों और उनके साथ जीने वाले रहवासियों के लिए समर्पित कर रखा है।
नैनीताल में नदियों को बचाने को हुआ सम्मेलन, फोटो- बच्ची सिंह बिष्ट
Study of Earth’s stratosphere reduces uncertainty in future climate change
New research effectively rules out the most extreme climate change scenarios
Clouds in the stratosphere (Image: Kaushik Panchal, Wikimedia Commons)
प्राचीन जलविज्ञान
12मार्च, 2014 को ‘उत्तराखंड संस्कृत अकादमी’, हरिद्वार द्वारा ‘आई आई टी’ रुडकी में आयोजित विज्ञान से जुड़े छात्रों और जलविज्ञान के अनुसंधानकर्ता विद्वानों के समक्ष मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्य ‘प्राचीन भारत में जलविज्ञान‚ जलसंरक्षण और जलप्रबंधन’ से सम्बद्ध ‘भारतीय जलविज्ञान’ से सम्बद्ध लेख ‘वैदिक जलवैज्ञानिक ऋषि सिन्धुद्वीप’

प्राचीन जलविज्ञान,PC-उगता भारत
Changing farming practices to prevent land degradation and desertification in India
It is crucial to help farmers move from traditional practices to a more conservation-centric practices that maintain long-term sustainability of land systems in India.
Increasing desertification is a challenge India needs to tackle. (Image Source: Wikimedia Commons)
अल्मोड़ा के मोहन कांडपाल के 'पानी बोओ, पानी उगाओ अभियान' से सूखती रिस्कन नदी के बचने की उम्मीद जागी
गंगा-यमुना जैसी नदियों के मायके के प्रदेश उत्तराखंड में नदियों के हालात पर चर्चा और कुछ अच्छे प्रयोगों के बारे में जानकारी साझा करने के लिए एक मीडिया मित्र मिलन का कार्यक्रम रखा गया।
पानी बोओ, पानी उगाओ अभियान
Building the water quality champions cohort in Jharkhand
A knowledge-driven platform could act as a catalyst in achieving drinking water targets
Social innovation in urban sanitation in India: Meeting unmet needs
While governmental efforts have contributed greatly to improving urban sanitation in the country and are much discussed in literature, systematic documentation and critical analysis of efforts made by nongovernmental institutions continues to be invisible in the discourse on sanitation and needs to be acknowledged, argues this book.
Urban sanitation, a growing challenge in India (Image Source: India Water Portal Flickr photos)
Rural water planning: Challenges and the way forward
Long-term support is crucial for sustaining community water supply schemes beyond the trial period
Lessons from four states of India (Image: WallpaperFlare)
कैसे होगा भूजल पुनर्भरण
विगत 22 जुलाई को दिल्ली में भू जल के कृत्रिम पुनर्भरणासंबंधी परामर्शदात्री परिषद की प्रथम बैठक में प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा उदघाटन में भूजल पुनर्भरण का जन अभियान चलाने का आह्वान किया।
भूजल पुनर्भरण,Pc-Agro Star
 जल संरक्षण में क्रांति ला रहे भारत के स्टार्ट-अप्स
भारतीय स्टार्ट-अप देश के सामने जल की कमी की चुनौती का समाधान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये अभिनव उद्यम कुशल जल उपयोग को बढ़ावा देने, अपव्यय को कम करने और पानी की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रौद्योगिकी और रचनात्मक समाधानों का लाभ उठा रहे हैं
 जल संरक्षण में क्रांति ला रहे भारत के स्टार्ट-अप्स,Pc-performindia
जल संरक्षण भारत के युवाओं के हाथ में समाधान का नेतृत्व 
पानी की कमी पूरी दुनिया में एक प्रमुख चुनौती है और भारत भी इसका अपवाद नहीं है। आबादी बढ़ने के साथ- साथ उद्योगों का विस्तार होता है और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ता है। इससे पानी की माँग तेजी से बढ़ रही है। हालाँकि इस परिदृश्य के बीच भारत के युवा एक शक्तिशाली माध्यम के रूप में उभरे हैं
जल संरक्षण भारत के युवाओं के हाथ में समाधान का नेतृत्व ,PC-cbcindia
कृत्रिम- भूजल पुनर्भरण
भूजल मृदा कणों तथा चट्टानों के बीच मौजूद स्थानों (रानो) और चट्टानों में पड़ी दरारों में पाया जाता है आवश्यकता पड़ने पर इसकी सुनिश्चित उपलब्धता और सामान्य रूप से श्रेष्ठ गुणवत्ता के कारण भूजल का उपयोग घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति तथा अन्य उद्देश्यों के लिए व्यापक रूप से किया जाता है। तथापि, क्या आपको ज्ञात है कि अत्यधिक दोहन के कारण भू-जल बहुत तेजी से कम होता जा रहा है? इसके अतिरिक्त उद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण भूजल प्रदूषित भी हो रहा है।
 कृत्रिम- भूजल पुनर्भरण,Pc-Patrika
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