पहले केपटाउन और अब बेंगलुरु जलसंकट ने वैश्विक जगत को नई चिंता में डाल दिया है। बेंगलुरु जल संकट यह भी दर्शाता है कि हमने केपटाउन जल संकट से कोई सबक नहीं लिया। First the CapeTown and now the Bengaluru water crisis has put the global world under new concern. The Bengaluru water crisis also shows that we did not learn any lessons from the CapeTown water crisis.
"जैसे जैसे गर्मी बढ़ रही है, गांव में पानी की समस्या भी बढ़ती जा रही है. जो स्रोत उपलब्ध हैं उसमें इतना खारा पानी आता है कि हम लोगों से पिया भी नहीं जाता है. यदि मजबूरीवश पी लिया तो पेट में दर्द और दस्त होने लगते हैं. पिता जी और गाँव वाले मिलकर पानी का टैंकर मँगवाते हैं, जिससे हमें पीने का पानी उपलब्ध होता है. लेकिन स्कूल में ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं है. वहां हमें यही खारा पानी पीने पर मजबूर होना पड़ता है. इसलिए स्कूल भी जाने का दिल नहीं करता है." यह कहना है 9वीं कक्षा की छात्रा 15 वर्षीय किशोरी पूजा राजपूत का।
2047 तक विकसित भारत का सपना 140 करोड़ भारतवासियों की आंखों में पल रहा है तो उस दौर में भी विकास के नित नए कीर्तिमान रचते भारत में जल संकट एक कड़वी सच्चाई है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हम सभी इस तथ्य से भली भांति अवगत हैं कि भारत में पीने के पानी के स्रोत सीमित हैं। एक राष्ट्र के रूप में जैसे-जैसे देश प्रगति कर रहा है, विकसित देशों की श्रेणी में शामिल होने के करीब पहुंच रहा है। जल-संकट दिनों-दिन गंभीर होता जा रहा है।
देश के आईटी हब के रूप में प्रसिद्ध शहर बेंगलुरु में इन दिनों पानी की कमी से हाहाकार मचा है। इस समस्या के कारणों और उनके कुछ उपायों पर नई दिल्ली के पर्यावरणविद एवं ‘सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट’ में वाटर प्रोग्राम डायरेक्टर, दपिंदर सिंह कपूर से वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध गौड़ की बातचीत के खास अंश
जानिए राजस्थान में प्राचीन कालीन जल-सरंक्षण की परंपरागत प्रणालियां का क्या महत्व है? राजस्थान के अनेक क्षेत्रों में जल महत्त्व की लोक कथाएं काफी प्रचलित हैं।
भारत में लोकसभा 2024 के चुनाव पूरे शबाब पर हैं। पानी के अखाड़े में चुनाव या चुनाव के अखाड़े में पानी के मुद्दे पर क्या-क्या हो रहा है, पेश है एक विहंगम दृश्य।
जल प्रबंधन में महिलाओं की भूमिका आर्थिक महत्व भी रखती है। पानी के प्रबंधन और प्रशासन में महिलाओं का सशक्त बनाना सामाजिक न्याय का भी एक काम है। यह पानी की परियोजनाओं की कुशलता बढ़ाने और परिवार की अतिरिक्त आमदनी में बढ़ावा करने तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा देने की एक सामरिक जरूरत बन गई है। भारत के राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों के आकलन यह बताते हैं कि पानी प्रबंधन और प्रशासन में महिलाओं के भागीदारी अगर अच्छी स्थिति में हो तो गरीबी में 10 से 50% की कमी देखी गई है।
This study proposes a novel method to determine optimum freshwater release from the Sardar Sarovar Dam to minimise negative impact on hilsa fish migration in the downstream estuaries.
"पिछले 5 वर्षों से हम केसर को ट्रायल बेस पर लगा रहे थे और 1 साल पहले पूर्ण रूप से इसकी खेती शुरू कर चुके हैं. आप यकीन मानिए परिणाम इतना अच्छा आया कि हमारी प्रोग्रेस को देखते हुए "स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी - यूनिवर्सिटी ऑफ जम्मू" की ओर से हमें 10 लाख रुपए की धनराशि दी गई है. हमारे यहां केसर की पैदावार को देखते हुए जम्मू विश्वविद्यालय के इस विभाग की प्रोफेसर ज्योति ने हमारी बहुत मदद की है. उन्होंने विश्वविद्यालय के पीएचडी स्कॉलर ताहिल भट्टी और एसडीओ, हॉर्टिकल्चर, पुंछ के मोहम्मद फरीद के मार्गदर्शन में हमें रिसर्च के लिए 10 लाख दिए और कहा कि आप यह खोज करें की पुंछ में केसर उत्पादन की और कहां-कहां संभावनाएं हो सकती हैं
जर्नल नेचर सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित एक रिसर्च के मुताबिक शहरी आलीशान घरों में रहने वाले लोग बगीचों, स्विमिंग पूल, कारों को धोने के लिए बड़ी मात्रा में पानी की खपत करते हैं, जिसकी कीमत शहर के कमजोर तबके को चुकानी पड़ती है परिणाम होता है कि शहर में मौजूद कमजोर और बंचित समुदायों को अपनी बुनियादी जरूरत को पूरा करने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है, यह असमानताएं क्षेत्र में जलापूर्ति की दीर्घकालिक स्थिरता को बहुत भयानक रूप से प्रभावित करते हैं। हालांकि यह अध्ययन दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन शहर पर आधारित है लेकिन साथ ही अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बैंगलोर, चेन्नई, जकार्ता, सिडनी, मापुटो, हरारे, साओ पाउलो, लंदन, मियामी, बार्सिलोना, बीजिंग, टोक्यो, मेलबर्न, इस्तांबुल, काहिरा, मास्को, मैक्सिको सिटी और रोम जैसे 80 शहरों में समान मुद्दों पर प्रकाश डाला है।
जानें क्या करना है बंजर होती कृषि भूमि को रोकने के लिए। मरुस्थलीकरण तेजी से फैल रहा है, मिट्टी की उर्वरता लगातार घटती जा रही है। ऐसे में बंजर भूमि का बढ़ना एक चुनौती बनती जा रही है। मृदा वैज्ञानिकों के मुताबिक मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट के बड़े कारणों में से कृषि में पानी का अत्यधिक इस्तेमाल, मवेशियों के लिए चरागाहों की जरूरत और सूखे की बढ़ती मियाद और भूमि उपयोग का परिवर्तन है।
जानिए क्यों कर रहा है लद्दाख क्लाइमेट फास्ट (जलवायु उपवास)। लद्दाख के 'नाज़ुक' पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की मांग के साथ लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहा है।
As the demand for water from the Hindu Kush Himalaya region is expected to rise due to population growth, the impacts of temperature increases, and development requirements, researchers emphasise the urgent need to enhance scientific collaboration and rejuvenate existing treaties and governance structures.
आम चुनाव की इस बेला में राजनीतिक जमातों को पर्यावरण की कितनी सूध रहती है? क्या कभी राजनीतिक पार्टियां बताती हैं कि जिस जलवायु परिवर्तन के चलते देश के पहाड़ों से मैदानों तक हर साल बाढ़, सूखा, अचानक भारी बारिश से होने वाले भूस्खलन, तेजी से मिलते ग्लेशियर से हमारा भविष्य दांव पर लगा है। उसे बचने के लिए ये क्या करेंगी? जमीन पर भले न करें, कम-से-कम चुनावी वादा ही कर दें। लेकिन बेहद अफसोस और चिंता की बात है कि ऐसे गंभीर विषय देश के नीति-नियंताओं को प्राथमिकता सूची से बाहर है।
This study found that irrigation, mainly surface irrigation played an important role in improving farm efficiency, but was only accessible to farmers living in the plains.