Building community expertise in planning, designing, and overseeing WASH systems
A holistic approach to Water, Sanitation, and Hygiene (WASH) initiatives
Shantilata uses a cloth to filter out the high iron content in the salty water, filled from a hand pump, in the village Sitapur on the outskirts of Bhadrak, Bhubaneshwar, Odisha (Image: WaterAid/ Anindito Mukherjee)
दिल्ली : यमुना की मिट्टी का प्रयोग मूर्ति बनाने के लिए संभव नहीं
यमुना के बाड़ क्षेत्र में दोमट नामक मिट्टी पाई जाती है। इस मिट्टी में रेत और चिकनी मिट्टी का अनुपात होता है। यह मिट्टी उपजाऊ होती है और इससे मूर्तिकारी और कुम्हारी का काम किया जाता है। परंतु, दिल्ली के प्रदूषण और बाड़ क्षेत्र पर अवैध कब्जे के कारण, इस मिट्टी का स्वरूप बिगड़ गया है।
यमुना की मिट्टी का प्रयोग मूर्ति बनाने के लिए संभव नहीं
गंगा का संकट और समाधान
अंग्रेजों ने गंगा के साथ वही सलूक किया, जो यहां के लोगों के साथ किया। गंगा के साथ सरकार का अंग्रेजों वाला ही रिश्ता आज भी है। आजाद होने के बाद गंगा को तो पता ही नहीं चला कि यह सब इतना चुपके चुपके कैसे और कब हो गया। गंगोत्री से हरिद्वार तक की यात्रा में गंगा बस गंगनानी के ऊपर ही दिखती है, इसके बाद गंगा का दर्शन तो बस झील दर्शन है। केदार नाथ और बद्रीनाथ के रास्तों पर भी बांधों के ही दर्शन होते हैं। गंगा का संकट जल के चरित्र का संकट है। आने वाले समय में यह जल संकट भयानक रूप लेने वाला है। इससे बचने का एक ही रास्ता है कि अगर नदी और लोगों के बीच से सरकार हट जाय, तो गंगा ही नहीं, देश की सारी नदियां वापस अपने रूप में आ सकती हैं और हमारा जल चक्र ठीक हो सकता है।
हिमालय और गंगा,Pc-हिमालय और गंगा
जाति और जल का ‘अछूत’ रिश्ता
जल और जाति का गठजोड़ आज़ादी के 75 साल बाद भी अनसुलझा है और यह सरकार की नीतियों की एक महत्वपूर्ण खामी है। सरकार को दलितों तक पानी की सुरक्षित पहुंच बनाने के लिए अलग प्रावधानों की पेशकश करनी चाहिए। इन प्रावधानों के बिना कोई भी नीति दलितों से अछूती ही रहेगी।
महाड़ सत्याग्रह : बाबा साहेब ने कहा था कि अस्पृश्यता सारतः राजनीतिक सवाल है
भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : भूदान यज्ञ का रहस्य
मैं दरिद्र हूं, दु:खी हूं, मेरे पास जो चीज है, वह काफी नहीं हैं, पर ऐसे भी लोग हैं, जो मुझसे भी दरिद्र हैं, दु:खी हैं। इनकी तरफ ध्यान देने से हमारा जीवन उन्नत बनता है। यही भूदान यज्ञ का रहस्य है।
भूदान डायरी; विनोबा विचार प्रवाह : भूदान यज्ञ का रहस्य,Pc-सर्वोदय जगत
धंसता गया जोशीमठ, आंखें मूंदे रहीं सरकारें!
भारत-चीन सीमा के निकट देश का अंतिम शहर जोशीमठ तबाही के कगार पर है। कुछ समय से जोशीमठ के अलकनन्दा नदी की ओर फिसलने की गति अचानक तेज हो गयी है। अभी भी सरकारों की प्राथमिकता जोशीमठ को बचाने की नहीं, बल्कि कॉमन सिविल कोड और धर्मान्तरण कानून बनाने की दिखाई पड़ती है।
दरकती हुई जमीन,pc,सर्वोदय जगत  
गंगा को जान-बूझकर मारा जा रहा है–राजेन्द्र सिंह
राजेन्द्र सिंह, जिन्हें जलपुरुष और पानी बाबा के रूप में सम्मानित किया जाता है, 1 जनवरी को बनारस में पहुंचे। उनका उद्देश्य था कि वे काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के नाम पर हो रही राजनीतिक हंगामे की सच्चाई को सामने लाएं और गंगा के किनारे हो रहे विकास कार्यों का मूल्यांकन करें। बनारस को सुंदरता से सजाने के लिए सोशल मीडिया पर प्रसारित किए गए फोटो और वीडियो से लोगों को मुग्ध करने का प्रयत्न हुआ है। लोग समझते हैं कि बनारस में समृद्धि का संकेत है, और गंगा में प्रकृति से मेल है। परंतु, हमने मणिकर्णिका और ललिता घाट पर पहुंचकर, समस्या की हकीकत से मुकाबला किया। नए-नए खिड़किया घाट की प्रतीक्षा में हम पहुंचे, पर हमें मिला तो सिर्फ निराशा ही निराशा। राजेन्द्र सिंह क्रोध से लाल-पीले हो कर कहते हैं, कि गंगा को जान-बूझकर मारा जा रहा है।
वाराणसी के खिड़किया घाट पर गंगा के प्रवाह क्षेत्र के लगभग 50 मीटर भीतर चल रहा निर्माण,Pc-सर्वोदय जगत
बेतरतीब विकास और जलवायु परिवर्तन से संकट में हिमालय
हिमालय में भूकंप और भूस्खलन का खतरा हमेशा बना रहता है। इन प्राकृतिक आपदाओं से हिमालय के जलविद्युत परियोजनाओं को नुकसान पहुंच सकता है। हिमालय में 273 जलविद्युत परियोजनाओं में से 67 परियोजनाओं को भूकंप के प्रभाव से बचाने की जरूरत है। हिमालय की समृद्ध प्रकृति को सुरक्षित रखने के लिए, सड़कों का विस्तार और जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण सतर्कता से किया जाना चाहिए। पर्यावरणीय नियमों का पालन करने से हम हिमालय की सुंदरता को बरकरार रख सकते हैं
बेतरतीब विकास और जलवायु परिवर्तन से संकट में हिमालय,pc-सर्वोदय जगत
अभूतपूर्व सूखे का सामना कर रहा है हॉर्न ऑफ अफ्रीका
एक मूल्यांकन के अनुसार बुजुर्गों को भोजन छोड़ना पड़ रहा है, आधे से अधिक बुजुर्ग प्रतिदिन केवल एक समय भोजन खा रहे हैं और 82 प्रतिशत प्रति सप्ताह कम से कम एक रात भूखे सो रहे हैं। 2 में से केवल 1 बुजुर्ग के पास पीने का सुरक्षित पानी है।
अभूतपूर्व सूखे का सामना कर रहा है हॉर्न ऑफ अफ्रीका,Pc- सर्वोदय जगत
बोतलबंद इंडस्ट्री पर एक नजर
बोतलबंद पानी का सेवन स्वास्थ्य के लिए उतना ही खतरनाक है, जितना कि नल का पानी, क्योंकि बोतलबंद पानी में भी अनेक प्रकार के जीवाणु मौजूद होते हैं, जो सेण्टर फॉर एनवायरमेन्ट और विश्व के कई देशों में की गई शोध-प्रक्रिया से पता चलता है। भारत में बोतलबंद पानी के मार्केट में तेजी से वृद्धि होने से, पानी के संसाधनों पर कॉरपोरेट का हस्तक्षेप भी बढ़ता जा रहा है, जिससे पानी की समस्या और भी गहराई में पहुंच सकती है। इसलिए, हमें बोतलबंद पानी का सेवन कम से कम करना चाहिए, और साथ ही पानी के संरक्षण में सहयोग करना चाहिए।
बोतलबंद इंडस्ट्री पर एक नजर
झांसी के लक्ष्मी ताल के अंदर कराये जा रहे कंक्रीट के निर्माण पर एनजीटी ने जताई आपत्ति
जलग्रहण क्षेत्र से तालाब में पानी के प्रवाह पर असर पड़ने की संभावना है और इसके क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि नगर निगम, झांसी के आयुक्त को लक्ष्मी ताल के बफर जोन के आसपास एलिवेटेड बाउंड्री वॉल और एक मार्ग बनाने के साथ तालाब पर इसके प्रतिकूल प्रभाव या इससे संभावित लाभ के बारे में फिर से रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है
झांसी के लक्ष्मी ताल के अंदर कराये जा रहे कंक्रीट के निर्माण,Pc- नरेंद्र कुशवाहा
अकल्पनीय जल-संकट की ओर बढ़ रहा देश
अपनी एक रिपोर्ट में नीति आयोग के द्वारा कहा गया है कि वर्ष 2030 तक देश के 40% लोगों की पहुंच पीने के पानी तक नहीं होगी. पिछले 10 सालों में देश की करीब 30 फीसदी नदियां सूख चुकी हैं। वहीं पिछले 70 सालों में 30 लाख में से 20 लाख तालाब, कुएं, पोखर, झील आदि पूरी तरह खत्म हो चुके हैं। ग्राउंड वाटर (भूजल) की स्थिति भी बेहद खराब है। देश के कई राज्यों में पर तो ग्राउंड वाटर का लेवल करीब 40 मीटर तक नीचे जा चुका है।वही भारत का दक्षिण का राज्य चेन्नई में धरती के 2000 फीट नीचे भी पानी नहीं मिला है।
अकल्पनीय जल-संकट की ओर बढ़ रहा देश
बैटरी-वाहन सुखा सकते हैं पानी के स्रोत
लीथियम खनन के कारण अर्जेंटीना के अपने क्षेत्र का पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है, इसका विरोध हाइड्रोलॉजिस्ट और संरक्षणवादी कर रहे हैं। उच्च एंडीज में रहने वाले मूल निवासियों का कहना है कि लीथियम बैटरी से चलने वाली हरित क्रांति के लिए उनका पानी, जो उनके परिवार, पशुपालन, और चरागाहों के लिए महत्वपूर्ण है, समाप्त होता जा रहा है
पोटोसी, बोलीविया की एक खदान में वाष्पीकरण पूल में पंप किया जाता हुआ लीथियम युक्त नमकीन,Pc-  सर्वोदय जगत
काशी की आंखों का पानी मर चुका है!
यह एक संस्कृति की परिवर्तन की कथा है। हम वरुणा, नदी के देवता, के घावों को ठीक करने का प्रयास करते हैं, पर हमारा परिश्रम उस पार के मलबे में और पॉलीथीनों के ढलानों में, जो वरुणा-जल को गंदा करते हैं, डूब जाता है। आज वह अपनी वेदना पर सिसक रही है, पर उसके पास रोने का पानी भी नहीं है। उसके किनारों से विकास का शोर सुनाई पड़ता है। बीच में आते हैं किला कोहना के जंगल। जब वह राजघाट की इन सुनसान घाटियों में पहुंचती है, तो कारखानों के ज़हर से मिलकर, वरुणा फ़ेन-फ़ेन होकर समुद्र में मिलती है। अपना बचा-खुचा मन और संवरा चुके पानी की एक क्षीण-सी नाली, गंगा को सौंप कर वरुणा अपना मुंह जंगलों की ओर फेरकर लजाती है, तो संगम की चटखदार दुपहरिया भी काली पड़ जाती है।

कारखानों के रसायनों से मिलकर झाग-झाग हुआ वरुणा का पानी, PC-– सर्वोदय जगत
गंगा की जीवनदायिनी क्षमता पर संकट
गंगा का निर्मलता, अधिकार और अविरलता तीनों ही महत्वपूर्ण हैं। विकास के नाम पर गंगा के प्रवाह को रोकने वाले 900 से ज्यादा बांध और बैराज गंगा की जीवन-शक्ति को कम करते हैं। गंगा को स्वस्थ और सुरक्षित रखने के लिए, हमें प्रवाह में सुधार करने की आवश्यकता है

 गंगा की जीवनदायिनी क्षमता पर संकट
Climate change coping mechanism discovered in humble algae  
A breakthrough in ocean life's response to climate change and its potential impact on biotechnology
Kelp makes a beautiful canopy over an understory of calcareous red algae beneath the waves at Cape Solander in southern Sydney (Image: John Turnbull; Flickr Commons, CC BY-NC-SA 2.0 DEED)
Sustainable solutions in focus
10 policy briefs launched at a workshop by TATA Trust and The Nature Conservancy Centre based on a series of on-groundwork across environmental and developmental issues
The Nature Conservancy is working to protect ecologically important areas across boundaries—so that they can be preserved for future generations (Image: Gayatri Priyadarshini; Wikimedia Commons, CC BY-SA 4.0 DEED)
Waterways can disrupt riverine ecosystems 
How does barge trafficking/movement affect the ecology and biodiversity of riverine ecosystems? A study explains.
River Hooghly at Kolkata (Image Source: Yercaud-elango via Wikimedia Commons)
संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स 2023 की घोषणा: ग्रामीण रिपोर्टिंग में उत्कृष्ट उपलब्धियों एवं युवा आवाजों के सशक्तिकरण की पहल
ग्रामीण समुदायों में युवा किशोरियों और महिलाओं को सशक्त करने में संजीवनी कार्य कर रहे हैं. ये पुरस्कार चरखा के कल्पनाशील संस्थापक संजॉय घोष को श्रद्धांजलि स्वरूप है, जिन्होंने नवाचारी मीडिया विधाओं के माध्यम से हाशिये के ग्रामीण समुदायों को सामाजिक और आर्थिक समावेश का समर्थन करने में अपना जीवन समर्पित किया है. इन पुरस्कारों ने दो दशकों के दौरान स्थायी परिवर्तन के लिए प्रभावशाली मॉडल्स स्थापित करने के लिए समर्पित विकास संवादों की समुदाय को पोषित किया है
संजॉय घोष मीडिया अवार्ड्स 2023 की घोषणा
×