कृषि विस्तार भी, बड़े पैमाने पर वनों की कटाई के साथ ही भूमि के उपयोग में तेजी से परिवर्तन और भूमि प्रबन्धन के तरीकों में बड़ा बदलाव अनुभव कर रहा है। 30 सितम्बर 2013 को संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति आई.पी.सी.सी. की रिपोर्ट के आधार पर वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इंसानों के कारण ही धरती के तापमान में अत्यधिक बढोतरी हो रही है।
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन अब राष्ट्रीय मुद्दा न होकर अन्तरराष्ट्रीय विषय बन गया है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण कई महत्वपूर्ण घटनायें देश विदेशों में घट रहीं हैं। भारत में केदारनाथ, जम्मू-कश्मीर और मुंबई की प्राकृतिक आपदाएँ इसका ताजा उदाहरण हैं।
हमने पर्यावरण न्याय के सभी पूर्ववर्ती नियमों की अवमानना व अवहेलना की है। सामान्य न्याय प्रक्रिया में समय लगने के कारण तथा पर्यावरण विवादों के त्वरित निबटारे हेतु राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना से पर्यावरण को न्याय की आस बंधी है। देखना यह है कि पर्यावरण की याचिका की सुनवाई कितनी त्वरित व ईमानदारी से होती है। वस्तुतः यही होगा पर्यावरणीय न्याय का व्यवहारिक पक्ष ।
कृषि में उर्वरकों और कीटनाशकों के बेतहाशा प्रयोग से कृषि-चक्र गड़बड़ा गया है। खाद्यान्नों का उत्पादन तो बढ़ा है परंतु उसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। हाइब्रिड बीजों के कारण खाद्यान्नों के नैसर्गिक गुण लुप्तप्राय हो गए हैं। मेथी और धनियां जैसे पौधों से निकलने वाली विशेष गंध समाप्त हो गई है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण कैंसर जैसी बीमारियों में बढ़ोतरी हुई है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव जाति के साथ-साथ, वन्यजीवों, कृषि और ऋतुओं पर भी पड़ रहा है। इस वर्ष समय पर वर्षा न होने के कारण देश के लगभग 12 राज्य सूखे से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और अनेक प्रजातियों पर देखा गया। जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी पर रहने वाली सभी प्रजातियों को लगातार परिवर्तनशील होना पड़ रहा है
मार्बल खुदाई क्षेत्रों के आधार पर प्रचलित भैसलाना ब्लैक, मकराना अलबेटा, मकराना कुमारी, मकराना डुंगरी, आँधी इंडो, ग्रीन बिदासर केसरियाजी ग्रीन, जैसलमेर यलो आदि अपनी रासायनिक संरचना के कारण अलग-अलग बनावटों में पाये जाते हैं। मार्बल का सफेद, लाल, पीला एवं हरा रंग क्रमश: केल्साइट, हेमाटाइट, लिमोनाइट तथा सरपेंटाइन स्वरूप के कारण होता है।
आज भी लोग पवित्र गंगाजल के साथ देश विदेश का भ्रमण करते हैं क्योंकि यह पावन गंगाजल रोग निवारक विशेषता से परिपूर्ण है। गंगाजल में ऑक्सीजन सदैव उच्च मात्रा में घुला रहता है जिसकी वजह से गंगाजल दीर्घ समय तक रखने पर भी सड़ता नहीं है। इसके अतिरिक्त, गंगा प्रवाह के समय हिमालय पर्वत से अद्भुत खनिज लवण एवं अत्यंत लाभकारी औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों की कुछ मात्रा गंगाजल में घुल जाती है।
ग्रिड से जुड़ी नवीकरणीय ऊर्जा के अन्तर्गत विगत ढाई वर्षों के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा का 14.30 गीगावाट का क्षमता वर्धन हुआ है, जिसमें सौर ऊर्जा से 5.8 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 7.04 गीगावाट, छोटी हाइड्रो ऊर्जा से 0.53 गीगावाट और जैव ऊर्जा से 0.933 गीगावाट ऊर्जा शामिल है। 31 अक्तूबर, 2016 की स्थिति के अनुसार देश में सौर ऊर्जा परियोजनाओं से कुल मिलाकर 8727.62 मेगावाट से भी अधिक की क्षमता संस्थापित हुई है।
मौसम को तय करने वाले मानकों में स्थानिक और सामयिक भिन्नता होने की वजह से मौसम एक गतिशील संकल्पना है। मौसम का बदलाव बड़ी ही आसानी से अनुभव किया जाता है क्योंकि यह बदलाव काफी जल्दी होता है और सामान्य जीवन को प्रभावित करता है। उदाहरण के तौर पर तापमान में अचानक हुई वृद्धि | जिस प्रकार मौसम में नित्य परिवर्तन होता है उसी प्रकार जलवायु में भी सतत बदलाव की प्रक्रिया जारी होती है परंतु इसका अनुभव जीवन में नहीं होता क्योंकि यह बदलाव बहुत ही धीमा और कम परिमाणों में होता है
क्लोरोफ्लोरोकार्बन के विमोचन से ओजोन परत की अल्पता होने के कारण सूर्य की पैराबैंगनी किरणें धरातल तक पहुंच कर उसका तापमान बढ़ा देती हैं जिसके फलस्वरूप पादप एवं जंतु जीवन को भारी क्षति होती रही है तथा मनुष्य में चर्म कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो रही है। मनुष्य के द्वारा पर्यावरण का ह्रास इस कदर हो जाना कि वह होमियोस्टैटिक क्रिया से भी पर्यावरण को सही नहीं किया जा सकता है।
भारत ने जलवायु परिवर्तन कन्वेंशन में समान और साझा किंतु भिन्न-भिन्न उत्तरदायित्व, जो इसकाआधारभूत सिद्धांत है, को अंतः स्थापित करने में महत्वपूर्ण नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया।
वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक है। अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवी आकलन रिपोर्ट (एआर 5) के अनुसार इस शताब्दी के अंत तक वैश्विक तापमान में 0.3 से 4.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होगी। तापमान में उपरोक्त वृद्धि स्वास्थ्य, कृषि, वन, जल-संसाधन, तटीय क्षेत्रों, जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्रों पर विपरीत प्रभाव डालेगी।
आज तक सम्पूर्ण विश्व इस ओर कुछ करने में असमर्थ है क्योंकि इसका सीधा प्रभाव विकसित देशों की औद्योगिक दर एवं विकास दर पर पड़ रहा है जिससे ये देश अपनी इस समस्या का उल्लेख कर इस वैश्विक समस्या ग्लोबल वार्मिंग के प्रति उदासीन दिखाई देते हैं। वैसे अगर देखा जाये तो देश से ज़्यादा देश के लोगों का इस समस्या के प्रति उदासीन रवैया इस समस्या को बढ़ा रहा है क्योंकि देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग में उपस्थित ग्रीन हाउस गैसों के कारक सामान्य व्यक्ति से जुड़े हैं जिनमें कार्बन उत्सर्जन रेट मुख्य कारक है।
हिमालय से दिल्ली तक के हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरप्रदेश राज्यों की नदियों के किनारे 13,900 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा कर दो करोड़ लोग निवास कर रहे हैं।