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मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेश में कृषि
Posted on 04 Feb, 2011 05:03 PMमध्यप्रदेश के लिए कृषि वास्तविक अर्थों में जीवन रेखा रही है। विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे जब पहले ''राज्य'' पर निबंध लिखते थे तो उस निबंध का पहला वाक्य यही होता था कि मध्यप्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है, यहां की तीन चौथाई जनसंख्या कृषि और कृषि से जुड़े व्यवसाय के जरिये जीवनयापन करती है और यही व्यावसायिक एकरूपता समाज को वास्तव में एक सूत्र में पिरोने का काम करती है। परन्तु आज की स्थिति में निश
सूखे में गुम हो गये टीला के बैंगन और लौकियां
Posted on 04 Feb, 2011 04:56 PM40 बीघा उपजाऊ और सिंचित जमीन के मालिक रामपाल सिंह घोष के बारे में क्या आंकलन करेंगे? यही न कि वह एक फले-फूले सम्पन्न किसान हैं और आनंद से अपनी जिंदगी बिताते होंगें!!
नदी जोड़ से घाटे में होगा बुंदेलखंड
Posted on 01 Feb, 2011 10:01 AMखबर है कि नदी जोड़ की पहली परियोजना जल्दी शुरू हो सकती है।जिस इलाके के जन प्रतिनिधि जनता के प्रति कुछ कम जवाबदेह हों, जहां जन जागरूकता कम हो, जो पहले से ही शोषित व पिछड़े हों, सरकार में बैठे लोग उस इलाके को नए-नए खतरनाक व चुनौतीपूर्ण प्रयोगों के लिए चुन लेते हैं। सामाजिक-आर्थिक नीति का यह मूल मंत्र है। बुंदेलखंड का पिछड़ापन जग-जाहिर है। भूकंप प्रभावित यह क्षेत्र हर तीन साल में सूखा झेलता है।
जीवकोपार्जन का मूल माध्यम खेती है लेकिन आधी जमीन सिंचाई के अभाव में कराह रही है। नदी जोड़ के प्रयोग के लिए इससे बेहतर इलाका कहां मिलता? सो देश के पहले नदी-जोड़ो अभियान का समझौता इसी क्षेत्र के लिए कर दिया गया।
क्षीण हो रही है ओजोन परत
Posted on 29 Jan, 2011 03:20 PMओजोन परत का उद्गम प्राचीन महासागरों से हुआ है और वह धीरे-धीरे दो अरब वर्षों में पूरा बनकर तैयार हुआ है। ओजोन परत में जो ओजोन है उसका मूल स्रोत महासागरों के पादपों द्वारा किए गए प्रकाश-संश्लेषण के दौरान पैदा हुई ऑक्सीजन है। महासागरों से निकली ऑक्सीजन के अणु ऊपर उठते-उठते वायुमंडल के समताप मंडल में पहुंच जाते हैं। वहां वे परमाणुओं में टूट जाते हैं। ये परमाणु दोबारा जुड़कर ओजोन का निर्माण करते हैं। आक्सीजन के अणुओं के बिखरने और आक्सीजन के परमाणुओं के जुड़कर ओजोन बनने के लिए आवश्यक ऊर्जा सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों से प्राप्त होती है।ऊपर आसमान में कुछ विचित्र सा घट रहा है। मनुष्यों को हानिकारक पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा प्रदान करनेवाली ओजोन परत पतली होती जा रही है। पराबैंगनी किरणों के लगने के कारण चर्मकैंसर हो सकता है। सांघातिक प्रकार के चर्मकैंसरों में 30 प्रतिशत रोगी पांच साल के अंदर मर जाते हैं। पराबैंगनी किरणों के कारण मोतियाबिंद भी होता है। अधिक संगीन मामलों में लोग इसके कारण अंधे हो सकते हैं। ओजोन परत क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) नामक मानव-निर्मित रसायनों के कारण पतली हो रही है।
पहले हम यही समझते थे कि सीएफसी एक वरदान हैं और वे मनुष्य के जीवन को समृद्ध और आरामदायक बना सकते हैं। सीएफसी कृत्रिम यौगिक होते हैं, जो क्लोरीन, कार्बन और फ्लोरीन से बने होते हैं। उनका न कोई रंग होता है न गंध। हमने रोजमर्रा के कई कार्यों में सीएफसी
सातवीं विकास संवाद मीडिया लेखन और शोध फैलोशिप के लिए आवेदन आमंत्रित
Posted on 21 Jan, 2011 11:40 AM05 फरवरी होगी अंतिम तिथि
भोपाल। वर्ष 2011 के लिए सातवीं विकास संवाद मीडिया लेखन और शोध फैलोशिप की घोषणा कर दी गई है। इस साल प्रदेश के छह पत्रकारों को सामाजिक मुद्दों पर लेखन और शोध करने के लिए फैलोशिप दी जाएगी। आवेदन जमा करने की अंतिम तिथि 05 फरवरी है।
प्रकृति, पर्यावरण और स्वास्थ्य का संरक्षक कदंब
Posted on 29 Dec, 2010 11:32 AMकदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढ़नेवाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है। उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा में यह बहुतायत में होता है। इसके पेड़ की अधिकतम ऊँचाई ४५ मीटर तक हो सकती है। पत्तियों की लं
छुटकी की मनरेगा पर जागरूकता
Posted on 03 Dec, 2010 10:24 AMछुटकी (छोटी लड़की) समर्थन की एक ऐसी पहल है जिसके माध्यम से कठिन मुद्दों को बड़े ही सरलतम तरीके से पेश किया गया है। छुटकी श्रोताओं को नरेगा के संबंध में क्या और कैसे जैसी जानकारियां बड़े ही कॉमिक अंदाज में बता रही है। इन आसान और कॉमिक तरीको को जानने के लिये आप यह पुस्तक पढ़ सकते हैं।
चरो रे भैया, चलिहें नरबदा के तीर
Posted on 28 Oct, 2010 12:14 PMसतपुड़ा-मैकल और विंध्य पर्वत शृंखला के संधि स्थल पर सुरम्य नील वादियों में बसा अमरकंटक ग्रीष्मकाल के लिए अनुपम पर्यटन स्थल है। इसे प्रकृति और पौराणिकता ने विविध संपदा की धरोहर बख्शी है। चारों ओर हरियाली, दूधधारा और कपिलधारा के झरनों का मनोरम दृश्य, सोननदी की कलकल करती धारा, नर्मदा कुंड की पवित्रता, पहाड़ियों की हरी-भरी ऊँचाइयाँ है और खाई का प्रकृति प्रदत्त मनोरम दृश्य मन की गहराइयों को छू जा
जीवनदायिनी नर्मदा के ‘दिल’ के साथ खिलवाड़
Posted on 22 Oct, 2010 12:20 PMनदियों तक पानी पहुंचाने वाले 50 फीसदी तटीय क्षेत्र खत्म, एक अध्यन में खुलासा
भोपाल प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी खतरे में है। इसकी वजह है नर्मदा के तटीय क्षेत्रों का तेजी से खत्म होना। इन तटीय क्षेत्रों से ही पानी नर्मदा नदी में पहुंचता है, लेकिन एक ताजा अध्ययन के अनुसार प्रदेश में नर्मदा के 50 फीसदी तटीय क्षेत्र नष्ट हो चुके हैं। ऐसा इन तटीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण की वजह से हुआ है।
भोपालः मृत्यु की नदी की कुछ बूंदें
Posted on 14 Oct, 2010 12:28 PM फैसला और न्याय में सचमुच कितना फासला होता है, इसे बताया है 25 बरस बाद भोपाल गैस कांड के ताजे फैसले ने। दुनिया के सबसे बड़े, सबसे भयानक औद्योगिक कांड के ठीक एक महीने बाद लखनऊ में हुई राष्ट्रीय विज्ञान कांग्रेस में एक वैज्ञानिक ने इस विषय पर अपना पर्चा पढ़ते हुए बहुत ही उत्साह से कहा थाः ”गुलाब प्रेमियों को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता होगी कि भोपाल में गुलाब के पौधों पर जहरीली गैस मिक का कोई असर नहीं पड़ा है। “ भर आता है मन ऐसे ‘शोध’ देखकर, पर यह एक कड़वी सचाई है। भोपाल कांड के बाद हमारे समाज में, नेतृत्व में, वैज्ञानिकों में, अधिकारियों में ऐसे सैकड़ों गुलाब हैं, जिन पर न तो जहरीली मिक गैस का और न उससे मारे गए हजारों लोगों का कोई असर हुआ है। वे तब भी खिले थे और आज 25 बरस बाद भी खिले हुए हैं।भोपाल के भव्य भारत भवन में ठहरे फिल्म निर्माता श्री चित्रे की नींद उचटी थी बाहर के कुछ शोरगुल से। पूस की रात करीब तीन बजे थे। कड़कड़ाती सर्दी। कमरे की खिड़कियां बंद थीं। चित्रे और उनकी पत्नी रोहिणी ने खिड़की खोलकर इस शोरगुल का कारण जानना चाहा। खिड़की खोलते ही तीखी गैस का झोंका आया। उन्होंने आंखों में जलन महसूस की और उनका दम घुटने लगा।