मध्य प्रदेश

Term Path Alias

/regions/madhya-pradesh-1

पीथमपुर ही क्यों?
Posted on 27 Jul, 2010 08:16 AM
स्पष्ट है कि यूनियन कार्बाइड का कचरा मानव जीवन के लिए खतरनाक है। तब यह सवाल उठता है कि आखिर पीथमपुर और उसके आसपास के लोगों को ही इसका शिकार क्यों बनाया जा रहा है?

पीथमपुर मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है, जहां प्रदेश की सरकार यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा नष्ट करने जा रही है। प्रदेश सरकार का यह फैसला किसी एक स्थान पर किसी कारखाने के कचरे को नष्ट करने मात्र का नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण और मानव जीवन पर एक गंभीर आघात है। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के कल्याणकारी
नर्मदा क्रिकेट ग्राउण्ड बनती जा रही है
Posted on 24 Jul, 2010 03:21 PM
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विगत, दो दशकों में विकास को नये सिरे से परिभाषित करने का एक मार्ग प्रशस्त किया है। उसने इस बात को प्रतिपादित किया कि विकास केवल विकास शब्द के साथ ही नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि विकास को विनाश के साथ भी जोड़कर देखना होगा। वतर्मान विकास को लेकर कुछेक सवालों को लेकर नर्मदा आंदोलन की तेज-तर्रार नेत्री सुश्री मेधा पाटकर से बातचीत की।
तथ्य और सत्य में अंतर था
Posted on 16 Jul, 2010 01:13 PM
प्रख्यात चिंतक धर्मपाल जी कहा करते थे कि देश को चलाने का औजार गांव और गांव के आस-पास का चरित्र है। उनके निर्देशन में हमने एक जिले को समझने का प्रयास किया था। दक्षिण का एक जिला है चिंगलपेट। वहां अंग्रेजों ने 18वीं शताब्दी में एक सर्वेक्षण किया था। वे हर गांव में गये थे। गांव का घर कैसा है, घर के सामने की गली कितनी चौड़ी है, गांव के लोग कैसे हैं, खेत मे सिंचाई कैसे होती है, उत्पादन कैसे होत
जोबट बांध परियोजना का सच
Posted on 03 Jul, 2010 11:37 PM
मध्य प्रदेश के झाबुआ जिलें में स्थित जोबट बांध (चन्द्रशेखर परियोजना) नर्मदा घाटी मे बनने वाले 30 प्रमुख बांधों में से एक है। नर्मदा की सहायक नदी ‘हथनी’ पर स्थित इस विवादास्पद बांध की अधिकतम ऊंचाई 34.6 मीटर है। इस बांध के बांयी छोर से निकलने वाले 29.73 किमी लम्बे नहर से 9848 हेक्टेअर क्षेत्र की सिंचाई प्रस्तावित है। परियोजना के डीपीआर के अनुसार परियोजना से सालाना 12,507 हेक्टेअर सकल क्षेत्र स
खाद्य सुरक्षा से ज्यादा जरूरी जल सुरक्षा
Posted on 26 Jun, 2010 09:35 AM


भास्कर फाउंडेशन द्वारा आयोजित पानी पर राष्ट्रीय सेमिनार

Water
तालाब की परंपराओं को भूलता देश
Posted on 16 Apr, 2010 10:08 AM
जलस्रोतों में नदियों के बाद तालाबों का सर्वाधिक महत्व है। तालाबों से सभी जीव-जंतु अपनी प्यास बुझाते हैं। किसान तालाबों से खेतों की सिंचाई करते रहे हैं। हमारे देश में आज भी सिंचाई के आधुनिकतम संसाधनों की भारी कमी है, जिस कारण किसान वर्षा तथा तालाब के पानी पर निर्भर हैं। लेकिन तालाबों की निरंतर कमी होती जा रही है। लगता है, हम तालाबों के महत्व को भूलते जा रहे हैं।
नर्मदा की छाती पर एक नया पत्थर
Posted on 09 Apr, 2010 04:07 PM भीष्म जी कहते हैं, ‘‘युधिष्ठिर ! जिन वृक्षों के फल खाने के काम आते हैं, उनको तुम्हारे राज्य में कोई काटने न पावे-इसका ध्यान रखना।’’ - ‘महाभारत-शान्तिपर्व’

जिस समय दिल्ली में सरदार सरोवर बांध की ऊँचाई को 122 मीटर से बढ़ाकर 139 मीटर किए जाने की बैठक चल रही थी, ठीक उसी समय इंदौर के विसर्जन आश्रम में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री सुश्री मेधा पाटकर 11 अप्रैल 2010 से प्रारंभ होने वाली जीवन अधिकार यात्रा एवं इंदौर स्थित नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) पर होने वाले अनिश्चितकालीन धरने की रूपरेखा समझा रहीं थीं। बैठक में शहर के नागरिक बड़ी संख्या में उपस्थित थे। एकाएक फोन बजा और खबर आई कि देवेन्द्र पांडे की अध्यक्षता में केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा गठित पर्यावरणीय उप समिति जो कि सरदार सरोवर एवं इंदिरा सागर परियोजनाओं में पर्यावरणीय सुरक्षा से संबंधित दिशानिर्देशों
बुन्देली में जल का महत्व
Posted on 10 Mar, 2010 08:39 AM अनादिकाल से मनुष्य के जीवन में नदियों का महत्व रहा है। विश्व की प्रमुख संस्कृतियाँ नदियों के किनारे विकसित हुई हैं। भारत में सिन्धु घाटी की सभ्यता इसका प्रमाण है। इसके अलावा भारत का प्राचीन सांस्कृतिक इतिहास भी गंगा, यमुना, सरस्वती और नर्मदा तट का इतिहास है। ऐसा माना जाता है कि सरस्वती नदी के तट पर वेदों की ऋचायें रची गईं, तमसा नदी के तट पर क्रौंच-वध की घटना ने रामायण संस्कृति को जन्म दिया। आश्रम
शिप्रा पर एक पर्यावरणीय चिन्तन
Posted on 26 Feb, 2010 04:30 PM भौतिक विकास की अंधी दौड़ से न केवल भारत का वरन् सम्पूर्ण विश्व का पर्यावरण आज असंतुलित हो रहा है। भौतिक विकास की अदम्य लालसा ने व्यक्ति को अत्यधिक स्वार्थी एवं विवेकशून्य बना दिया है। भौतिक सुख की वेदी पर आज व्यक्ति अपने भविष्य की आहुति खुशी-खुशी दे रहा है। यह है व्यक्ति की विवेक शून्यता की उच्चावस्था। व्यक्ति को आज चिन्ता है केवल स्वार्थ पूर्ति की-उसका सिद्धान्त बन गया है – “यावत् जीवेत् सुखं
×