मध्य प्रदेश

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नींद में डूबे हुए-से ऊंघते-अनमने जंगल
Posted on 21 Feb, 2011 10:38 AM

भवानी प्रसाद मिश्र की मशहूर कविता जब बचपन में सुना-पढ़ा करता था तो सतपुड़ा के जंगलों को लेकर तरह-तरह की बातें मन में उठती थीं।

सतपुड़ा के घने जंगल,
नींद में डूबे हुए से,
ऊंघते-अनमने जंगल।

पुन: अपि नर्मदा
Posted on 19 Feb, 2011 12:10 PM
कितना अच्छा हुआ कि संक्रांति के दूसरे ही दिन नर्मदा मैया का काव्यमय दर्शन करके पुनीत हो सके! धुआंधार, चौंसठ योगिनीवाला गौरीशंकर का मंदिर और सफेद, नीले, पीले, हरे, काले पहाड़ों के बीच रास्ता निकालने वाली शांत गंभीर और प्रसन्न शीतल पानी वाली नर्मदा का भेड़ाघाट यह प्रेरणा दायीत्रयी है।
\"निमंत्रण\" विकास संवाद का पांचवा मीडिया विमर्श
Posted on 17 Feb, 2011 04:50 PM

12, 13 और 14 मार्च 2011


सूखे में समाज, विकास संवाद का पांचवा मीडिया विमर्श

बदलावकारी संवाद और सघन हस्तक्षेप के जरिये विकास संवाद कोशिश करता है कि मीडिया लोगों, व्यवस्था और समाज के मूल सवालों को मूल कारणों के परिप्रेक्ष्य में देखें और बहस का हिस्सा बने। मीडिया यानी सूचना और विश्लेषण का व्यापक माध्यम; जिस पर इस समाज को विश्वास करना चाहिये। परन्तु आज वह खुद सवालों के दायरे में है। पिछले 6 वर्षों में हमने विकास संवाद में यह प्रयास किया है कि मौजूद और नैपथ्य में छिपे हुये मुद्दों को पहचानें, उनके बारे में जानकारियां इकट्ठा करें; उनका विश्लेषण करें और मीडिया लेखन के रूपों में ढालें।
कैसे कहें यह राष्ट्रीय तीर्थ है .......!!!
Posted on 16 Feb, 2011 09:22 AM


कल एक बांध को देखा तो कसक जाग उठी ।
एक तीर्थ बनाने में कितने घर डूबे होंगे ।।

कौन मरा, कौन जिया, किसकी जमीनें डूबीं, कोई बहीखाता नहीं है यहां ।
आज कौन है, कहां हैं, कोई नहीं जानता ।
पर कल रिक्शा चलाते मिला था, एक आदमी सतना की सड़कों पर ।
कुरेदा तो बताया कि बरगी से आया हूं।
वो तो आज भी रहते हैं अंधेरे में ही

हाथ कटाने को तैयार ?
Posted on 15 Feb, 2011 03:41 PM काम के अभाव में यहां के लोगों का पलायन जारी है। खामखेड़ा के बीरनलाल कहते हैं कि पहले तो हमें डुबो कर मार ड़ाला, अब काम ना देकर मार डालेगी ये सरकार !! पेट के बच्चे तक के लिये यहां पर योजनायें हैं लेकिन हम क्या विदेशी हैं, आतंकवादी हैं ?
काली चाय का गणित
Posted on 15 Feb, 2011 03:26 PM जब बाँध बनने की बात होती थी तो हम लोग हंसते थे कि जिस नर्मदा माई को भगवान नहीं बाँध पाये और जो अमरकंटक से निकलकर कल-कल बहती ही रही है,उसे कौन बाँध सकता है ? और जब भगवान नहीं बाँध पाये तो नर्मदा विकास (प्राधिकरण) की क्या बिसात ...........?
खेतों पर रसायनों की बारिश
Posted on 05 Feb, 2011 01:41 PM

खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक के बेतहाशा बढ़ते उपयोग से पैदा हो रहे खतरों पर खूब सीटी बजती रही है, पर व्यवहार नही बदले। मध्यप्रदेश के झाबुआ का पेटलावद ब्लाक तो यह बता रहा है कि वहां खेत, फसल और किसान पूरी तरह से घातक रसायनों में ही डूब चुके हैं। यहां एक हेक्टेयर खेत में 600 से 800 किलोग्राम रासायनिक उर्वरक और 5 से 10 लीटर रासायनिक कीटनाशक छिड़के जा रहे है।

खुशहाल खेती की मिसाल
Posted on 05 Feb, 2011 10:42 AM

छतरपुर के गांधी आश्रम में जैविक खेती का अद्भुत प्रयोग

जलवायु परिवर्तन और बुंदेलखंड
Posted on 05 Feb, 2011 09:33 AM

परीकथा नहीं है जलवायु परिवर्तन

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