नर्मदाघाटी के भू स्तरों की खोजों से पता चलता है कि नर्मदाघाटी की सभ्यता सिन्धुघाटी की सभ्यता से बहुत पुरानी है। नर्मदाघाटी में प्राप्त भैंसा, घोड़े, रिनोसिरस, हिप्पोपोटेमस, हाथी और मगर की हड्डियों तथा प्रस्तर-उद्योग से पता चलता है कि यह भूभाग आदिम मानव का निवास था। इसी क्षेत्र में 1872 ई. में खोजी गयी स्फटिक चट्टान से निर्मित एक तराशी प्रस्तर कुल्हाड़ी को भारत में प्राप्त प्रागैतिहासिक चिन्हों में सबसे प्राचीन बताया गया है। और उसे पूर्व-चिलयन युग का माना गया है।
Posted on 03 Feb, 2010 12:24 PM सबको, साफ, स्वच्छ, सदा पानी के उद्देश्य के लिए काम कर रहा संगठन अर्घ्यम ने डेवलपमेंन्ट अल्टरनेटिव के साथ मिलकर वर्षा जल संग्रह एवं प्रबंधन (प्रशिक्षण निदेशिका) तैयार की है। यह प्रशिक्षण निदेशिका बुंदेलखंड के भौगोलिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है। बुंदेलखंड पिछले कई सालों से सूखे की चपेट में हैं। पिछले 3-4 सालों के अंदर ही सूखे की मार की वजह से चार सौ से ज्यादा किसानों ने आत्महत्
Posted on 30 Jan, 2010 09:26 AMहमें याद रखना होगा देश में इंदौर में प्रसारित जल सबसे महंगा है। इंदौर वासियों को घरों तक पानी पहुंचाने से सरकार को जितना खर्च करना पड़ता है उतना शायद देश के किसी शहर में नहीं होता। नल न आने पर सड़क पार के बोरिंग से एक बाल्टी पानी लाना आपको महंगा लगता है, तब फिर जलूद (नर्मदा) से इंदौर तक एक बाल्टी पानी लाने में आपके क्या हाल होंगे? कितना छलकेगा पानी? असंभव है ना यह तो फिर जमूद से इंदौर तक की यात्रा करते पानी का मोल पहचानना होगा।डग-डग नीर के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध मालवा आए दिन सूखे की चपेट में होता है। मरुस्थल होते जा रहे इस पठार पर पानी की कमी भयावह संकेत दे रही है। पानी की यह संकट हमें ही झेलना है, इसलिए जरूरी है बूंद-बूंद पानी के महत्व को महसूस किया जाए।
इंदौर मालवा का सबसे बड़ा शहर है। पर इतिहास साक्षी है कि यह कोई बहुत पुराना नगर नहीं है। 1715 के आसपास यह क्षेत्र ओंकारेश्वर से उज्जैन के मध्य यात्रा का एक खुशनुमा पड़ाव हुआ था। आज यह महानगर में तब्दील होता एक शहर है, जो मुम्बई का स्वरूप लेता जा रहा है। जमीन का यह टुकड़ा बाजीराव पेशवा ने मल्हारराव होल्कर को 1733 में पुरस्कार के रूप में दिया था।
Posted on 27 Jan, 2010 06:16 PMभारत का लम्बा इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और संवर्द्धन की जिम्मेदारी समाज खुद ही वहन करते आया है। रियासतों का काल हो या लोकतांत्रिक सरकारों का दौर, ग्रामीण समाज अपने परिवेश के लिए सत्ता संस्थानों पर आश्रित नहीं रहते आया है। लेकिन पिछले कुछ वर्षो से समाज में यह धारणा घर करती गई कि जो कुछ भी करना है, सरकार ही करेगी। गाँव के काम को हम अपना काम क्यों समझे?
Posted on 25 Jan, 2010 05:41 PMमध्यकाल में भारत में कई शहरों का विकास हुआ जिनमें कुछ शहर प्रांतों की राजधानी थे, कुछ व्यापार या शिल्प के केन्द्र थे और कुछ सैनिक मह्त्त्व के शहर थे। इन विशाल शहरों में उस समय जलपदाय की कुशल व्यवस्था थी और उसके लिए प्राकृतिक नियमों और उस समय प्रचलित तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता था। मध्यप्रदेश को ही लें, तो पन्द्रहवीं और सोलहवीं सदी में माण्डू एक विशाल शहर था और वहाँ जलसंग्रहण की पारम्परिक व्यवस्थ