मध्य प्रदेश

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पानी रोकने का सरल और सस्ता उपाय
Posted on 31 Dec, 2009 07:01 PM

अगर बरसात के बाद नदी-नालों से बहने वाले पानी का प्रभावी तरीके से संग्रहण किया जाय तो पानी कई गुना और ज्यादा मिलने लगेगा।

rainwater harvesting
पाँच प्रतिशत मॉडल
Posted on 31 Dec, 2009 06:10 PM

भारतवर्ष में सिर्फ 32 प्रतिशत कृषि जमीन सिंचित कोटि में है और बाकी 68 प्रतिशत जमीन शुष्क/बारानी अथवा वर्षा पर निर्भर खेती के अंतर्गत आती है। अत: अगर वर्षा पर निर्भर खेतों में जल संग्रहण का प्रयास किया जाए तो इस जमीन से काफी कृषि का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। इसी सोच के तहत मध्य प्रदेश के ऊबड़-खाबड़ और ढालू जमीन में खेती के लिए जल संग्रहण के लिए एक विधि का इस्तेमाल हो रहा है, जिसे पाँच प्रतिशत क

वर्षा जल संग्रहण से संकट टला
Posted on 28 Dec, 2009 01:03 PM मध्य प्रदेश में उज्जैन से 70 किलोमीटर की दूरी पर बालोदा लाखा नामक एक गांव है, जहां के ग्रामवासियों ने अपने गांव में पानी की समस्या खुद दूर कर ली है। गांववालों ने इसके लिए सामुदायिक जल प्रबंधन के दृष्टिकोण से काम करना शुरु किया, जिससे इस गांव में रौनक छा गई है।
खूनी भण्डारा का उद्धार हुआ
Posted on 28 Dec, 2009 12:49 PM खूनी भण्डारा बुरहानपुर शहर की एक अनूठी भूजल प्रबंधन व्यवस्था है, जिसे मुगलों ने 17वीं शताब्दी में स्थापित किया था। आज मध्य प्रदेश के खण्डवा जिले का बुरहानपुर नगर निगम और खण्डवा जिला प्रशासन मिलकर इस व्यवस्था को फिर से ज़िंदा करने में जुटे हैं, जिससे इस पूरे शहर में सालों-साल स्वच्छ और पर्याप्त मात्रा में भूजल उपलब्ध होता रहे। इस पहल से इस क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। भूजल व्यवस्था का का
जोहिला के गहनों पर किसकी नजर
Posted on 28 Nov, 2009 04:03 PM जोहिला, सोन संगम पर स्थित दशरथ घाट की धुधंली सी स्मृति मानस में अभी भी अंकित है। बात काफी पुरानी है, तब मैं दोस्तों के साथ दशरथ घाट का मेला देखने गया था और उस स्थान की विशेषता को नहीं जिसकी वजह से जहां मेला भरा होता है। अमृता प्रीतम की कविता की भाषा में कहना हो तो-‘‘मुझे वह समय याद है-जब धूप का एक टुकड़ा सूरज की उंगली थाम कर अंधेरे का मेला देखता, उस भीड़ में कहीं खो गया.....’’ लेकिन सरसरी अवलोकन म
सिवनी का दलसागर
Posted on 08 Nov, 2009 11:13 AM

कभी सिवनी नगर के सौन्दर्य का प्रतीक दलसागर तालाब माना जाता था। जिले की संदर्भ ग्रंथ माने जाने वाली पुस्तक “सिवनी अर्वाचीन एवं प्राचीन” में यह उल्लेख किया गया है कि शहर के मध्य में दलसागर तालाब है जिसे दलसा नामक गौली ने बनवाया था। इसके चारों ओर पक्के घाट बने हैं जिससे तालाब बहुत ही सुन्दर लगता है। घंसौर से पुरानी मूर्तियां लाकर किनारे पर रखवायीं गयीं हैं जो देखने योग्य है।

दलसागर तालाब
मर रही हैं नदियां
Posted on 06 Nov, 2009 06:01 PM

‘विकास अप्सरा’ के चाहत में नर्मदा जल भोपाल पहुंचाने के लिए लंबी पाईपलाइन योजना और बिजली उत्पादन के नाम पर 183 बांधों की योजना पर काम चल रहा है। यह सब हो रहा है, प्रदेश की चंद बड़ी नदियों के दम पर। लेकिन क्या इन नदियों का पानी बचा रह पायेगा?

क्षिप्रा : सिमट रही आस्था
साफ, सुरक्षित जल सदा, सबके लिए कार्यशाला का आयोजन
Posted on 12 Sep, 2009 07:01 PM
तिथि-15-16 सितम्बर 2009
स्थान- ताराग्राम, ओरछा, मध्य प्रदेश
साफ, सुरक्षित जल सदा, सबके लिए परियोजना के तीन वर्ष पूरे हो गए हैं इस दौरान बहुत सी चुनौतियां सामने आईं, बहुत कुछ सीखने को मिला जिसे ऐसी ही अन्य परियोजनाओं को बनाते और लागू करते समय इस्तेमाल किया जा सकता है।
शहडोल - तालाब ने बदल दी तकदीर
Posted on 11 Sep, 2009 07:02 AM

अनेक काश्तकार बलराम तालाब योजना की ओर आकर्षित हुए हैं । बलराम तालाब रामनारायण के पांच एकड़ खेतों की प्यास बुझाता है और साल में तीन फसलें होती हैं। रामनारायण डीजल पंप से अपने खेतों में सिंचाई करते हैं । खास बात यह है कि तालाब को नीचाई पर इस तरह बनाया गया है कि खेतों में दिया गया पानी अन्तत: बहकर वापस तालाब में ही जमा हो जाता है, जिससे तालाब खाली नहीं हो पाता । बलराम तालाब से पनपे खेतों से आज रामनारायण और उनके दो भाईयों यानि तीन परिवारों की बड़े मजे में आजीविका चल रही है । शहडोल, सितम्बर 09, जब पैंतीस वर्षीय रामनारायण कुशवाहा ने तमाम प्रयासों के बाद नौकरी नहीं मिलने पर दो वर्ष पूर्व शहडोल जिले के खेतौली गांव में अपने परिवार की पांच एकड़ जमीन के खेतों के बीच कृषि विभाग के अनुदान की सहायता से तालाब खुदवाने का फैसला किया, तो उन्हें जरा भी एहसास नहीं था कि वे बहुत जल्द लखपति बन जाएंगे । लेकिन बारवीं पास श्री रामनारायण की दो साल में उस तालाब ने तकदीर बदल दी ।

रामनारायण ने जब भी खेतों से अपना भविष्य बनाने की कल्पना की, वह परवान नहीं चढ़ सकी । सिंचाई की कमी उनके मार्ग में बाधा थी । सिंचाई के लिए खेत पूरी तरह वर्षा पर निर्भर होने के कारण खेती की ओर बढ़ते उनके कदम हमेशा डगमगाने लगते थे ।

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