अमरीका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) का कहना है कि हाथ साफ रखने से 3 में से 1 को डायरिया संबंधी बीमारियों और 5 में से 1 को सर्दी या फ्लू जैसे श्वसन संक्रमण से बचाया जा सकता है। इसी सोच के साथ दुनिया में कुछ नवाचार किए गए हैं, जिनकी मदद से लोगों में हाथ धोने की आदत को विकसित किया गया है।
पाठ्यपुस्तकों से अपेक्षा है कि ज्ञान को स्थानीय व वैश्विक पर्यावरण के संदर्भ में रखें ताकि विज्ञान, तकनीक व समाज के पारस्परिक संवाद के क्रम में मुद्दों को समझा जा सके। जब इस वैधता पर हम पुस्तकों को देखते हैं तो इनमें स्वच्छता, शौचालय, कचरा प्रबंधन आदि पर विस्तार से बात की गई है जिससे यह उम्मीद दिखती है कि इन मुद्दों पर समाज में संवाद कायम होगा और बदलाव भी आ सकेगा। लेकिन इनके महत्त्व को स्थापित करने हेतु उचित तर्क चुने जाने चाहिए थे।
नभाटा की रिपोर्ट के अनुसार क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक है जो बादलों पर विभिन्न पदार्थों को छोड़कर बारिश या बर्फ को उत्तेजित करने का लक्ष्य रखती है। इसके लिए सिल्वर आयोडाइड या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाईऑक्साइड) को रॉकेट या हवाई जहाज के ज़रिए बादलों पर छोड़ा जाता है।इस प्रक्रिया में बादल हवा से नमी सोखते हैं और कंडेस होकर उसका मास यानी द्रव्यमान बढ़ जाता है। इससे बारिश की भारी बूंदें बनती हैं और वे बरसने लगती हैं।
राजस्थान की पर्यावरण अध्ययन की सारी पाठ्यपुस्तकें सरसरी तौर पर ही देखी हैं, मगर मैंने पाया कि हरेक में पाठ के अंत में बिंदुवार बता दिया गया है कि विद्यार्थी को क्या सीखना है। कक्षा 4 की 'अपना परिवेश' मैंने थोड़े ध्यान से देखी । तो चलिए इसके पाठों पर एक नजर डालते हैं। वैसे किसी एक पुस्तक पर अलग से नजर डालना इन पुस्तकों के साथ थोड़ा अन्याय है क्योंकि पुस्तक के शुरू में 'शिक्षकों के लिए' शीर्षक के तहत कहा गया है कि “यदि कक्षा 3 में पर्यावरणीय घटक हमारा परिवेश एवं संस्कृति से संबंधित सामग्री पहले ली है तो उसी को क्रमबद्धता के साथ कक्षा 4 व 5 में उसे संवर्धित किया गया है।" बहरहाल, मैं अपनी मेहनत को नहीं बढ़ाऊंगा और कक्षा 4 की किताब को ही आधार बनाऊंगा।
प्रकृति पर मानव के अभूतपूर्व प्रभाव वाले इस समय में, हम जानते हैं कि मानव व्यवहार को बदलने की आवश्यकता है। इस बदलाव का एक अनिवार्य हिस्सा हमारे बच्चों के लिए यह समझना है कि हम प्रकृति से अलग नहीं बल्कि उसका हिस्सा हैं, साथ ही जिस दुनिया में हम रहते हैं उसमें अपना सार्थक योगदान किस तरह से दे सकते हैं। हमें स्वयं इस बात पर विश्वास है, और कार्य के दौरान भी हमें इसका प्रमाण मिला कि बच्चे अपने आस-पास के परिवेश के साथ खुद को जोड़कर ही सबसे अच्छे तरीके से सीख पाते हैं।
भारत के 24 सर्वाधिक सूखा प्रभावित क्षेत्रों में से कर्नाटक राज्य का स्थान सोलहवाँ है। कर्नाटक के पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी क्षेत्र के जिलों, जिनमें गुलबर्गा, रायचूर, बेल्लारी, चित्रदुर्ग, तुमकुर, कोलार और साथ ही कुछ अन्य स्थानों जिनमें बेंगलुरु भी शामिल है, के भूमिगत जल में फ्लोराइड काफ़ी ज़्यादा है।
इस लेख को डॉ. क्रिसटियन कैसिलस के 2013 में लिखे गए एक लेख से लिया गया है, जिन्होंने 2012 में अधारशिला लर्निंग सेंटर में वहाँ के छात्रों की मदद से एक बायोगैस प्लांट (बायोडाइज़ेस्टर ) स्थापित करने का काम किया था। स्थापना के तीन साल बाद तक बायोगैस संयंत्र स्कूल की रसोई में दूध को गर्म करने और दाल पकाने के लिए ईंधन उपलब्ध कराने के साथ ही अच्छी गुणवत्ता वाली खाद प्रदान करने और बच्चों के शरीर व दिमाग को व्यस्त रखने का उपयोगी काम भी करता रहा।
वैदिक सभ्यता में सरस्वती को ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी माना गया था। इसरो द्वारा किए गए शोध से पता चला है कि आज भी यह नदी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होती हुई धरती के नीचे से बहती है। यह नदी इतनी विशाल थी कि पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी
अपर गंगा रामसर साइट में प्रथम बार 2025 में डॉल्फिन की गणना प्रारंभ की गई जिसमें 11डॉल्फिन की गणना की गई। यह स्थिति बहुत ही अच्छी थी क्योंकि नदी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का सबसे विश्वसनीय प्रतीक डॉलफिन होती है। इसके सांस लेने की आवाज के कारण से इसे सूंस के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एक दृष्टिहीन स्तनधारी जीव होता है एवं मीठे पानी में ही रहता है। यह जहां होता है वहां का पानी बिना किसी संशय के पीने योग्य होता है।
प्रथम सत्र के वक्ताओं में राष्ट्रीय संगठन मंत्री बृजेन्द्र पाल सिंह, सह संगठन मंत्री गोपाल उपाध्याय, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष आचार्य रविन्द्र जी, उपाध्यक्ष डह. हृदयेश बिहारी, राष्ट्रीय व्यवस्था प्रमुख कमलेश गुप्ता, राष्ट्रीय सम्पर्क प्रमुख श्रीकृष्ण चौधरी, सह सचिव कैप्टन सुभाष ओझा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अशोक त्रिपाठी, विनोद कुमार श्रीवास्तव एवं गंगा सेवक कृष्णानंद राय ने संबोधित किया।
लोक भारती के नैमिषारण्य केंद्रित कार्यक्रमों के क्रम में 12 अक्टूबर 2023 को गोमती तट पर पूजन के बाद जल यात्रा निकाली गई। गोमती के तट पर पूजन के बाद नारियल तोड़ कर देवदेवेश्वर घाट से जलयात्रा का शुभारंभ किया गया। नदी के तटवर्ती गांव ठाकुरनगर से झरिया, फूलपुर, डबरा, कोल्हुआ, बरेठी, निरहन, नबीनगर एवं कोकरपुरवा तक जलयात्रा निकाली गई। जल मार्गी देवदर्शन यात्रा गोमती नदी के प्रवाह मार्ग पर देव देवसर से लेकर के हंस हंसिनी, रूख व्रत, ब्रह्मा व्रत और सतयुग आश्रम केदारनाथ बरेठी तक पूर्ण हुई
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में वायु प्रदूषण से पाँच वर्ष तक की उम्र के बच्चों में निमोनिया ज्यादा हो रहा है जो उनकी मौत का बड़ा कारण है। डाक्टरों का कहना है कि बच्चों में ज्यादा ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है, इसलिए सांस लेने की गति भी तेज होती है।
भारत विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है, यहाँ 253 बिलियन क्यूबिक मीटर प्रति वर्ष की दर से भूजल का दोहन किया जा रहा है। यह वैश्विक भूजल निष्कर्षण का लगभग 25 प्रतिशत है। भारत में लगभग 1123 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) जल संसाधन उपलब्ध है, जिसमें से 690 बीसीएम सतही जल और शेष 433 बीसीएम भूजल है। भूजल का 90 प्रतिशत सिंचाई के लिए और शेष 10 प्रतिशत घरेलू और औद्योगिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपयोग किया जाता है।
Waterbirds such as Kingfishers play an important role in sustaining the integrity of wetland ecosystems and can be greatly useful as indicators in assessing the health of wetland ecosystems.
उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्र चौरसों की महिला किसान भी महिला सशक्तिकरण की बेजोड़ मिसाल हैं। राज्य के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक के इस गाँव की अधिकतर महिलाएं घर के साथ साथ कृषि संबंधी कार्यों को भी बखूबी अंजाम देती हैं।
हमें प्रकृति और मानव के बीच का संतुलन बनाए रखना होगा। प्रकृति और मानव एक दूसरे के पूरक हैं, जो एक दूसरे को पोषित और संरक्षित करते हैं। प्रकृति हमें जल, वायु, भोजन, आश्रय, औषधि और अन्य संसाधन प्रदान करती है, जो हमारे जीवन के लिए आवश्यक हैं। मानव प्रकृति की रक्षा और संवर्धन कर सकते हैं, जो उसकी स्वास्थ्य और समृद्धि को बढ़ाता है