देश के कुछ राज्य ऐसे हैं जहां ग्रामीण क्षेत्रों के किसानों को सिंचाई में होने वाली परेशानी के कारण कृषि व्यवस्था प्रभावित हो रही है. इन्हीं में एक बिहार के गया जिला का उचला गांव है. जहां किसान सिंचाई की सुविधा नहीं होने के कारण कृषि कार्य से विमुख हो रहे हैं. जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर और प्रखंड मुख्यालय बांकेबाज़ार से करीब 13 किमी दूर यह गांव रौशनगंज पंचायत के अंतर्गत है. लगभग 350 परिवारों की आबादी वाले इस गांव में उच्च वर्ग और अनुसूचित जाति की मिश्रित आबादी है
सतत् परियोजनाओं के लिये वित्तपोषणः ब्लू बॉन्ड भारत में सतत् समुद्री परियोजनाओं के लिये आवश्यक वित्तपोषण प्रदान कर सकते हैं। इसमें स्वच्छ ऊर्जा पहल, अपतटीय पवन फार्म, तरंग ऊर्जा कनवर्टर (wave energy converters). समुद्री संरक्षित क्षेत्र और संवहनीय मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि शामिल हैं। ये परियोजनाएँ रोजगार पैदा कर सकती हैं, अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकती हैं और पर्यावरण संरक्षण में योगदान कर सकती हैं।
यदि नदियों में बढ़ते प्रदूषण को रोका नहीं गया तो लगभग 1500-2000 वर्ष बाद भारत नदी विहीन देश होगा। आधुनिकता के युग में पूर्वजों की चेतावनियों को मनुष्य ने अनसुना कर दिया जिसके परिणामस्वरूप पतितपावनी गंगा सहित अन्य नदियों का पावन जल कलुषित और प्रदूषित हो गया है। कई नदियाँ विलुप्ति के सन्निकट हैं और कुछ का अस्तित्व समाप्त हो चुका है।
This case study shows that the most complex of problems do not necessarily demand the biggest of organisational resources: it requires thoughtful and timely deployment of limited resources.
दिल्ली -एनसीआर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान सहित उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों में 3 अक्टूबर के बाद से बार-बार भूकम्प के झटके महसूस किए जा रहे हैं। 3 अक्टूबर की दोपहर को तो भूकम्प के जोरदार झटके महसूस किए गए थे, जिसका केन्द्र नेपाल के बझांग जिले में था। उत्तर भारत में उस दौरान लगातार दो बार धरती कांपी थी। हालांकि भारत में भूकम्प के उन झटकों से जानमाल का कोई नुकसान नहीं हुआ था लेकिन केवल 26 मिनट में ही नेपाल से लेकर दिल्ली तक दो बार लगे भूकम्प के जोरदार झटकों से हर कोई कांप गया था।
राज्य के सीमांत भाग तक के विद्यार्थियों को विज्ञान, तकनीकी एवं पर्यावरण संबंधी विषयों में प्रयोगात्मक रूप से प्रशिक्षित किया जाय। पर्यावरण विषय पर प्रशिक्षित युवा अपने कौशल विकास के साथ अपने करियर को अच्छा बना सकते हैं साथ ही साथ अपने पर्यावरण के संरक्षण के लिए भी कार्य कर सकते हैं
सन् 1951 में मैक्स थीलर को यलो फीवर की वैक्सीन बनाने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। सन् 1885 में लुई पास्टर द्वारा विकसित रेबीज की वैक्सीन का एक बहुत रोचक इतिहास रहा है। धीरे-धीरे मॉलीक्युलर बायोलॉजी के विकास के साथ पूरे रोगाणुओं वायरस की बजाय वायरस के टुकड़ों से वैक्सीन बनाने की जानकारी और क्षमता विकसित हुई। इसमें वायरस के जेनेटिक कोड-डीएनए या आरएनए के कुछ टुकड़ों-जो वायरस की कुछ विशेष प्रोटीन्स को बनाने के लिए उत्तरदायी होते हैं-का प्रयोग किया जाता है।
दुनियाभर के कई देशों में जीव-जंतुओं और उनके शारीरिक अंगों के उपयोग को लेकर सदियों से तमाम तरह की भ्रांतियाँ फैली हुई हैं जिसने वन्यजीव तस्करी को प्रमुखता से बढ़ावा दिया है। पारंपरिक चिकित्सा, जानवरों को पालतू बनाने, जादुई उपयोग, मांस सेवन, जैविक अंगो के सजावटी उपयोग, औषधीय निर्माण आदि कारणों के चलते दुनियाभर में वन्यजीवों की बड़े पैमाने पर तस्करी की जाती है। बाघ और तेंदुएं की खाल, गैंडे के सींग, हाथियों के दांत, सांपो की केंचुल, हिरनों के खुर, पैंगोलिन के शल्क, मॉनिटर लिजार्ड के जननांग, मेढक की टांग, शार्क के पंख, कस्तूरी मृग की कस्तूरी और नेवले के बाल आदि शारीरिक अंगों की अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में भारी मांग के चलते वन्यप्राणियों का बेरहमी से शिकार कर उनकी तस्करी की जाती है
देहरादून इंटरनेशलन साइंस एंड टेक्नॉलोजी फेस्टिवल के चौथे संस्करण के पहले दिन उद्घाटन सत्र में राज्य की अपर मुख्य सचिव श्रीमति राधा रतूड़ी, आईएएस ने अपने संबोधन में कहा कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास से समाज का अंतिम व्यक्ति भी लाभान्वित होना चाहिए। हमें साइंस फॉर सोसायटी की अवधारण पर कार्य करना चाहिए। इसी दिन विज्ञान पोस्टर प्रतियोगिता में एक हजार से अधिक स्कूल और कॉलेजों के छात्रों द्वारा प्रतिभाग किया गया
अंग्रेजों के शासनकाल में साल 1880 में इसी पहाड़ी में भारी भूस्खलन हुआ था, जिसमें 151 लोग मारे गए थे। इसमें 43 अंग्रेज अधिकारी भी शामिल थे। हादसे के बाद अंग्रेजों ने इस पहाड़ी पर निर्माण पर पाबंदी लगा दी थी। बावजूद इसके अब तक यहां निर्माण हो रहे हैं। लगभग 10 हजार लोग यहां मकान बनाकर रह रहे हैं। 1880 के इस हादसे के बाद नैनीताल में 79 किलोमीटर का एक बड़ा ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया था जो विश्व धरोहर है। इसी ड्रेनेज की वजह से नैनीताल स्थिर रहा है।
समिति ने सिफारिश की है कि प्रवासी पक्षियों और जैव विविधता के अन्य रूपों के महत्त्व को देखते हुए प्राकृतिक नमक क्षेत्रों के नियमों के तहत सुरक्षा दी जानी चाहिए।
इसके अलावा मामले में अधिकारियों की जवाबदेही तय हो, जुर्माना लगे।
कुदरेमुख चिकमंगलूर, उडुपी, दक्षिण कन्नड और शिमोगा जिलों में फैला है। पश्चिमी घाट के 'घोड़ेनुमा' अक्स से इसे यह नाम मिला है। यह क्षेत्र लौह अयस्क से समृद्ध है। दरअसल पश्चिमी घाट दुनिया के जैव विविधता से समृद्ध 18 इलाकों में से एक है।
भूजल का आपके लिए महत्व तभी होता है जब आप पानी का अभाव भोग रहे होते हैं। इक्कीसवीं सदी का भारत जिन सबसे जटिल व सामाजिक दृष्टि से चुनौतीपूर्ण मुद्दों का सामना कर रहा है उनमें से बहुत से मुद्दे भूजल प्रबंधन से सम्बंधित हैं। इनका निराकरण किस तरह किया जाता है इसका सीधा प्रभाव पर्यावरण और अधिकांश ग्रामीण व शहरी लोगों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी पर पड़ेगा।
शहरों में भूजल स्तर लगातार नीचे को खिसकता जा रहा है। पारंपरिक जल संरक्षण के व्यावहारिक उपायों को हमने आधुनिकता के दबाव में त्याग दिया। लेकिन आज जल संरक्षण को एक राष्ट्रीय दायित्व के रूप में अपनाने का समय आ गया है। लेखक भारतीय संदर्भ में जल संसाधन के अनुभवी विशेषज्ञ है और प्रस्तुत लेख में उन्होंने भारत में जल के भौगोलिक वितरण, वर्षा के पैटर्न, पेयजल, तालाब संस्कृति और जल संरक्षण हेतु जल जागरूकता जैसे मुद्दों पर चर्चा की है।
जल बजट क्षेत्र के पानी के इनपुट और आउटपुट के बीच संबंध को दर्शाता है" जल बजट आमतौर पर इस बारे में ज्ञान प्रदान करता है कि कितना पानी उपलब्ध है, यह प्रवाह की गतिशीलता की विस्तृत समझ के साथ कहां उपलब्ध है। जल बजट अध्ययन जल विज्ञान चक्र के विभिन्न जलाशयों के भीतर पानी की और पुनर्भरण से निर्वहन तक प्रवाह पथ पर विचार करता है।