जल संचयन के रंग-ढंग(Types of water harvesting In hindi)
हमारे देश में विभिन्न प्रकार की स्थलाकृति पायी जाती हैं जैसे उच्च ढलान, मध्यम ढलान और अल्प ढलान तथा समतल भूमियाँ । उच्च ढलान, अल्प मिट्टी उर्वरा और मिट्टी की कम गहराई वाली जगहों में कृषि वानिकी और वनीकरण उचित रहता है।
जल संचयन के रंग-ढंग
जल संचयन क्या है(What is water harvesting In hindi)
जल गुणवत्ता का तात्पर्य जल की शुद्धता (अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल) से है। अधिक उपलब्ध जल संसाधन, औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है और इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता सीमित होती जा रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल में भी वृद्धि हो रही है।
जल संचयन
ताजी हवा उगाने के नुस्खे बताती किताब
ताजी हवा न केवल बेहतर सोच और सतर्कता में मदद करती है, बल्कि स्वस्थ बच्चों की परवरिश में भी सार्थक भूमिका निभाती है, जो हमारे भविष्य के संरक्षक हैं। पुस्तक के लेखकों ने गहन शोध से आंतरिक जगहों पर हवा को शुद्ध करने के तरीकों को शब्दबद्ध किया है ताजी हवा न केवल बेहतर सोच और सतर्कता में मदद करती है, बल्कि स्वस्थ बच्चों की परवरिश में भी सार्थक भूमिका निभाती है, जो हमारे भविष्य के संरक्षक हैं। पुस्तक के लेखकों ने गहन शोध से आंतरिक जगहों पर हवा को शुद्ध करने के तरीकों को शब्दबद्ध किया है
ताजी हवा उगाने के नुस्खे बताती किताब
हिमालय के गढवाल क्षेत्र की प्राकृतिक आपदाऐं
गढ़वाल हिमालय क्षेत्र भूकम्पों एवं बाढ़ों से अक्सर प्रभावित रहा है। जो कि भूस्खलन का मुख्य कारण है। पिछले 40 से 50 वर्षों में इस क्षेत्र में अनगिनत भूकम्प, बाढ़ एवं भूस्खलन की घटनायें घटित हुई हैं जिनमें 1970 में अलकनन्दा की प्रलयकारी बाढ़, 1991 का उत्तरकाशी भूकम्प, 1999 काचमोली भूकम्प एवं 16 जून 2013 की केदारघाटी में भूस्खलन की घटना गढ़वाल के इतिहास में भीषणतम श्रासदियों में से एक है।
प्राकृतिक आपदा
सुरंगों में हिमालय का भविष्य 
हिमालय की नदियां अस्तित्व के संकट से जूझेंगी। बिजली परियोजनाओं में जो संयंत्र (रन-ऑफ-द-रिवर) लग रहे हैं, उनके लिए हिमालय को खोखला किया जा रहा है। सड़कों आदि के लिए आधुनिक औद्योगिक विकास का ही परिणाम है कि आज हिमालय दरकने लगा है। जिन पर हजारों सालों से बसे लोग अपनी ज्ञान-परंपरा के बूते जीवन-यापन करते चले आ रहे हैं। 
सुरंगों में हिमालय का भविष्य 
मध्य गंगा घाटी में घटता भू-जल विकास स्तर : समस्याएं एवं समाधान
भारत भू-जल का तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक है, जो कुल वैश्विक भू-जल निर्यात का 12 प्रतिशत है। विश्व में प्राप्त कुल भू-जल का 24 प्रतिशत अकेले भारत उपयोग करता है। इस प्रकार भू-जल उपयोग में विश्व में भारत का प्रथम स्थान है अपने देश के लगभग 1 अरब लोग पानी से कमी वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से 60 करोड़ लोग तो गम्भीर संकट वाले क्षेत्रों में हैं। उनके लिए 88 प्रतिशत घरों के निकट स्वच्छ जल प्राप्त नहीं है, जबकि 75 प्रतिशत घरों के परिसर में पीने का पानी नहीं है। 70 प्रतिशत पीने का पानी दूषित है और तय मात्रा से 70 प्रतिशत अधिक जल का उपयोग किया जा रहा है। सन् 2030 तक 21 नगर डेन्जर जोन में आ जायेंगे अपने देश में 1170 मिलीमीटर औसत वर्षा होती है, जिसमें से 6 प्रतिशत ही हम संचित कर पाते हैं और 91 प्रमुख जलाशयों में क्षमता का 25 प्रतिशत ही जल बचा है।
मध्य गंगा घाटी में घटता भू-जल विकास स्तर : समस्याएं एवं समाधान
Unmasking gender disparities in Indian sanitation
Women's struggle for sanitation equity in rural areas and urban slums India
A training exercise on water and sanitation, as part of an EU-funded project on integrated water resource management in Rajasthan. (Image: UN Women Asia and Pacific; CC BY-NC-ND 2.0 DEED)
हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वॉयरन्मेंट के क्षेत्र में अवसर कर रहे इंतजार(Opportunities are waiting in the field of health safety and environment)
हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वॉयरन्मेंट इंजीनियर का मुख्य कार्य आपदा या दुर्घटना के कारणों का पता लगाना और उसकी रोकथाम करना है। फायर फाइटिंग सिविल, इलेक्ट्रिकल, एन्वॉयरन्मेंट इंजीनियरिंग भी इसी से जुड़ा क्षेत्र है। मसलन, महामारी की रोकथाम के उपायों से संबंधित यंत्रों की तकनीकी जानकारी, स्प्रिंकलर सिस्टम, अलाम, केमिकल या सैनेटाइजर की बौछार का सबसे स्टीक इस्तेमाल और कम से कम संसाधनों में ज्यादा से ज्यादा लोगों की रक्षा करना इनका उद्देश्य होता है।
हेल्थ सेफ्टी एंड एन्वॉयरन्मेंट के क्षेत्र में अवसर कर रहे इंतजार
नदियों को जोड़ने की खामख्याली
देश की सारी प्रमुख नदियों को जोड़ने के वाजपेयी सरकार के संकल्प पर यदि अमल किया गया, तो यह इतिहास में सहस्राब्दि की सनक के रूप में दर्ज होगा। ऐसा इसलिए कि यह योजना सारी इकॉलॉजिकल, राजनैतिक, आर्थिक व मानवीय लागत को अनदेखा करती है और इसका आकार अभूतपूर्व है। दुनिया में कहीं भी आज तक इतने बड़े पैमाने की और इतनी पेचीदगियों से भरी परियोजना नहीं उठाई गई है।
नदियों को जोड़ने की खामख्याली
फ्लोराइड : एक उभरती समस्या
फ्लोराइड हमारे आस-पास उभरती समस्याओं में से एक है, जो दांतों की संरचना, कंकाल की संरचना को प्रभावित करती है साथ ही हमारे शरीर में गैर कंकाल संरचनाएं (नरम ऊतक या गैर कैल्सीफाइड ऊतक) जो स्वास्थ्य में विविधता का कारण बनती हैं।
फ्लोराइड : एक उभरती समस्या
जल प्रबंधन एवं सिंचाई क्षमता वर्धन रबड़ बाँध एक विकल्प
जल भंडारण का कार्य प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। प्राचीन समय में जब तकनीक इतनी विकसित भी नहीं हुई थी, तब भी लोग तालाब एवं बावड़ी इत्यादि का प्रयोग वर्षा जल के भण्डारण के लिए करते थे। उस समय आबादी कम होने के कारण सीमित जल संसाधनों के होने पर भी मानव के कई दैनिक एवं व्यावसायिक कार्य सुचारू रूप से संपन्न हो जाते थे। जैसे-जैसे जनसंख्या में वृद्धि हुई अन्न की माँग भी बढ़ी इस बढ़ी हुई माँग की पूर्ति हेतु खेती के भू-भाग में बढ़ोत्तरी हुई। इस बढ़ी हुई खेती के भू-भाग की सिंचाई के लिए जल की मांग बढ़ने लगी जल की इस मांग ने बाँध जैसी जल भण्डारण वाली अवसंरचनाओं को जन्म दिया।
जल प्रबंधन एवं सिंचाई क्षमता वर्धन रबड़ बाँध एक विकल्प
जानें जल संरक्षण, संवर्धन व जलवायु परिवर्तन का सम्बन्ध
जल संरक्षण के प्रति हमारी चेतना का उदाहरण है। कुमाऊँ हिमालय के अंतर्गत जल स्रोतों का पुनर्वेदभवन ही गैरहिमानी नदियों को बचाने का एकमात्र रास्ता है। अतः जल स्रोतों के संवर्धन, संरक्षण एवम् पुनउदभवन के प्रयास आवश्यक हो गये हैं
जानें जल संरक्षण, संवर्धन व जलवायु परिवर्तन का सम्बन्ध
जलाभाव की त्रासदी  
एक समय था जब हमारे देश में जल की कोई कमी नहीं थीं। हमारे देश की नदियां जलाप्लावित रहती थी। जगह-जगह पर कुएं, बावड़ी, पाताल तोड़ कुएं तथा ट्यूबवेल हुआ करते थे जिनसे पीने का शुद्ध जल आसानी से प्राप्त हो जाता था। पशुओं तथा फसलों के लिए भी जल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाता था। पृथ्वी पर जल स्तर भी पर्याप्त ऊंचाई पर था। हमारी प्राचीन सभ्यताएं भी नदियों के किनारे पर ही विकसित हुई क्योंकि प्राचीन काल में हमारे पूर्वजों ने अपने निवास स्थान अधिकतर नदियों के किनारे पर ही बनाए ताकि उन्हें पानी आसानी से उपलब्ध हो सके। जल की पवित्रता एवं शुद्धता के कारण ही नदियों को भारत में मां की तरह पूजा जाता है।'
जलाभाव की त्रासदी ,Pc-जल चेतना
जलप्रबंधन का सामाजिक - ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य कोशी क्षेत्र के सन्दर्भ में
आजकल जल प्रबंधन सम्पूर्ण विश्व में मानवता के समक्ष ज्वलंत समस्या बनकर उभरा है। वैज्ञानिक अविष्कारों ने जहाँ जीवनस्तर को काफी ऊँचा उठा दिया है और जनसंख्या भी बढ़ी है। प्राकृतिक संसाधनों के प्रचूर मात्रा में दोहन के परिणाम स्वरूप प्राकृतिक संसाधन और मानव सभ्यता के बीच का संतुलन डगमगाने लगा है और इससे कोशी क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा है। सन् 1987 में कोशी पीड़ित विकास प्राधिकार की स्थापना हुई जो जल प्रबंधन के क्षेत्र में पूर्ण पड़ाव जैसा था।

जलप्रबंधन का सामाजिक - ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य कोशी क्षेत्र के सन्दर्भ में
शुद्ध जल के लिए जल संसाधन प्रबंधन की जरूरत (Need for water resources management for pure water)
हमारे देश में बढ़ते जल प्रदूषण के कारण जल जनित रोगों की वृद्धि इस कदर हुई है कि 10% से अधिक आबादी चपेट में आ चुकी है। जल में विकृति लाने वाले प्रदूषक तत्व विभिन्न स्रोतों से मानवीय क्रियाकलापों के दौरान ही प्रवेश करते हैं व मानव पर ही हानिकारक प्रभाव डालते हैं। मानव के अतिरिक्त जलीय एवं स्थलीय जीव-जन्तु भी प्रभावित होते हैं।
शुद्ध जल के लिए जल संसाधन प्रबंधन की जरूरत
भूगर्भ जल दोहन : समस्या और समाधान (Ground water exploitation: problem and solution in Hindi)
बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं और उदार टाऊन प्लानिंग नियमों के कारण परम्परागत रूप से वर्षा जल संचयन जलस्रोत शनैः-शनैः खत्म होते जा रहे हैं। जल शोधन और रिसाइकिलिंग की स्थिति भारत में सोचनीय और दयनीय है। लगभग 80 प्रतिशत घरों में पहुँचने वाला जल भी प्रयोग के पश्चात यों ही सीवरों में बहा दिया जाता है, उसका प्रयोग अन्य किसी कार्य में नहीं लिया जाता है। यह प्रदूषित जल बहकर बड़े जलाशयों, नदियों आदि के जल को दूषित करता है। भारत को मरुभूमि में बसे इजरायल से शिक्षा लेनी चाहिए जो अपनी प्रत्येक जल-बूँद को बेहतर तरीके से प्रयोग करता है। यह देश प्रयोग किए गए जल का शत-प्रतिशत शोधन करता है तथा 94 प्रतिशत को रीसाइक्लिंग द्वारा पुनः घरेलू कार्यों में प्रयोग करता है।
भूगर्भ जल दोहन
Navigating groundwater quality: Challenges faced by farm women from Maharashtra
While the burden of managing water at the economic and domestic level still lies with farm women, has the lift irrigation scheme helped in reducing the burden on women from villages in Purandar subdistrict in Maharashtra?
Women water managers in rural India. Image for representation purposes only (Image Source: IWP Flickr photos)
Advancing people-centric early warning systems
A case study on the scope and challenges of impact-based forecast and warning services for hydro-meteorological hazards in India
Community-Based Flood Early Warning System (Image: ICIMOD/Jiten; Flickr Commons)
×