विनाश और विकास | Development or Destruction

विनाश और विकास | Development or Destruction
विनाश और विकास | Development or Destruction

केरल के विझिंजाम में निर्माणाधीन बंदरगाह को लेकर विरोध जारी है। सरकार का दावा है कि यह बंदरगाह 'भारत का सिंगापुर' साबित होगा, जिससे राज्य में समृद्धि आएगी। पर्यावरण विज्ञानियों और अर्थशास्त्रियों का अध्ययन कुछ और ही कहता है। जितने भी भारतीय राज्यों को मैं जानता हूं, उनमें केरल में नागरिक समाज संगठन सबसे अधिक सक्रिय हैं, जो सरकारों और राजनीतिक पार्टियों के हस्तक्षेप से परे स्वतंत्र रूप से फलते-फूलते हैं। ये समूह विज्ञान, स्वास्थ्य, शिक्षा और पर्यावरण जैसे अनेक क्षेत्रों में काम करते हैं। इन समूहों द्वारा किए जाने वाले कामकाज कई बार विद्वानों और वैज्ञानिकों की भागीदारी से बेहतर हो जाते हैं। अकादमिक विद्वानों और लोगों के विविध समूहों के बीच संवाद केरल में जितना जुड़ाव भरा और रचनात्मक है, उतना देश के किसी और राज्य में नहीं।

पिछले तीस वर्षों में मैंने कम से कम दो दर्जन बार केरल का दौरा किया है, और हर बार विभिन्न मुद्दों पर केंद्रित सार्वजनिक आयोजनों में मुझे वहां की सिविल सोसाइटी की शक्ति और गतिशीलता का एहसास हुआ। आखिरी बार मैं वहां पिछले महीने जनकीय समर समिति के आमंत्रण पर गया था। यह राज्य के दक्षिणी हिस्से के मछुआरों के हितों का संगठन है। यह समिति पिछले कई साल से विझिंजाम में निर्माणाधीन एक विशाल बंदरगाह का विरोध कर रही है।

राज्य सरकार का दावा है कि यह बंदरगाह 'भारत का सिंगापुर' साबित होगी, जिससे राज्य में समृद्धि आएगी। स्थानीय लोगों को अलबत्ता सरकार के इस दावे पर भरोसा नहीं है, इसे वे विनाशकारी विकास के तौर पर देखते है।  इस  बंदरगाह परियोजना को विस्तार से समझने के लिए समिति ने विद्वानों के एक समूह का गठन किया, ताकि इसके असर का अध्ययन किया जा सके। पारिस्थितिकीविदों, भू-विज्ञानियों, पर्यावरण विज्ञानियों, समाज विज्ञानियों और अर्थशास्त्रियों के साझा अध्ययन और विमर्श से यह रिपोर्ट अंतर अनुशासनीय शोध का अनुपम उदाहरण बन पड़ी है। इसमें बंदरगाह निर्माण से पूर्व के और बंदरगाह निर्माण के दौरान की तस्वीरें तो दी गई हैं, इसमें उस क्षेत्र के सभी पहलुओं वैज्ञानिक अध्ययन भी किया गया है। अद्यतन फील्ड रिसर्च, इंटरव्यू, सर्वे और जन संवाद के जरिये इस विश्लेषण को और भी समृद्ध किया गया है। 

इस रिपोर्ट का शीर्षक है: आवर बीचेस, आवर सी: हेरिटेज ऑफ फिशिंग कम्युनिटीज, युजुफ्रक्ट ऑफ ऑल सिटिजन्स : पैक्ट ऑफ द विझिंजाम इंटरनेशनल सीपोर्ट ऑन द बीचेस, कोस्टल सी, बायोडाइवर्सिटी ऐंड द लिवलीहुड्स ऑफ द फिशिंग कम्युनिटीज इन तिरूवनंतपुरम डिस्ट्रिक्ट। इस देश के कुछ ही विश्वविद्यालय इतने परिश्रमपूर्वक इतनी समृद्ध रिपोर्ट तैयार करने में सक्षम हैं, सरकारी विभागों से तो खैर इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस रिपोर्ट से जुड़े आंकड़े और विश्लेषण विस्तार से बताते हैं कि विझिंगाम बंदरगाह केरल के लोगों का लाभ की तुलना में नुकसान अधिक करेगा। 

बंदरगाह के निर्माण का काम शुरू होने से पहले विझिंजाम केरल में मछुआरों का सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण  गांव था। इस गांव में मछुआरों के करीब  4,500 परिवार रहते थे और हजारों नावें थीं। मानसून के दौरान यह दूसरे गांवों के मछुआरों के लिए सुरक्षित बंदरगाह था। लेकिन, रिपोर्ट खुलासा करती है कि विझिंजाम अंतरराष्ट्रीय सी-पोर्ट लिमिटेड (बीआईएसएल) के प्रमोटरों ने पर्यावरण संबधी मंजूरी पाने के लिए किस तरह जानकारियों में हेरफेर किया और उन्हें गलत ढंग से प्रस्तुत भी किया। कंपनी की पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट ने जैव विविधता पर परियोजना के प्रभाव, मछुआरों की आजीविका के नुकसान, पर्यटन पर पड़ने वाले नकारात्मक असर और परियोजना की वजह से होने वाले समुद्र तट के क्षरण को कम कर के आंका और समुद्र तटों के सौंदर्य के मूल्य की पूरी तरह से उपेक्षा की, बंदरगाह के बनने के बाद जिस पर पूरी तरह से खत्म हो जाने का खतरा मंडरा रहा है। 

वैज्ञानिकों की रिपोर्ट बेहद सावधानी से यह बताती है कि प्रस्तावित परियोजना में, अदाणी समूह जिसका प्रमोटर है, चार श्रेणियों में गंभीर त्रुटियां हैं। अर्थशास्त्रीय ढंग से देखें, तो परियोजना में विलंब, लागत में बढ़ोतरी, भविष्य के लाभों को लेकर संशय दिखता है, वहीं, समाजशास्त्र के नजरिये से यह परियोजना मछुआरों के विस्थापन, अमीर और श्रमिक वर्ग के बीच अंतराल को बढ़ाने वाली साबित होगी। इसके अलावा, परियोजना से तटीय गांवों की महिलाओं पर बोझ बढ़ेगा,जिससे उन्हें जीवन यापन के लिए किसी दूसरी जगह जाकर घरेलू नौकर भी बनना पड़ सकता है।

तटीय पारिस्थितिकी स्वाभाविक ही नाजुक होती है। ऐसे में, बड़ी परियोजनाएं बड़े नुकसान की वजह बन सकती हैं।चक्रवात जैसी अप्रत्याशित मौसमी घटनाओं का कहर भी बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार मछली पकड़ने, तटीय संरक्षण, पर्यटन, पानी की गुणवत्ता, संस्कृति व सौंदर्य के मूल्यों इत्यादि की हानि से पारिस्थितकीय तंत्र से जुड़ी सेवाओं का प्रति वर्ष होने वाला नुकसान कुल मिलाकर रुपये 2,027 करोड़ का होना अनुमानित है। यह आंकड़ा केरल के लिए इस परियोजना को अव्यवहार्य बनाता है। 

दूसरी ओर इस परियोजना को लेकर राजनीतिक रवैया पूरी तरह से गैर- पारदर्शी और अलोकतांत्रिक रहा, जिसके लिए केंद्र की भाजपा सरकार और केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाली और वामपंथी सरकारें इसके लिए जिम्मेदार रहीं। रिपोर्ट से जाहिर होता है कि आर्थिक व्यवहार्यता, सामाजिक न्याय, पर्यावरणीय स्थिरता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के नजरिये से भी अदानी द्वारा प्रायोजित वीआईएसएल परियोजना केरल और भारत के नागरिकों के लिए नुकसानदेह है। इसके अलावा, पहले ही देश के 13 बंदरगाहों और आठ हवाई अड्डों को नियंत्रित कर रहे अदाणी समूह को, जो एक निजी फर्म है, भारत के भीतर और देश व शेष दुनिया के बीच मानवीय, वाणिज्यिक और वाहन यातायात के क्षेत्र में निर्णायक अधिकार देना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से भी खतरनाक हो सकता है। 

रिपोर्ट का यह कहना महत्वपूर्ण है कि इस परियोजना से जिन्हें नुकसान पहुंचेगा, वे तटीय क्षेत्रों में गहरी जड़े जमा चुके वे समुदाय हैं, जो पीढ़ियों से समुद्र के संरक्षक रहे हैं। यह रिपोर्ट केवल सरकार की आलोचना नहीं करती, बल्कि रचनात्मक सुझाव भी देती है। यह विकास के विरुद्ध नहीं है, बल्कि पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को कम करने के पक्ष में एक सशक्त दलील भी है। यह रिपोर्ट ऑनलाइन उपलब्ध है और लोकतंत्र में भरोसा रखने वाले हर व्यक्ति को यह रिपोर्ट पढ़नी चाहिए, जो निजी कंपनियों और उन्हें समर्थन देने वाली राजनीतिक इकाइयों के दावों से सतर्क रहने के लिए जरूरी भी है।

लेखक रामचंद्र गुहा जाने-माने इतिहासकार

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Post By: Shivendra
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