हरित क्रांति से देशभर की क्षुधा शांत करने वाली पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मिट्टी की सुध लेने वाला कोई नहीं है। जिन खेतों में सोना उगलने की क्षमता थी, वही पर बांझ होने की स्थिति में पहुंच गई है। यूं तो यह संकट कमोबेश देशभर में है। लेकिन इन क्षेत्रों की मिट्टी में पाए जाने वाले जीवाश्म और धरती की उर्वरा बढ़ाने वाले सूक्ष्म जीवों पर संकट से इन खेतों की माटी के रेत में बदल जाने का खतरा पैदा हो गया है। खासतौर पर पंजाब, हरियाणा व उत्तर प्रदेश की मिट्टी से जीवाश्म न्यूनतम मान्य स्तर के मुकाबले खतरनाक निचले स्तर पर आ गया है। इसके बावजूद यहां खेतों में खरीफ सीजन में धान और रबी सीजन में गेहूं की पराली धड़ल्ले से जलाई जा रही है, जिससे यहां की मिट्टी की उर्वरता खत्म हो रही है।
देश का पेट भरने वाली मिट्टी का हालचाल लेने वाला कोई नहीं, पराली जलाने से नष्ट हो रहे सूक्ष्म जीव, बेतरतीब खेती से सूक्ष्म तत्वों की भारी कमी
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उप्र में रासायनिक खाद और खर- पतवारनाशक के अवैज्ञानिक अंधाधुंध उपयोग से यह कृषि क्षेत्र अति प्रदूषित श्रेणी में पहुंच चुका है। मृदा विज्ञानी डा. सूरजभान के अनुसार देशभर में खेती के तौर तरीके में बदलाव नहीं किया गया तो हालात चिंताजनक हो सकते है
इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डा. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि नाइट्रोन, फास्फोरस और पोटाश जैसे प्रमुख तत्वों की जरूरतें रासायनिक उर्वरकों से पूरी की जा रही हैं। इससे पैदावार तो बढ़ रही है, लेकिन मिट्टी दिनोंदिन बीमार होती जा रही है। मिट्टी में कुल 14 तरह के सूक्ष्म तत्व होते हैं। इनके संतुलन से ही मिट्टी को स्वस्थ बनाया जाता है। उत्तरी राज्यों में सालभर में कई फसलों की खेती होने लगी है। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से भी दबाव बढ़ा है। परंपरागत फसल चक्र की जगह चावल व गेहूं की खेती लगातार जारी है। यहां की मिट्टी से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का खामियाजा यहां से पैदा अनाज में भी दिखने लगा है, जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य पर भी दिखने लगा है।
पंजाब में आर्गेनिक कार्बन नहीं के बराबर
पिछली सदी के आखिरी दशक में पंजाब प्रति व्यक्ति आमदनी के मामले में तीसरे स्थान पर था, जो कृषि में गिरावट के चलते अब फिसलकर 10वें स्थान पर है। कृषि उपज गिरावट की बड़ी वजह वहां की मिट्टी की बिगड़ती सेहत है। यहा की 85.3 प्रतिशत भूमि में आर्गनिक कार्बन की मात्रा न्यूनतम मान्य स्तर से नीचे है। वहीं, 70 प्रतिशत जमीन में फास्फोरस कम है।
हरियाणा में जीवाश्म का भारी अभाव
हरियाणा की माटी में नाइट्रोजन की भारी कमी है। इसके मुकाबले सूक्ष्म पोषक तत्वों में आयरन 21 प्रतिशत और जिंक 15 प्रतिशत कम है। यहां जीवाश्म की भारी अभाव है। पराली जलाने से जीवाश्म व किसान मित्र कहे जाने वाले सूक्ष्म जीव नष्ट हो रहे हैं। घान-गेहूं के पैटर्न से मिट्टी की उर्वरा क्षमता लगातार गिर रही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फास्फोरस का अकाल
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फस्फोरस अपने न्यूनतम मान्य स्तर 11.25 प्रतिशत से घटकर शून्य के स्तर पर आ गया है। यहां कार्बन न्यूनतम 0.5-0.2 प्रतिशत रह गया है। किसान फसल चक्र भूल गए हैं और प्राकृतिक संसाधनों का सर्वाधिक दोहन करने वाली फसलें आलू और गन्ने की खेती की जाती है।
स्रोत :- अमर उजाला
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