पिछले कुछ सालों में यहां पानी की कमी बहुत गंभीर हो गई है। गांव का मुख्य कुआं गंगाजलिया भी 1993 की गर्मियों में सूख गया था। बाहर से टैंकर बुलवाकर गंगाजलिया में पानी डालना पड़ा था। इस वर्ष से पहले जब गर्मियों में अरलावदा के बहुत सारे कुएं सूख जाते थे तब भी गंगाजलिया में पानी रहता था। इसलिये लोग इस पर बहुत भरोसा करते थे। कुछ साल पहले गंगाजलिया से पास के एक शहर को भी पानी सप्लाई किया गया था।
This book is a valuable resource for everyone concerned with the changing water situation in the country, and the potential of new technologies for sustainable use of water.
अभिसरण वह प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप, वित्तीय और मानव संसाधनों के लक्षित और कुशल उपयोग के माध्यम से सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति होती है। समन्वित योजना और सेवा वितरण कई स्रोतों से समय पर इनपुट सुनिश्चित करता है। साथ ही साथ दोहराव और अतिरेक से बचा जाता है। योजना
पर्यावरण संरक्षण का तात्पर्य है कि हम अपने चारों ओर के वातावरण को संरक्षित करें तथा उसे जीवन के अनुकूल बनाए रखें। पर्यावरण और प्राणी एक-दूसरे पर आश्रित हैं। यही कारण है कि भारतीय चिन्तन में पर्यावरण संरक्षण की अवधारणा उतनी ही प्राचीन है जितना यहाँ मानव जाति का ज्ञात इतिहास है।
जल संसाधन विभाग द्वारा जल स्रोतों के निर्माण, इसके उपचार और वितरण के उद्देश्य से विभिन्न योजनाएं शुरू की गई हैं। मुख्य रूप से सतह और भूजल दोनों स्रोतों का उपयोग करते हुए।
सिंचाई का प्रभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिलक्षित होता है। पानी के अभाव के कारण गरीबी बढ़ती है जिससे अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, बेरोजगारी, अस्वच्छता व बीमारियाँ आदि समस्यायें मनुष्य को चारों तरफ से घेर लेती हैं। असिंचित क्षेत्रों की अपेक्षा सिंचित क्षेत्रो में केवल फसलों की उत्पादन क्षमता ही अधिक नहीं होती है बल्कि मानव की क्षमता अधिक होती है।
कम ढालू भूमि में ये बंधियां बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई है। यह पानी को रोक कर इकट्ठा करती है और भूमि कोकटने व बहने से बचाती है। समतल खेत की मेढ़ मजबूत बनाकर रखनी चाहिए, जिससे खेत का पानी बाहर न निकल सकें। ये बांध खेत के चारों ओर सीमा पर बनाये जाते हैं। समतल खेतों में इनका क्रॉस-सेक्शन बहुत कम होता है, किन्तु असमतल खेतों में इनका आकार पानी रोकने की दृष्टि से बड़ा बनाया जाता है। इन बांधों से घेर बाड़ का भी कार्य लिया जाता है
सहभागी भूजल प्रबंधन का अर्थ है भूजल प्रणाली के प्रत्येक स्तर पर भूजल प्रबंधन में किसानों एवं विभाग की वित्तीय, प्रशासनिक तथा तकनीकी भागीदारी । प्रत्येक स्तर से अर्थ है कि डिमाण्ड को कम करना जैसे कृषि में स्प्रिंकलर, ड्रिप, अन्डर ग्राउन्ड पाइप, पाइप से सिंचाई तथा घरेलू कार्यों में पानी को बचाना जैसे गाड़ी को साफ करने के लिए पाइप के स्थान पर कपड़े का उपयोग, औद्योगिकों में पानी का कम उपयोग आदि ।
हाइड्रोक्लोरोफ्लोरो कार्बन के मामले में औद्योगिक देशों के लिए समयावधि 2030 है और विकासशील देशों के लिए 2040। तो उम्मीद की जाए कि 2040 तक ओज़ोन घटाऊ रसायन नहीं रहेंगे। इससे ओज़ोन का सुराख धीरे-धीरे कम होता जाएगा और इस सदी के अंत तक पूरी तरह से बंद हो जाएगा। बहरहाल अभी ओज़ोन घटने की प्रक्रिया के बारे में हमारा ज्ञान अधूरा है। आज कई ऐसे रसायन बनाए जा रहे हैं जो हो सकता है आने वाले समय में ओज़ोन ह्रास का कारण बन जाएं।
अटल भूजल योजना को स्थायी भूजल प्रबंधन पर लक्षित किया गया है, मुख्य रूप से स्थानीय समुदायों और हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ विभिन्न चालू योजनाओं के बीच अभिसरण से यह सुनिश्चित होगा कि योजना क्षेत्र में, केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा आवंटित धन विवेकपूर्ण तरीके से भूमिगत जल संसाधनों की दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए खर्च किए जायेगें। अभिसरण के परिणामस्वरूप उपयुक्त निवेश के लिए राज्य सरकारों को योजना को पायलट भूजल प्रबंधन के लिए संस्थागत ढांचे को मजबूत करने के प्रमुख उद्देश्य के साथ पायलट के रूप में डिजाइन किया गया है। इसका उद्देश्य जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन लाना और भाग लेने वाले राज्यों में स्थायी भूजल प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए क्षमता निर्माण करना है। इस योजना में प्रोत्साहन मिलेगा, मजबूत आधार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सामुदायिक भागीदारी सम्मिलित है।
वर्षा के द्वारा प्राप्त सतही जल का कुछ भाग धीरे-धीरे संचारित होकर गुरुत्वाकर्षण के कारण भूमि के नीचे चला जाता है। अतः भूजल बनने की यह क्रिया जलभृत कहलाती है और संचित जल भूजल कहलाता है। गुरुत्व प्रभाव के फलस्वरूप भूमिगत जल धीरे-धीरे मृदा के भीतर चला जाता है। निचले क्षेत्रों में यह झरनों एवं धारा के रूप में बाहर आ जाता है।
देश के विभिन्न राज्यों में संचालित कार्यक्रमों की रूपरेखा बताई। उन्होंने बताया कि किस प्रकार चरखा देश के दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक मुद्दों पर लिखने में रूचि रखने वाले लेखकों की पहचान कर न केवल उनमें लेखन की क्षमता को विकसित करता है बल्कि उसे मीडिया की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास भी करता है. वर्तमान में उत्तराखंड के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ और कपकोट ब्लॉक की युवा किशोरियों के साथ प्रोजेक्ट दिशा का विशेष उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि इससे न केवल वह सफल लेखक बन रही हैं बल्कि महिला अधिकारों के प्रति जागरूक बन कर पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती भी दे रही हैं.
भारत में ताप व पनबिजली का विकास साथ-साथ किया जा रहा है। कई अध्ययनों से पता चलता है कि पूरे बिजली तंत्र के समुचित संचालन के लिए पनबिजली का अनुपात 40 प्रतिशत रहना चाहिए। 1963 में यह अनुपात 50 प्रतिशत था मगर घटते- घटते 1998 में मात्र 25 प्रतिशत रह गया था। केन्द्रीय बिजली अभिकरण ने भारत में पनबिजली क्षमता 84,000 मेगावॉट आंकी है जो 1,48.700 मेगावॉट स्थापित क्षमता के तुल्य है। भारत में छोटे पैमाने की पनबिजली परियोजनाओं की सम्भावित क्षमता 6000 मेगावॉट आंकी गई थी।