कमांडर की अंतरिक्ष यान के मिशन को सफलतापूर्वक संचालित करने और उड़ान को सुरक्षित ढंग से पूर्ण करने की जिम्मेदारी होती है फ्लाइट इंजीनियर यानी पायलट अंतरिक्ष यान को नियंत्रित और संचालित करने में कमांडर की सहायता करता है। इसके अतिरिक्त अंतरिक्षयान से जुड़ी विभिन्न गतिविधियों एवं अन्य पेलोड ऑपरेशनों में फ्लाइट इंजीनियर कार्य करता है।
तम्बाकू प्रजाति की उत्पत्ति 8,000 वर्ष पूर्व बताई जाती है जब अमरीकी इण्डियन्स ने इसकी दो प्रजातियों (निकोठियाना रस्टिका और निकोटियाना टेबेकुम) को पूरे अमरीका में फैलाया था। तम्बाकू सोलेनेसी कुल का सदस्य है। निकोटियाना जींस में करीब 60 प्रजातियां हैं
आजकल नैनो-टेक्नॉलॉजी हरेक की ज़बान पर है। किसी भी विषय पर आयोजित होने वाले सम्मेलनों की संख्या से इस बात का संकेत मिल जाता है कि विज्ञान का कोई नया क्षेत्र सामने आ रहा है या फलने-फूलने लगा है। इसी प्रकार से सरकारी एजेंसियां भी इन नए विषयों/क्षेत्रों के लिए फण्ड देना शुरू कर देती हैं।
संघर्ष समिति द्वारा परमाणु बिजलीघरों के अधिकारियों पर दबाव डाला जाने लगा कि वे निकटस्थ ग्रामों के लोगों का स्वास्थ्य सम्बंधी सर्वेक्षण कराएं और देखें कि क्या उनमें विकिरण जनित बीमारियां बढ़ रही हैं।
कृषि के विकासक्रम में, उत्पादन को पर्याप्त बढ़ाने हेतु फसलों की रक्षा के लिए पीड़कनाशी अब एक महत्वपूर्ण साधन बन गए हैं। फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट, फफूंद, कृमि इत्यादि को मारने वाली दवाओं के पूरे समूह को पीड़कनाशी (Pesticides) कहा जाता है। भारत में 140 से भी अधिक पीड़कनाशी उपयोग में हैं और उनका इस्तेमाल कुल 90,000 टन प्रति वर्ष के आसपास होता है।
भोपाल की सड़कों के बीच और किनारे में बनाए गए ग्रीन बेल्ट पर कब्जे हो गए हैं, जिससे यहां हरियाली खत्म होती जा रही है। जबकि करोड़ों रुपए खर्च कर सड़क के सेंट्रल व साइड वर्ज में पेड-पौधे लगाकर हरियाली विकसित की गई है। लेकिन रसूखदार और जिम्मेदार मिलकर इस ग्रीन बेल्ट को खत्म करते जा रहे है इसको लेकर राजधानी परियोजना प्रशासन (सीपीए) ने दो वर्ष पहले किए अतिक्रमणों को चिन्हित किया था, साथ ही इसको लेकर एनजीटी में याचिका भी दायर की गई है। इस मामले में पर्यावरणविद सुभाष सी पाडे ने एनजीटी में याचिका दायर की है।
रिपोर्ट की प्रस्तावना में एफएओं के महानिर्देशक क्यू डोंगयु ने लिखा है कि कृषि आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है, क्योंकि वह प्रकृति और जलवायु पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। बार- बार आने वाली आपदाएं बाब सुरक्षा और कृषि प्रणालियों को स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती उनके मुताबिक रिपोर्ट में एफएओं की विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए इन जोखिमों को संबोधित करने और कृषि प्रथाओं और नीतियों में आपदा जोखिम प्रबंधन को शामिल करने के तरीके सुझाए गए हैं। छोटे किसान जो अपनी फसलों के लिए बारिश पर निर्भर रहते है, वो आपदा आने पर मुश्किल में पड़ जाते है। देखा जाए तो कृषि खाद्य प्रणालियों की सबसे कमजोर कड़ी है। जो इन आपदाओं का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतते हैं। ऐसे में किसानों को सिखाना की वो अपने खेतों को आपदाओं से कैसे बचा सकते हैं। उनकी फसलों को बचाने में मदद कर सकता है। साथ ही यह उन्हें कहीं ज्यादा सशक्त बनाएगा। इन नए तरीकों का उपयोग, पुराने तरीकों की तुलना में 2.2 गुना ज्यादा फायदा पहुंचा सकता है
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023 में जारी आंकड़ों से पता चला है कि 2050 तक शहरों में पानी की मांग 80 फीसदी तक बढ़ जागी वही यदि मौजूदा आकड़ो पर गौर करे तो दुनियाभर में शहरो रहने वाले करीब 100 करोड़ लोग जल संकट से जूझ रहे है। वहीं अनुमान है कि अगले 27 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 240 करोड़ तक जा सकता है। इससे भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा, जहां पानी को लेकर होने वाली खीचातानी कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेगी। गौरतलब है कि भूजल के संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार ने मार्च 2018 में अटल भूजल योजना का प्रस्ताव रखा था। जिसे विश्व बैंक की सहायता से 2018-19 से 2022-23 की पांच वर्ष की अवधि के लिए कार्यान्वित किया जाना है। इस योजना लक्ष्य गिरते भूजल का गंभीर संकट झेल रहे सात राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में संयुक्त भागीदारी से भूजल का उचित और बेहतर प्रबंधन करना है। भारत में गिरते भूजल की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने जलदूत नामक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया हुई ।
हमने सितम्बर 1991 में फैसला किया कि राजस्थान में कोटा के पास स्थित रावतभाटा परमाणु संयंत्र के प्रभावों का एक सर्वेक्षण किया जाए। रावतभाटा का परमाणु बिजली घर देश का पहला ऐसा संयंत्र था भारत में ही निर्मित कैन्डू किस्म का संयंत्र । कण्डू यानी कनाडियन ड्यूटीरियम- यूरेनियम आधारित संयंत्र । चूंकि भारतीय परमाणु कार्यक्रम कैन्डू परमाणु भट्टी पर आधारित था, इसलिए यही रिएक्टर देश में प्रोटोटाइप बना रावतभाटा स्थल का चयन 1961 में हुआ था और यूनिट 1 पर काम 1964 में कनाडा के सहयोग से शुरू हुआ।
दुनियाभर में किए गए मिसाइल, परमाणु परीक्षणों और सॅटेलाइट अभियानों से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है और यह क्रम लगातार जारी है। जल, जंगल, जमीन पर जिस तरह से तबाही का आलम उससे आने वाले समय में विनाश तय माना जा रहा है।
उर्वरक आधारित खेती मानवजनित नाइट्रस ऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत है। सन 1980 से 1994 के बीच विश्व कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन 15 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। उष्णकटिबंधीय देशों में अनुकूल नमी, तापमान तथा काफी मात्रा में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का उपयोग बड़ी मात्रा में नाइट्स ऑक्साइड के उत्सर्जन का कारण होता है।
नर्मदा घाटी में बांध के एक विकल्प के बतौर प्रस्तुत लघु पनबिजली परियोजना के उद्घाटन के साथ ही बांध विरोधी अभियान और सुदृढ़ हुआ है। भूमि के अधिकारों का संघर्ष भी साथ- साथ जारी है। जंगल में रहने वाले आदिवासियों को 'अतिक्रमणकर्ता' समझा जाता रहा है। जबकि उनके भूमि के वास्तविक स्वामित्व को स्वीकार किए जाने की ज़रूरत है।'
भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले ही कहीं ज्यादा तेजी से अपने भूजल का दोहन कर रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत में हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग किया जा रहा है, जो कि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत कृषि के लिए की जा रही है। देश में गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की सिंचाई के लिए भारत बड़े पैमाने पर भूजल पर निर्भर है।
नमामि गंगे के तहत बड़े बजट की घोषणा दरअसल गंगा एक्शन प्लान की विफलता के बाद लाया गया था, जिससे जनता में गंगा की सफाई की उम्मीद जगाई गई थी। विफल रहे गंगा एक्शन प्लान को 14 जनवरी, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शुरू किया था इसके दो चरण कई वर्षों तक चले और नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद 2009 में राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण बनाया गया। गंगा एक्शन प्लान से लेकर 2017 तक इन तीनों कदमों के तहत 6788.78 करोड़ रुपए सरकार की ओर से जारी किए गए।
आइए! एक बार ऐसे समय की कल्पना करें जब भारत देश में एक भी नदी न हो। सदानीरा नदियों के बिना हमारा भारत कैसा लगेगा! ऐसा विचार मस्तिष्क में आते ही मन सिहर उठता है। इस भयावह आपदा के आने से, न केवल भारतीय संस्कृति, अपितु देश की अर्थव्यवस्था भी छिन्न-भिन्न हो जाएगी। आज घोर प्रदूषण के कारण नदियों का अमृत जल 'प्राण हारी विष' बन गया है।
हिंडन नदी, यमुना की एक सहायक नदी, जिसे ऐतिहासिक रूप से हरनंदी नदी के नाम से भी जाना जाता है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अत्यधिक आबादी, मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत रही है। हिंडन उप बेसिन की भूमि प्रमुखतः खेती के लिए फायदेमंद है, जिसमें चीनी, कागज और कपड़ा जैसे उद्योगों का अब मजबूत प्रभाव है।और ये हिंडन में कहीं न कहीं प्रदूषण में भागीदारी कर रहे हैं।
भारत में गुलाब का उत्पादन मुख्यरूप से हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, दिल्ली, लखनऊ (उत्तर प्रदेश), पुणे, नासिक (महाराष्ट्र), बंगलौर (कर्नाटक), कोयम्बटूर (तमिलनाडु), पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों मुख्यतः कोलकाता में किया जाता है। राजस्थान में इसका उत्पादन मुख्य रूप से पुष्कर, हल्दीघाटी, श्रीगंगानगर व उदयपुर में किया जाता है।गुलाब विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय पुष्प है इसलिए इसे फूलों का राजा भी कहा जाता है। यह झाड़ीनुमा एक बहुवर्षीय पौधा है जो सुन्दर पुष्पों के लिए उगाया जाता है। इसके फल को हिप कहते हैं जो विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है। इसके फूल से जैम, जैली व मालाएं बनाई जाती हैं। गुलाब के फूलों से मुख्यरूप से इत्र निकाला जाता है तथा इसके लिए चेली गुलाब का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है।
प्याज में विटामिन सी, फॉस्फोरस आदि प्रमुख पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। प्याज में चरपराहट एवं तीखापन इसमें उपस्थित गंधक के एक मौलिक एलिल प्रोपाइल डाई सल्फाइड के कारण होता है। गंधक की मात्रा अधिक होने के कारण यह रक्तशुद्धि व रक्तवर्धक का गुण रखता है। गर्मी में लू से बचाता है तथा गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों के लिए भी प्याज लाभदायक रहता है।
तिल खरीफ की एक महत्त्वपूर्ण तिलहनी फसल है। इसकी खेती भारत में लगभग 5,000 वर्षों से की जाती रही है। तिल एक खाद्य पोषक भोजन व खाने योग्य तेल, स्वास्थवर्धक व जैविक दवाइयों के रूप में उपयोगी है। तिल का तेल पोष्टिक, औषधीय व श्रृंगारिक प्रसाधनों व भोजन में गुणवत्ता की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।