सौंफ शरद ऋतु में बोई जाने वाली फसल है।भारत में कुल 54290 हैक्टर में सौंफ की खेती की जाती है। इसमें राजस्थान व उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं।इसका उपयोग औषधि, अचार, चटनी, मुरब्बा आदि में किया जाता है। आयुर्वेद में सौंफ एक विशेष स्थान रखती है, इसका प्रयोग अतिसार, खूनी पेचिस, कब्ज, नजला तथा मस्तिष्क की कमजोरी जैसी बीमारियों में किया जाता है।
गरम हवा ऊपर की ओर उठती है और आसपास की ठंडी हवा उसका स्थान लेती है। पानी को गरम करने से जो वाष्प बनती है वह एक तो हल्की (कम घनत्व वाली) होती है और गरम भी । अतः वह गरम हवा के बहाव के साथ ऊपर उठती है। यही प्रक्रिया समुद्र, झीलों और नदियों के साथ भी होती है। यहां ऊष्मा का मुख्य स्रोत सूर्य है। पर पृथ्वी का वायुमंडल पारदर्शी होने के कारण सूर्य की किरणें हवा को गरम किए बगैर पृथ्वी की सतह पर आ पहुंचती हैं और उसे तपाती हैं। अतः दिन में गरम हवा का ऊपर की ओर निरन्तर बहाव रहता है। किसी भी जलाशय के पास ऊपर की ओर बहने वाली गरम हवा अपने में नमी अर्थात जलवाष्प समेट लेती है।
विनाशकारी भूकम्प इतिहास में काली तारीखों के रूप में दर्ज हैं। वैसे तो हर वर्ष दुनिया भर में करीब 50,000 छोटे बड़े भूकम्प आते हैं लेकिन उनमें से 100 विनाशकारी होते हैं। कम से कम एक भूकम्प भयानक विनाश करता है। मानव जीवन के इतिहास में सबसे अधिक तबाही मचाने वाला भूकंप 23 जनवरी 1556 को चीन में आया था,जिसमें लगभग 8 लाख से भी अधिक लोग मारे गये थे। 1 नवम्बर 1755 को लिस्बन, पुर्तगाल में आया भयंकर भूकम्प संभवत: पहला ऐसा भूकम्प था, जिसके विस्तृत अध्ययन के रिकार्ड आज भी सुरक्षित हैं। यह रिकार्ड तत्कालीन पादरियों के प्रेक्षणों पर आधारित थे तथा इनमें पहली बार भूकम्प तथा इसके प्रभावों की सुव्यवस्थित जांच पड़ताल की गई थी।
मेथी भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में काफी समय से जंगली रूप में उगती पाई गई है, फिर भी इसकी उत्पत्ति पूर्वी यूरोप और इथोपिया मानी जाती है। भारत में मेथी मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। देश में मेथी के कुल क्षेत्रफल का लगभग 80 प्रतिशत राजस्थान में पाया जाता है।
गेंदे को साल भर तीनों ही ऋतुओं में उगाया जा सकता है परन्तु पैदावार के लिए शीत ऋतु अधिक उपयुक्त है। पौधों में अच्छी बढ़वार व अधिक पुष्पन के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है। गैंदा एक आसानी से उगाया जा सकने वाला पौधा है और इस पर कीट एवं बीमारियों का प्रकोप भी बहुत कम होता है। इसकी खेती करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है। गेंदा के फूल पौधों पर लम्बे समय तक खिलते रहते हैं, साथ ही इसकी संग्रहण क्षमता अधिक होने के कारण आसानी से कुछ दिनों तक रखा जा सकता है।
भारतवर्ष में ईसबगोल की खेती सर्दियों के मौसम में की जाती है। साधारणतया ईसबगोल की खेती के लिए ठंडा व सूखा मौसम अच्छा व अनुकूल रहता है। ईसबगोल अपने बीजों व भूसी के कारण महत्वपूर्ण औषधीय फसल है। इसकी भूसी का उपयोग औषधि के रूप में कब्ज, पेचिश, दस्त इत्यादि अनेक पेट के विकारों में उपचार के लिए किया जाता है।
उचित जलनिकास के बिना सिंचाई क्षेत्र का दायरा बढ़ाना, जलभराव की समस्या, लवणीयता एवं क्षारीयता जैसी मूलभूत समस्याओं को बढ़ाने में अहम कारक होगा। देश में वर्तमान समय में लवणग्रस्त क्षेत्र 6.74 मिलियन हैक्टर है तथा 2025 तक बढ़कर 11.7 मिलियन हैक्टर होने की संभावना है।
हमारे देश में तालाबों की संख्या काफी कम होती जा रही है इसलिए वर्षा जल का पर्याप्त संरक्षण न होने के कारण भूमिगत जल का स्तर काफी कम होता जा रहा है इसलिए प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी द्वारा 24 अप्रैल 2022 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर देश के प्रत्येक जिले में 75-75 तालाबों के निर्माण के लिए अमृत सरोवर योजना शुरू करने की घोषणा की गई है। अमृत सरोवर रचनात्मक कार्यों का प्रतीक है जो कि आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित है। अमृत सरोवर योजना के माध्यम से देश भर में तालाबों को फिर से पुनर्जीवित एवं कायाकल्पित किया जाएगा। जिसका उद्देश्य भविष्य के लिए पानी का संरक्षण करना है। भारत सरकार के द्वारा 15 अगस्त 2022 को पूरे देश में 50,000 अमृत सरोवर तालाब बनाने का लक्ष्य तय किया गया था। इस काम के लिए राज्य की जगहों को चिन्हित कर लिया गया।
इस्राइल के गौरवशाली इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ किब्बुत्जों को चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। भले ही इस्राइल की आबादी में किब्बुत्जनिकों का अनुपात कम हो, उनका प्रभाव उस देश के सशक्तिकरण के रूप में विश्व को आज भी दिखाई पड़ रहा है। येरूशलम के पूर्व से लेकर मृत सागर (डेड सी) तक विस्तृत जुडियन डेजर्ट में कहीं-कहीं फसलों से लहराते खेत मिलेंगे, जिन्हें देखकर विश्वास ही नहीं होता कि ऐसी मरुभूमि में भी खेती हो सकती है। यह सब किब्बुत्ज के किसानों का पुरुषार्थ है!
This study finds that gender plays a far more important role than caste in structuring “who decides" among the men and women wheat farmers in Madhya Pradesh. However, women have now begun to challenge gendered caste structures that restrict them to unpaid agricultural work.
वायु प्रदूषण भारत में एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण हर साल लाखों लोगों की जान जाती है। दिल्ली एनसीआर में तो यह स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि यहां की हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर बहुत ऊंचे हैं। इसका प्रमुख कारण यहां का परिवहन तंत्र है, जिसमें अधिकांश वाहन पेट्रोल या डीजल से चलते हैं। इन वाहनों में से कई तो प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र भी नहीं रखते हैं। इसके अलावा, पराली जलाने, कचरा निस्तारण, धूल एवं धुआं, निर्माण कार्य आदि भी वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं।
राज्य सरकार द्वारा विश्व बैंक प्रायोजित विभिन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत वर्ष 2009 से वर्ष 2016 तक कई प्रकार के कार्य जल संरक्षण हेतु किए गए। जिसके परिणामस्वरूप लगभग 77 एकीकृत लघु जलागम योजनाओं को प्रदेश के कुल 77 विकास खण्डों में पूरा कर लगभग 896.96 लाख लीटर जल को संरक्षित किया गया जिससे लगभग 2243 हैक्टेयर भूमि को कृषि योग्य बनाया गया।
एक वानस्पतिक अवरोध, पृष्ठ एवं अवनालिका अपरदन-क्षणिक गली अपरदन कम करने, जल बहाव को नियमित करने, तीव्र ढलानों को स्थापित करने, अवसाद को रोकने एवं अन्य उत्पादों जैसे चारा, हरी खाद आदि उपलब्ध कराने में सहायक हैं।
धूल और रेत के तूफानों से न केवल भूमि की उपज कम होती है, बल्कि दुनिया को कृषि और आर्थिक रूप से भी बड़ा झटका लगता है। यह चेतावनी उज्बेकिस्तान के समरकंद में चल रही यूएनसीसीडी की पांच दिवसीय बैठक में दी गई है। इस बैठक का उद्देश्य दुनिया भर में भू-क्षरण को रोकने के लिए किए गए प्रयासों का मूल्यांकन करना है।
आसपास की घटनाओं का सूक्ष्म अवलोकन करना और इन अवलोकनों का सैद्धान्तिक जानकारी के साथ तालमेल बिठाना, व्यावहारिक विज्ञान के ये दो मुख्य घटक हैं। इस प्रक्रिया से ही नए आविष्कार जन्म लेते हैं और नए तंत्र विकसित होते हैं’।
आमतौर पर ऐसे मैग्मा का तापमान 350 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे भी ज्यादा होता है। यदि रिसता हुआ पानी इस गरम मैग्मा या इसके आसपास की गरम चट्टानों के सम्पर्क में आ जाए तो इस पानी का तापमान बढ़ने लगता है। इस तरह के कम गहराई में पाए जाने वाले मैग्मा चैम्बर ज्वालामुखी की सक्रियता वाले इलाकों में तो बहुतायत में होते ही हैं लेकिन उन इलाकों में भी मिलते हैंवर्तमान समय में कोई भी ज्वालामुखी सक्रियता दिखाई नहीं देती। अब इस बात की काफी संभावना है कि रिसता हुआ पानी उष्मा के इस स्रोत के सम्पर्क में आ जाए। ऐसे में पानी धीरे-धीरे गरम होता जाता है। और बाहर निकलने के रास्ते खोजता हुआ पुनः धरातल पर आ जाता है। चूंकि धरातल पर आया यह पानी अभी भी काफी गरम है इसलिए इसे गरम पानी का झरना कहते हैं।
जल संसाधनों के संरक्षण एवं उचित प्रबन्धन के लिए एकमात्र सही विकल्प गाँव स्तर पर लोक सहभागिता के माध्यम से छोटे, मझोले और बड़े तालाबों तथा अन्य जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण करना है। प्रत्येक गाँव में छोटे-छोटे तालाबों एवं पोखरों से वर्षा उपरान्त भूमि सतह पर जो जल प्रवाहित होता है,
गुजरात के सौराष्ट्र में लगातार तीन वर्षों के सूखे के जवाब में 1980 के दशक के अंत में भूजल पुनर्भरण एक जन आंदोलन के रूप में शुरू हुआ। फसलों को बचाने के लिए कुछ किसानों ने बारिश के पानी और आस-पास की नहरों और नालों के पानी को अपने कुओं में मोड़ना शुरू कर दिया । कुछ ही समय में सौराष्ट्र के सात जिलों के हजारों किसानों ने अपने कुओं को पुनर्भरण संरचनाओं में परिवर्तित कर दिया ।