मध्य प्रदेश

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पौधों का लखपति किसान
Posted on 02 Jun, 2012 10:13 AM

किसान रामजी पाटीदार नवम्बर-दिसम्बर में पौधों को बाल्टियों से पानी देते रहे हैं। लेकिन एक लाख पौधों को उबड़-खाबड़,

ramji patidar
इस तरह बिक जाएगा नर्मदा का पानी
Posted on 01 May, 2012 11:26 AM

नर्मदा जल के सपने दिखाकर लघु-मध्यम शहरी ढांचागत विकास योजना (यूआइडीएसएसएमटी) के तहत निगम ने 106.72 करोड़ रु.

पानी को समर्पित शिवजी का हलमा
Posted on 06 Apr, 2012 04:04 PM 28 फरवरी, 2012 को शिवगंगा द्वारा आयोजित शिवजी का हलमा कार्यक्रम के दौरान हजारों शिव साधक वनवासियों ने झाबुआ स्थित हाथीपावा की पहाड़ी पर श्रम की गंगा बहा कर महज चार घंटे में करीब तीन हजार रनिंग वाटर कंटूर और दो छोटी तलैयों का निर्माण किया। इससे वर्षा के दौरान पानी इन जल संरचनाओं में संग्रहित होकर जमीन में उतरेगा। धरती की प्यास इससे बुझेगी, तो गांव और शहर के सभी लोगों को लाभ मिलेगा।
हाथीपावा पहाड़ी पर श्रमदान करते आदिवासी
नर्मदा में जमीन हक का हल्ला बोल
Posted on 23 Feb, 2012 05:35 PM

सरदार सरोवर की डूब से प्रभावित सबसे बड़ी आबादी मध्य प्रदेश की है। मध्य प्रदेश के 193 गांवों में अभी भी डेढ़ लाख से बड़ी आबादी निवास कर रही है, फिर एनवीडीए ने विस्थापितों की स्थिति को ‘‘जीरो बैलेन्स’’ क्यों बताया? सत्याग्रह स्थल पर नर्मदा बचाओ आंदोलन के एक पोस्टर में नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण को नर्मदा घाटी ‘‘विस्थापन’’ प्राधिकरण लिखा गया है। पहाड़ के 41 और निमाड़ के 17 सहित डूब में कुल 58 आदिवासी गांव प्रभावित हैं। मध्य प्रदेश के ज्यादातर पहाड़ी गांवों के सड़क संपर्क पथ वर्षों पूर्व डूब में समा गए हैं। कई गांवों की खेती-बाड़ी, घर-बार डूब चुके हैं।

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की कथा “पूस की रात” के असली नायक 80 साल बाद भी पूस की रात में फसल बचाने के लिये नहीं, फसल उगाने की जमीन के हक के लिये पिछले दो महीनों से “जमीन हक सत्याग्रह” चला रहे हैं। अगर आप 'पूस की रात' का संग्राम जानना चाहते हैं तो मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिला के जोबट में शासकीय कृषि फार्म की 87 एकड़ जमीन को अपने कब्जे में लेकर हल जोत रहे आदिवासियों से मिलिये। सरदार सरोवर की डूब से प्रभावित विस्थापित आदिवासियों ने 24 नवम्बर 2011 को इंदौर से 225 कि.मी. दूर स्थित जोबट में मजबूत कंटीले लौह बेड़ों के घेरे को तोड़कर शासकीय कृषि फार्म हाउस पर अपना कब्जा जमाया और खुले आकाश में “जमीन हक सत्याग्रह” शुरू कर दिया। 25 वर्षों से शांतिपूर्वक अहिंसक आंदोलन कर रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन के सैकड़ों आदिवासियों ने फार्म हाउस पर कब्जा कर सरकारी कर्मचारियों को सरकारी खेती करने से रोक दिया
मध्यप्रदेश में अकाल मौत की खेती
Posted on 28 Oct, 2011 12:20 PM

मध्यप्रदेश के किसान फसलों के धोखे में अकाल मौत की खेती कर रहे हैं। खेती - किसानी में जेनेटिक इंजीनियरिंग का प्रयोग पूरी तरह से धोखा साबित हुआ तो परम्परागत खेती को नए किस्म के वायरस खा गये। प्रदेश में औसतन तीन किसान रोज बरोज मौत को गले लगा रहे हैं, वहीँ व्यवस्था हाँथ पर हाँथ धरे बैठी है। त्रासदी यह है कि किसानों की बेचारगी विदेशी बीमा कंपनियों के लिए शोषण का औजार बन गयी है।

खनन माफिया खोद रहे हैं मध्य प्रदेश
Posted on 28 Oct, 2011 11:16 AM

प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी के किनारे जंगलों का बेरहमी से कत्लेआम हुआ है। वन माफिया सरेआम बुध

जामड़ : हर बंदू को सहेजने का प्रयास
Posted on 29 Aug, 2011 12:44 PM

सन् 1952 में स्वीकृत प्रथम पंचवर्षीय योजना की रणनीति में यह बात मुख्य रूप से थी कि टिकाऊ एवं स्थाई लाभ तभी सुनिश्चित किये जा सकते हैं जब समुदाय की भरपूर भागीदारी हो। पानी की समस्या समाज के हर वर्ग को प्रभावित करती है। इस तथ्य के प्रकाश में समाज के सभी वर्गों का अपेक्षित सहयोग इस अभियान में लेना होगा।

मध्यप्रदेश में जल संरक्षण और संवर्धन कार्यक्रम जन आंदोलन बने इस विचार को केन्द्र में रखकर पिछले वर्ष 10 अप्रैल 2010 को प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रतलाम जिले में जामड़ नदी के पुनरूत्थान के कार्य से प्रादेशिक जलाभिषेक अभियान की शुरुआत की थी।

15 किलोमीटर में बन गए हैं 500 तालाब
Posted on 23 May, 2011 09:35 AM

इंदौर। कभी वे पानी की तलाश में 600 फीट तक जमीन में उतर जाते थे, अब खुद के खेत में तालाब भरे रहते हैं। हालत यह है कि 15 किमी की परिधि में बसे गांवों में करीब 500 तालाब बन गए हैं। एक-दो गांव तो ऐसे हैं जहां हर किसान एक-दो तालाबों का मालिक है। तालाबों में कुछ सरकारी भी हैं। ये तालाब एक से पांच बीघा तक में फैले हैं।

ठेठ अंचल में हैं पानी की पाठशालाएं
Posted on 29 Apr, 2011 01:51 PM

सोचने पर विवश हूं कि जिन लोगों ने किताबें नहीं पढ़ीं, पन्ने नहीं पलटाए, अक्षर नहीं समझे, वे पानी को लेकर इतने संस्कारित हैं। विरासत ही इन्हें ऐसा बनाए हुए है। हर पीढ़ी अपनी आने वाली पीढ़ी को पानी का ये संस्कार देती आ रही है।

ठेठ अंचल में पानी की अलग कहानी सुनने और देखने को मिलती है। कहानी यहां आकर हकीकत में तब्दील हो जाती है। इंदौर जिले का आदिवासी अंचल पानी को लेकर एक सबक अपने में समेटे है। ये वो बात है, जो शहर के मुकाबले उस पिछड़े अंचल को कतार में आगे खड़ा करती है। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन गुने अवश्य हैं। पानी को लेकर उनका अपना फलसफा है, जिसे वे सालों से अपने जीवन का हिस्सा बनाए हुए हैं। महू तहसील का आदिवासी तबका पानी को लेकर बेहद संजीदा है। पानी की कमी ने उन्हें हमेशा से सजग और जिम्मेदार बनाए रखा है। शहर में पानी की कोई कद्र नहीं, लेकिन आवश्यकता बहुत है और बावजूद इसके दुरुपयोग रोकने को लेकर कोई गंभीर नहीं है।
एक आत्मनिर्भर गांव
Posted on 06 Mar, 2011 09:40 AM

सूखे से निपटने की तैयारियां शुरू हुईं, तो ग्रामीणों को समझ में आया कि खेत में और मिट्टी के कणों के आसपास जल संग्रह के लिए जीवांश-कंपोस्ट के ह्यूमस की विशेष भूमिका होती है।मध्य प्रदेश के खंडवा जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर छैगांवमाखन विकासखंड में जैविक ग्राम मलगांव स्थित है। करीब 10 साल पहले के सूखे ने यहां के ग्रामीणों की कमर तोड़कर रख दी थी। इस गांव में करीब 505 हेक्टेयर रकबा है

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