मध्य प्रदेश

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नदी महोत्सव 2015
Posted on 28 Jan, 2015 04:56 PM तारीख : 13 से 15 फरवरी 2015
स्थान : बान्द्राभान
आयोजक : नर्मदा समग्र


.(नर्मदा तवा संगम तट), जिला होशंगाबाद में आयोजित होना है। जैसा की आप को ज्ञात है नदीमहोत्सव का आयोजन विगत 2008 से प्रति 2 वर्षों के अन्तराल से सतत् होता रहा है।

कार्यक्रम स्थल का भूमिपूजन आज दिनांक 27.01.2015 को राज्य सभा सांसद व नर्मदा समग्र सचिव श्री अनिल माधव दवे, आयोजन समिति सदस्यों और नर्मदा समग्र के कार्यकर्ताओं द्वारा किया गया। इस अवसर पर नर्मदा समग्र द्वारा होशंगाबाद और भोपाल में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में श्री दवे ने नदीमहोत्सव की रूप रेखा प्रस्तुत की।
मनरेगा ने बदली पोंगरी गाँव की तकदीर
Posted on 15 Dec, 2014 04:44 PM पोंगरी गाँव के किसानों के खेतों में लहलहाती फसलें, बारहमासी जलापूर्
श्री विधि से बढ़ा धान उत्पादन, पानी की होती है बचत
Posted on 11 Dec, 2014 03:57 PM श्री विधि एक आधुनिक तरीका है और इसमें पानी की खपत भी बहुत कम होती ह
रोजगार गारण्टी के सोशल ऑडिट
Posted on 09 Dec, 2014 04:47 PM पिछले दिनों केन्द्रीय ग्रामीण रोजगार मन्त्रालय के निर्देश पर राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान ने मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के कुरई विकासखण्ड में महात्मा गान्धी ग्रामीण रोजगार गारण्टी योजना के तहत हुए कार्यों के सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) के लिए विशेष ग्राम सभाएं आयोजित की।
बदलते समय के साथ बदलती खेती
Posted on 07 Dec, 2014 09:34 PM
किसानों को बेहतर मूल्य दिलाने की बात हर मंच पर उठाई जाती है ल
ग्लोबल वार्मिंग को रोकेगा रेवासागर
Posted on 22 Oct, 2014 03:41 PM देवास जिले में पिछले तीन सालों से लगातार औसत से कम वर्षा होने के कारण रबी का रकबा लगातार घट रहा था। किसानों के पास सिंचाई के साधनों के नाम पर सिर्फ नलकूप थे। वो भी अत्यधिक भू-जल दोहन के कारण एक-एक कर किसान का साथ छोड़ते जा रहे थे। सिंचाई के लिए पानी की तलाश में 500 से 1000 फीट गहरे नलकूप करवाने के कारण किसान कर्ज में धंसता जा रहा था। ऐसे निराशाजनक परिदृश्य में तत्कालीन कलेक्टर श्री उमाकांत उमराव ने जल संवर्धन के क्षेत्र में एक नई अवधारणा विकसित कर उसे अभियान का रूप देने के लिए एक कारगर रणनीति तैयार की।नवंबर-दिसंबर के हल्के सर्द मौसम में यदि आप हवाई यात्रा के दौरान देवास जिले के टोंकखुर्द विकासखंड के ऊपर से गुजरे तो आपको हरे-हरे खेतों में ढेर सारी नीली-नीली बुंदकियां दिखाई पड़ेगी आप हैरत में पड़ जाएंगे। आपके मन में एक जिज्ञासा पैदा होगी कि आखिर खेतों में यह नीले रंग की फसल कौन-सी है...तो हम आपको बता दें कि इस क्षेत्र के किसानों ने अपनी खेती के तरीकों में क्या कोई बदलाव किया है? यहां के किसान अपने खेतों में पानी की खेती कर रहे हैं और ये जो नीली बुंदकियां हैं वो वास्तव में हर खेत में पानी से लबालब भरे तालाब हैं।
Talab
तबाह हुई सोयाबीन की खेती, नहीं मिला है मुआवजा
Posted on 20 Oct, 2014 08:32 AM देवास के किसान फसल के बर्बाद होने के बाद मुआवजा मिलने का बेसब्री से
तालाब संस्कृति ने देवास को ‘विदर्भ’ बनने से बचाया
Posted on 08 Oct, 2014 11:35 AM मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के देवास को कभी ‘डार्क जोन (जहां भूजल खत्म हो चुका हो)’ घोषित कर दिया गया था और आलम यह था कि वहां पीने का पानी रेलगाड़ियों से लाया जाने लगा था। यह सिलसिला लगभग डेढ़ दशक तक चला लेकिन 2005 के बाद से यहां तालाब की परंपरा को जिंदा करने का अभियान शुरू किया गया।

2005 में यहां आयुक्त के तौर पर उमाकांत उमराव की तैनाती हुई और उन्होंने देखा कि देवास शहर के लोगों की प्यास बुझाने के लिए रेलगाड़ियों से पानी के टैंकर लाए जा रहे हैं। गांवों में भी ट्यूबवेल के जरिए खेतों को सींचने के लिए 350-400 फीट खुदाई की जा रही है और तब भी पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है।
<i>Rewa Sagar by Waterkeeper India</i>
सूखे पहाड़ों और बंजर जमीन पर फिर लहलहाई हरियाली
Posted on 06 Oct, 2014 01:41 PM मटका पद्धति द्वारा रोपित पौधों को वर्षा के पश्चात् सूखे के समय भी प्रत्येक 15 दिन पर मटके को भरा जाता रहा, जिससे पौधों को जीवन रक्षक नमी मिलती रही और पौधे सूखने से बच गए और साथ ही सघन वानस्पतिक आवरण विकसित करने कि दृष्टि से ‘कंटूर ट्रेंच’ की नई मिट्टी पर ‘स्टाइलो हमाटा’ चारे के बीज को छिटक दिया गया और जैसे ही वर्षा हुई बीजों से अंकुर फूटे और देखते-ही-देखते बंजर पड़ी जमीन और सूखी पहाड़ियों पर हरी चादर-सी बिछ गई। इससे मिट्टी का कटाव रुका, पानी संरक्षित हुआ साथ ही पशुओं के लिए पौष्टिक हरा चारा सहजता से उपलब्ध हुआ। लगभग दो दशक पूर्व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की मदद से मा. नानाजी देशमुख संस्थापक दीनदयाल शोध संस्थान द्वारा कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना मध्य प्रदेश के सतना जिले के कृषिगत विकास के योजनानुसार मझगवां में की गई। वनवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थापित इस कृषि विज्ञान केन्द्र के लिए सबसे बड़ी चुनौती जीवन की मूलभूत आवश्यक्ताओं से जुड़ी हुई थी। पूरे वर्ष पीने का पानी नहीं, दो वक्त की रोटी नहीं, जीविकोपार्जन के लिए वनों पर निर्भरता बढ़ती रही, पेड़ कटते रहे, जंगल घटते रहे परिणामस्वरूप प्राकृतिक रूप से बिछी हरी चादर अस्त-व्यस्त होती चली गई।
जनसहभागिता से आई खुशियों की बयार
Posted on 15 Sep, 2014 04:22 PM

छिंदवाड़ा जिले के विशेष संदर्भ में

Pond
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