15 किलोमीटर में बन गए हैं 500 तालाब

इंदौर। कभी वे पानी की तलाश में 600 फीट तक जमीन में उतर जाते थे, अब खुद के खेत में तालाब भरे रहते हैं। हालत यह है कि 15 किमी की परिधि में बसे गांवों में करीब 500 तालाब बन गए हैं। एक-दो गांव तो ऐसे हैं जहां हर किसान एक-दो तालाबों का मालिक है। तालाबों में कुछ सरकारी भी हैं। ये तालाब एक से पांच बीघा तक में फैले हैं।

पानी की ये कहानी इंदौर से 22-23 किलोमीटर दूर जाते ही शुरू हो जाती है। देवगुराड़िया से कुछ किमी आगे जाते ही खेतों में तालाब नजर आने लगते हैं। मूंडला दोजदार, सोनवाय, पिवड़ाय, कंपेल, मोरोद, सियादादेव, बावलिया खुर्द, अरनिया, मुंडी, सेमल्या रायमल, खराडिया, पेडमी, डिगवाल, फली, जैतपुरा, उंडेल, खंडेल आदि मिलाकर करीब 17 गांव हैं जहां तालाबों की ‘खेती’ हो रही है मतलब खेतों में फसल के साथ एक हिस्से में तालाब भी पैदा किए जा रहे हैं। इन गांवों की हालत यह है कि इस साल जो लोग तालाब खोदने से रह जाते हैं वो अगले साल तैयार कर लेते हैं। हर साल मार्च (गेहूं-चना कटाई के बाद) से खेतों में ट्रैक्टर घनघनाना शुरू होते हैं तो मई अंत तक 10-20 नए तालाब आकार ले लेते हैं।

 

 

ऐसे हुई शुरुआत


पहले इन गांवों में पानी की भारी किल्लत थी। लोग 500-600 फीट तक बोरिंग करवाते थे और बमुश्किल कुछ महीने पानी मिलता था और सूख जाते थे। उसके बाद फिर बारिश तक इंतजार करना पड़ता था। ज्यादा फसल नहीं ले पाते थे। धीरे-धीरे कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने यहां पानी बचाओ की अलख जगाना शुरू की। यह बात 2003 की है। सेमल्या के लक्ष्मीनारायण डांगी कहते हैं-मैंने अपने खेत में पहला तालाब खोदा था तो गांव वाले मजाक उड़ा रहे थे। मुझसे कहा क्यों खेत बर्बाद कर रहा है। जब तालाब में पानी ठहरने लगा तो दूसरों का मन बदला। अब तो मैं अनाज से लेकर प्याज तक सब उगा लेता हूं। मेरे चार खेत हैं चारों में तालाब हैं।

 

 

 

 

पांच किमी तक ले जाते हैं पानी


एक-दो गांव तो ऐसे हैं जहां खेतों में बिजली नहीं है। वहां पानी पहुंचाने के लिए किसानों ने खुद की तकनीक ईजाद की है। वे पूरे खेतों में पाइप लाइन बिछा देते हैं और पानी खींचने की मोटर को अपने ट्रैक्टर से जोड़ देते हैं। ट्रैक्टर स्टार्ट करते ही मोटर का बेल्ट घूमता है और वह पानी खींचना शुरू कर देती है। इस तकनीक से वे पांच किमी दूर तक पानी ले जाते हैं।

 

 

 

 

पानी लाने के लिए भी पाइप


तालाब तक पानी लाने के लिए वे तीन तकनीकों का इस्तेमाल करते हैं। एक तो तालाब की जगह का चयन ऐसा करते हैं जहां बारिश का पानी ठहर सके, फिर कैचमेंट एरिये को तालाब से मिलाते हैं और आसपास कोई ऐसी जगह दिख जाए जहां बारिश का पानी बहकर बाहर निकल जाता है तो उसे भी बड़ी पाइप लाइन के जरिए तालाब तक खींच लाते हैं।

 

 

 

 

रंगत ही बदल गई


एक जमाना था जब किसान बोरिंग करवा-करवाकर परेशान हो गए थे। पानी सहेजने के अभियान में बरसों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता शशि अवस्थी कहते हैं-खेतों में बंद पड़े पुराने बोरिंग की हजारों मोटरें दफन हैं। अब तो अधिकांश लोग तालाब पर निर्भर हो रहे हैं। ग्रामीण रघुनाथ डांगी, जगदीश चौधरी, रामचरण, विष्णु कामदार, कमल परिहार, अजरुनसिंह, धारासिंह आदि का कहना है कि तालाबों ने खेतों की रंगत बदल दी है। पिवड़ाय का एक तालाब तो ऐसा है जिसमें पानी तो ज्यादा दिन संग्रहित नहीं रह पाता लेकिन जमीन में उतर जाने से आसपास के बड़े क्षेत्र में बोरिंग रिचार्ज रहने लगे हैं। सरकार की तरफ से जिला संयोजक एस.एल. जैन सब इंजीनियर आर.के गुप्ता आदि गांव वालों को तकनीकी और सरकारी मदद दिलवा रहे हैं।

 

 

 

 

यह है तालाबों का मोटा हिसाब


• खराड़िया- 60 तालाब
• सेमल्या रायमल- 250
• बावलिया खुर्द -60
• कंपेल -30
• मोरोद -35
• अरनिया -30
• पिवड़ाय -20
• पेडमी -18
• शियादादेव -15
• मूंडला दोस्तदार-6
• डिगवाल, फली -10
• सोनवाय - 8
• जैतपुरा, उंडेल, खंडेल 10

 

 

 

 

गिनोगे तब तक नया खुद जाएगा


इन गांवों में तालाब के लिए ट्रैक्टर चलते रहना आम है। वैसे गांव वाले 500 तालाबों का दावा कर रहे हैं, लेकिन होंगे इससे ज्यादा ही। वे तो यह भी कहते हैं कि इन दिनों में तालाब खुदाई इतनी तेजी होती है कि इस सिरे से तालाब गिनना शुरू करोगे तो पूरी गिनती होते-होते एक-दो नए तालाब और खुद चुके होंगे।

 

 

 

 

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