मध्य प्रदेश

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पहले घर में, अब गोदाम में रखा जाता है अनाज
Posted on 12 Nov, 2013 04:15 PM 11 नवम्बर 2013, नीमरमुंडा, हटा, दमोह, म.प्र.। निमरमुंडा के पप्पू गौतम की पारिवारिक जमीन 80 एकड़ है। सिंचाई का कोई साधन नहीं था। खेत पड़ती पड़ी रहते थे, घास तक नही होती थी एवं पानी की समस्या चारों ओर थी। गांव में चारों ओर पानी की किल्लत रहती थी। सिंचाई का पानी तो छोडि़ए, गर्मिंयों में तो पीने के पानी के लाले पड़ जाते थे।
बीस तालाब हैं और तालाब चाहिए महंतपुर को
Posted on 09 Nov, 2013 11:51 PM दमोह। दमोह जिले के दमोह ब्लॉक में कुल 100 के करीब तालाब बने हैं। दमोह ब्लॉक के महंतपुर गांव में कुल बीस तालाब बने हैं। कुछ किसानों ने अपने निजी तालाब बनाए हैं तो कुछ ने ‘बलराम तालाब योजना’ का लाभ लेकर भी तालाब बनाए हैं। मजेदार बात यह है कि कुछ तालाब तो गांव से होकर जा रही राजमार्ग के लिए ली गई मिट्टी के कारण भी बने हैं।
परंपरा का पुनः प्रयोग
Posted on 23 Aug, 2013 10:58 AM सूखे से पस्त बुंदेलखंड जैसे इलाकों को वित्तीय पैकेज की नहीं बल्कि परंपरा से उपजे उस प्रयोग की जरूरत है जो देवास का कायाकल्प करके महोबा पहुंच चुका है..

देवास के हर गांव में आज सफलताओं की ऐसी कई छोटी-बड़ी कहानियां मौजूद हैं। पानी और चारा होने के कारण लोगों ने दोबारा गाय-भैंस पालना शुरू कर दिया है और अकेले धतूरिया गांव से ही एक हजार लीटर दूध प्रतिदिन बेचा जा रहा है। पर्यावरण पर भी इन तालाबों का सकारात्मक असर हुआ है। आज विदेशी पक्षियों और हिरनों के झुंड इन तालाबों के पास आसानी से देखे जा सकते हैं। किसानों ने भी पक्षियों की चिंता करते हुए अपने तालाबों के बीच में टापू बनाए हैं। इन टापुओं पर पक्षी अपने घोंसलें बनाते हैं और चारों तरफ से पानी से घिरे रहने के कारण अन्य जानवर इन घोंसलों को नुकसान भी नहीं पहुंचा पाते।

किस्सा 17वीं शताब्दी का है बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल के बेटे जगतराज को एक गड़े हुए खज़ाने की खबर मिली जगतराज ने यह ख़ज़ाना खुदवा कर निकाल लिया। छत्रसाल इस पर बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने इस खज़ाने को जन हित में खर्च करने के आदेश दिए, जगतराज को आदेश मिला कि इस खज़ाने से पुराने तालाबों की मरम्मत की जाए और नए तालाब बनवाए जाएं, उस दौर में बनाए गए कई विशालकाय तालाब आज भी बुंदेलखंड में मौजूद हैं, सदियों तक ये तालाब किसानों के साथी रहे। कहा जाता है कि बुंदेलखंड में जातीय पंचायतें भी अपने किसी सदस्य को गलती करने पर दंड के रूप में तालाब बनाने को ही कहती थीं। सिंचाई से लेकर पानी की हर आवश्यकता को पूरा करने की ज़िम्मेदारी तालाबों की होती थी।
सम्मिलित प्रयासों से ही संभव है गांव में पानी एवं स्वच्छता
Posted on 31 Dec, 2012 04:19 PM मध्य प्रदेश में पेयजल, साफ-सफाई एवं व्यक्तिगत स्वच्छता की स्थिति ब
उत्पाद नहीं, जीने का जरूरी संसाधन है पानी
Posted on 11 Dec, 2012 02:26 PM भोपाल। पानी एवं स्वच्छता एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। स्वच्छ पेयजल एवं स्वच्छता के अभाव में गुणवत्तापूर्ण जीवन का अधिकार सुनिश्चित नहीं हो सकता। सभी व्यक्तियों के लिए बिना किसी कीमत के न्यूनतम पानी उपलब्ध हो सके, इसके लिए विभिन्न संस्थाओं एवं संगठनों को संयुक्त रूप अभियान चलाने की जरूरत है। पानी की उपलब्धता को मानवाधिकार का मुद्दा बनाने की जरूरत है। साथ ही स्वच्छता (सेनिटेशन) को बढ़ावा देकर पानी को प्रदूषित होने से बचाने के साथ-साथ लोगों को बीमारियों से बचाने की जरूरत है।
खुले में शौचमुक्त देश बनाने का सन्देश लेकर निर्मल यात्रा पहुंची इन्दौर
Posted on 10 Oct, 2012 08:37 PM -वाश प्रोग्राम में स्कूली बच्चे सीख रहे हैं हैंडवाशिंग
- डांस व कनवरसेशन स्किल के माध्यम से करेबियन कोरियोग्राफर बच्चों को सिखा रहा है साफ-सफाई के तरीके

इन्दौर। वाश युनाइटेड व क्विकसैंड द्वारा देश को खुले में शौच मुक्त बनाने का सन्देश लेकर निकली निर्मल भारत यात्रा रविवार को इन्दौर पहुंची। यह यात्रा वर्धा से चली है, जो पांच राज्यों -महाराष्ट्र के वर्धा के अलावा, म.प्र. के इन्दौर, ग्वालियर, राजस्थान के कोटा, उ.प्र. के गोरखपुर से होकर बिहार के बेतिया तक जायेगी। इस दौरान इन सभी ऐतिहासिक शहरों में दो दिवसीय मेले का भी आयोजन किया जा रहा है।
स्कूलों में बच्चों को खुले में शौच से होने वाली जानलेवा बीमारियों के प्रति जागरूक करते कार्यकर्ता
विस्थापन पर राष्ट्रीय संवाद
Posted on 10 Oct, 2012 02:20 PM आजादी के बाद और उसके पहले बने बड़े बांधों से उपजी विभीषिका से हम सभी वाकिफ हैं। इन बड़े बांधों के बनने से कितने लोग विस्थापित हैं, इसका कोई एक आंकड़ा सरकार के पास आज तक नहीं है हाँ, बांधों का आंकड़ा है, थोडा बहुत सिंचाई का भी है पर शायद लोग उतना महत्व नहीं रखते हैं, इसलिए लोगों की गिनती नहीं है? पर्यावरणविद वाल्टर फर्नांडीज के मुताबिक़ देश में केवल बांधों से लगभग 3 करोड़ से ज्यादा लोग विस्थापित हुए हैं। हास्यास्पद यह भी है कि सरकारी ढर्रे और नुमाइंदों ने लोगों की गणना करना उचित नहीं समझा और सरकार के पास भी यही आंकड़ा है।

विस्थापन अब केवल बड़े बांधों का ही परिणाम नहीं रहा। रोज-रोज नए-नए उगते अभ्यारण्य/नॅशनल पार्क और बेतरतीब तरीके से पर्यटन स्थलों से होने वाला विस्थापन अब एक आम बात होती जा रही है। सिंगूर, पास्को, कुडूनकुलम के साथ-साथ देश के अन्य विकास के इन नए प्रतिमानों और इनके लिए चलायी गयी प्रक्रियाओं ने विकास बनाम विनाश की बहस को और मुखर कर दिया है।
राष्ट्रीय मीडिया चौपाल-2012
Posted on 23 Jul, 2012 08:11 AM

 

स्तंभ लेखकों, ब्लॉगर्स, वेब संचालकों और सोशल मीडिया के संचारकों का जमावड़ा
विज्ञान और विकास के लोकव्यापीकरण में न्यू मीडिया की भूमिका पर होगी बहस

दिनांक : 12 अगस्त 2012
स्थान : विज्ञान भवन, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद - भोपाल (मध्यप्रदेश)
संपर्क : अनिल सौमित्र, स्पंदन फीचर्स, +919425008648


भोपाल। इक्कीसवीं सदी देश में सूचना क्रांति लेकर आई है। समूचा समाज इसमें हिस्सेदार है। स्तंभ लेखक, ब्लॉगर और वेब संचालक सभी नई और पुरानी मीडिया में अपना-अपना योगदान दे रहे हैं। नया मीडिया अब इतना विस्तार पा चुका है कि इसकी शक्ति अपार हो चुकी है। आने वाले दिनों और सालों में यह और अधिक ताकतवर होगा।

नये मीडिया के बढ़ते प्रभाव के दायरे को आंकने और इस पर आसन्न संकट को भांपने के साथ ही इसके लिए विशेष मुद्दों (एजेंडे) का निर्धारण भी आवश्यक है। इन्हीं विषयों को केन्द्रित कर भोपाल में एक दिवसीय ‘‘राष्ट्रीय मीडिया चौपाल-2012’’ का आयोजन किया जा रहा है। इस मीडिया चौपाल का थीम होगा – ‘‘विकास की बात, विज्ञान के साथ : नये मीडिया की भूमिका’’। स्पंदन संस्था के सहयोग से मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद द्वारा आयोजित इस राष्ट्रीय मीडिया चौपाल में देशभर के स्तंभकार, ब्लॉगर्स, वेब संचालकों के साथ ही न्यू मीडिया के साथ कार्यरत संचारक हिस्सेदारी करेंगे।

Media Chaupal
खण्डवा (मध्यप्रदेश) में जलप्रदाय के निजीकरण का विरोध
Posted on 13 Jul, 2012 01:23 PM खण्डवा की निजीकृत जलप्रदाय परियोजना का पिछले अप्रैल से स्थानीय समुदाय विरोध कर रहा है। इस विरोध प्रदर्शन में स्थानीय सामाजिक समूहों, जिला अधिवक्ता संघ, पेंशनर एसोसिएशन, व्यापारी संघ, नागरिक संगठन, मीडिया, राजनैतिक कार्यकर्ता आदि भी शामिल है।
बलिदान की निरंतरता
Posted on 06 Jul, 2012 04:26 PM

विस्थापन से लगातार पानी में समाहित होती जा रही कृषि भूमि का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा है। इससे लगातार कम हो रही अ

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