कृपाशंकर व्यास

कृपाशंकर व्यास
शिप्रा पर एक पर्यावरणीय चिन्तन
Posted on 26 Feb, 2010 04:30 PM
भौतिक विकास की अंधी दौड़ से न केवल भारत का वरन् सम्पूर्ण विश्व का पर्यावरण आज असंतुलित हो रहा है। भौतिक विकास की अदम्य लालसा ने व्यक्ति को अत्यधिक स्वार्थी एवं विवेकशून्य बना दिया है। भौतिक सुख की वेदी पर आज व्यक्ति अपने भविष्य की आहुति खुशी-खुशी दे रहा है। यह है व्यक्ति की विवेक शून्यता की उच्चावस्था। व्यक्ति को आज चिन्ता है केवल स्वार्थ पूर्ति की-उसका सिद्धान्त बन गया है – “यावत् जीवेत् सुखं
शिप्रा को प्रदूषण मुक्त करने के उपाय
Posted on 26 Feb, 2010 05:53 PM

निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि प्रदूषित जल की समुचित उपचार व्यवस्था नदी तटवर्ती सभी नगरों में होना चाहिए। इसके अतिरिक्त नदी को प्रदूषण मुक्त रखने हेतु परिक्षेत्र का वनीकरण, नदीतल का गहरीकरण आदि की दिशा में सक्रिय प्रयास होना चाहिए। इन उपायों को मूर्त रूप देने हेतु कतिपय सुझाव प्रस्तुत हैं :-

शिप्रा प्रदूषण
Posted on 26 Feb, 2010 04:34 PM

पुण्यदा शिप्रा आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व सदानीरा थी। उस समय उसके जल की गुणवत्ता भी वैज्ञानिक दृष्टि से उत्तम थी तथा परिक्षेत्र का पर्यावरण भी संतुलित था। आज वही सदानीरा शिप्रा मौसमी नदी बन चुकी है, जिसमें मात्र वर्षा ऋतु में जल प्रवाह रहता है शेष आठ-नौ माह में से केवल नवम्बर से फरवरी तक ही चार माह जल रहता है, वह भी लगभग प्रवाह-हीन। अवशेष माहों (लगभग फरवरी से जून तक) में नदी की स्थिति दयनीय रहती

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