मध्य प्रदेश के झाबुआ जिलें में स्थित जोबट बांध (चन्द्रशेखर परियोजना) नर्मदा घाटी मे बनने वाले 30 प्रमुख बांधों में से एक है। नर्मदा की सहायक नदी ‘हथनी’ पर स्थित इस विवादास्पद बांध की अधिकतम ऊंचाई 34.6 मीटर है। इस बांध के बांयी छोर से निकलने वाले 29.73 किमी लम्बे नहर से 9848 हेक्टेअर क्षेत्र की सिंचाई प्रस्तावित है। परियोजना के डीपीआर के अनुसार परियोजना से सालाना 12,507 हेक्टेअर सकल क्षेत्र सिंचाई किये जाने का प्रस्ताव है। डीपीआर में, बांध से बनने वाले जलाशय से 13 गांवों के 595 परिवारों सहित 1216 हेक्टेअर क्षेत्र प्रभावित होने की बात कही गई है। जबकि 104 हेक्टेअर वन भूमि भी प्रभावित होने की बात कही गई है। परियोजना का लाभ क्षेत्र मध्य प्रदेश के धार जिले के कुक्षी ब्लॉक के 27 गांवों में स्थित है। वर्तमान में बांध का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है और नहर का निर्माण कार्य जारी है, लेकिन परियोजना से प्रभावित लोगों का पुनर्वास अभी तक पूरा नहीं हो सका है। इसके अलावा परियोजना से प्रस्तावित डूब के मुकाबले वास्तविक डूब कहीं ज्यादा है। जबकि नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) पर आरोप है कि उसने पर्यावरणीय मंजूरी के शर्तों का पालन नहीं किया है। इन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इंडिपेंडेंट पिपुल्स ट्रिब्यूनल (आईपीटी) ने नर्मदा घाटी में जोबट परियोजना से प्रभावित क्षेत्रों का दौरा करने के पश्चात प्रभावितों के बीच एक जनसुनवाई में भी भागीदारी की। आईपीटी के पैनल के सदस्यों में दिल्ली एवं मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायधीश ए. पी. शाह, कृषि नीति विशेषज्ञ श्री देविन्दर शर्मा, एवं लॉ कॉलेज पुणे में प्रोफेसर जया सगादे प्रमुख हैं। पूरी प्रक्रिया के बाद ट्रिब्यूनल ने परियोजना के संबंध में अपने निष्कर्ष एवं सिफारिशें पेश की हैं।
जनसुनवाई में जोबट बांध परियोजना के प्रभावितों में से अलीराजपुर जिले के आदिवासियों ने ट्रिब्यूनल (पंचाट) के समक्ष बयान देते हुए कानूनी एवं मानव अधिकार हनन का आरोप लगाया और कुछ हजार लोगों के पुनर्वास न होने और पर्यावरणीय शर्तों का पालन न किये जाने से संबंधित गंभीर मुद्दे उठाये। तेरह गांवों मछलिया, उमदा, वास्कल, छोटी खट्टाली, बड़ी खट्टाली, भीटी, पलसदा, सिंधी, बागड़ी, भानपुरा, इंद्रावन, मसनी एवं दवाड़ी के कई आदिवासियों की जमीन, घर या कुएं, हैंडपंप या पेड़ जैसी संपत्ति ले ली गई है, उनमें से अधिकांश कानून के अनुसार अधिग्रहण के बगैर किये गये हैं, और उनका नर्मदा विस्थापितों के लिए मध्य प्रदेश की पुनर्वास नीति, 1989 एवं 1983 की पर्यावरणीय मंजूरी के शर्तों के अनुसार समुचित पुनर्वास नहीं किया गया है, जिसके अंतर्गत समयबद्ध पुनर्वास मास्टर प्लान का प्रावधान है।
ट्रिब्यूनल के समक्ष व्यक्त शिकायतों में, लोगों ने आरोप लगाया कि जोबट परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण गलत जानकारी के आधार पर, जबरदस्ती, धोखेबाजी और डरा-धमका कर अर्थात स्वीकार्य मानव अधिकार मापदंडों एवं पेसा अधिनियम का पालन किये बगैर किया गया है। अधिग्रहण की प्रक्रिया के दौरान भय का वातावरण बनाया गया और एनवीडीए के अधिकारियों के द्वारा प्रभावितों को उनके अधिकारों के बारे में कभी जानकारी नहीं दी गई। एक और अवैध काम किया गया कि सिंचित जमीन को गलत तरीके से असिंचित जमीन बताया गया और जमीन और पाइपलाइन, नलकूपों, कुओं एवं अच्छे पेड़ों आदि के लिए नाम मात्र का मुआवजा दिया गया।
लोगों ने यह भी मुद्दा उठाया कि गलत सर्वेक्षण के कारण, वास्तव में बताये गये जमीन के मुकाबले ज्यादा जमीन डूब में आ चुकी है और ज्यादा डूब होने की संभावना है। योग्य परिवारों, वयस्क बेटों एवं अविवाहित बेटियों के नामों को परियोजना प्रभावितों की सूची में छोड़ दिया गया है और भ्रष्टाचार के कारण अयोग्य लोगों के नामों को शामिल कर दिया गया है। बहुत सारे जमीन और मकान डूब गये हैं और खासकर मॉनसून की अवधि के दौरान उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। गलत ढंग से नियोजित किये गये नहरों की वजह से भी आस-पास के गांवों में जलजमाव एवं क्षारीयकरण की समस्या बढ़ रही है और मलेरिया जैसी जल-जनित बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। सन 2008 में कलेक्टर के सर्वेक्षण में इन गलतियों की पुष्टि की गई है, लेकिन इन गलतियों के समाधान के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। परियोजना प्रभावितों द्वारा बार-बार शिकायत किये जाने के बावजूद एनवीडीए और शिकायत निवारण प्राधिकरण, भोपाल (जोबट) ने न तो उनकी चिंताओं का संतुष्टिपूर्ण समाधान किया और न ही कोई सुधार की कार्रवाई की।
ट्रिब्यूनल के समक्ष एक अहम बात उभरकर आई कि परियोजना अधिकारी परियोजना प्रभावितों को उनके पुनर्वास के कानूनी अधिकार के बारे में बताये बगैर उनसे सीधे नगद मुआवजा के लिए बातचीत करते हैं और वे विस्थापितों के पुनर्वास के लिए जमीन तलाशने के लिए ईमानदार प्रयास नहीं करते हैं। धार जिले के कुछ गांवों में सिर्फ एक बार जमीन दिखाई गई, जबकि वे खेती करने योग्य नहीं थे और उन पर बेजा कब्जा था इसलिए उन्हें प्रभावितों द्वारा नकार दिया गया। आदिवासी प्रभावितों को प्रस्ताव किये गये नगद अनुदान से यह सुनिश्चित नहीं हुआ कि सभी परियोजना प्रभावित जमीन खरीद सकें। जो लोग कुछ जमीन खरीद सके वे न्यूनतम 5 एकड़ या उतनी नहीं हैं जितनी की उनकी जमीनें गई हैं, जिसके कि वे हकदार हैं।
ट्रिब्यूनल ने यह ध्यान दिया कि सालों से मंजूरी अथॉरिटी द्वारा बहुत ही कमाजोर निगरानी की जा रही है। खासकर, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना कि मंजूरी के शर्तों का पालन समयबद्ध तरीके से हो, वह नहीं हुआ है। यह चिंता का मुद्दा है कि एनवीडीए ने पहले ही दूसरे परियोजनाओं के मामले में आदिवासियों के पुनर्वास के मुद्दे पर अपना रूखापन, भ्रष्टाचार और बेपरवाह दृष्टिकोण प्रदर्शित किया है। इस तरह यदि केन्द्रीय स्तर पर कोई निगरानी या नियमित पर्यवेक्षी प्रक्रिया न हो तो उसे कानून और नीतियों की कोई चिंता नहीं होगी।
परियोजना प्रभावितों को, उनकी हकदारी के अनुरूप, समुचित तरीके से न तो जमीन, न आजीविका, न समुचित मुआवजा, न घर प्लॉट, न पुनर्वास स्थल कुछ भी सुनिश्चित नहीं किया गया। क्षतिपूरक वनीकरण, मछली पालन आदि पर्यावरणीय उपायों के मामले में शर्तों को पालन न किये जाने की भी गंभीर शिकायते हैं। वास्तव में, पर्यावरण मंत्रालय के विशेषज्ञ समिति ने शर्तो के उल्लंघन के मामले में 1995 में जोबट को ब्लैकलिस्ट कर दिया था, लेकिन उसके बाद भी शायद ही कोई निगरानी हुई है। कुल मिलाकर इन सालों में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय यह कर सकती थी, लेकिन वह प्रभावी निगरानी करने में विफल रही है, जिसकी वजह से एनवीडीए लोगों के जीवन के अधिकार को प्रभावित करते हुए काफी ज्यादा संख्या में प्रभावित परिवारों बगैर पुनर्वास के ही विस्थापित कर रही है। नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण को नर्मदा जल योजना, 1980 के अंतर्गत यह अधिकार है कि वह सभी नर्मदा परियोजनाओं के नियम व शर्तों का विश्वसनीय अनुपालन सुनिश्चित करे, जिसमें जोबट भी शामिल है। जबकि, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा खासकर जोबट परियोजना के विस्थापितों के मामले में स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाया जाना और परियोजना की प्रभावी निगरानी अभी किया जाना बाकी है।
तथ्यों, प्रस्तुतियों एवं साक्ष्यों के मद्देनजर, ट्रिब्यूनल ने निष्कर्ष निकाला कि जोबट परियोजना की शर्तों एवं सावधानीपूर्वक निगरानी के मामले में अनुपालन के सन्दर्भ में तत्परता की जबरदस्त कमी है, और हजारों विस्थापितों के लिए पुनर्वास अब भी दूर की बात है। जबकि, इस पर तत्काल कार्रवाई शुरू करके पूरा किये जाने की जरूरत है। अतः ट्रिब्यूनल ने कुछ अहम सिफारिशें भी की हैं।
ट्रिब्यूनल का कहना है कि, जोबट बांध परियोजना से विस्थापित एवं प्रभावित सभी आदिवासियों को मंजूरी के शर्तो, नर्मदा पंचाट के मापदंडों एवं पुनर्वास नीति के अनुरूप खेती की जमीन, घर प्लॉट एवं वैकल्पिक आजीविका सहित पूरी तरह से पुनर्वास किया जाना चाहिए। प्रभावितों को अनुपजाऊ जमीन का प्रस्ताव करने के बजाय मध्य प्रदेश सरकार गंभीरतापूर्वक निजी जमीन खरीदने के विकल्प पर विचार करे और हरेक प्रभावित, उनके वयस्क बेटों एवं अविवाहित बेटियों को 5 एकड़ जमीन आबंटित करे। एनवीडीए को जोबट परियोजना के 13 गांवों के प्रभावितों के लिए नर्मदा पंचाट एवं मध्य प्रदेश पुनर्वास नीति के अनुरूप नागरिक सुविधाओं सहित तत्काल पुनर्वास गांवों की स्थापना शुरू करनी चाहिए और इसे निर्धारित समयावधि के अंतर्गत पूरा किया जाना चाहिए। पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के पास जोबट परियोजना को दी गई मंजूरी के समस्त शर्तों के पालन की निगरानी का अधिकार प्राप्त है, अतः उसे परियोजना के लिए निर्धारित शर्तों के पालन की वास्तविक स्थिति की गंभीर समीक्षा करनी चाहिए और समीक्षा के आधार पर उपयुक्त कार्रवाई की पहल करनी चाहिए। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा संबंधित व ईमानदार अधिकारियों, परियोजना प्रभावितों एवं कार्यकर्ताओं के प्रतिनिधियों के साथ जोबट परियोजना से प्रभावित सभी 13 गांवो का संयुक्त सर्वेक्षण करना सुनिश्चित करना चाहिए ताकि प्रभावित परिवार प्रभावितों की सूची से वयस्क बेटों एवं अवविाहित बेटियों सहित कोई भी छूट न जाए। जो भी जमीनें, घर, पेड़, कुंये आदि डूब के अंतर्गत आ रही हैं, लेकिन उनका अधिग्रहण नहीं हुआ है, उन्हें तत्काल अधिग्रहण किया जाए और उसके लिए उपयुक्त मुआवजा दिया जाए। एनसीए और जीआरए को परियोजना प्रभावितों के याचिकाओं पर जल्द जवाब देना चाहिए क्योंकि इसमें जबरदस्त उल्लंघन करते हुए सालों देरी हो चुकी है, जिसकी वजह से परिवारों को जबदस्त सामाजिक व आर्थिक नुकसान हो रहा है। परियोजना क्षेत्र में नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिए समस्त बचे हुए पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को मंजूरी के शर्तों के अनुरूप पूरा किया जाए। मंजूरी के शर्तों के अनुसार मध्य प्रदेश सरकार द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि भूमिहीनों को समुचित प्रशिक्षण एवं स्वंय को स्थापित करने के लिए अन्य पुनर्वास लाभ के साथ वैकल्पिक आजीविका के साधन प्रदान किये जाएं। किसी भी अधिकारी द्वारा किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार, गलत सर्वेक्षण या डराने धमकाने की वजह से आदिवासियों पर की गई कार्रवाई को कानून के अनुसार कड़ाई से ध्यान दिया जाए।
ट्रिब्यूनल उन हजारों आदिवासियों, दलितों, विधवाओं व एकल महिलाओं, मछुआरों, कुम्हारों के बारे में गहरी चिंता व्यक्त किया है, जिनका यदि अतिशीघ्र व समयबद्ध तरीके से पुनर्वास नहीं किया जाता है तो उन्हें गंभीर निर्धनता और अभाव का समाना करना पड़ सकता है। ट्रिब्यूनल ने आशा जतायी है कि भारत सरकार को रिपोर्ट द्वारा सामने लाये जाने वाली गंभीर परिस्थितियों को संज्ञान में लेना चाहिए, जो कि विभिन्न अधिकारिक समितियों के रिपोर्टों के अलावा जन संगठनों के रिपोर्टों एवं गणमान्य लोगों द्वारा अदालत के हलफनामों में भी प्रतिबिंबित हुए हैं। निगरानीकर्ता, वित्त प्रदाता और मंजूरी अथॉरिटी के तौर पर भारत सरकार से हम यह उम्मीद व अपील करते हैं कि वह एक मजबूत पोजीशन ले, ताकि सभी पूर्ण एवं संभावित योजनाओं में उल्लंघन का लम्बा इतिहास जारी न रहे। जब तक कि सरकार इस मामले में व्यापक समीक्षा नहीं कराती है, तब तक कोई मंजूरी या परियोजना कार्य स्वीकृत न हो।
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