हम सहेज न सके धरोहर
उमरिया, मध्य प्रदेश, 14 मार्च 2010। माफ करियेगा हम आपको कुंए का ठंडा पानी नहीं पिला सकते। ऐसा नहीं कि हमारे नगर में कुंए नहीं है या उनमें ठंडा पानी नहीं रहा। उमरिया का इतिहास कहता है कि उसका एक अपना पानीदार समाज रहा है जो नगर के प्राय: सभी मुहल्लों में सबके पीने के पानी की चिंता करता। उस समाज के बनाए तमाम कुंए तो आज भी मौजूद है, लेकिन कहना गलत न होगा कि ऐसे सभी सार्वजनिक कुंए आज हमारे और प्रशासनिक उपेक्षा की भेंट चढ़ रहे हैं, तो क्या अब इनकी सुध लेने वाला कोई समाज आज जिन्दा है?
उमरार नदी से नलजल सप्लाई और गली-मुहल्लों में हैंडपंप सुलभ होते ही दशकों पूर्व से चले आ रहे कुंओं का उपयोग कम होता गया। अब ऐसे ज्यादातर कुंओं में पानी होने के बावजूद उसमें कचरा डाल-डालकर भाठने का काम किया जा रहा है। जब-जब नगर में जलसंकट उत्पन्न हुआ कुछ लोगों ने कुंओं की साफ-सफाई की मांग उठाई। लेकिन नगरपालिका व निजी टैंकर सप्लाई होने के कारण लोगों ने इस मजबूत विकल्प की ओर ध्यान नहीं दिया। जानकारों का कहना है कि ऐसा कम ही हुआ कि उमरार नदी इतनी सूख गई हो कि एक समय जलापूर्ति होने लगे। लेकिन बीते कुछ वर्षों में नदी मे बढ़े प्रदूषण के कारण इस वर्ष गंभीर पेयजल संकट की स्थिति दिखाई पड़ रही है। नगर का भूजल स्तर भी अपेक्षाकृत नीचे की ओर जा रहा है। ऐसे में कभी अपना कहलाने वाले सार्वजनिक कुंओं की दुर्दशा देखकर सहज ही मुंह से निकल पड़ता है काश कोई इन कुंओ को बचा लेता।
चूना, पत्थर, सीमेंट और ठोस ईंटों से बने ये कुंए अपने बीते दिनों की कहानी कह रहे हैं। जाने कितने ही जाने-अनजानों ने उसका पानी पिया होगा। लेकिन आज वे खुद बेजान बने जा रहे हैं। इन कुंओं का मजबूत चबूतरा, घेराव, गरारी और जानवरों के पीने के लिये बनी टंकी बताती है कि उमरिया में पानी सहेजने की कला को लेकर बखूबी काम हुआ है। कैंप मोहल्ले में हनुमान मंदिर के पास बने कुंए के बारे में बताते हुए 60 साल की रेवती बाई कहती है कि जब वह 35 साल पहले यहां आई तब यही कुंआ मोहल्ले भर की प्यास बुझाता था। बाद में इसी के पानी से मंदिर और लोगों के घर बने। इसी कुंए के कुछ आगे बाबा फूलशाह चबूतरे के सामने एक बड़ा और ऊँचा कुंआ है। यहां रहने वाली अंजू सिंह बताती हैं कि इस कुंए का पानी काफी मीठा है और हैण्डपंप न लगने के पहले तक लोग इसी का उपयोग करते थे। आज इस कुंए में पानी से अधिक कचरे की मोटी परत जमी हुई है।
सुदूर अंचल से हाट-बाजार आने वालों के लिये खलेसर रोड वकील राजेन्द्र सिंह के घर के सामने बना कुंआ एक बड़ा सहारा हुआ करता था। मजबूत लोहे की पट्टियों से ढंका यह कुंआ काफी गहरा और मजबूत है। इसमें अभी भी पानी है लेकिन देख-रेख और साफ-सफाई न होने के कारण लंबे समय से इसका पानी उपयोग नहीं किया जा रहा है। कहा जाता है कि ये कुंए किसी भी भीषण जल संकट से लड़ सकते हैं। सुभाषगंज जिला चिकित्सालय के सामने स्थित मिट्टी तेल निकलने की कहानी वाला कुंआ आज भी धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है। इसमें पानी तो है लेकिन उपयोग नहीं। बात कुंए की ही हो तो झिरिया मोहल्ला सडक़ के मोड़ पर स्थित टूटे और कचरे की कब्रगाह बने कुंए को कैसे भूला जा सकता है जो आज भी हर पल दुर्घटना को आमंत्रण दे रहा है। नगर में जल के विकल्प कुंए तो ढेरों हैं फिलहाल जरूरत है तो इनके संरक्षण और विकास की।
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