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भोपाल। भोपाल की ऐतिहासिक विरासत, बावड़ियां बदहाल हो रही हैं। इन जलस्त्रोतों की सुध लेने वाला कोई नहीं। सरकार और स्थानीय प्रशासन राजधानी में पेयजल के लिए इधर-उधर हाथ-पैर मार रहे हैं लेकिन नाक के नीचे इन धरोहरों को अनदेखा किया जा रहा है।
आमतौर पर बिना बिजली, बिना डीजल ईंजन और पशुधन की ऊर्जा के बगैर खेतों की सिंचाई करना मुश्किल है लेकिन सतपुड़ा अंचल के दो गांव के लोगों ने यह मुश्किल आसान कर दिखाई है। अपनी कड़ी मेहनत, कौशल और सूझबूझ से वे पहाड़-जंगल के नदी-नालों से अपने खेतों तक पानी लाने में कामयाब हुए हैं। जंगल पर आधारित जीवन से खेती की ओर मुडे आदिवासी भरपेट भोजन करने लगे हैं।
भास्कर न्यूज/ अरविंद तिवारी/ March 22, 2009