बिहार

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परंपरागत सिंचाई ही है समाधान
Posted on 09 Oct, 2010 08:24 AM पूर्वजों ने वर्षा के जल को संग्रहित करके भारत में कृषि के उत्कृष्ट प्रतिमान स्थापित किए थे। इससे जहां पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित की जाती थी वहीं भूजल को भी स्थिर रखने में मदद मिलती थी। देश में आए दिन जो सूखे की समस्या रहती है, उससे निपटने के लिए हमें एक बार फिर सिंचाई के परंपरागत साधनों पर ध्यान देना होगा। गत वर्ष सूखे के कारण करीब 60 प्रतिशत से अधिक चावल की पैदावार में कमी आने वाली है।

दूसरी ओर रबी की फसल पर भी सूखे का साया मंडराने लगा है। गौरतलब है कि बिहार की खेती-किसानी अधिकतर मानसून पर ही निर्भर रहा करती है। यह सच है कि देश में कई अन्य राज्यों में बिहार से भी कम वर्षा हुई है,
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सुखाड़ का शिकार हो गया बिहार
Posted on 02 Sep, 2010 09:38 AM
उत्तरी बिहार के कुछ इलाकों में आए बाढ़ के बारे में टीवी चैनल पर खबर देखने या फिर किसी सामाचार पत्र में खबर पढ़ कर यह अंदाजा मत लगाइए कि बिहार में इस साल भी खूब बारिश हो रही है। दरअसल बिहार के कुछ इलाकों में आई बाढ़, नेपाल की नदियों से बहकर आया पानी है जिसकी वजह से कुछ क्षेत्र जलमग्न हो गए हैं। लेकिन इस पानी से किसानों का भला नहीं होने वाला है।
आखिर क्यों उफन जाती हैं नदियां
Posted on 28 Aug, 2010 07:27 AM


मई-जून के महीनों में जब तीन-चौथाई देश पानी के लिए त्राहि -त्राहि कर रहा था, पूर्वोत्तर राज्यों में भी बाढ़ से तबाही का दौर शुरू हो चुका था। अभी बारिश के असली महीने सावन की शुरुआत है और लगभग आधा हरियाणा, पंजाब का बड़ा हिस्सा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार का बड़ा हिस्सा नदियों के रौद्र रूप से पानी-पानी हो गया है।

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तटबंधों के पिंजरे में लाखों जिंदगानियां
Posted on 02 Aug, 2010 08:06 AM
यह उन लाखों कोसी वासियों के दुख की कहानी नहीं है जिन्होंने 2008 में कुछ महीनें कोसी की बलखाती लहरों के थपेड़ों के बीच गुजारे बल्कि यह उन दूसरे लाखों लोगों की दास्तान है जो चालीस साल से इस नदी के थपेड़ों से जूझ रहे हैं. बाढ़ से मुक्ति के नाम पर हुए प्रयोग में सरकार ने इस नदी को जब तटबंधों के बीच कैद किया तो उस पिंजरे से वह इन लाखों लोगों को बाहर निकालना भूल गई.
संस्थाएं नारायण-परायण बनें
Posted on 22 Jun, 2010 03:21 PM


समाज के कामों में लगी संस्थाओं को, हम लोगों को विनोबा की एक विशिष्ट रचना, सर्वोदय समाज की कल्पना को समझने की कोशिश करनी चाहिए। अपनी इस रचना को सामने रखते हुए वे संस्था, उसके संचालन, उसके लक्ष्य, उसके कोष, पैसे, धेले- सब बातों को सहज ही समेटे ले रहे हैं।

मैं जरा एकांत में रहने वाला मनुष्य हूं। लेकिन जेल में तो समाज में ही रहना हुआ, और उससे सोचने का काफी मसाला मिल गया। वहां सब तरह के लोगों से संपर्क हुआ। उनमें कांग्रेस वाले थे, समाजवादी थे, फॉर्वर्ड ब्लॉक वाले और दूसरे भी थे। देखा कि ऐसा कोई खास दल नहीं, जिसमें दूसरे दलों की तुलना में अधिक सज्जनता दिखाई देती हो। जो सज्जनता गांधीवालों में दिखाई देती है, वही दूसरों में भी दिखाई देती है, और जो दुर्जनता दूसरों में पाई जाती है, वह इनमें भी पाई जाती है। जब मैंने देखा कि सज्जनता किसी एक पक्ष की चीज नहीं, तब सोचने पर इस निर्णय पर पहुंचा कि किसी खास पक्ष या संस्था में रहकर मेरा काम नहीं चलेगा। सबसे अलग रहकर सज्जनता की ही

पेयजल और स्वच्छता नीति का मसौदा
Posted on 06 Mar, 2010 08:35 AM बिहार सरकार 22 मार्च 2010 को विश्व जल दिवस के अवसर पर पेयजल और स्वच्छता नीति की घोषणा करेगी। लोक स्वास्थ्य और अभियांत्रिकी मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि बिहार सरकार बहुत तेजी से जल और स्वच्छता के बारे में एक मुकम्मल नीति बनाना चाहती है। इस मसौदे पर काम चल रहा है।

मसौदा के बारे में श्री चौबे ने स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार की नीति में पीने के पानी को शीर्ष प्राथमिकता होगी। सरकार दोहरी जल आपूर्ति पर भी काम कर रही है। ताकि जल को साफ किया जा सके। सरकार जिला स्तर और राज्य स्तर पर निगरानी समितियाँ भी बनायेगी जो सतही पानी, जमीनी पानी और वर्षा जल के अधिकतम के समूचित उपयोग पर नियंत्रण रखेंगी। बिहार सरकार एक भूजल विनियामक प्राधिकरण भी स्थापित करेगी जो भूजल संरक्षण और उपयोग पर नियंत्रण रखेगी।

‘आहार’ पाईन से खुशहाली
Posted on 31 Dec, 2009 05:37 PM

हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। करीब 40 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद कृषि से उपजता है। अत: जब तक कि गांव की कृषि व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता है, तब तक देश की अर्थव्यवस्था में सुधार कर पाना असंभव होगा। अत: स्थानीय समुदायों को जोड़ते हुए जल पंढाल विकास और जल प्रबंधन करने से हमारी कृषि व्यवस्था टिकाऊ विकास की ओर अग्रसर होगी।

जंगल में घोर अमंगल
Posted on 19 Oct, 2009 08:15 AM
नदियों, पहाडों को नंगा कर अपनी झोली भर रहे खनन माफियाओं का निशाना इस बार देश का गौरव कहे जाने वाले वन्य जीव अभ्यारण्य बने हैं। उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला कैमूर वन्य जीव अभ्यारण्य लुप्त होने के कगार पर है, धन कमाने की हवस में ललितपुर से लेकर सोनभद्र तक फैले समूचे अभ्यारण्य को चर डाला गया है, समूचे सेंचुरी क्षेत्र में जंगलों को नेस्तानाबूद करके बालू का अवैध खनन कराया जा रहा है,
कोसी परियोजना- ऐतिहासिक सिंहावलोकन
Posted on 23 Sep, 2009 01:08 PM
कोसी नदी बेसिन मानव अधिवास के लिये प्राचीन काल से ही उपयुक्त जगह है। 12-13वीं शताब्दी में पश्चिम भारत की कई नदियों के सूख जाने के कारण वहां के पशुचारक समाज के लोग कोसी नदीबेसिन में आकर बस गये। कोसी नदी घाटी में बढ़ती जनसंख्या और कोसी नदी के बदलते प्रवाह मार्ग के बीच टकराहट होने लगी। नदी की अनियंत्रित धारा को लोग बाढ़ समझने लगे। बाढ़ नियंत्रण के लिये तात्कालीन शासकों ने कदम उठाये।1 सबसे पहले 12वीं
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