बिहार

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धरती उगले सोना
Posted on 19 Dec, 2011 10:45 AM

बिहार सरकार ने पूरे सूबे में श्री विधि से 10 प्रतिशत धान की खेती का लक्ष्य निर्धारित किया था।

नदियों के किनारे अवैध खनन से बढ़ रहा है प्रदूषण
Posted on 07 Dec, 2011 09:41 AM

खनन माफिया लगातार रेत निकाल रहा है और सोन समेत कई नदियां तबाह हो रही हैं। बिहार सरकार ने पत्थर

पानी साफ करने का देशी तरीका : मटका फिल्टर
Posted on 02 Dec, 2011 01:47 PM

मेघ पाईन अभियान अपने शुरूआती दौर में उत्तर बिहार के विभिन्न बाढ़ग्रस्त क्षेत्र का अध्ययन किया। अध्ययन के उपरान्त चार जिलों (सुपौल, सहरसा, खगड़िया तथा मधुबनी) के एक-एक पंचायत में बाढ़ के समय आनेवाली समस्याओं में प्रमुख समस्या ‘‘शुद्ध पेय जल की समस्या’’ को चुनौती के रूप में स्वीकार किया। अभियान स्थानीय संसाधन व तकनीक से ‘वर्षाजल’ संग्रहण कर इसे पेयजल स्रोत के रूप में उपयोग करने की जानकारी लोगों क

स्वच्छ पेयजल का स्थायी विकल्प कुआँ
Posted on 02 Dec, 2011 01:10 PM

लोगों की आस्था और विश्वास के प्रतीक गंगा नदी बिहार राज्य के मध्य होकर पश्चिम से पूरब की ओर प्रवाहित होती है। बिहार में गंगा के उत्तरी भाग को उत्तरी बिहार कहा जाता है। उत्तर बिहार में हिमालय पर्वत की शिवालिक पहाड़ियों से होकर घाघरा, गंडक, बागमती, कमला, भुतही बलान, कोसी और महानन्दा नदियां निकल कर गंगा की मुख्यधारा में समाहित हो जाती है। इन नदियों से प्रतिवर्ष बाढ़ आती है जिससे 18-22 जिले हमेशा प्

फायदेमंद शौचालय
Posted on 01 Dec, 2011 11:00 AM

बाढ़ के समय बाढ़ प्रभावित लोग जिनका आश्रय स्थल बांध, छोटी-सी जगह में ऊँची जमीन, रेलवे स्टेशन, विद्यालय भवन, पंचायत भवन, राष्ट्रीय उच्च मार्ग होता है। जिनमें गर्भवती महिलाएँ, छोटे बच्चे, नवजात शिशु की मां, बीमार लोग, बूढ़े लोग किशोरियां होती हैं। इन लोगों को चार महीने में स्वच्छता सुविधाओं का घोर अभाव होता है। ऐसी स्थिति में बाढ़ प्रभावित खासकर पुरुष वर्ग शौच करने के विभिन्न तरीकों को अपनाते हैं

बिहार में बांस का बना शौचालय
वर्षाजल भंडारण-जल कोठी
Posted on 01 Dec, 2011 10:17 AM

मेघ पाईन अभियान इस विश्वास पर आधारित है कि हर व्यक्ति को ‘गरिमा, दृढ़ संकल्प और प्रभुत्व‘ के साथ जीवन व्यतीत करने का अधिकार है। अभियान एक प्रतिबद्धता है, जो ग्रामीण समुदाय के बीच व्यवहार परिवर्तन की कोशिश कर रहा है, ताकि समाज प्रभावी ढंग से पुनर्जीवित हो। जल और स्वच्छता प्रबंधन की परंपरागत मुख्यधारा के मुद्दों कोसामूहिक जबाबदेही और क्रिया के माध्यम से प्रदर्शित करें। यह जमीनी संस्थाओं और पेसेवर

बांस के कमीचे से निर्मित जल कोठी
समाज अपनी धुरी पर कायम है
Posted on 12 Nov, 2011 10:10 AM

गांधी विचार पर शोध में ऊर्जा की कमी वास्तव में विचलित करने वाला तथ्य है। अपने आस-पास फैली अनेक बुराइयों के बावजूद अंततः यह विश्वास हमें ढाढस बंधाता है कि बहुसंख्य समाज आज भी बेहतर मानवीय संकल्पनाओं से ओतप्रोत है। प्रस्तुत आलेख अनुपम मिश्र द्वारा दिए गए दीक्षंत भाषण का दूसरा एवं अंतिम भाग है।

नालंदा और तक्षशिला इन दो नामों के साथ छात्र शब्द की भी एक व्याख्या देंखे- जो गुरु के दोषों को एक छत्र की तरह ढंक दे- वह है छात्र। तो इन नामों का यह सुंदर खेल कुछ हजार बरस पहले चला था और हमें आज भी कुछ प्रेरणा दे सकता है। पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि नालंदा और तक्षशिला जैसी इतनी बड़ी-बड़ी विद्यापीठ आज खंडहर बन गई हैं और बहुत हुआ तो पर्यटकों के काम आती हैं। संस्थाएं, खासकर शिक्षण संस्थाएं केवल ईंट-पत्थर, गारे, चूने से नहीं बनतीं। वे गुरु और छात्रों के सबसे अच्छे संयोग से बनती हैं, उसी से बढ़ती हैं और उसी से टिकती भी हैं। यह बारीक संयोग जब तक वहां बना रहा, ये प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान भी चलते रहे।
Anupam Mishra
रासायनिक खेती का विकल्प
Posted on 12 Oct, 2011 12:59 AM

हरित क्रांति की देन रासायनिक खेती के दुष्परिणाम देश भर से सामने आने लगे हैं। बिहार भी इससे अछू

फल्गु मुक्तिदायनी यात्रा
Posted on 11 Oct, 2011 10:18 PM

पदयात्रियों का जत्था जब जोरी गांव पहुंचा तो वहां पता चला कि वन माफियाओं द्वारा भोले-भाले आदिवासियों को पैसा देकर पेड़ कटवाये जाते हैं। प्रतिदिन सैकड़ों कुल्हाड़ियां पेड़ों पर पड़ती हैं, जिससे आसपास की पहाड़ियां नंगी हो चुकी हैं। जिस झारखंड में थोड़ी गर्मी होते ही बारिश होती थी, वहां के लोग पीने के पानी के लिए जूझ रहे हैं। यात्रा के दौरान पदयात्रियों ने जलस्तर बढ़ाने के लिए छोटे-छोटे मेड़ बनाने, तालाब की उड़ाही करने, बहते पानी को ठहराकर उससे खेतों की सिंचाई करने के तरीके बताये।

फल्गु नदी को बचाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के कार्यकर्ता कौशलेन्द्र नारायण ने शहर के बुद्धिजीवियों व आमलोगों को एकत्र कर ‘फल्गु रक्षा मंच’ का निर्माण किया। इसकी पहली बैठक में फल्गु के उद्गम स्थल से समागम स्थल की यात्रा का प्रस्ताव हुआ। इसका नाम ‘फल्गु मुक्तिदायनी यात्रा’ रखा गया।

हरियाली और रास्ता
Posted on 26 Sep, 2011 11:15 AM

झारखंड के साथ ही बिहार से जंगलों का भी बड़ा हिस्सा अलग हो गया। कमोबेश जंगल विहीन हो गया बिहार। राजद की सरकार को पर्यावरण के इस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत नहीं महसूस हुई। अब नीतीश बिहार में हरियाली के माध्यम से खुशहाली की राह निकालना चाहते हैं।

राज्य विभाजन के बाद झारखंड क्षेत्र के अलग हो जाने से वनों का हिस्सा कम हो गया और बिहार की हरियाली घट गई। राज्य में फिलहाल महज छह फीसदी क्षेत्र में जंगल है। प्रदेश के 27 जिले वनविहीन हैं। विकास और पर्यावरण संरक्षण में जंगलों और पेड़ों की खासी अहमियत रही है।
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