बिहार

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पानी पर नीतीश का 'जजिया कर'
Posted on 14 May, 2011 10:39 AM विपक्ष विहीन बिहार में मिस्‍टर सुशासन उर्फ मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की जनविरोधी नीतियाँ अब एक-एक कर जनता के सामने आने लगी हैं। पहले बिजली के बाजारीकरण का खेल शुरू हुआ। खेल खत्‍म होने से पहले ही पानी के बाजारीकरण का खेल भी शुरू हो गया है। पक्‍की खबर है कि सूबे में अब लोगों को अपनी जमीन से पीने के लिए पानी निकालने पर नीतीश सरकार को 'जजिया कर' (टैक्‍स) देना होगा। यही नहीं जो जितना अधिक पानी का
बिन बालू सब सून
Posted on 02 May, 2011 09:50 AM

हाल ही में महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने नदियों के खनन के खिलाफ आदेश जारी किया। उस आदेश के मुताबिक नदियों से दो मीटर से ज्यादा बालू निकालने की इजाजत नहीं है। पर बिहार की नदियों से 7-8 मीटर की गहराई तक बालू निकाली जा रही है

बिहार नदियों का प्रदेश रहा है। नदियों ने यहां के लोगों को पाला-पोसा है। लोगों के जीवन से घुली-मिली रही हैं। फिर क्या वजह है कि सदियों से बहने वाली यहां की नदियां अपना रास्ता बदलने लगी हैं। वे कहीं या तो सूख रही हैं या फिर विकराल रूप लेकर गांव के गांव हर साल नष्ट कर देती हैं। फल्गु हो या पुनपुन, दरधा हो या मंगुरा या महाने, दुर्गावती हो, सोन हो या गंडक, इन नदियों में पानी की सतहें रेत में बदल गई हैं। अन्य नदियों के पानी का रंग मटमैला हो गया है। तमाम दिशाओं से आने वाली नदियों ने अपनी आंखें मूंद ली हैं। जिन नदियों में बारहो माह पानी का साम्राज्य रहता था, टाल के गांव टापुओं की तरह दिखते थे वहां अब पानी का नामोनिशान नहीं है। बस्तियां सूखी पड़ी हैं। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि बिहार की नदियों से अंधाधुंध बालू निकालने के कारण नदियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
मुक्ति मांगती मुक्तिदायिनी
Posted on 01 Apr, 2011 09:46 AM

सदियों से सभ्यता का विकास नदियों के किनारे होता रहा है। नदी के बिना जीवन की कल्पना असंभव है। बावजूद इसके नदियों की मौत पर हम कभी अफसोस जाहिर नहीं करते। जबकि उनकी मौत के लिए सिर्फ हम हमेशा से जिम्मेदार रहे हैं। कभी हम विकास के नाम पर उनकी बलि चढ़ाते हैं तो कभी अपनी लालच को साकार करने के लिए।

बिहार : सुझाव के विपरित विज्ञान
Posted on 31 Mar, 2011 04:38 PM

कोसी नदी को 1955 में अपहृत कर कम से कम 70 किलोमीटर दूर पश्चिम नेपाल से निकलने वाली तिलयुगा नदी

गया कि फल्गु
Posted on 25 Feb, 2011 11:41 AM संस्कृत में फल्गु के दो अर्थ होते हैं। (1) फल्गु यानी निःसार, क्षुद्र, तुंच्छ; और (2) फल्गु यानी सुन्दर। गया के समीप की नदी का फल्गु नाम दोनों अर्थों में सार्थक है पुराण कहते हैं कि उसे सीता का शाप लगा है। सीता के शाप के बारे में जो होगा सो सही; किन्तु उसे सिकता का शाप लगा है यह तो हम अपनी आंखों से देख सकते हैं। जहां भी देखें, बालू-ही-बालू दिखाई देती है। बेचारा क्षीण प्रवाह इसमें सिर ऊंचा करे तो भ
गांगेय डॉल्फिन गंगा के स्वास्थ्य का दर्पण है
Posted on 22 Feb, 2011 05:18 PM


पटना विश्वविद्यालय में जन्तु शास्त्र के प्राध्यापक डा. रवीन्द्र कुमार सिन्हा गांगेय डॉल्फिन (गंगा में पायी जानेवाली डॉल्फिन जिसे स्थानीय भाषा में सोंस कहा जाता है) पर अपने शोध के लिए देश एवं विदेशों में खासे चर्चित रहे हैं। यह डा. सिन्हा ही थे जिनके जोरदार प्रयासों के कारण गांगेय डॉल्फिन को राष्ट्रीय जीव घोषित किया गया और इसे मारने पर प्रतिबन्ध लगाया गया। इनके कार्यों से प्रभावित होकर एक फ्रांसिसी पत्रकार क्रिश्चियन गैलिसियन ने डा. सिन्हा पर एक वृतचित्र का निर्माण भी किया है। ‘मि. डॉल्फिन सिन्हा थिंक ग्लोबली, एक्ट लोकली’। डॉल्फिन सिन्हा के नाम से प्रसिद्ध डा. सिन्हा से उनकी प्रयोगशाला में बिहार खोज खबर टीम की बेबाक बातचीत के कुछ प्रमुख अंशः-

एक छोटे-से गांव की लंबी कहानी
Posted on 12 Feb, 2011 03:37 PM चानपुरा एक संपन्न गांव है। शिक्षित गांव होने के कारण ऊंचे ओहदे वाले सरकारी अधिकारियों, शिक्षाविदों, इंजीनियरों और डॉक्टरों की एक अच्छी खासी तादाद इस गांव में है जिस पर किसी भी गांव वाले को गर्व हो सकता है।गांव का विकास कैसे नहीं हो- यदि इस विषय को जानना है तो बिहार के इस छोटे-से गांव की यह लंबी कहानी बहुत ही मदद देगी। सत्ता के शीर्ष आसन पर बैठे लोगों को शीर्षासन सिखाने वाले, योग जैसी सात्विक शिक्षा देने वाले जब गांव से बिना पूछे उसका विकास करने की ठान लेते हैं तो वहां क्या-क्या बीतती है- इसे बता रहे एक ऐसे साथी जो इंजीनियर तो हैं ही पर वे यह भी जानते हैं कि समाज किन इंजीनियरों के दम पर खड़ा होता है और किनके कारण गिर जाता है। लोक विज्ञान संस्थान, देहरादून से हाल में ही प्रकाशित पुस्तक ‘बागमती की सद्गति’ के चानपुरा का रिंग बांध नामक अध्याय के ये संपादित अंश एक बीते युग की ऐसी कहानी कहते हैं, जिसे आने वाले हर युग में याद रखा जाना चाहिए।

मनरेगा और पानी
Posted on 07 Jan, 2011 09:56 AM

बीते तीन सालों से तमाम आशंकाओं और अटकलों के बीच देश में ठीक-ठाक बारिश होती रही है। औसत बारिश का 78 प्रतिशत, जैसा कि विशेषज्ञ बताते हैं। दैनिक ज़रूरतों और दूसरे कामों के लिए हमें जितना पानी चाहिए, उससे दोगुनी मात्रा में पानी बरस कर जल- संकायों एवं धरती के गर्भ में जमा हो रहा है। वर्ष 2009 की सबसे अच्छी बात यह रही कि जब सौ सालों की अवधि में इस दौरान चौथा भयंकर सूखा पड़ने की आशंका बन रही थी तब सरक

पानी के लिए कोई नहीं पानी-पानी
Posted on 30 Dec, 2010 01:49 PM

पटना पानी चीज ही अजीब है। पानी चढ़ता है, उतरता है..पानी जमता है। टंकी पर चढ़ने वाला पानी कभी सिर पर भी चढ़ जाता है। पानी से आदमी पानी-पानी भी होता है। लेकिन सूबे में जल संचयन के लिए बने कानून को लागू करने में प्रशासन खुद पानी-पानी है। यही वजह है कि अब तक सख्ती से यह लागू नहीं हो सका है और भूजल-वाटर रिचार्ज के साथ ही रेनवाटर हार्वेस्टिंग का पूरा सिस्टम जमीन पर नहीं उतर पाया है।

water
प्रकृति, पर्यावरण और स्वास्थ्य का संरक्षक कदंब
Posted on 29 Dec, 2010 11:32 AM
कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढ़नेवाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है। उत्तरप्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल, उड़ीसा में यह बहुतायत में होता है। इसके पेड़ की अधिकतम ऊँचाई ४५ मीटर तक हो सकती है। पत्तियों की लं
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