हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है। करीब 40 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद कृषि से उपजता है। अत: जब तक कि गांव की कृषि व्यवस्था में सुधार नहीं किया जाता है, तब तक देश की अर्थव्यवस्था में सुधार कर पाना असंभव होगा। अत: स्थानीय समुदायों को जोड़ते हुए जल पंढाल विकास और जल प्रबंधन करने से हमारी कृषि व्यवस्था टिकाऊ विकास की ओर अग्रसर होगी।
इसी सोच से पटना स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एण्ड एक्शन (ईरा) बिहार के सरिता एवं महेश कांत गया जिले में जल प्रबंधन के कार्यों को बढ़ावा देने मे जुटे हुए हैं। ‘ईरा’ ने सन् 1999 से इस क्षेत्र में काम करना शुरु किया। यह गांव वालों को पारंपरिक जल संग्रहण और जल पंढाल सुधार के प्रयासों में एक प्रोत्साहक की भूमिका निभाती है।
मगध खेत्र में पाईन (सामुदायिक खेत नहर) और आहर (सामुदायिक जल संग्रहण तालाब) सिंचाई के मुख्य पारंपरिक माध्यम रहे हैं। और ये ग्रामीण समाज की सांस्कृतिक धरोहर हैं। वर्षा ऋतु के दौरान वर्षा का पानी सीधे जमीन पर गिरकर बह जाता है और रिस-रिसकर भूजल भण्डारण में नहीं पहुंच पाता है। इससे कृषि और पशुपालन का काम बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। आहरों में वर्षा जल का पानी जमा होता है, जहां से यह पानी प्रत्येक गांव के परिसर तक पाइनों के सहारे पहुंचता है।
‘ईरा’ ने सन् 1999 में गया जिले के फतेहपुर ब्लॉक से अपना काम शुरु किया। अपने शुरुआती प्रयास में इसने कृषि पर आधारित क्षेत्रों का गहन सर्वेक्षण और अध्ययन करना शुरु किया। इसके तहत पारंपरिक जल संग्रहण व्यवस्था से संबंधित जल संसाधनों और सामाजिक-आर्थिक दशाओं का अध्ययन किया गया। इसी प्रयास में दिल्ली स्थित गाँधी शांति प्रतिष्ठान अनुपम मिश्र से मिला और अनिल अग्रवाल की पुस्तक (बूंदों की संस्कृति) की मदद भी ली गई, फिर राजस्थान स्थित अलवर, गुजरात और दक्षिण भारत का भ्रमण किया गया, और यहां के सामुदायिक वर्षा जल संग्रहण ढांचों को देखने से इसकी समझ और बढ़ी।
इसके उपरांत संस्था ने सबसे पहले हदनापुर के 850 वर्ष पुराने पाईन में सुधार लाने का काम किया, जो कि लगभग निष्क्रिय हो गया था। इसके लिए इसमें से गाद साफ करने की गतिविधि आरंभ की गई। इसकी लम्बाई 45 किलोमीटर (किमी) है और इससे मोहनपुर और फतेहपुर प्रखण्ड के 40 गांवों की सिंचाई होती है।
‘ईरा’ के लिए इन 40 गांवों के लोगों को श्रमदान के लिए एक मंच पर एकजुट करना ही सबसे बड़ी चुनौती रही है। श्रमदान के लिए सहमति हो जाने के उपरांत गांव के बड़े-बुजुर्ग ग्राम सभा के सदस्य और ‘ईरा’ के कार्यकर्ता अपने गांव में `ईरा´ सिंचाई समिति का गठन करते हैं, जिसमें रोजमर्रा की दिनचर्या तय की जाती है। साथ ही इसमें ग्राम सभा के जरिए काम के संबंध में सभी निर्णय लिए जाते हैं।
‘ईरा’ के एक कार्यकर्ता ने बताया कि “मगध प्रखण्ड के आयुक्त श्री हेमचंद सिरोही से हमें इस प्रयास में तकनीकी, नैतिक और प्रशासनिक सहयोग प्राप्त होता रहा है। उन्होंने अपने सामुदायिक विकास मॉडल के जरिए हमें काफी सहयोग प्रदान किया है।“
आज ‘ईरा’ को प्रत्येक महीने 40/50 किमी के क्षेत्र के लिए आवेदन प्राप्त होते हैं, जिनमें अभी हधादवा, जेठानी और जगन्नाथपुर पाईस के 350 छोटे-बड़े आहर में काम चल रहा है। गांववालों ने खुद ही करीब 15 किमी के पाईन का निर्माण किया और वह भी सरकार या ‘ईरा’ से कोई मदद लिए बगैर।
मोहनपुर प्रखंड का हघादवा पाईन आमातारी गांव के समीप स्थित है। यह लोहारी पर्वत से करीब 3 किमीः दूरी पर पड़ता है, जो बिहार और झारखंड को दो हिस्सों में बांटता है। सन् 2000-2001 में हघादवा पाईन संग्रहण परियोजना आरंभ हुई। इसमें 22 लेवल, 5 बंधा और 170 आहर हैं और इसकी लंबाई 45 किमी है। संस्था फतेहपुर में भूजल का स्तर काफी नीचे चले जाने के कारण यहां के आहरों और पाइनों से गाद साफ करने और ढलान वाले स्थलों पर बंधाओं के निर्माण के प्रयास में जुटी हुई हैं। सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल संग्रहण के साथ-साथ वृक्षारोपण का कार्य भी किया जा रहा है, जिससे यहां की जमीन भी उपजाऊ बने।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: सरिता/महेश कांत इनस्टीच्यूट फॉर रिसर्च एण्ड एक्शन 305 बी, लक्ष्मी विला महेश नगर पीओ- केशरी नगर पटना- 800024 फोन: 0612-261977, 261790 ई-मेल:ira_patna@yahoo.co.in
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