Posted on 23 Sep, 2009 09:40 AMजब देश में पहली बाढ़ नीति को 1954 में स्वीकार गया था उस समय ज़मीन्दारी और महाराजी तटबंधों के अलावा बिहार में तटबंधों की लम्बाई 160 किलोमीटर थी और यहाँ बाढ़ से प्रभावित हो सकने वाला क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था। सरकार ज़मीन्दारी और महाराजी तटबन्धों को अवैज्ञानिक और अक्षम मानती थी इसीलिये केवल सरकार द्वारा बनाये गये तटबन्धों को ही मान्यता देती थी। तटबन्धों की लम्बाई 1990 में बढ़ कर 3454 किलोमीटर हो गई
Posted on 23 Sep, 2009 09:08 AMपिछले 60 वर्षों में सरकारी व्यवस्था को लोगों को समझाने/बहलाने में पूर्ण सफलता मिली, कि कोसी समस्या का निदान बराह क्षेत्र `हाईडेम´ है। बांध या तटबंधों से बाढ़ की समस्याओं का निदान कहां तक हो सका, इसकी रिर्पोट हमारे समक्ष है। सिपर्फ यदि बिहार के संदर्भ में देखें तो सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1954 में बिहार में तटबंधों की लम्बाई 160 किलोमीटर थी और बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र 25 लाख हेक्टेयर था। वत्तZमान म
Posted on 25 Aug, 2009 09:53 AM पटना। बिहार के औरंगाबाद जिले के कुटुम्बा गांव के किसान रामनंदन सिंह का कहना है कि वह अब समझ गए हैं कि आखिर मध्य प्रदेश के झांसी इलाके में किसान नहरों पर पानी के लिए पहरा क्यों लगा रहे थे।
Posted on 22 Jun, 2009 12:31 PMबिहार के बड़े हिस्से में सूखा कहर ढा रहा है। सोन नदी में पानी नहीं होने के कारण बड़ा इलाका जबरदस्त सूखे के चपेट में आ गया है। बिहार के त्राहिमाम संदेश के बाव्जूद केन्द्र और यूपी की उदासीनता की वजह से फिलहाल सूखे से निजात का रास्ता भी नहीं सूझ रहा। मॉनसून की बेरुखी की वजह से पूर बिहार में किसानों की परशानी बढ़ गई है। मध्य और दक्षिण बिहार में सूखे का कहर अधिक है। यहां धान के बिचड़े खेतों में ही सूख
Posted on 19 Jun, 2009 09:20 AM मेरे गाँव में कार्तिक पुनिया ( 2008) से नरेगा के तहत कार्ड धारी मजदूरों को तक़रीबन हर रोज काम मिल रहा है. मुखियाजी मन से गाँव-महाल में मिट्टी दिला रहे हैं.
Posted on 06 Apr, 2009 03:19 PMहाल ही में आई एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा के दोनों ओर स्थित बिहार के 15 जिलों के भूजल में आर्सेनिक के स्तर में खतरनाक बढ़ोतरी हुई है, जिसके कारण इस इलाके में रहने वालों के लिये कैंसर का खतरा बढ़ गया है। IANS की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा किनारे के दोनों तरफ़ के 57 विकासखण्डों के भूजल में आर्सेनिक की भारी मात्रा पाई गई है। आर्सेनिक नामक धीमे ज़हर के कारण लीवर, किडनी के कैंसर और “गैंगरीन” जैसी बीमारियों
Posted on 14 Mar, 2009 02:31 PM वाटर एड एक प्रमुख स्वतंत्र संस्था है, जो गरीबों को सुरक्षित जल, स्वच्छता और सफाई की शिक्षा प्राप्त करने में सहायता करती है। संस्था के नए न्यूज लैटर में उनकी गतिविधियों की झलक मिलती है, कि कैसे इसने बिहार में एक माह के प्रयास से सेनिटेशन के लिए एक बिल्कुल नई तकनीक को प्रोत्साहित किया।