विनोबा
अज्ञान भी ज्ञान है
Posted on 07 Jan, 2017 02:03 PMमुझे आज तक ऐसा एक भी धर्म ग्रंथ नहीं मिला, एक भी आदमी नहीं मिला, जिसने कहा हो कि अज्ञान क
संस्थाएं नारायण-परायण बनें
Posted on 22 Jun, 2010 03:21 PM
समाज के कामों में लगी संस्थाओं को, हम लोगों को विनोबा की एक विशिष्ट रचना, सर्वोदय समाज की कल्पना को समझने की कोशिश करनी चाहिए। अपनी इस रचना को सामने रखते हुए वे संस्था, उसके संचालन, उसके लक्ष्य, उसके कोष, पैसे, धेले- सब बातों को सहज ही समेटे ले रहे हैं।
मैं जरा एकांत में रहने वाला मनुष्य हूं। लेकिन जेल में तो समाज में ही रहना हुआ, और उससे सोचने का काफी मसाला मिल गया। वहां सब तरह के लोगों से संपर्क हुआ। उनमें कांग्रेस वाले थे, समाजवादी थे, फॉर्वर्ड ब्लॉक वाले और दूसरे भी थे। देखा कि ऐसा कोई खास दल नहीं, जिसमें दूसरे दलों की तुलना में अधिक सज्जनता दिखाई देती हो। जो सज्जनता गांधीवालों में दिखाई देती है, वही दूसरों में भी दिखाई देती है, और जो दुर्जनता दूसरों में पाई जाती है, वह इनमें भी पाई जाती है। जब मैंने देखा कि सज्जनता किसी एक पक्ष की चीज नहीं, तब सोचने पर इस निर्णय पर पहुंचा कि किसी खास पक्ष या संस्था में रहकर मेरा काम नहीं चलेगा। सबसे अलग रहकर सज्जनता की ही