जनभागीदारी से हो कूड़े-कचरे का प्रबंधन
प्लास्टिक व पॉलीथिन पर नियंत्रण के लिए पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय ने एक आदेश दिया था जिसमें पूरी तरह पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की गई है। इस आदेश को सरकार ने कड़ाई से पालन करने के लिए प्रयास तो किए हैं, लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि इसमें थोड़ी भी कमी नहीं आई है। प्रदूषण नियंत्रण के विषय में अदालतों ने अनेक फरमान जारी किए हैं जिनका प्रभाव एक महीने से अधिक नहीं टिक पाता। इसका कारण है
जनभागीदारी से हो कूड़े-कचरे का प्रबंधन
पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण में समाज की भी है जिम्मेदारी
पेरिस समझौते की भावना के अनुरूप उदाहरण के तौर पर देखें तो दिल्ली के अंदर वाहनों के धुएं को कम करने में सरकार और जनता, दोनों की भागीदारी जरूरी होगी। जहां सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था बेहतर हो वहीं आम जन को भी कोशिश करनी होगी कि वो इस व्यवस्था का ज्यादा से ज्यादा उपयोग कर दिल्ली के भीतर कार्बन उत्सर्जन को कम करे। दरअसल, वाहनों का प्रदूषण कम करने के लिए पिछले कई सालों से विकसित हुई कार संस्कृति को बदलना होगा। कोयले का इस्तेमाल दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के उद्योगों में खुल कर होता है। करीब 3000 से ज्यादा उद्योगों की वायु प्रदूषण में हिस्सेदारी 18 फीसदी के लगभग है।

पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण में समाज की भी है जिम्मेदारी
भगवंत मान की सरकारी नौटंकी नदी जल-विवाद पर राष्ट्रवाद की गहरी समस्या को उजागर करता है
पंजाब और हरियाणा के नेता विरोधी दलों के साथ समझौता करने से कतराते हैं। कावेरी जल-संघर्ष में भी राष्ट्रीय पार्टियां कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच शांति बनाने का प्रयास नहीं करती हैं।इस मुद्दे को लेकर एक और चिंता का कारण है कि केंद्र सरकार जो ‘राष्ट्रवादी’ दावा करती है, उसने इस मुद्दे पर कोई सक्रिय कदम नहीं उठाया है।
नदी जल-विवाद
पर्यावरण प्रदूषण का दिव्यांगजनों पर खतरा ज्यादा
विकलांगता और सतत विकास लक्ष्य पर संयुक्त राष्ट्र की पहली रिपोर्ट-2018 दर्शाती है कि दिव्यांग अधिकांश सतत विकास लक्ष्यों के संबंध में पिछड़े हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार, शिक्षा तक पहुंच की कमी, मौजूदा स्वास्थ्य स्थितियों और सुरक्षित रूप से निकलने में कठिनाई के कारण जलवायविक आपदाओं के मामले में दिव्यांगों को अधिक खतरा होता है। वास्तव में आपदा संबंधी पर्याप्त ज्ञान होने से चरम मौसमी घटनाओं के खिलाफ जीवित रहने के बेहतर मौके तलाशने में आसानी होती है



पर्यावरण प्रदूषण का दिव्यांगजनों खतरे ज्यादा
प्रदूषण,आर्थिकी के लिए भी चुनौती 
प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक वायु प्रदूषण माना जाता है। यह दुनिया में असमय मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण है। इसके कारण सर्दियां आते ही स्मॉग की काली छाया दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई शहरों को अपने दामन में समेट लेती है। प्रदूषण का सबसे प्रतिकूल प्रभाव स्वास्थ्य और उत्पादकता पर पड़ता है। दुनिया में कोई भी कार्य मानव संसाधन की बदौलत ही किया जा सकता है, लेकिन जल, वायु, भूमि, और ध्वनि प्रदूषण शरीर को रुग्ण कर देता है, जिससे स्वास्थ्य मद की लागत बढ़ जाती है और उत्पादकता कम हो जाती है।
प्रदूषण, आर्थिकी के लिए भी चुनौती 
प्रदूषण के संदर्भ में नीतियों का सख्ती से पालन जरूरी
विकास की इस केंद्रीकृत प्रक्रिया में मध्यम वर्ग के साथ-साथ मजदूर वर्ग का बनना भी स्वाभाविक था। ये दोनों वर्ग महानगरों के अभिन्न हिस्से बन गए। दरअसल, विकास का यह पूंजीवादी मॉडल केंद्रीकृत रहा। औद्योगिक विकास की ओर तो हम चल पड़े लेकिन उससे उभरने वाली चुनौतियों का अनुमान नहीं लगा सके।
प्रदूषण के संदर्भ में नीतियों का सख्ती से पालन जरूरी
सामूहिक नाकामी है वायु प्रदूषण
जानना जरूरी है कि कितने एक्यूआई तक की हवा जीवन के लिए स्वच्छ स्वस्थ मानी जाती है। 50 एक्यूआई तक ही हवा अच्छी मानी जाती है। उसके बाद 51 से 100 एक्यूआई तक संतोषजनक मानी जाती है, और 101 से 200 एक्यूआई तक मध्यम। हमारी सरकारें तब जागती हैं, जब एक्यूआई 201 पार कर हवा खराब हो जाती है। जैसे-जैसे हवा बहुत खराब (301-400) और गंभीर (401-500) होती जाती है, सरकारी प्रतिबंध बढ़ने लगते हैं
सामूहिक नाकामी है वायु प्रदूषण
बाहर से शांत दिखने वाला पहाड़ अंदर से कितना धधक रहा है
हम कोई वैज्ञानिक, भूगर्भवेत्ता नहीं हैं।सामान्य लोग हैं जिनका संपर्क कभी कुछ ऐसे लोगों से हुआ जो धरती और उसमें पनपे जीवन के बारे में बड़ी समझ रखते हैं।उन्होंने हमको बताया कि प्रकृति ने कोयला, लोहा, यूरेनियम, पेट्रोलियम जैसे खनिजों को पृथ्वी के अंदर डाला और तब उसकी ऊपरी सतह पर जीवन का निर्माण संभव हो पाया।"
बाहर से शांत दिखने वाला पहाड़ अंदर से कितना धधक रहा है
कितना सच है- यह मशीनरी या तकनीक भी है खलनायक
तकनीक हमारी जीवन शैली अविभाज्य हिस्सा बन गई है। इसके बिना जीवन की कल्पना असंभव है। उन्नत जीवन शैली, सूचना तंत्र तक त्वरित पहुंच, व्यावसायिक दक्षता में तेजी, शिक्षा संचार और परिवहन से लेकर स्वास्थ्य सेवा और कनेक्टिविटी इत्यादि क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी ने जीवन को बेहतर बनाया है।
मशीनरी या तकनीक भी है खलनायक
पराली तो बदनाम है, हवा को जहरीला बनाता है जाम का झाम
दिल्ली और उससे सटे इलाकों के प्रशासन वायु प्रदूषण के असली कारण पर बात ही नहीं करना चाहते। कभी पराली तो कभी आतिशबाजी की बात करते हैं। अब तो दिल्ली के भीतर ट्रक आने से रोकने के लिए ईस्टर्न पेरिफरल रोड भी चालू हो गया है, इसके बावजूद एमसीडी के टोल बूथ गवाही देते हैं कि दिल्ली में घुसने वाले ट्रकों की संख्या कम नहीं हुई है। ट्रकों को क्या दोष दें, दिल्ली-एनसीआर के बाशिंदों का वाहनों के प्रति मोह हर दिन बढ़ रहा है
पराली तो बदनाम है, हवा को जहरीला बनाता है जाम का झाम
दिल्ली का वायु संकट केवल पराली जनित नहीं
सीएनजी के पहले के दौर के बाद दिल्ली में वायु प्रदूषण का यह दूसरा दौर दशकों से बना हुआ है। दिल्ली की सलाना वायु प्रदूषण की स्थिति को मार्च से सितम्बर तक और अक्टूबर से फरवरी तक के समय काल में बांटा जा सकता है। मार्च से सितम्बर में एक्यूआई अच्छा से मध्यम (2000 तक) रहता है, वहीं जाड़े की शुरुआत के साथ एक्यूआई खतरनाक स्तर तक बढ़ जाता है। 2016 में तो यह 999 को भी पार कर चुका था, जिसे अब लंदन स्मॉग की तर्ज पर 'दिल्ली स्मॉग' के रूप में याद किया जाता है। साल में अधिकतर दिन एक्यूआई मध्यम (101-200) स्तर का होता है। 
दिल्ली का वायु संकट केवल पराली जनित नहीं
पर्यावरण की समस्या, राजनैतिक ज्यादा
प्रदूषण की जड़ में हमारी जीवन शैली है, क्योंकि प्रकृति के पास अपने असंतुलन को ठीक कर प्रदूषण को नियंत्रित करने की क्षमता होती है पर उसकी प्रक्रिया को बाधित कर हम उसे अपना काम नहीं करने देते हैं। न ही उससे सीखते हैं कि एक का अपशिष्ट दूसरे के लिए संसाधन हैं।
पर्यावरण की समस्या, राजनैतिक ज्यादा
जबरदस्त मानव संहारक पर्यावरण प्रदूषण स्मोक + फॉग = स्मॉग
धूल कण और विभिन्न गैसें वायु को प्रदूषित कर रही हैं। ओजोन, सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड, मीठे पानी का प्रदूषण, पारा, नाइट्रोजन, फास्फोरस, प्लास्टिक और पेट्रोलियम अपशिष्ट से समुद्र का प्रदूषण और सीसा, पारा, कीटनाशकों, औद्योगिक रसायनों, इलेक्ट्रॉनिक कचरे और रेडियोधर्मी कचरे से भूमि जहरीली हो रही है। वास्तव में हम जिस वातावरण में रहते हैं, उसका हमारे स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ता है। घरेलू, कार्यस्थल और बाहरी वातावरण अलग-अलग तरह से स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा कर सकता है।
स्मोक + फॉग = स्मॉग
प्रदूषण से मौतों का आंकड़ा भयावह
मनुष्य दिन भर में जो कुछ लेता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। प्रति दिन मनुष्य 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण होती है, जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत) होती है, जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन और 003 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड होता है त
प्रदूषण से मौतों का आंकड़ा भयावह
गांगेय डाल्फिन के संरक्षण से बढ़ेगा गंगा का आकर्षण व जैव विविधता
बीबीएयू के इनवायरमेंट साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. वेंकटेश दत्ता ने बताया कि डॉल्फिन गंगा बेसिन में पाए जाते हैं। यह विलुप्तप्राय जीव हैं। मछली नहीं मैमल्स है। यह मछलियों की तरह अंडा नहीं देती। किसी भी स्तनधारी की तरह बच्चे पैदा करती हैं। इनकी प्रजनन क्षमता कम होती है। तीन चार साल के अंतराल पर एक मादा एक या दो बच्चे ही देती है।
गांगेय डाल्फिन
Photoessay: Water insecurity among hill tribes of Tripura
A tale of sacred springs and broken promises
Hill tribe women persistently stage road blockades for the third time, demanding access to clean drinking water, while the promises made to them remain unfulfilled. (Image: Thomas Malsom)
दिनांक 5 नवंबर 2023 को एम.सी.मेहता एन्वायरनमेंट फाउंडेशन द्वारा-'बायोडायवर्सिटी कैम्पेन' कार्यक्रम का आयोजन
प्रेस नोट-दिनांक 5 नवंबर 2023 को एम. सी. मेहता एन्वायरनमेट फाउंडेशन, द्वारा मीडावाला, थानों में स्थित ईकोआश्रम में "बायोडायवर्सिटी कैम्पेन " कार्यक्रम का आयोजन किया गया
बायोडायवर्सिटी कैम्पेन " कार्यक्रम का आयोजन"
Weather-related natural disasters likely to impact sustainability initiatives
Honeywell’s environmental sustainability index, a quarterly index reveals a growing number of organisations globally are boosting annual sustainability investments by at least 50%, and are optimistic about achieving short- and long-term objectives
Environmental Sustainability Index gauges movement in corporate sentiment and investment on the sustainability front. (Image: Needpix)
नदियों को बाजार की वस्तु बनाने की साजिश
भारतीय संस्कृति तो नदियों को पोषणकारी मां मानकर व्यवहार करती रही है। आज की शोषणकारी सभ्यता नदियों का इस्तेमाल उद्योगों के लिए मालगाड़ी की तरह करती है। नदियों को बाजार की बस्तु बनाने की साजिश दिखती है। इस साजिश को रोकना हमारे समय का सबसे जरूरी काम है। नदियों का अतिक्रमण, प्रदूषण और शोषण रोकने वाली नीतियां कभी नहीं बनीं। हमने नदी नीति तैयार की है। नदियों के लिए अगर कोई नीति हो, तो ऐसी होनी चाहिए
नदियों को बाजार की वस्तु बनाने की साजिश
नमामि गंगे को संयुक्त राष्ट्र द्वारा शीर्ष 10 परियोजनाओं में रखने से जल विशेषज्ञ असहमत
संयुक्त राष्ट्र ने गंगा नदी को साफ करने के लिए नमामि गंगे परियोजना को दुनिया की दस अग्रणी पहलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया है, जो प्रकृति संरक्षण का काम कर रहे हैं। लेकिन जल विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र की इस मान्यता से प्रभावित नहीं हैं, उनका कहना है कि एजेंसी ने इस परियोजना को इस सूची में रखने के लिए आवश्यक मानदंडों के बारे में विवरण नहीं दिया है। इसके अलावा, पिछले कुछ वर्षों में किए गए कई अध्ययनों से पता चला है कि इस तरह की कई परियोजनाओं के बावजूद गंगा में पानी की गुणवत्ता खराब बनी हुई है।
नमामि गंगे को संयुक्त राष्ट्र द्वारा शीर्ष 10 परियोजनाओं में रखने से जल विशेषज्ञ असहमत,Pc-सर्वोदय जगत
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