सिक्किम में कुल 1,31,880 परिवार (एचएच) हैं, जिनमें से 90,626 एचएच (68.72%) के पास नल जल आपूर्ति है। सिक्किम में कुल 439 गाँव हैं, जिनमें 84 गांवों में 100% परिवारों के पास नल कनेक्शन हैं और 19 गाँव 'हर घर जल' प्रमाणित हैं।
सरकार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए दमचोक के ग्राम प्रधान एवं नंबरदार श्री कर्मा एशाय कहते हैं, 'पहले हमें दूर-दराज की जल धाराओं से पानी लाना पड़ता था और सर्दियों में कभी-कभार सेना के टैंकरों से बहुत मदद मिलती थी। लेकिन आज जल जीवन मिशन के तहत हर दरवाजे पर पानी का कनेक्शन हमारे लिए एक सपने के सच होने और जीवन बदलने वाली आजादी जैसा है। मैं इस नेक कदम के लिए सरकार और सभी अधिकारियों को धन्यवाद देना चाहता हूँ।
बाढ़ ने विशेष रूप से सड़कों के बड़े बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाया, कुल 99 सड़कें जिनमें 33 आरसीसी पुलों के साथ-साथ 24 पीडब्लूएस योजनाएं, विशेष रूप से उनके वितरण नेटवर्क शामिल हैं, क्षतिग्रस्त हुई। अनेकों मवेशियों सहित तीन लोगों की जान चली गई। कई पोल्ट्री फॉर्म बह गई।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त, 2019 को जल जीवन मिशन की घोषणा के साथ यह सब बदल गया। यह घोषणा इस टोला की महिलाओं के लिए आशा की एक किरण लेकर आई, क्योंकि इससे उनके घरों में पानी की सीधे आपूर्ति होगी। इसलिए, महिलाओं ने अपनी समस्याओं को जिला स्तर पर काम कर रहे पेयजल और स्वच्छता विभाग के अधिकारियों के सामने रखा, जिन्होंने उनकी जरूरतों को तुरंत पूरा किया।
इस अभियान के माध्यम से पानी की गुणवत्ता, भंडारण, सुरक्षित जल रख-रखाव और प्रबंधन से संबंधित नियंत्रण उपायों के बारे में जागरूकता का प्रसार करने के लिए 1,00,000 जल बहिनियां, 273 पैनल में शामिल आईएसए और 19,000+ वीडब्ल्यूएससी राज्य के 19,676 गांवों में पहुंचेंगी।
खासकर सर्दी के आते ही लोगों को पानी की किल्लत का सामना करने की आदत हो गई है। साल-दर-साल समस्या विकराल होती जा रही है। विशेषज्ञ मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर वनों की कटाई, खनन और खेती के स्लेश एंड बर्न सिस्टम (झूम खेती) को झरनों के सूखने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। सख्त सरकारी निषेध के बावजूद, अनियंत्रित कटाई की समस्या एक चिंताजनक मुद्दा बनी हुई है।
कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान, बुरहानपुर जिला प्रशासन द्वारा किए गए निरंतर कार्य के फलस्वरूप 34 महीने की अवधि के भीतर इसके सभी 1.01 लाख ग्रामीण परिवारों को कार्यात्मक नल के पानी के कनेक्शन प्राप्त हो गए हैं। इसके अलावा, सभी 640 स्कूलों, 547 आंगनवाड़ी केंद्रों और 440 सार्वजनिक संस्थाओं में भी पीने योग्य पानी सुलभ है। 440 सार्वजनिक संस्थाओं में 167 ग्राम पंचायतें, 50 स्वास्थ्य देखरेख केंद्र, 109 सामुदायिक केंद्र, 45 आश्रमशाला, 2 सामुदायिक शौचालय और 67 सरकारी कार्यालय शामिल हैं।
भविष्य के बारे में सोचते हुए हम उपर्युक्त से दो बातें सीखते हैं। एक, हम इस प्रक्रिया में और अधिक विश्वास कैसे ला सकते हैं ताकि पानी के आंकड़ों को अधिक विश्वसनीय माना जा सके। दूसरी बात का संबंध इससे है कि कोई इस प्रक्रिया के माध्यम से बनाई गई विशाल कौशल पूंजी को कैसे पहचानता है और लंबी अवधि तक इससे कैसे लाभ प्राप्त करता है।
गोवा ने देश का पहला 'हर घर जल सर्टिफ़ाइड' राज्य बनने का गौरव प्राप्त किया है, जिसका तात्पर्य है कि उसके हर गाँव के हर घर में नल से शुद्ध पेयजल की उपयुक्त मात्रा में नियमित रूप से आपूर्ति हो रही है, और इस तथ्य को उसके सभी गांवों ने अपनी-अपनी ग्राम सभा में विचार-विमर्श के बाद सत्यापित और प्रमाणित किया है
इस कार्ययोजना के तहत भारत और डेनमार्क, नीति आयोजना, विनियमन और कार्यान्वयन के साथ-साथ प्रौद्योगिकी अनुसंधान और विकास तथा कौशल के क्षेत्र में मिलकर समाधान की खोज करेंगे। इस कार्य योजना को लागू करने और नियमित आधार पर प्रगति की समीक्षा करने के लिए एनजेजेएम, डीईपीए और भारत में डेनमार्क के दूतावास के उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों के साथ संचालन समिति का गठन किया गया है। इसके अलावा, डेनिश सरकार, डीडीडब्ल्यूएस और डीओडब्ल्यूआर के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
शिकागो यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स-2023 भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया का दूसरा सर्वाधिक प्रदूषित देश और दिल्ली सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरे भारत में एक भी जगह ऐसी नहीं है जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वच्छ हवा के मानकों पर खरी उतरती हो ।
प्रकृति का विषय जब आता है तो हरी-भरी धरती, गहरा- गहरा विशाल समुद्र, सफेद चमकते पर्वतआदि की कल्पना मन में आ जाती है, जो आज सफेद कागजों पर लिखी नीली स्याही के समान समय के साथ धीरे- धीरे विलीन होता जा रहा है। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति और मिट्टी की बनावट का संरक्षण किए बिना सघन खेती करते रहे तो हरी- भरी जमीनें रेगिस्तानों में बदल जाएंगी। पानी के निकास का प्रबंध किए बिना सिंचाई करते रहे तो मिट्टियां कल्लर या रेतीली हो जाएंगी।
विश्व में बढ़ते बंजर इलाके फैलते रेगिस्तान, कटते जंगल, लुप्त हो पेड़-पौधे और जीव जंतु, प्रदूषणों दूषित पानी, कस्बों एवं शहरों पर गहरा गंदी हवा, हर वर्ष बढ़ते बाढ़ एवं सूखे प्रकोप इस बात के साक्षी हैं कि हम अपनी धरती, अपने पर्यावरण की ठीक देखभाल नहीं की और इससे होने वा संकटों का प्रभाव बिना किसी भेदभाव समस्त विश्व, वनस्पति जगत और प्राण मात्र पर समान रूप से पड़ा है।
भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले ही कहीं ज्यादा तेजी से अपने भूजल दोहन कर रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत में हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग किया जा रहा है, जोकि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत कृषि के लिए की जा रही है। देश में गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की सिंचाई के लिए भारत बड़े पैमाने पर भूजल पर निर्भर है।
भारतीय शहरों में पर्यावरण के प्रति लापरवाही से बचने और देश के जंगलों और शहरी हरियाली की रक्षा करने की दिशा में सशक्त नीति और अनुसंधान की अनिवार्यता पर बल दिया है। यह एक बेहद खतरनाक संकेत है कि हमारे देश में सन 1901-2018 की अवधि में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण औसत तापमान पहले ही लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है और अनुमान है कि यदि हमने माकूल कदम नहीं उठाये तो 2100 के अंत तक यह बढ़ोतरी लगभग 4.4 डिग्री सेल्सियस हो जायेगी।
विगत कुछ वर्षों से इन भारी धातुओं में से कैडमियम, लैड, मरकरी, क्रोमियम निकेल जैसी धातुएँ अपनी विषाक्तता के कारण चर्चा का विषय बनी हुई हैं। इनमें से कुछ तो इतनी अधिक घातक है कि यदि दस लाख भाग में इनका एक भाग भी विद्यमान रहे तो ये जानलेवा सिद्ध हो सकती हैं। लैंड यानी सीसा एक ऐसी ही भारी धातु है जो अब पर्यावरण में प्रदूषण के रूप में जानी जाती है। शहरों में वाहनों के पेट्रोल से निकला सीसा वायुमंडल में व्याप्त रहता है अतएव यह श्वास द्वारा शरीर में प्रविष्ट होता है।