उचित जलनिकास के बिना सिंचाई क्षेत्र का दायरा बढ़ाना, जलभराव की समस्या, लवणीयता एवं क्षारीयता जैसी मूलभूत समस्याओं को बढ़ाने में अहम कारक होगा। देश में वर्तमान समय में लवणग्रस्त क्षेत्र 6.74 मिलियन हैक्टर है तथा 2025 तक बढ़कर 11.7 मिलियन हैक्टर होने की संभावना है।
हमारे देश में तालाबों की संख्या काफी कम होती जा रही है इसलिए वर्षा जल का पर्याप्त संरक्षण न होने के कारण भूमिगत जल का स्तर काफी कम होता जा रहा है इसलिए प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी द्वारा 24 अप्रैल 2022 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस के अवसर पर देश के प्रत्येक जिले में 75-75 तालाबों के निर्माण के लिए अमृत सरोवर योजना शुरू करने की घोषणा की गई है। अमृत सरोवर रचनात्मक कार्यों का प्रतीक है जो कि आजादी के अमृत महोत्सव को समर्पित है। अमृत सरोवर योजना के माध्यम से देश भर में तालाबों को फिर से पुनर्जीवित एवं कायाकल्पित किया जाएगा। जिसका उद्देश्य भविष्य के लिए पानी का संरक्षण करना है। भारत सरकार के द्वारा 15 अगस्त 2022 को पूरे देश में 50,000 अमृत सरोवर तालाब बनाने का लक्ष्य तय किया गया था। इस काम के लिए राज्य की जगहों को चिन्हित कर लिया गया।
इस्राइल के गौरवशाली इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के साथ किब्बुत्जों को चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। भले ही इस्राइल की आबादी में किब्बुत्जनिकों का अनुपात कम हो, उनका प्रभाव उस देश के सशक्तिकरण के रूप में विश्व को आज भी दिखाई पड़ रहा है। येरूशलम के पूर्व से लेकर मृत सागर (डेड सी) तक विस्तृत जुडियन डेजर्ट में कहीं-कहीं फसलों से लहराते खेत मिलेंगे, जिन्हें देखकर विश्वास ही नहीं होता कि ऐसी मरुभूमि में भी खेती हो सकती है। यह सब किब्बुत्ज के किसानों का पुरुषार्थ है!
This study finds that gender plays a far more important role than caste in structuring “who decides" among the men and women wheat farmers in Madhya Pradesh. However, women have now begun to challenge gendered caste structures that restrict them to unpaid agricultural work.
वायु प्रदूषण भारत में एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण हर साल लाखों लोगों की जान जाती है। दिल्ली एनसीआर में तो यह स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि यहां की हवा में पीएम 2.5 और पीएम 10 के स्तर बहुत ऊंचे हैं। इसका प्रमुख कारण यहां का परिवहन तंत्र है, जिसमें अधिकांश वाहन पेट्रोल या डीजल से चलते हैं। इन वाहनों में से कई तो प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र भी नहीं रखते हैं। इसके अलावा, पराली जलाने, कचरा निस्तारण, धूल एवं धुआं, निर्माण कार्य आदि भी वायु प्रदूषण को बढ़ाते हैं।
राज्य सरकार द्वारा विश्व बैंक प्रायोजित विभिन्न कार्यक्रमों के अन्तर्गत वर्ष 2009 से वर्ष 2016 तक कई प्रकार के कार्य जल संरक्षण हेतु किए गए। जिसके परिणामस्वरूप लगभग 77 एकीकृत लघु जलागम योजनाओं को प्रदेश के कुल 77 विकास खण्डों में पूरा कर लगभग 896.96 लाख लीटर जल को संरक्षित किया गया जिससे लगभग 2243 हैक्टेयर भूमि को कृषि योग्य बनाया गया।
एक वानस्पतिक अवरोध, पृष्ठ एवं अवनालिका अपरदन-क्षणिक गली अपरदन कम करने, जल बहाव को नियमित करने, तीव्र ढलानों को स्थापित करने, अवसाद को रोकने एवं अन्य उत्पादों जैसे चारा, हरी खाद आदि उपलब्ध कराने में सहायक हैं।
धूल और रेत के तूफानों से न केवल भूमि की उपज कम होती है, बल्कि दुनिया को कृषि और आर्थिक रूप से भी बड़ा झटका लगता है। यह चेतावनी उज्बेकिस्तान के समरकंद में चल रही यूएनसीसीडी की पांच दिवसीय बैठक में दी गई है। इस बैठक का उद्देश्य दुनिया भर में भू-क्षरण को रोकने के लिए किए गए प्रयासों का मूल्यांकन करना है।
आसपास की घटनाओं का सूक्ष्म अवलोकन करना और इन अवलोकनों का सैद्धान्तिक जानकारी के साथ तालमेल बिठाना, व्यावहारिक विज्ञान के ये दो मुख्य घटक हैं। इस प्रक्रिया से ही नए आविष्कार जन्म लेते हैं और नए तंत्र विकसित होते हैं’।
आमतौर पर ऐसे मैग्मा का तापमान 350 डिग्री सेंटीग्रेड या इससे भी ज्यादा होता है। यदि रिसता हुआ पानी इस गरम मैग्मा या इसके आसपास की गरम चट्टानों के सम्पर्क में आ जाए तो इस पानी का तापमान बढ़ने लगता है। इस तरह के कम गहराई में पाए जाने वाले मैग्मा चैम्बर ज्वालामुखी की सक्रियता वाले इलाकों में तो बहुतायत में होते ही हैं लेकिन उन इलाकों में भी मिलते हैंवर्तमान समय में कोई भी ज्वालामुखी सक्रियता दिखाई नहीं देती। अब इस बात की काफी संभावना है कि रिसता हुआ पानी उष्मा के इस स्रोत के सम्पर्क में आ जाए। ऐसे में पानी धीरे-धीरे गरम होता जाता है। और बाहर निकलने के रास्ते खोजता हुआ पुनः धरातल पर आ जाता है। चूंकि धरातल पर आया यह पानी अभी भी काफी गरम है इसलिए इसे गरम पानी का झरना कहते हैं।
जल संसाधनों के संरक्षण एवं उचित प्रबन्धन के लिए एकमात्र सही विकल्प गाँव स्तर पर लोक सहभागिता के माध्यम से छोटे, मझोले और बड़े तालाबों तथा अन्य जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण करना है। प्रत्येक गाँव में छोटे-छोटे तालाबों एवं पोखरों से वर्षा उपरान्त भूमि सतह पर जो जल प्रवाहित होता है,
गुजरात के सौराष्ट्र में लगातार तीन वर्षों के सूखे के जवाब में 1980 के दशक के अंत में भूजल पुनर्भरण एक जन आंदोलन के रूप में शुरू हुआ। फसलों को बचाने के लिए कुछ किसानों ने बारिश के पानी और आस-पास की नहरों और नालों के पानी को अपने कुओं में मोड़ना शुरू कर दिया । कुछ ही समय में सौराष्ट्र के सात जिलों के हजारों किसानों ने अपने कुओं को पुनर्भरण संरचनाओं में परिवर्तित कर दिया ।
हमारे देश में विभिन्न प्रकार की स्थलाकृति पायी जाती हैं जैसे उच्च ढलान, मध्यम ढलान और अल्प ढलान तथा समतल भूमियाँ । उच्च ढलान, अल्प मिट्टी उर्वरा और मिट्टी की कम गहराई वाली जगहों में कृषि वानिकी और वनीकरण उचित रहता है।
हमारे देश में विभिन्न प्रकार की स्थलाकृति पायी जाती हैं जैसे उच्च ढलान, मध्यम ढलान और अल्प ढलान तथा समतल भूमियाँ । उच्च ढलान, अल्प मिट्टी उर्वरा और मिट्टी की कम गहराई वाली जगहों में कृषि वानिकी और वनीकरण उचित रहता है।
जल गुणवत्ता का तात्पर्य जल की शुद्धता (अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल) से है। अधिक उपलब्ध जल संसाधन, औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होता जा रहा है और इस कारण उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता सीमित होती जा रही है। बढ़ती जनसंख्या के कारण घरों से निकलने वाले अपशिष्ट जल में भी वृद्धि हो रही है।
ताजी हवा न केवल बेहतर सोच और सतर्कता में मदद करती है, बल्कि स्वस्थ बच्चों की परवरिश में भी सार्थक भूमिका निभाती है, जो हमारे भविष्य के संरक्षक हैं। पुस्तक के लेखकों ने गहन शोध से आंतरिक जगहों पर हवा को शुद्ध करने के तरीकों को शब्दबद्ध किया है ताजी हवा न केवल बेहतर सोच और सतर्कता में मदद करती है, बल्कि स्वस्थ बच्चों की परवरिश में भी सार्थक भूमिका निभाती है, जो हमारे भविष्य के संरक्षक हैं। पुस्तक के लेखकों ने गहन शोध से आंतरिक जगहों पर हवा को शुद्ध करने के तरीकों को शब्दबद्ध किया है
गढ़वाल हिमालय क्षेत्र भूकम्पों एवं बाढ़ों से अक्सर प्रभावित रहा है। जो कि भूस्खलन का मुख्य कारण है। पिछले 40 से 50 वर्षों में इस क्षेत्र में अनगिनत भूकम्प, बाढ़ एवं भूस्खलन की घटनायें घटित हुई हैं जिनमें 1970 में अलकनन्दा की प्रलयकारी बाढ़, 1991 का उत्तरकाशी भूकम्प, 1999 काचमोली भूकम्प एवं 16 जून 2013 की केदारघाटी में भूस्खलन की घटना गढ़वाल के इतिहास में भीषणतम श्रासदियों में से एक है।
हिमालय की नदियां अस्तित्व के संकट से जूझेंगी। बिजली परियोजनाओं में जो संयंत्र (रन-ऑफ-द-रिवर) लग रहे हैं, उनके लिए हिमालय को खोखला किया जा रहा है। सड़कों आदि के लिए आधुनिक औद्योगिक विकास का ही परिणाम है कि आज हिमालय दरकने लगा है। जिन पर हजारों सालों से बसे लोग अपनी ज्ञान-परंपरा के बूते जीवन-यापन करते चले आ रहे हैं।