उरुग्वे में जल आपातकाल हमारा भूमण्डल
लंबे समय से सूखे के कारण पानी की आपूर्ति करने वाले विभाग को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा था। यह सब तब हुआ जबकि उरुग्वे दुनिया के सबसे स्वच्छ, सबसे प्रचुर जलस्रोतों वाले देशों में से एक है। वर्ष 2004 में उरुग्वे ने पानी को निजीकरण से बचाने के लिए संविधान में संशोधन किया था और देश में पानी एक मौलिक मानव अधिकार के रूप में चिन्हित किया गया था ।
उरुग्वे में जल आपातकाल हमारा भूमण्डल,Pc-पर्यावरण डाइजेस्ट
घायल पर्यावरण को बचाने की गुहार
पृथ्वी पर जीवन कैसे पनपा, उसका विकास और इसमें मानव का क्या स्थान है? प्राचीन काल में अनेक भीमकाय जीव (डायना सोर) विलुप्त क्यों हो गए क्योंकि वह प्रकृति के अनुकूल जीव नहीं था इसलिए अंतरिक्ष से आये उल्का प्रपात ने उनको नष्ट कर दिया और इस पैमाने को मानदंड बनाया जाए तो इस दृष्टि से क्या अनेक वर्तमान वन्यजीवों के लोप होने की आशंका है। क्या मानव को भी कहीं प्रकृति नकार न दें? यदि वन्य जीव भू-मंडल पर न रहें, तो पर्यावरण पर तथा मनुष्य के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा? तेजी से बढ़ती हुई आबादी की प्रतिक्रिया वन्य जीवों पर क्या हो सकती हैं आदि प्रश्न गहन चिंतन और अध्ययन के हैं।
घायल पर्यावरण को बचाने की गुहार
पक्षियों के पर्यावास पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
पिछले 22 वर्षों में एकत्र किये गये आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि प्रतिवर्ष धीरे-धीरे सर्दियों का न्यूनतम तापमान निरन्तर बढ़ता जा रहा है, जिसके कारण उस समय सभी पक्षियों ने एक साथ उत्तर की ओर प्रवास नहीं शुरू किया बल्कि कई गर्म अनुकूल प्रजातियों नें उत्तर में कुछ और समय व्यतीत करना प्रारम्भ किया। गर्म अनुकूलन वाली प्रजातियां दशक पहले दक्षिण में केवल जाड़े की प्रजातियां हैं। उत्तर पूर्वी अमेरिका में धीरे-धीरे गर्म-अनुकूलित पक्षियों का प्रभुत्व बढ़ रहा है।
पक्षियों के पर्यावास पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
आँखों देखी:- साइंस एक्सप्रेस-क्लाइमेट एक्शन स्पेशल का रवानगी समारोह
साइंस एक्सप्रेस क्लाइमेट एक्शन स्पेशल को चलाना यह दर्शाता है कि भारत सरकार जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को प्रमुख वैश्विक खतरा मानती है। यह भारत सरकार द्वारा इस खतरे से निपटने के लिए उठाए गए कदमों का भी सबूत है।
दिल्‍ली के सफदरजंग रेलवे स्टेशन पर अपने नाँवें चरण की यात्रा पर चलने को तैयार खड़ी 'साइंस एक्सप्रेस- क्लाइमेट एक्शन स्पेशल” रेलगाड़ी
सामंजस्य
रोजमर्रा के व्यस्त जीवन में यद्यपि हम प्रकृति से निरपेक्ष रहते हैं तथापि, ऐसा शायद ही कोई हो, जिसे प्रकृति ने आमंत्रण देते हुए अपनी ओर आकर्षित न किया हो। यह वही आकर्षण है जिससे खिंचे हुए हम कभी पहाड़ों में, कभी मैदानों में, कभी सागर तट पर या कभी विदेश में सैर-सपाटे के लिए जाते हैं
प्रकृति और मनुष्य,सामंजस्य से ही साथ रहते हैं
जलवायु परिवर्तन और भारतीय कृषि
कृषि विस्तार भी, बड़े पैमाने पर वनों की कटाई के साथ ही भूमि के उपयोग में तेजी से परिवर्तन और भूमि   प्रबन्धन के तरीकों में बड़ा बदलाव अनुभव कर रहा है। 30 सितम्बर 2013 को संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी समिति आई.पी.सी.सी. की रिपोर्ट के आधार पर वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि इंसानों के कारण ही धरती के तापमान में अत्यधिक बढोतरी हो  रही है।
जलवायु परिवर्तन और भारतीय कृषि
जलवायु परिवर्तन-प्राकृतिक आपदाएँ एवं विलुप्त होती प्रजातियाँ
पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन अब राष्ट्रीय मुद्दा न होकर अन्तरराष्ट्रीय विषय बन गया है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण कई महत्वपूर्ण घटनायें देश विदेशों में घट रहीं हैं। भारत में केदारनाथ, जम्मू-कश्मीर और मुंबई की प्राकृतिक आपदाएँ इसका ताजा उदाहरण हैं।
जलवायु परिवर्तन-प्राकृतिक आपदाएँ एवं विलुप्त होती प्रजातियाँ
राष्ट्रीय हरित अधिकरण की वर्तमान आवश्यकता
हमने पर्यावरण न्याय के सभी पूर्ववर्ती नियमों की अवमानना व अवहेलना की है। सामान्य न्याय प्रक्रिया में समय लगने के कारण तथा पर्यावरण विवादों के त्वरित निबटारे हेतु राष्ट्रीय हरित अधिकरण की स्थापना से पर्यावरण को न्याय की आस बंधी है। देखना यह है कि पर्यावरण की याचिका की सुनवाई कितनी त्वरित व ईमानदारी से होती है। वस्तुतः यही होगा पर्यावरणीय न्याय का व्यवहारिक पक्ष ।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण की वर्तमान आवश्यकता
प्रकृति-कल और आज
कृषि में उर्वरकों और कीटनाशकों के बेतहाशा प्रयोग से कृषि-चक्र गड़बड़ा गया है। खाद्यान्नों का उत्पादन तो बढ़ा है परंतु उसकी गुणवत्ता प्रभावित हुई है। हाइब्रिड बीजों के कारण खाद्यान्नों के नैसर्गिक गुण लुप्तप्राय हो गए हैं। मेथी और धनियां जैसे पौधों से निकलने वाली विशेष गंध समाप्त हो गई है। कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण कैंसर जैसी बीमारियों में बढ़ोतरी हुई है।
प्रकृति-कल और आज
ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ता खतरा
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव मानव जाति के साथ-साथ, वन्यजीवों, कृषि और ऋतुओं पर भी पड़ रहा है। इस वर्ष समय पर वर्षा न होने के कारण देश के लगभग 12 राज्य सूखे से प्रभावित हुए, जिसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था और अनेक प्रजातियों पर देखा गया। जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी पर रहने वाली सभी प्रजातियों को लगातार परिवर्तनशील होना पड़ रहा है
ग्लोबल वॉर्मिंग से बढ़ता खतरा
मार्बल स्लरी : पर्यावरण समस्या एवं उपलब्ध समाधान
मार्बल खुदाई क्षेत्रों के आधार पर प्रचलित भैसलाना ब्लैक, मकराना अलबेटा, मकराना कुमारी, मकराना डुंगरी, आँधी इंडो, ग्रीन बिदासर केसरियाजी ग्रीन, जैसलमेर यलो आदि अपनी रासायनिक संरचना के कारण अलग-अलग बनावटों में पाये जाते हैं। मार्बल का सफेद, लाल, पीला एवं हरा रंग क्रमश: केल्साइट, हेमाटाइट, लिमोनाइट तथा सरपेंटाइन स्वरूप के कारण होता है।
मार्बल स्लरी
गंगा की पवित्रता एवं रोग निवारण क्षमता का वैज्ञानिक रहस्य(Scientific secret of Ganga's purity and disease-preventing ability)
आज भी लोग पवित्र गंगाजल के साथ देश विदेश का भ्रमण करते हैं क्योंकि यह पावन गंगाजल रोग निवारक विशेषता से परिपूर्ण है। गंगाजल में ऑक्सीजन सदैव उच्च मात्रा में घुला रहता है जिसकी वजह से गंगाजल दीर्घ समय तक रखने पर भी सड़ता नहीं है। इसके अतिरिक्त, गंगा प्रवाह के समय हिमालय पर्वत से अद्भुत खनिज लवण एवं अत्यंत लाभकारी औषधीय पौधों और जड़ी बूटियों की कुछ मात्रा गंगाजल में घुल जाती है।
गंगा की रोग निवारण क्षमता का वैज्ञानिक रहस्य
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा में एक नई शुरुआत(A New Beginning in Renewable Energy in India)
ग्रिड से जुड़ी नवीकरणीय ऊर्जा के अन्तर्गत विगत ढाई वर्षों के दौरान नवीकरणीय ऊर्जा का 14.30 गीगावाट का क्षमता वर्धन हुआ है, जिसमें सौर ऊर्जा से 5.8 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 7.04 गीगावाट, छोटी हाइड्रो ऊर्जा से 0.53 गीगावाट और जैव ऊर्जा से 0.933 गीगावाट ऊर्जा शामिल है। 31 अक्तूबर, 2016 की स्थिति के अनुसार देश में सौर ऊर्जा परियोजनाओं से कुल मिलाकर 8727.62 मेगावाट से भी अधिक की क्षमता संस्थापित हुई है।
नवीकरणीय ऊर्जा
Quality soil, crucial for women and child health in India
This study found that soil mineral availability had an impact on the health and nutritional status of women and children in India.
Soil quality, crucial for human health (Image Source: M Tullottes via Wikimedia Commons)
Collaborative efforts to tackle e-waste by E-SAFAI initiative
GIZ and RLG Systems India organize workshop under the E-SAFAI initiative
India is the third largest electronic waste producer in the world (Image: Wallpaperflare)
Beyond targets: Ensuring sustainable water access after the Jal Jeevan Mission
Good governance is key to sustaining rural drinking water schemes in India
Jal Jeevan Mission, is envisioned to provide safe and adequate drinking water through individual household tap connections by 2024 to all households in rural areas (Image: McKay Savage; Flickr Commons; CC BY 2.0)
जलवायु परिवर्तनः कृषि समस्याएं और समाधान,मौसम, जलवायु एवं परिवर्तन
मौसम को तय करने वाले मानकों में स्थानिक और सामयिक भिन्नता होने की वजह से मौसम एक गतिशील संकल्पना है। मौसम का बदलाव बड़ी ही आसानी से अनुभव किया जाता है क्योंकि यह बदलाव काफी जल्दी होता है और सामान्य जीवन को प्रभावित करता है। उदाहरण के तौर पर तापमान में अचानक हुई वृद्धि | जिस प्रकार मौसम में नित्य परिवर्तन होता है उसी प्रकार जलवायु में भी सतत बदलाव की प्रक्रिया जारी होती है परंतु इसका अनुभव जीवन में नहीं होता क्योंकि यह बदलाव बहुत ही धीमा और कम परिमाणों में होता है
जलवायु परिवर्तन का अरुणाचल प्रदेश की जैव-विविधता पर प्रभाव
वनों पर प्राकृतिक आपदा एवं जलवायु परिवर्तन का प्रकोप
क्लोरोफ्लोरोकार्बन के विमोचन से ओजोन परत की अल्पता होने के कारण सूर्य की पैराबैंगनी किरणें धरातल तक पहुंच कर उसका तापमान बढ़ा देती हैं जिसके फलस्वरूप पादप एवं जंतु जीवन को भारी क्षति होती रही है तथा मनुष्य में चर्म कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो रही है। मनुष्य के द्वारा पर्यावरण का ह्रास इस कदर हो जाना कि वह होमियोस्टैटिक क्रिया से भी पर्यावरण को सही नहीं किया जा सकता है।
वनों पर प्राकृतिक आपदा एवं जलवायु परिवर्तन का प्रकोप
Jakkur Lake Management: Fostering community action for ecological restoration
Jakkur Lake's journey towards sustainable urbanism
Jala Poshan and beyond: Community-driven conservation at Jakkur Lake (Image: Anshul Rai Sharma)
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