मानव विकास के ऐतिहासिक अनुक्रम में तकनीक प्रयोग, विकास और समाधान का प्रतीक है। मानव जीवन की भूत से वर्तमान तक की यात्रा में सर्वाधिक भूमिका प्रौद्योगिकी को रही है, किंतु धीरे-धीरे इसके कुनका प्रभाव जीवन के अनेक पहलुओं की नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगा है, प्रश्न उठना स्वाभाविक हैं कि तकनीक का उत्तरोत्तर विकास कितना उचित है, और कितना हानिकारक? वायु, जल और भूमि, तीनों प्रकार के प्रदूषण में वृद्धि चिन्हित होने के साथ ही पारिस्थितिकीय असंतुलन टेक्नोट्रैश में बेतहाशा वृद्धि कार्बन उत्सर्जन, स्पेस- कचरा वैचारिक प्रदूषण, मूल्यों का पतन, मानसिक तनाव में वृद्धि इत्यादि में तकनीक पर अत्यधिक प्रयोग की भूमिका अग्रणी प्रतीत हो रही है। हाल में अमेरिका के करीब 25 राज्यों ने मेटा के विरुद्ध मोर्चा खोलकर (मेटा पर उपलब्ध सामग्री बच्चों और किशोरों की मानसिकता के ऊपर दुष्प्रभाव और इससे बढ़ता उनका तनाव) संपूर्ण विश्व का ध्यान इस ओर खींचा है कि आने वाली पीढ़ी के लिए तकनीक का उचित प्रबंधन कितना आवश्यक हो गया है।
तकनीक हमारी जीवन शैली अविभाज्य हिस्सा बन गई है। इसके बिना जीवन की कल्पना असंभव है। उन्नत जीवन शैली, सूचना तंत्र तक त्वरित पहुंच, व्यावसायिक दक्षता में तेजी, शिक्षा संचार और परिवहन से लेकर स्वास्थ्य सेवा और कनेक्टिविटी इत्यादि क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी ने जीवन को बेहतर बनाया है। यह दिन-प्रतिदिन उन्नत सुविधाएं मुहैया कराते हुए विकास के नये और उच्चतम आयाम स्थापित कर रही है। फलस्वरूप जीवन में चीजें अथवा घटनाएं अपेक्षाकृत त्वरित प्रकृति की हो गई हैं। इतना सब होने के बावजूद तकनीकी समृद्धता के साथ-साथ इसके प्रभाव भी परिलक्षित हो रहे हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि तेजी से हो रहा तकनीकी विकास सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी रखता हो, इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो उनकी विकासका दुष्प्रभाव जल और नभ तीनों क्षेत्रों में देखा जा रहा है।
तेजी से बढ़ रहा है ई-कचरा
ई-वेस्ट या विषाक्त टेक्नोट्रैश, जिसे इलेक्ट्रॉनिक कचरा भी कहते हैं, कोई टूटा हुआ या अवांछित विद्युत या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होता है। वर्तमान में यह सबसे तेजी से बढ़ने वाला कचरा है। अनुपयोगी मोबाइल फोन, लैपटॉप, वीडियो गेम इत्यादि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनुपयोगी होने पर यह उत्पन्न होता है। ई-वेस्ट को नियमित कूड़े के साथ फेंक दिया जाता है, तो यह भूमि में चला जाता है। अधिकांशतः टेक्नोट्रैश में डिग्रेडेबल सामग्री और भारी धातुएं कैडमियम, सीसा और पारा आदि जैसी जहरीली सामग्री होती हैं। समय के साथ ये जहरीले पदार्थ जमीन में रिस कर हमारे द्वारा पीने योग्य जल, भोज्य पदार्थों और वनस्पति इत्यादि को दूषित करते हैं। इस प्रक्रिया से पूरी खाद्य श्रृंखला दुष्प्रभावित होने के साथ ही पारिस्थितिकीय असंतुलन उत्पन्न होता है, जिसका दुष्प्रभाव मानव जीवन पर प्रत्यक्ष दिखाई देता है। कई यूरोपीय देशों ने टेक्नोट्रैश के अवैज्ञानिक निस्तारण पर प्रतिबंध लगा दिया है। न केवल स्वास्थ्य संबंधी अपितु व्यावहारिक समस्याएं भी टेक्नोट्रैश के इस तरह लापरवाहीपूर्ण निस्तारण से उत्पन्न हो सकती हैं। यथा साइबर ठग इस कचरे के अवशेषों से महत्त्वपूर्ण सूचनाएं चुरा कर कोई भी गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं। इसलिए आवश्यक है कि ई-वेस्ट का वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण किया जाए।
युवा-पीढ़ी नित नई तकनीक का उपयोग करने को लेकर इतनी उत्साहित दिख रही है कि उपयोग किए जाने वाले उपकरणों को कुछ समय तक काम में लेने के पश्चात फेंक देती है। कई कंपनियां अपने फोन या जैसे उत्पादों की सीरीज प्रति वर्ष नये रूप में लांच करती हैं, और पीछे में उन्हें प्राप्त करने के लिए ललक देखते ही बनती है। आवश्यकता न हो भी लोग ई-कचरे को एकत्रित करने के प्रति उत्साह दिखाते हैं। स्पेश सेक्टर में भी लगातार प्रगति से हीअधिकांश देश अपने-अपने उत्साह छोड़ते हैं किंतु सभी सफल नहीं होते। कुछ उपग्रह प्रक्षेपण असफल हो जाते हैं, तो कुछ प्रक्षेपित उपग्रह अपनी समय सीमा पूरी होने के बाद स्पेस कचरे का रूप ले लेते हैं जो अंतरिक्ष में प्रदूषण को बढ़ाता है।
नकारात्मक गैसीय उत्सर्जन में तेजी
प्रौद्योगिकीय विकास के फलस्वरूप कुछ नकारात्मक गैसीय उत्सर्जन विश्वव्यापी तौर पर बढ़ता जा रहा है जैसे - कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड, मीथेन का उत्सर्जन। ये ग्रीनहाउस गैसें हैं, जो एयर कंडीशनर, रेफ्रिजरेटर इत्यादि द्वारा उत्पादित किए जाते हैं। ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में मौजूद गैसें हैं, जो हानिकारक विकिरणों को पुनः पृथ्वी पर परावर्तित करके तापक्रम में वृद्धि करती हैं। पिछली शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के पश्चात कार्बन उत्सर्जन के कारण वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में तेज गति से वृद्धि हुई जिससे ग्लोबल वार्मिंग में लगातार बढ़ोत्तरी हुई। इसकी परिणति ग्लेशियरों के लगातार पिघलने, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि होने और सामुद्रिक पारिस्थितिकीय असंतुलन के रूप में देखने को मिल रही है।
तकनीक के बढ़ते प्रयोग ने कार्बन उत्सर्जन में भी लगातार वृद्धि की है। कारों हवाईजहाज, बिजली संयंत्रों और कारखानों जैसी चीजों से कार्बन उत्सर्जन वायुमंडल में होता है। यदि हम जीवाश्म ईंधन को जलाने से बनी बिजली का उपयोग करते हैं, तो यह बिल्कुल भी पर्यावरण के अनुकूल नहीं है, इससे वायु में प्रदूषण का स्तर भी बढ़ता है। यदि हम प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के तरीके के बारे में होशियार हैं, तो हम इसके पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को कम कर सकते हैं। महत्त्वपूर्ण है कि हम प्रौद्योगिकी का उपयोग सबसे स्मार्ट और जिम्मेदार तरीके से करें, और समस्याओं का समाधान कर पाने वाली कड़ी का हिस्सा बनें।
चूंकि प्रौद्योगिकी हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। हमें सामंजस्यपूर्ण और जिम्मेदारीपूर्ण तरीके से प्रगति के पथ पर अग्रसर होना होगा। उचित विकल्प तलाशने होंगे जो पर्यावरण फ्रेंडली हों। जैसे ई-कचरे का उचित निपटान, रीसाइकिलिंग, इलेक्ट्रॉनिक वाहनों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग, ऊर्जा कुशल इको फ्रेंडली घरों के निर्माण को प्राथमिकता, ग्रीन एनर्जी पर अधिक जोर, मशीनरी में संचार के लिए ऑनलाइन पद्धति का द्रुतगामी उपयोग, टेक्नोट्रैश के निपटान में कुशल कंपनियों में इसका निस्तारण करना और विभिन्न देशों द्वारा मिलकर कम खर्चे में सहयोगपूर्ण तरीके से उपग्रह लॉन्च करना इत्यादि। यह सही है कि विकास स्वाभाविक भी है, और आवश्यक भी है परंतु हमारा दायित्व बनता है कि सतत विकास की अवधारणा अपनाएं और आने वाली पीढ़ियों को सहज स्वस्थ जीवन जीने योग्य पृथ्वी एवं पर्यावरण सुपूर्द करके जाएं।
स्रोत - हस्तक्षेप, 4 नवम्बर 2023, राष्ट्रीय सहारा
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