जलवायु परिवर्तन, गांधी और वैश्विक परिदृश्य
लालच, उपभोग और शोषण पर अंकुश होना चाहिए। विघटनरहित और टिकाऊ विकास का केंद्र बिंदु समाज की मौलिक जरूरतों को पूरा करना होना चाहिए। ऐसा सतत विकास के लिए गांधी जी के विचारों को पुन: समझना और लागू करना ही होगा।
जलवायु परिवर्तन, गांधी और वैश्विक परिदृश्य
सुन्दरलाल बहुगुणा हिमालय-सा व्यक्तित्व था उनका
हिमालय में सक्रिय रहीं गांधीजी की शिष्या सरला बहन (जो अपने को विश्व नागरिक मानती थीं) की शिष्या विमला बहन के सुंदरलाल बहुगुणा के जीवन में आने के बाद इनके सोच- विचार और जीवन शैली में और भी प्रखरता आयी। विमला बहन ने जिस निष्ठा, भावना, समर्पण से जीवन भर साथ निभाया और उनका ध्यान रखा, ऐसे कम ही उदाहरण मिलते हैं। बहुगुणा जी के काम में विमला बहन का विशेष योगदान रहा
सुन्दरलाल बहुगुणा,Pc-IwpFlicker
जोशीमठ त्रासदी के लिए कौन हैं ज़िम्मेदार
जोशीमठ का भू-धंसाव हाल की सबसे बड़ी पर्यावरणीय दुर्घटनाओं में से एक है। भूगर्भ वैज्ञानिकों और पर्यावरण विशेषज्ञों की चेतावनियों को दरकिनार करके जोशीमठ को एक आधुनिक शहर बनाने की होड़ लगी हुई है। बीते कुछ वर्षों में यहाँ होटल्स, माल्स और सड़कों के अलावा अब चार लेन वाली चर्चित ऑल वेदर रोड का विकास हो रहा है, यह सब विशेषज्ञों की राय को कूड़ेदान में फेंक कर केवल अपनी जिद और सनक को पूरा करने के लिए किया जा रहा है, इसी सनक ने इस त्रासदी को आमंत्रित ही किया है।
पहाड़ और जोशीमठ शहर की संरचना,Pc-सर्वोदय जगत 
दुनिया में फैशन का ब्रांड बन रही है खादी
दुनिया में सबसे टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल कपड़ा होने के कारण दुनिया में खादी की मांग बढ़ती जा रही है। खादी डेनिम दुनिया में एकमात्र दस्तकारी डेनिम फैब्रिक है, जिसने देश और विदेश में व्यापक लोकप्रियता हासिल की है। कपड़े की बेहतर गुणवत्ता, आराम, जैविक और पर्यावरण के अनुकूल गुणों के कारण प्रमुख फैशन ब्रांडों में खादी डेनिम के प्रति आकर्षण बढ़ा रहा है।
दुनिया में फैशन का ब्रांड बन रही है खादी
प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों से जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव (Harmful effects of the microplastic pollution in hindi)
प्लास्टिक के कणों का स्तर हमारी कल्पना से भी अधिक है। उन्होंने समझाया कि प्लास्टिक एक कृत्रिम पदार्थ है, जो समय के साथ अपनी नमी खोता है और छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखरता है।
प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों से जीवों पर पड़ने वाले प्रभाव
जलवायु परिवर्तन से वर्षा के पैटर्न में हुआ बदलाव
उच्च गर्मी और आर्द्रता का संयोजन हमारे शरीर को ठंडा रखने वाले पसीने के तंत्र को प्रभावित कर सकता है। जब पसीना हमारी त्वचा से उड़ जाता है, तो हमारा शरीर शीतल होता है
जलवायु परिवर्तन से वर्षा के पैटर्न में हुआ बदलाव
हम हिमालय की सुरक्षा क्यों नहीं कर पा रहे हैं
हम हिमालय की सुरक्षा नहीं कर पा रहे हैं, जबकि हिमालय राष्ट्र की जीवनशक्ति है। सिंधु से लेकर ब्रह्मपुत्र तक नदियां हिमनदों से ही निकलती हैं और ये हिमनद ग्लोबल वार्मिंग तथा ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव से पिघलकर पीछे हटते जा रहे हैं। चिंतनशील भारतीय आज इसलिए स्तब्ध हैं कि आखिरकार वैज्ञानिकों की अनवरत चेतावनियाँ देने के बावजूद प्राकृतिक विनाश की प्रत्यक्ष क्षति देखते हुए भी हम हिमालय को अपने अवांछित निर्माण, खनन आदि गतिविधियों से अस्थिर क्यों कर रहे हैं?
हाइड्रो आधारित विद्युत परियोजनाएं,Pc-सर्वोदय जगत
बिगड़ रहा है पर्वतीय संतुलन
नासा की एक खोज के अनुसार अंटार्कटिका में औसतन 150 बिलियन टन और ग्रीनलैंड आइस कैप में 270 बिलियन टन बर्फ प्रति वर्ष पिघल रही है। आगे आने वाले समय में सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र आदि नदियां सिकुड़ जाएंगी और बढ़ता हुआ समुद्री जल स्तर खारे पानी की वजह से डेल्टा क्षेत्र को मनुष्य के रहने लायक नहीं छोड़ेगा।
बिगड़ रहा है पर्वतीय संतुलन
पूंजीपतियों का गंगा-विलास
गंगा केवल नदी नहीं है। यह देशवासियों की भावना से जुड़ी होने के अतिरिक्त कई जलीय जीवों का घर भी है। भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव गंगा में पाया जाने वाला डॉल्फिन है। गंगा का प्रदूषण इस डॉल्फिन की ज़िंदगी पर लगातार भारी पड़ रहा है और रोज़ इनकी संख्या घट रही है। सोचने की बात है कि क्रूज़ शिप का कचरा और ध्वनि प्रदूषण इनका क्या करेगा?
गंगा डाल्फिन,Pc-सर्वोदय जगत
अगरबत्ती उद्योग पर ग्लोबलाइजेशन की मार
पहले जब यह उद्योग आयात और मशीन से बचा हुआ था, तो इसमें कॉटेज उद्योग के चरित्र थे, ह्यूमन इंटेंसिविटी ज्यादा थी, तब विकेंद्रीकरण था और अब बड़ी बड़ी पूंजी है, औटोमेशन है, मार्केटिंग के एक से एक इंतजामात हैं। पहले जब यह उद्योग अनऑर्गनाइज्ड था, तब सरकार की जीएसटी, वैट जैसे करों की वसूली इतनी व्यवस्थित नहीं थी, जितनी आज है। भारत की अर्थव्यवस्था में ग्लोबलाइजेशन के प्रवेश और आयात में मुनाफाखोरी ने बांस से सींक बनाने की इस वृहत्तर रोज़गार व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया.
अगरबत्ती उद्योग पर ग्लोबलाइजेशन की मार,Pc-सर्वोदय जगत 
जलवायु परिवर्तन से बढ़ा विस्थापन
शरणार्थियों की समस्याओं की निगरानी करने वाली संस्था यूएनएचसीआर के मुताबिक मौसम संबंधी घटनाओं मसलन बाढ़, तूफान, वनाग्नि और भीषण तापमान के कारण 2009-16 के बीच हर साल 2 करोड़ 15 लाख लोगों को मजबूरन विस्थापित होना पड़ा।
जलवायु परिवर्तन से बढ़ा विस्थापन
ग्लोबल वार्मिंग के कारण 14 से 22 मी. तक छोटा हुआ देवदार का कद 
ग्लोबल वार्मिंग के कारण  14 से 22 मी. तक छोटा हुआ देवदार का कद जीबी पंत हिमालय संस्थान के वैज्ञानिकों का शोध
ग्लोबल वार्मिंग के कारण 14 से 22 मी. तक छोटा हुआ देवदार का कद 
The fast disappearing urban wetlands of Delhi
While Delhi NCR is undergoing rapid urbanisation, what is the state of the wetlands in the region? A study finds out.
Okhla Bird Sanctuary, Noida (Image Source: Awankanch via Wikimedia Commons)
हिमालय बना आपदा का घर
हिमाचल में व्यास, रावी, सतलुज नदी के तटों की आबादी पर अधिक मार पड़ी है भारी जल सैलाब के खतरे को देखकर नदियों की अविरल धारा को रोकने वाले बांधों के गेट खोलने पड़े जिसके कारण लुधियाना, पटियाला जैसे अनेक इलाके लंबे समय तक पानी में डूबे रहे यमुना पर हथिनी कुंड के पास गेट खोलने से यमुनानगर, करनाल से लेकर दिल्ली तक पानी में डूब गए।
हिमालय बना आपदा का घर
धरती पर पड़ने लगी है जलवायु परिवर्तन की काली छाया
जलवायु परिवर्तन की काली छाया सिर्फ भारत में ही नहीं मंडरा रही है, यह समस्या वैश्विक समस्या बन चुकी है। वैश्विक सम्मेलनों में भी यह मुद्दा छाया रहता है. वर्ष 2011 के नवम्बर माह में डरबन में सम्पन हुए अंतराष्ट्रीय वैश्विक सम्मेलन में भी जमकर मंथन हुआ था। वर्ष 2015 में पोलैंड के कोटवाइस में एक उल्लेखनीय सम्मलेन हुआ था, जिसमें दुनिया के 200 देश जलवायु परिवर्तन समझौतों के नियम-कायदे लागू करने के लिए सर्वसम्मति से सहमत हुए थे।
धरती पर पड़ने लगी है जलवायु परिवर्तन की काली छाया
प्राकृतिक चिकित्सा : संभावना और विकल्प
हमारे देश में काफी गरीबी है, सरकार का दावा है कि 80 करोड़ लोगो को सरकार अनाज बांट रही है। वर्ष 2021 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 101 वें स्थान पर है। देश का हर नागरिक स्वस्थ रहे, चिकित्सा गरीबों के लिए भी सर्वसुलभ हो, यह प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से ही हो सकता है।
प्राकृतिक चिकित्सा
प्रकृति की छाती पर शहरीकरण के नाच का नतीजा
बढ़ते शहरीकरण के कारण हमारे शहर अधिक जोखिम में हैं, क्योंकि शहरों में मानव जीवन का नुकसान, संपत्ति की क्षति और आर्थिक नुकसान की मात्रा ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। मुंबई, कोलकाता, बंगलुरु, दिल्ली और चेन्नई जैसे शहर लाखों लोगों के घर हैं और यहाँ जलवायु का जोखिम बहुत अधिक है।
प्रकृति की छाती पर शहरीकरण के नाच का नतीजा
खनन के चलते मौत के कगार पर पहुंची यमुना
मशीनों के शोर ने पक्षियों को यहां से जाने पर मजबूर कर दिया है। रात्रिचर जीव भी पलायन कर गए हैं। खनन के चलते यमुना मरने की कगार पर पहुंच गई है।
खनन के चलते मौत के कगार पर पहुंची यमुना
हिमालय का भूगोल बदल देगा नया वन कानून
नये वन कानून के प्रावधानों पर पर्यावरणविद् को आशंका है कि यह 'वन' की परिभाषा और सुप्रीम कोर्ट के 1996 के गौडावर्मन फैसले को पलट देगा। इस फैसले ने बहुत हद तक वन संरक्षण को बढ़ावा दिया था क्योंकि इसके तहत पेड़ों वाले उन इलाकों को भी वन कानून के दायरे में ला दिया गया था जो औपचारिक रूप से 'वन' के रूप में अधिसूचित नहीं थे, लेकिन जंगल माने जा सकते थे
हिमालय का भूगोल बदल देगा नया वन कानून
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