गायब हो रही है हरियाली  
भोपाल की सड़कों के बीच और किनारे में बनाए गए ग्रीन बेल्ट पर कब्जे हो गए हैं, जिससे यहां हरियाली खत्म होती जा रही है। जबकि करोड़ों रुपए खर्च कर सड़क के सेंट्रल व साइड वर्ज में पेड-पौधे लगाकर हरियाली विकसित की गई है। लेकिन रसूखदार और जिम्मेदार मिलकर इस ग्रीन बेल्ट को खत्म करते जा रहे है इसको लेकर राजधानी परियोजना प्रशासन (सीपीए) ने दो वर्ष पहले किए अतिक्रमणों को चिन्हित किया था, साथ ही इसको लेकर एनजीटी में याचिका भी दायर की गई है। इस मामले में पर्यावरणविद सुभाष सी पाडे ने एनजीटी में याचिका दायर की है।
गायब हो रही है हरियाली  
आपदाओं की गाज
रिपोर्ट की प्रस्तावना में एफएओं के महानिर्देशक क्यू डोंगयु ने लिखा है कि कृषि आपदाओं के प्रति बेहद संवेदनशील है, क्योंकि  वह प्रकृति और जलवायु पर बहुत ज्यादा निर्भर करती है। बार- बार आने वाली आपदाएं बाब सुरक्षा और कृषि प्रणालियों को स्थिरता को नुकसान पहुंचा सकती उनके मुताबिक रिपोर्ट में एफएओं की विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए इन जोखिमों को संबोधित करने और कृषि प्रथाओं और नीतियों में आपदा जोखिम प्रबंधन को शामिल करने के तरीके सुझाए गए हैं। छोटे किसान जो अपनी फसलों के लिए बारिश पर निर्भर रहते है, वो आपदा आने पर मुश्किल में पड़ जाते है। देखा जाए तो कृषि खाद्य प्रणालियों की सबसे कमजोर कड़ी है। जो इन आपदाओं का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतते हैं। ऐसे में किसानों को सिखाना की वो अपने खेतों को आपदाओं से कैसे बचा सकते हैं। उनकी फसलों को बचाने में मदद कर सकता है। साथ ही यह उन्हें कहीं ज्यादा सशक्त बनाएगा। इन नए तरीकों का उपयोग, पुराने तरीकों की तुलना में 2.2 गुना ज्यादा फायदा पहुंचा सकता है
आपदाओं की गाज
सिंचाई के पानी की कमी से जूझता मध्यप्रदेश आज उठाए कदमों पर निर्भर है कल का भविष्य
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023 में जारी आंकड़ों से पता चला है कि 2050 तक शहरों में पानी की मांग 80 फीसदी तक बढ़ जागी वही यदि मौजूदा आकड़ो पर गौर करे तो दुनियाभर में शहरो रहने वाले करीब 100 करोड़ लोग जल संकट से जूझ रहे है। वहीं अनुमान है कि अगले 27 वर्षों में यह आंकड़ा बढ़कर 240 करोड़ तक जा सकता है। इससे भारत सबसे ज्यादा प्रभावित होगा, जहां पानी को लेकर होने वाली खीचातानी कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेगी। गौरतलब है कि भूजल के संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार ने मार्च 2018 में अटल भूजल योजना का प्रस्ताव रखा था। जिसे विश्व बैंक की सहायता से 2018-19 से 2022-23 की पांच वर्ष की अवधि के लिए कार्यान्वित किया जाना है। इस योजना लक्ष्य गिरते भूजल का गंभीर संकट झेल रहे सात राज्यों गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तरप्रदेश में संयुक्त भागीदारी से भूजल का उचित और बेहतर प्रबंधन करना है। भारत में गिरते भूजल की समस्या से निपटने के लिए सरकार ने जलदूत नामक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया हुई ।
सिंचाई के पानी की कमी से जूझता मध्यप्रदेश
परमाणु बिजली घर और सेहत
हमने सितम्बर 1991 में फैसला किया कि राजस्थान में कोटा के पास स्थित रावतभाटा परमाणु संयंत्र के प्रभावों का एक सर्वेक्षण किया जाए। रावतभाटा का परमाणु बिजली घर देश का पहला ऐसा संयंत्र था भारत में ही निर्मित कैन्डू किस्म का संयंत्र । कण्डू यानी कनाडियन ड्यूटीरियम- यूरेनियम आधारित संयंत्र । चूंकि भारतीय परमाणु कार्यक्रम कैन्डू परमाणु भट्टी पर आधारित था, इसलिए यही रिएक्टर देश में प्रोटोटाइप बना रावतभाटा स्थल का चयन 1961 में हुआ था और यूनिट 1 पर काम 1964 में कनाडा के सहयोग से शुरू हुआ।
परमाणु बिजली घर और सेहत
जंगल नामा
दुनियाभर में किए गए मिसाइल, परमाणु परीक्षणों और सॅटेलाइट अभियानों से पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा है और यह क्रम लगातार जारी है। जल, जंगल, जमीन पर जिस तरह से तबाही का आलम उससे आने वाले समय में विनाश तय माना जा रहा है।
जंगल नामा
कटिबंधीय कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड
उर्वरक आधारित खेती मानवजनित नाइट्रस ऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत है। सन 1980 से 1994 के बीच विश्व कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन 15 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। उष्णकटिबंधीय देशों में अनुकूल नमी, तापमान तथा काफी मात्रा में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का उपयोग बड़ी मात्रा में नाइट्स ऑक्साइड के उत्सर्जन का कारण होता है।
कटिबंधीय कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड
बांध बनाम लोग
नर्मदा घाटी में बांध के एक विकल्प के बतौर प्रस्तुत लघु पनबिजली परियोजना के उद्घाटन के साथ ही बांध विरोधी अभियान और सुदृढ़ हुआ है। भूमि के अधिकारों का संघर्ष भी साथ- साथ जारी है। जंगल में रहने वाले आदिवासियों को 'अतिक्रमणकर्ता' समझा जाता रहा है। जबकि उनके भूमि के वास्तविक स्वामित्व को स्वीकार किए जाने की ज़रूरत है।'
बांध बनाम लोग
तीन गुणा बढ़ जाएगी भूजल में गिरावट की दर
भारत दुनिया के अन्य देशों की तुलना में पहले ही कहीं ज्यादा तेजी से अपने भूजल का दोहन कर रहा है। आंकड़ों से पता चला है कि भारत में हर साल 230 क्यूबिक किलोमीटर भूजल का उपयोग किया जा रहा है, जो कि भूजल के वैश्विक उपयोग का लगभग एक चौथाई हिस्सा है। देश में इसकी सबसे ज्यादा खपत कृषि के लिए की जा रही है। देश में गेहूं, चावल और मक्का जैसी प्रमुख फसलों की सिंचाई के लिए भारत बड़े पैमाने पर भूजल पर निर्भर है।
भूजल आपदा-कल का भविष्य
कैसे साफ हो गंगा ? गंगा थक चुकी मैला ढोते ढोते
नमामि गंगे के तहत बड़े बजट की घोषणा दरअसल गंगा एक्शन प्लान की विफलता के बाद लाया गया था, जिससे जनता में गंगा की सफाई की उम्मीद जगाई गई थी। विफल रहे गंगा एक्शन प्लान को 14 जनवरी, 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने शुरू किया था इसके दो चरण कई वर्षों तक चले और नतीजा कुछ नहीं निकला। इसके बाद 2009 में राष्ट्रीय गंगा बेसिन प्राधिकरण बनाया गया। गंगा एक्शन प्लान से लेकर 2017 तक इन तीनों कदमों के तहत 6788.78 करोड़ रुपए सरकार की ओर से जारी किए गए।
पावन गंगा मानवीय गतिविधियों से प्रदूषित
आओ ! नदियों को बचाएं
आइए! एक बार ऐसे समय की कल्पना करें जब भारत देश में एक भी नदी न हो। सदानीरा नदियों के बिना हमारा भारत कैसा लगेगा! ऐसा विचार मस्तिष्क में आते ही मन सिहर उठता है। इस भयावह आपदा के आने से, न केवल भारतीय संस्कृति, अपितु देश की अर्थव्यवस्था भी छिन्न-भिन्न हो जाएगी। आज घोर प्रदूषण के कारण नदियों का अमृत जल 'प्राण हारी विष' बन गया है।
 प्रदूषण ने नदियों के अमृत जल को विष में परिवर्तित कर दिया
हिंडन नदी को प्रदूषण मुक्त करने को बैठक
हिंडन नदी, यमुना की एक सहायक नदी, जिसे ऐतिहासिक रूप से हरनंदी नदी के नाम से भी जाना जाता है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अत्यधिक आबादी, मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत रही है। हिंडन उप बेसिन की भूमि प्रमुखतः खेती के लिए फायदेमंद है, जिसमें चीनी, कागज और कपड़ा जैसे उद्योगों का अब मजबूत प्रभाव है।और ये हिंडन में कहीं न कहीं प्रदूषण में भागीदारी कर रहे हैं।
हिंडन नदी वास्तविक स्वरुप और आज की स्थिति
लवणीय जल सिंचाई द्वारा गुलाब (रोजा डेमासीना) की खेती (Rose (Rosa damascena) cultivation by saline water irrigation)
भारत में गुलाब का उत्पादन मुख्यरूप से हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, दिल्ली, लखनऊ (उत्तर प्रदेश), पुणे, नासिक (महाराष्ट्र), बंगलौर (कर्नाटक), कोयम्बटूर (तमिलनाडु), पश्चिम बंगाल के कुछ क्षेत्रों मुख्यतः कोलकाता में किया जाता है। राजस्थान में इसका उत्पादन मुख्य रूप से पुष्कर, हल्दीघाटी, श्रीगंगानगर व उदयपुर में किया जाता है।गुलाब विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय पुष्प है इसलिए इसे फूलों का राजा भी कहा जाता है। यह झाड़ीनुमा एक बहुवर्षीय पौधा है जो सुन्दर पुष्पों के लिए उगाया जाता है। इसके फल को हिप कहते हैं जो विटामिन सी का अच्छा स्त्रोत है। इसके फूल से जैम, जैली व मालाएं बनाई जाती हैं। गुलाब के फूलों से मुख्यरूप से इत्र निकाला जाता है तथा इसके लिए चेली गुलाब का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है।
गुलाब की खेती
लवणीय जल सिंचाई द्वारा प्याज (एलियम सिपो) की खेती (Onion (Allium sipo) cultivation by saline water irrigation)
प्याज में विटामिन सी, फॉस्फोरस आदि प्रमुख पौष्टिक तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। प्याज में चरपराहट एवं तीखापन इसमें उपस्थित गंधक के एक मौलिक एलिल प्रोपाइल डाई सल्फाइड के कारण होता है। गंधक की मात्रा अधिक होने के कारण यह रक्तशुद्धि व रक्तवर्धक का गुण रखता है। गर्मी में लू से बचाता है तथा गुर्दे की बीमारी वाले रोगियों के लिए भी प्याज लाभदायक रहता है।
प्याज की खेती
लवणीय जल सिंचाई द्वारा तिल (सेसेमम इंडिकम) की खेती (Cultivation of sesame (Sesamum indicum) by saline water irrigation)
तिल खरीफ की एक महत्त्वपूर्ण तिलहनी फसल है। इसकी खेती भारत में लगभग 5,000 वर्षों से की जाती रही है। तिल एक खाद्य पोषक भोजन व खाने योग्य तेल, स्वास्थवर्धक व जैविक दवाइयों के रूप में उपयोगी है। तिल का तेल पोष्टिक, औषधीय व श्रृंगारिक प्रसाधनों व भोजन में गुणवत्ता की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
 तिल की खेती
लवणीय जल सिंचाई द्वारा सौंफ (फीनिकुलम वलगेयर) की खेती (Fennel (Foeniculum vulgare) cultivation by saline water irrigation)
सौंफ शरद ऋतु में बोई जाने वाली फसल है।भारत में कुल 54290 हैक्टर में सौंफ की खेती की जाती है। इसमें राजस्थान व उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं।इसका उपयोग औषधि, अचार, चटनी, मुरब्बा आदि में किया जाता है। आयुर्वेद में सौंफ एक विशेष स्थान रखती है, इसका प्रयोग अतिसार, खूनी पेचिस, कब्ज, नजला तथा मस्तिष्क की कमजोरी जैसी बीमारियों में किया जाता है।
सौंफ की खेती
बादल ऊपर क्यों लटका
गरम हवा ऊपर की ओर उठती है और आसपास की ठंडी हवा उसका स्थान लेती है। पानी को गरम करने से जो वाष्प बनती है वह एक तो हल्की (कम घनत्व वाली) होती है और गरम भी । अतः वह गरम हवा के बहाव के साथ ऊपर उठती है। यही प्रक्रिया समुद्र, झीलों और नदियों के साथ भी होती है। यहां ऊष्मा का मुख्य स्रोत सूर्य है। पर पृथ्वी का वायुमंडल पारदर्शी होने के कारण सूर्य की किरणें हवा को गरम किए बगैर पृथ्वी की सतह पर आ पहुंचती हैं और उसे तपाती हैं। अतः दिन में गरम हवा का ऊपर की ओर निरन्तर बहाव रहता है। किसी भी जलाशय के पास ऊपर की ओर बहने वाली गरम हवा अपने में नमी अर्थात जलवाष्प समेट लेती है।
जलवाष्प से बनते हैं बादल
भूकंप कब आता है और क्यों आता है? (When does an earthquake occur and why does it occur? In Hindi)
विनाशकारी भूकम्प इतिहास में काली तारीखों के रूप में दर्ज हैं। वैसे तो हर वर्ष दुनिया भर में करीब 50,000 छोटे बड़े भूकम्प आते हैं लेकिन उनमें से 100 विनाशकारी होते हैं। कम से कम एक भूकम्प भयानक विनाश करता है। मानव जीवन के इतिहास में सबसे अधिक तबाही मचाने वाला भूकंप 23 जनवरी 1556 को चीन में आया था,जिसमें लगभग 8 लाख से भी अधिक लोग मारे गये थे। 1 नवम्बर 1755 को लिस्बन, पुर्तगाल में आया भयंकर भूकम्प संभवत: पहला ऐसा भूकम्प था, जिसके विस्तृत अध्ययन के रिकार्ड आज भी सुरक्षित हैं। यह रिकार्ड तत्कालीन पादरियों के प्रेक्षणों पर आधारित थे तथा इनमें पहली बार भूकम्प तथा इसके प्रभावों की सुव्यवस्थित जांच पड़ताल की गई थी।
विनाशकारी भूकम्प
लवणीय जल सिंचाई द्वारा मेथी (ट्राइगोनेला फीनम- ग्रीकम) की खेती (Cultivation of fenugreek (Trigonella foenum- graecum) by saline water irrigation)
मेथी भारत के उत्तर-पश्चिमी भागों में काफी समय से जंगली रूप में उगती पाई गई है, फिर भी इसकी उत्पत्ति पूर्वी यूरोप और इथोपिया मानी जाती है। भारत में मेथी मुख्य रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में उगाई जाती है। देश में मेथी के कुल क्षेत्रफल का लगभग 80 प्रतिशत राजस्थान में पाया जाता है।
मेथी (ट्राइगोनेला फीनम- ग्रीकम) की खेती
लवणीय जल सिंचाई द्वारा गैंदा (टेगेटस इरेक्टा) की खेती (Marigold (Tegatus erecta) cultivation by saline water irrigation)
गेंदे को साल भर तीनों ही ऋतुओं में उगाया जा सकता है परन्तु पैदावार के लिए शीत ऋतु अधिक उपयुक्त है। पौधों में अच्छी बढ़वार व अधिक पुष्पन के लिए नम जलवायु की आवश्यकता होती है। गैंदा एक आसानी से उगाया जा सकने वाला पौधा है और इस पर कीट एवं बीमारियों का प्रकोप भी बहुत कम होता है। इसकी खेती करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक है। गेंदा के फूल पौधों पर लम्बे समय तक खिलते रहते हैं, साथ ही इसकी संग्रहण क्षमता अधिक होने के कारण आसानी से कुछ दिनों तक रखा जा सकता है।
गैंदा (टेगेटस इरेक्टा) की खेती
लवणीय जल सिंचाई द्वारा ईसबगोल (प्लांटेगो ओवेटा) की खेती (Cultivation of Isabgol (Plantago ovata) by saline water irrigation)
भारतवर्ष में ईसबगोल की खेती सर्दियों के मौसम में की जाती है। साधारणतया ईसबगोल की खेती के लिए ठंडा व सूखा मौसम अच्छा व अनुकूल रहता है। ईसबगोल अपने बीजों व भूसी के कारण महत्वपूर्ण औषधीय फसल है। इसकी भूसी का उपयोग औषधि के रूप में कब्ज, पेचिश, दस्त इत्यादि अनेक पेट के विकारों में उपचार के लिए किया जाता है।
ईसबगोल (प्लांटेगो ओवेटा) की खेती
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