पेड़ वायुमण्डल को शुद्ध करने का कार्य भी करते हैं। पेड़ों से वायुमण्डल का तापमान कम होता है। पेड़ वर्षा लाने में सहायक होते हैं। वर्षा से खेती होती है। पेड़ों की अनगिनत संख्या से सघन वनों का निर्माण होता है। पेड़ों के उगने और विकसित होने में जल की महत्वपूर्ण भूमिका है। जीव के लिए जल आवश्यक है। जल जीवन का आधार है।
भारतीय शोधकर्ताओं ने 'ग्रीनडिस्पो' नामक एक ऐसी पर्यावरण हितैषी भट्टी का निर्माण किया है, जो सैनेटरी नैपकिन और इसके जैसे अन्य अपशिष्टों के निपटारे में मददगार हो सकती है। इस भट्टी का निर्माण हैदराबाद स्थित इंटरनेशनल एडवांस्ड रिसर्च सेंटर फॉर पाउडर मैटलर्जी एंड न्यू मैटीरियल्स (एआरसीआई), नागपुर स्थित सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरणीय अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) और सिकंदराबाद की कंपनी सोबाल एरोथर्मिक्स ने मिलकर किया है।
जलवायु परिवर्तन से मिट्टी पर पड़े प्रभाव का सीधा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि होती है और वाष्पीकरण का संतुलन खराब हो जाता है व हमारी मिट्टी की आर्द्रता असंतुलित हो जाती है। इसके परिणाम स्वरूप हमें सूखे की मार झेलनी पड़ सकती है। अगर यह स्थिति लगातार बनी रही तो मिट्टी मरूस्थल में तब्दील हो जाती है।
पर्यावरण रक्षक वे सभी व्यक्ति होते हैं, जिन्हें प्रकृति से प्रेम है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञ जनमानस में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के साथ पर्यावरण सुरक्षा के उपाय बताते हैं। पर्यावरण में फैलते खतरों के प्रति लोगों को आगाह कर ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के टिप्स देते हैं।
पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (ई.आई.ए.) एक ऐसी महत्वपूर्ण विधा है जिसके द्वारा किसी भी परियोजना / क्रियाकलाप से संबंधित निर्णय लेते समय, उससे पर्यावरण प्रबंधन संबंधित मुद्दों को शामिल किया जाता है ताकि सतत् विकास सुनिश्चित किया जा सके कुछ वर्षों पूर्व परियोजनाओं को केवल तकनीकी एवं वित्तीय व्यावहारिकता (फाइनेंशियल लायबिलिटी) के आधार पर ही आंकलन किया जाता था एवं अनुमति दी जाती थी, लेकिन ई.आई.ए. की विधा किसी भी परियोजना क्रियाकलाप के क्रियान्वयन सहमति के लिए यह भी आवश्यक हो गया कि यह पर्यावरण की दृष्टि से भी अनुकूल हो
स्कूलों में वॉश के संबंध में डब्ल्यूएचओ / यूनीसेफ संयुक्त निगरानी कार्यक्रम (जेएमपी) की रिपोर्ट 2019 में पाया गया है कि विश्व स्तर पर लगभग 584 मिलियन बच्चों के पास पीने के पानी की बुनियादी सुविधाओं की कमी है, लगभग 698 मिलियन बच्चों की बुनियादी स्वच्छता सेवाओं तक पहुंच नहीं है और लगभग 818 मिलियन बच्चों को उनके स्कूलों में बुनियादी स्वच्छता सेवाओं की आवश्यकता है।
उचित हाइड्रोलिक समाधानों से युक्त रेट्रोफिटिंग से जल आपूर्ति प्रणाली की समस्याएँ सुलझाई जा सकती हैं, बजाय इसके कि सॉफ्टवेयर पर आधारित नए बुनियादी ढांचे को खड़ा किया जाए जो कि रुक-रुक कर काम करने वाली जल आपूर्ति प्रणालियों के लिए उपयुक्त नहीं होते।
1988 में, गाँव में एक भूजल योजना का निर्माण किया गया था, जो केवल 29 घरों की ही व्यवस्था पूरा कर पाती थी। समय के साथ गांव की आबादी बढ़ती गई लेकिन उनके पास नल के पानी का कनेक्शन नहीं था। नए परिवार अपनी दैनिक घरेलू जरूरतों के लिए पूरी तरह से 29 हैंडपंपों और कुओं पर निर्भर थे।
73वें संविधान संशोधन ने पेयजल को संविधान की 11वीं अनुसूची में डाल कर उसके प्रबंधन की ज़िम्मेदारी ग्राम पंचायतों को सौंप दी है। वैसे तकनीकी रूप से देखा जाए तो पेयजल पूर्णतः सार्वजनिक माल नहीं है, क्योंकि पेयजल की सीमित मात्रा को देखते हुए इसे लेकर प्रतिद्वंदिता तो चलती ही रहती है। इस दृष्टिकोण से तो पेयजल को वास्तव में एक साझा संसाधन माना जाना चाहिए।
महासागर पानी के वो अथाह समूह हैं जो धरती के सातों महाद्वीपों को अलग-अलग करते हैं अंतरिक्ष से पृथ्वी नीले रंग की दिखाई देती है जिसका कारण ये महासागर ही हैं। सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन जैसी अद्भुत प्राकृतिक घटना के कारण नीले रंग का प्रतीत होता समुद्री जल पृथ्वी को 'नीले ग्रह' की संज्ञा दिलाता है।
बढ़ती आबादी के कारण इमारती लकड़ी, ईंधन की मांग, खेती के विस्तार आदि के कारण समस्या विस्फोटक रूप लेती जा रही है। इसके अलावा, खेतों में भूमि के प्रयोग में गलत पद्धतियों के अपनाने से भी समस्या बढ़ती जा रही है।मिट्टी के संरक्षण में केवल मृदा अपरदन पर काबू पाना ही शामिल नहीं है, बल्कि मिट्टी अथवा मृदा की कमियों को दूर करने, खाद और उर्वरक का प्रयोग, सही तरीके से बारी-बारी से फसल उगाना, सिंचाई, जल निकासी, आदि अनेक पक्ष भी इसके अंतर्गत आते हैं। इस व्यापक प्रक्रिया का लक्ष्य उच्च स्तर तक मृदा की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाना है।
यह यात्रा वृत्तात्मक लेख महान वैज्ञानिक और भारत में आधुनिक विज्ञान के जनक जगदीश चंद्र बोस ने सन् 1895 में लिखा था जिसे उनकी पुस्तक 'अव्यक्त' में शामिल किया गया था। इस समय जगदीश चंद्र बोस अपने जीवन के संक्रमण काल से गुजर रहे थे। अब तक उनके माता-पिता की मृत्यु हो चुकी थी और जगदीश चंद्र बोस की पारिवारिक जिम्मेदारियां भी कम हो गई थीं। इसी बीच वह गंगोत्री की यात्रा करने गए थे। वहाँ से लौटकर उन्होंने यह लेख लिखा था। इसी समय उन्होंने अपनी शोधयात्रा शुरू की थी जिसके बाद उन्होंने वैज्ञानिक शोध में महानता की ऊंचाइयों की प्राप्त किया था।
15 अगस्त, 2019 को शुरू हुए जल जीवन मिशन के बाद यह नल कनेक्शनों की कवरेज में तीन गुना की वृद्धि है। ओडिशा भी नल कनेक्शन उपलब्ध कराने के अपने निरंतर प्रयासों से राष्ट्रीय औसत प्रतिशत के करीब पहुँच रहा है क्योंकि राज्य में अब तक 48% से ज़्यादा ग्रामीण घरों में नल कनेक्शन उपलब्ध कराये जा चुके हैं, जबकि इस मिशन की शुरुआत के समय ओड़ीशा में कवरेज केवल 3.51% ही था।
दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र, जिसे अंटार्कटिका कहा जाता है, में अंटार्कटिका महाद्वीप और उसके आस-पास का दक्षिणी महासागर शामिल है। अंटार्कटिका महाद्वीप पर भी दुनिया के किसी एक देश का अधिकार नहीं है। बल्कि यहाँ दुनिया के विभिन्न देश मिल-जुलकर केवल वैज्ञानिक अनुसंधान करते हैं।
प्रदूषण मुक्त भारत की सफलता में योगदान देने के लिए साइकिल से चलते हुए उन्होंने उस जमीन पर दौड़ लगाई है, जो बंजर है, उदास है, जहाँ पेड़ ही नहीं है। हरियाली गुरु पिछले 10 वर्षों में कई हजार पौधे अपनी साइकिल में लादकर लगा चुके हैं।
पृथ्वी की जलवायु कालांतर से ही परिवर्तनशील रही है। भौमिकीय काल-क्रम के विभिन्न विधियों में हुए जलवायु परिवर्तन नाटकीय तो थे ही, साथ ही इन्होंने पृथ्वी के प्राणियों तथा वनस्पतियों के उद्भव, विकास तथा विनाश के इतिहास को भी निरंतर प्रभावित किया है। इसके अतिरिक्त विभिन्न भूगतिकी प्रक्रियाएँ भी जलवायु परिवर्तनों द्वारा नियंत्रित होती रही हैं। पृथ्वी पर मानव के अस्तित्व से जुड़े इन जलवायु परिवर्तनों के संबंध में विगत कुछ वर्षों से उल्लेखनीय कार्य हुए हैं।
बारिश के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के घरों में सांपो का घुस आना एक बेहद सामान्य सी बात है लेकिन यही सामान्य सी लगने वाली बात लाखों लोगों को हमेशा भयग्रस्त बनाये रखती है और हजारों लोगों के लिए जानलेवा साबित होती है। सांप ही धरती ग्रह पर एकमात्र ऐसा प्राणी है जिससे इंसान सबसे ज्यादा डरता है जो कि सहज और स्वाभाविक है। सांपो का नाम मात्र सुनने से ही कई लोगों की रूह कांप जाती है जिसका कारण भी बिल्कुल स्पष्ट है
पिछले कुछ वर्षों से बारिश के मौसम में आपने अपने आस-पास के परिवेश में नमीयुक्त स्थानों, गीली मिट्टी, बाग-बगीचों और नर्सरी में अक्सर एक जोंक की तरह दिखाई देने वाला एक जीव अवश्य देखा होगा। जमीन पर चलते हुए ये जीव अपने पीछे-पीछे चिपचिपा द्रव पदार्थ भी छोड़ता जाता है अतः लोग और भी हैरत में पड़ जाते हैं।
ग्रेवॉटर का तात्पर्य घरेल अपशिष्ट जल से है जो बिना मल संदूषण के घरों या घरेलू गतिविधियों से उत्पन्न होता है। इसमें रसोई से निकलने वाला गंदा पानी, नहाने और कपड़े धोने से निकलने वाला गंदला पानी शामिल है लेकिन इसमें शौचालयों का गंदला पानी या मल का पानी शामिल नहीं है।
आज सभी 32 परिवारों को उनके घर, स्कूल, आंगनबाडी, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और पंचायत भवन में प्रतिदिन 55 एलपीसीडी स्वच्छ नल का पानी मिल रहा है। फील्ड टेस्ट किट (एफटीके) का उपयोग करके स्रोत और जल वितरण बिंदुओं पर पानी की गुणवत्ता का बार- बार परीक्षण करने के लिए एक पांच सदस्यीय महिला उप-समिति का गठन किया गया है