घरेलू और बाहरी प्रदूषण से भारत में हर साल 24 लाख लोगों की मौत होती है, जो दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों का 30 प्रतिशत है। दरअसल, डब्ल्यूएचओ की ग्लोबल अर्बन एयर पॉल्यूशन रिपोर्ट में 108 देशों के 4300 शहरों से पीएम 10 और पीएम 2.5 के महीन कणों का डाटा तैयार किया गया है। इसके मुताबिक 2016 में पूरी दुनिया में सिर्फ वायु प्रदूषण से 42 लाख लोगों को मौत हुई है। वहीं खाना बनाने, फ्यूल और घरेलू उपकरणों से फैलने वाले प्रदूषण से दुनिया में 38 लाख लोगों की मौत हुई है। एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवां बड़ा कारण है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुंच जाते हैं, जिससे सांस व हृदय संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। फेफड़े का कैंसर भी हो सकता है। दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती संख्या हैं। थर्मल पावर स्टेशन, पड़ोसी राज्यों में स्थित फैक्टरियों आदि से भी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है।
सांस कैसे लें-
मनुष्य दिन भर में जो कुछ लेता है उसका 80 प्रतिशत भाग वायु है। प्रति दिन मनुष्य 22000 बार सांस लेता है। इस प्रकार प्रत्येक दिन वह 16 किलोग्राम या 35 गैलन वायु ग्रहण करता है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण होती है, जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत) होती है, जबकि 21 प्रतिशत ऑक्सीजन और 003 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड होता है तथा शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, ऑर्गन, निऑन, क्रिस्टन, जेनान, ओजोन और जल वाष्प होती. है। वायु में विभिन्न गैसों की यह मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अंतर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए ऑक्सीजन जरूरी है। जब वायु में कार्बन •डाईऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइडों की वृद्धि हो जाती है तो यह खतरनाक हो जाती है।
सबसे खराब स्थिति भारत की-
भारत को विश्व में सबसे अधिक पर्यावरण प्रदूषण की दृष्टि से पाचवा खतरनाक देश करार दिया गया है। वायु शुद्धता का स्तर भारत के मेट्रो शहरों में पिछले 20 वर्षों में बहुत ही खराब रहा है। इस दौरान आर्थिक स्थिति ढाई गुना बढ़ी है और औद्योगिक प्रदूषण में चार गुना बढ़ोतरी हुई है। वास्तविकता तो यह है कि पिछले 18 वर्ष में जैविक ईंधन जलने की वजह से कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन 40 प्रतिशत तक बढ़ चुका है और पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियम का बढ़ा है। और यही स्थिति रही तो 2030 तक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा 90 प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।
क्या है वायु गुणवत्ता सूचकांक-
- वायु गुणवत्ता मापने के लिए विभिन्न देशों में वायु गुणवत्ता सूचकांक बनाए गए हैं। ये सूचकांक देश में हवा की गुणवत्ता को मापते हैं, और बताते हैं कि हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानदंडों से अधिक है या नहीं।
- भारत राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) का उपयोग करता है, कनाडा वायु गुणवत्ता स्वास्थ्य सूचकांक का उपयोग करता है, सिंगापुर प्रदूषक मानक सूचकांक का उपयोग करता है, और मलयेशिया वायु प्रदूषण सूचकांक का उपयोग करता है।
- वायु गुणवत्ता सूचकांक हवा की गुण को मापता है। यह हवा में घुली गैसों की मात्रा और प्रकार को दर्शाता है। इस वायु गुणवत्ता सूचकांक में हवा की 6 श्रेणियां बनाई गई हैं। ये श्रेणियां वायु गुणवत्ता पर आधारित हैं। ये श्रेणियां हैं, अच्छा, संतोषजनक, मध्यम, खराब, बहुत खराब और गंभीर जैसे-जैसे हवा की गुणवत्ता खराब होती जाती है, वैसे-वैसे हवा की रैंकिंग भी अच्छी से खराब और फिर बहुत खराब से गंभीर हो जाती है।
- वायु प्रदूषण का मतलब है कि हवा में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानदंडों से अधिक हैं
- बर्कले पृथ्वी विज्ञान अनुसंधान समूह के अनुसार 950-1000 के बीच की पीएम 2.5 सामग्री के साथ हवा में सांस अलेना एक दिन में 44 सिगरेट पीने के समान है
स्रोत - हस्तक्षेप, 4 नवम्बर 2023, राष्ट्रीय सहारा
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