प्रदूषण,आर्थिकी के लिए भी चुनौती 

प्रदूषण, आर्थिकी के लिए भी चुनौती 
प्रदूषण, आर्थिकी के लिए भी चुनौती 

प्रदूषण मुख्य तौर पर जल, वायु, भूमि और ध्वनि के प्रदूषित होने से होता है। इसलिए प्रदूषण का समग्र विश्लेषण मुख्य तौर पर जल, वायु, भूमि और ध्वनि के प्रदूषित इन चारों कारकों को ध्यान में रखकर ही किया जा सकता है। जल प्रदूषण, औद्योगिक कचरा, अन्य कचरा फेंकने, जहाजों से होने वाले तेल रिसाव आदि से होता है। वायु प्रदूषण में वृद्धि पराली व कचरा जलाने, कारखानों एवं वाहनों से निकलने वाले धुएं आदि से होती है। भूमि, कीटनाशक, खाद आदि से प्रदूषित होती है। ध्वनि प्रदूषण रेल, हवाई जहाज, गाड़ियों, औद्योगिक गतिविधियों आदि के कारण होता है। प्रदूषित जल की वजह से हैजा, दस्त, पेचिश, हेपेटाइटिस- ए. टाइफाइड आदि बीमारियां होती हैं जबकि गाड़ी एवं कारखानों से निकलने वाले धुएं से हृदय रोग, एलर्जी, कैंसर आदि घातक बीमारियां होती हैं। भूमि के प्रदूषित होने से हैजा, दस्त, कैंसर, हृदय रोग, श्वास संबंधी विकार, त्वचा रोग और किडनी से संबंधित बीमारियां होती हैं, और ध्वनि प्रदूषण से याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद, नपुंसकता, कैंसर आदि बीमारियां होती हैं।

प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक वायु प्रदूषण माना जाता है। यह दुनिया में असमय मृत्यु का चौथा सबसे बड़ा कारण है। इसके कारण सर्दियां आते ही स्मॉग की काली छाया दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई शहरों को अपने दामन में समेट लेती है। प्रदूषण का सबसे प्रतिकूल प्रभाव स्वास्थ्य और उत्पादकता पर पड़ता है। दुनिया में कोई भी कार्य मानव संसाधन की बदौलत ही किया जा सकता है, लेकिन जल, वायु, भूमि, और ध्वनि प्रदूषण शरीर को रुग्ण कर देता है, जिससे स्वास्थ्य मद की लागत बढ़ जाती है और उत्पादकता कम हो जाती है।

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन

आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के अनुसार विकासशील देशों में वायु प्रदूषण के कारण लोग अपने स्वास्थ्य पर अपने कुल खर्च का 7 प्रतिशत खर्च करते हैं। ओईसीडी की 2021 में जारी वायु प्रदूषण के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान से संबंधित रिपोर्ट के अनुसार पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के कारण 2020 में दिल्ली में 54,000 से ज्यादा लोगों की मृत्यु हुई थी, जबकि मुंबई में 25,000 की। बेंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद में क्रमशः 12,000, 11,000 और 11,000 लोग मौत के ग्रास बन गए थे। पीएम, तरल और ठोस कणों का मिश्रण होता है, जिसे 3 श्रेणियों में बांटा गया है। पीएम 10 को नग्न आंखों से देखा जा सकता है, लेकिन पीएम 2.5 को नग्न आंखों से नहीं देखा जा सकता, वहीं पीएम 1 सुक्ष्मतम कण होते हैं।

प्रदूषण से जलवायु परिवर्तन तेज

प्रदूषण से जलवायु में भी तेजी से परिवर्तन आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की अंतर-सरकारी समिति (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत की जलवायु मानसूनी है, और मानसूनी जलवायु में जलवायु परिवर्तन से वर्षा में वृद्धि, बाढ़, सूखा, भूस्खलन तथा भूमि अपरदन जैसी समस्याएं उत्पन्न होंगी। मौसम के मिजाज भी बदल जाएंगे। गर्मी में सर्दी का अहसास होगा और सर्दी में गर्मी का समंदर के जल में इजाफा होगा, जिससे देश के तटीय शहर डूब जाएंगे। एक अनुमान के अनुसार आगामी दशकों में भारत में तटीय क्षेत्र में रहने वाली लगभग 3.5 करोड़ आबादी को बाढ़ और 40 प्रतिशत आबादी को 2050 तक जल संकट का सामना करना पड़ेगा। मौजूदा समय में देश में तकरीबन 33 प्रतिशत लोग जल संकट की समस्या से जूझ रहे हैं।

दुनिया में जलवायु परिवर्तन का असर हर देश में एक समान पड़ने की आशंका नहीं है, लेकिन भारत और बांग्लादेश पर जलवायु परिवर्तन का सबसे प्रतिकूल प्रभाव पड़ने का अनुमान है। वैश्विक तापमान में आगामी 2 दशकों में 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी हो सकती है। समुद्र के जल स्तर में इजाफा होने और जल संकट से कृषि क्षेत्र पर बहुत ज्यादा प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। गेहूं, दलहन, मोटे अनाज और अनाज उत्पादन देश में 2050 तक 9 प्रतिशत तक कम हो सकता है। ज्यादा कार्बन उत्सर्जन होने से दक्षिण भारत में मक्का उत्पादन में 17 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है। फसल उत्पादन में कमी आने से अनाजों की कीमत में इजाफा होने का अंदेशा है, जिससे खाद्य सुरक्षा और आर्थिक वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। मछली उत्पादन पर भी प्रतिकूल पड़ने की आशंका है। जल की गुणवत्ता में गिरावट आएगी, पीने योग्य जल की भारी कमी हो जाएगी। जलवायु परिवर्तन की वजह से बीते कई सालों से कई लाख हेक्टेयर भूमि में अपेक्षित उत्पादन नहीं हो पा रहा है, जिससे देश में अनाज की कमी हो रही है। कुपोषण की समस्या देश में तेजी से बढ़ रही है।

जीडीपी में वृद्धि हो रही प्रभावित 

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण से भारत के साल-दर-साल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि में लगभग 0.56 प्रतिशत की कमी आ रही है, क्योंकि जीडीपी की गणना में शामिल वस्तुओं एवं सेवाओं पर वायु प्रदूषण नकारात्मक प्रभाव डाल रहा हैं। आज भारत में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा अनुशंसित स्तर का लगभग 20 गुना और भारत के अपने मानकों से दोगुने से अधिक है। जल, भूमि और ध्वनि प्रदूषण स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। नदी की सफाई जमे गाद की निकासी, समुद्री तटों की सफाई, प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पाबंदी, सड़कों के विभाजक में पौधा रोपण, कपड़े, प्लास्टिक के बैग, कांच के सामानों को फेंकने की बजाय पुनरुपयोग, खेती-किसानी में खाद और रसायन का कम से कम उपयोग, ऐसे उपकरणों का निर्माण, जिनसे ध्वनि की तीव्रता कम हो आदि की मदद से प्रदूषण का स्तर कुछ हद तक कम किया जा सकता है, लेकिन महत्त्वपूर्ण है हमारी जागरूकता। हम जागरूक होंगे, तभी बदलाव आ सकता है। ब्रिटेन में टेम्स नदी को साफ किया जा सकता है, तो गंगा को क्यों नहीं? प्रदूषण से भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ा है,और आगामी सालों में यह और कितना प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है, इसका ठीक-ठीक आकलन संभव नहीं है। फिर भी, समीचीन आंकड़े नहीं होने के बावजूद कहना होगा कि प्रदूषण के प्रमुख कारकों वाहन, कारखाना, खाद, रसायन आदि को बंद करने या कम करने से अर्थव्यवस्था पर कुछ प्रतिकूल असर जरूर पड़ेगा, लेकिन यह नुकसान प्रदूषण से होने वाले नुकसान से बेशक, बहुत कम होगा।

वायु प्रदूषण से भारत पर पड़ रहा है सालाना 1 लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ अध्ययन

फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर और सेंटर ग्रीनपीस द्वारा जारी नई रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था को सालाना 15,000 करोड़ डॉलर (1.05 लाख करोड़ रुपये) का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है। यदि सकल घरेलू उत्पाद के रूप में देखें तो यह नुकसान कुल जीडीपी के 5.4 फीसदी के बराबर है।

दूसरी ओर, हर साल वायु प्रदूषण देश में होने वाली करीब 9 लाख 80 हजार असमय मौतों के लिए जिम्मेदार है। इसके चलते हर साल 3,50,000 बच्चे अस्थमा का शिकार हो जाते हैं। वहीं 24 लाख लोगों को हर साल इसके कारण होने वाली सांस की बीमारी के चलते हॉस्पिटल जाना पड़ता है। इसके कारण देश में हर साल 49 करोड़ काम के दिनों का भी नुकसान हो जाता है। 

ऐसा नहीं है कि अकेले भारत को ही वायु प्रदूषण का दंश झेलना पड़ रहा है। दुनिया के अनेक देशों पर भी इसका गंभीर असर पड़ रहा है। जहां इसके चलते चीन की अर्थव्यवस्था को 90,000 करोड़ डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा था। वहीं अमेरिका को होने वाला नुकसान करीब 60,000 करोड़ डॉलर का था। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो जीवाश्म ईंधन से होने वाले वायु प्रदूषण से दुनिया भर में हर साल 40 लाख लोग काल के गाल में समा जाते हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था पर इसका असर देखें तो यह करीब 2 लाख 92 हजार करोड़ डॉलर के बराबर होता है

लेखक सतीश सिंह आर्थिक मामलों के जानकार हैं।
 

स्रोत -  हस्तक्षेप, 4 नवम्बर 2023, राष्ट्रीय सहारा

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