परिवहन तंत्र का वायु गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव

परिवहन तंत्र का वायु गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव
परिवहन तंत्र का वायु गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव

भापरिषद (आईसीएमआर मात्र 2019 का एक अध्ययन बताता है कि भारत में 16.7 लाख लोगों की मृत्यु के लिए वायु प्रदूषण एक प्रमुख कारक था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार यहां अस्थमा एवं सांस के बीमारियों से विश्व में सबसे अधिक मृत्यु होती है। वहीं दिल्ली के संबंध में एक अंतरराष्ट्रीय शोध बताता है कि अगर समय रहते प्रदूषण पर काबू नहीं किया गया तो वर्ष 2025 तक 32 हजार लोग प्रदूषित जहरीली हवा के कारण असामयिक मृत्यु का शिकार हो सकते हैं। इन आंकड़ों से इतर प्रदूषित हवा मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा है, जिससे हर व्यक्ति प्रदूषित हवा में सांस लेने के दौरान महसूस कर सकता है।

मोटे तौर पर देखा जाए तो दिल्ली एनसीआर की आबादी लगभग तीनकरोड़ है। देश की यह जनसंख्या एक गंभीर खतरे से जूझ रही है। इस दिशा में राजधानी क्षेत्र के ज्यादातर नीति निर्माताओं की ओर से इस भयावह स्थिति के लिए पराली को प्रमुख कारक बताया जाता है। परंतु पराली से इतर दिल्ली के स्थानीय प्रदूषक इसके पीछे कहीं अधिक भूमिका निभाते हैं। वर्ष के ज्यादातर दिनों में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब या बहुत खराब की श्रेणी में होता है, उस समय तो पराली नहीं जलाई जाती ? निश्चित तौर पर पराली साल के एक विशेष समय अवधि में 20 से 40 प्रतिशत तक प्रदूषण में अपनी भागीदारी रखकर स्थिति को गंभीर से अत्यंत गंभीर की श्रेणी में ले जाती है।परंतु दिल्ली में प्रदूषण के स्रोत जैसे परिवहन तंत्र, धूल एवं धुआं, कचरा निस्तारण, निर्माण कार्य, स्थानीय एवं दिल्ली के भीतरी प्रदूषण के कारकों जो 70 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी रखते हैं, उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

परिवहन तंत्र एवं प्रदूषण : भारत

सरकार के पृथ्वी मंत्रालय के अंतर्गत एक संस्था है- डिसीजन सपोर्ट सिस्टम फार एयर क्वालिटी मानिटरिंग इन दिल्ली। इसका मानना है कि वार्षिक स्तर पर दिल्ली में वायु प्रदूषण का प्रमुख कारक यहां का परिवहन तंत्र है एवं इसके सुधार के लिए जो समुचित उपाय किया जाना चाहिए था, उसका अभाव है। सार्वजनिक परिवहन सुविधा की कमी, असुरक्षा, अंतिम गंतव्य तक संपर्क की कमी एवं वाहनों की खरीद व पंजीकरण के लिएनियंत्रण की नीतियों के कारण दिल्ली में निजी वाहनों की संख्या में निरंतर वृद्धि हुई है।हो रही है। संबंधित आंकड़ों के मुताबिक बीते तीन दशकों में दिल्ली के सड़कों की लंबाई दोगुना वृद्धि के साथ महज 15 हजार से बढ़कर 33 हजार किमी तक पहुंची, परंतु इस दौरान वाहनों की संख्या 21 गुना बढ़ी है। इसी वर्ष की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार लगभग 80 लाख दो पहिया वाहन, 35 लाख कार, सात हजार से अधिक बस आदि वर्तमान में उपयोग में है। इसमें से लगभग 60 प्रतिशत वाहन बिना प्रदूषण प्रमाण पत्र के सड़कों पर संचालित हैं। इनके चलने से सड़क पर प्रदूषण अधिक पैदा होता है।

दिल्ली के पड़ोसी राज्यों से हजारों की संख्या में प्रतिदिन डीजल से चलने वाली बसों एवं ट्रकों का एनसीआर में संचालित होना यहां वायु प्रदूषण को बढ़ाता है। साथ ही दिल्ली में भी ज्यादातर वाहन विशेष कर दो पहिया वाहन पेट्रोल से चलते हैं, जो निश्चित तौर पर यहां के वायु प्रदूषण को बढ़ाता है।आइआइटी दिल्ली का संबंधित अध्ययन बताता है कि दिल्ली में पीएम 2.5 के स्तर में 25 से 36 प्रतिशत भागीदारी वाहनों की है एवं पीएम 10 के स्तर में 14 प्रतिशत। इस संदर्भ में दिल्ली ट्रैफिक पुलिस ने महज तीन दिन में यानी तीन से छह नवंबर के बीच कुल 814 पेट्रोल वाहनों एवं 3,656 डीजल वाहनों पर वायु गुणवत्ता उल्लंघन एवं 4,785 चालान वैध प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र के अभाव में किया। इस स्थिति को अगर वार्षिक परिदृश्य में देखा जाए तो गंभीरता एवं लोगों की लापरवाही को प्रखर रूप से समझा जा सकता है। इतनी गंभीर स्थिति के बावजूद साइकिल के प्रयोग को प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है, जो पर्यावरण अनुकूलित होने के साथ ही प्रदूषण की समस्या से कारगर तरीके सेनिपटने में सहायक है। दिल्ली एनसीआर में यदि कुछ स्थानों को छोड़ दिया जाए तो यहां साइकिल ट्रैक या इसके लिए विशेष लेन की कोई व्यवस्था नहीं है।

टायर की भूमिका 

वाहन के टायरों का भी वायु प्रदूषण में योगदान है। वाहनों की गति के दौरान टायर एवं सड़क के बीच घर्षण से टायर के पार्टिकल्स छोटे कणों में रबड़ के रूप में टूट कर पर्यावरण में मिलते हैं। उसमें भारी धातु जैसे तांबा, शीशा, जैडमियम, निकल एवं कुछ मात्रा में कार्सिनोजेन होता है, जो 2.5 माइक्रोन से कम व्यास का होने के कारण पीएम 2.5 के अंतर्गत आते हैं। ये धूल-कण बिना क्षतिग्रस्त हुए फेफड़ों के अंदर गहराई तक जाकर स्वास्थ्य को दुष्प्रभावित करते हैं, जो सामान्य धूल कणों की तुलना में कहीं अधिक खतरनाक है। लंदन की इंपीरियल कालेज द्वारा हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, हर वर्ष वैश्विक स्तर पर टायर के घिसाव से 60 लाख टन टायर के घिसे हुए कण निकलते हैं, जो पर्यावरणएवं मानव के लिए काफी खतरनाक है। वैसे टायर एवंप्रदूषण से जुड़े आयाम पर भारत के संदर्भमें ठोस आंकड़ों का अभाव है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है।

महत्वपूर्ण पहल

वायु प्रदूषण से निपटने के लिए बीते दिनों कुछ महत्वपूर्णसकारात्मक कदम उठाए गए हैं। आनेवाले वर्षों में अच्छे परिणाम की अपेक्षा की जा सकती है। इसके तहत वर्ष 2001 में सभी सार्वजनिक परिवहन के वाहनोंको सीएनजी प्रणाली में बदला गया। 1 वर्ष 2015 में डीजल से चलने वालीकमर्शियल वाहनों पर पर्यावरण क्षतिपूर्तिशुल्क का लगाने का प्रविधान किया गयाएवं दिल्ली से होकर जाने वाले वाहनों केलिए दिल्ली के बाहर से ही सड़कों का कारिडोर विकसित किया गया है। साथ ही 10 साल से अधिक पुराने डीजल एवं 15 साल से अधिक पुराने पेट्रोल वाले वाहनों पर प्रतिबंध लगाया गया जिससे आर्थिक सर्वेक्षण 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली की सड़कों पर मोटर वाहनों की संख्या में 35 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इसके अलावा इलेक्ट्रिक वाहनों पर भी काफी जोर दिया जा रहा है। साथही मेट्रो ट्रेन के संचालन से भी दिल्ली एनसीआर में परिवहन प्रणाली की तस्वीर काफी हद तक बदली है।

इन सभी सकारात्मक प्रयासों के अलावा परिवहन तंत्र से पैदा हो रहे प्रदूषण को कम करने के लिए सबसे पहले दिल्ली में साइकिल को प्रोत्साहित कर उसके लिए विशेष आधारभूत ढांचे पर कार्य करने की आवश्यकता है। साथ ही सार्वजनिक परिवहन तंत्र खासकरबसों की संख्या को बढ़ाने, इसमें सुरक्षा सुनिश्चित करने एवं बसों की आवृत्ति में सुधार लाने की जरूरत है। साथ ही सड़क किनारे एवं सड़कों के धूल कणों को सही तरीके से निस्तारित करने की आवश्यकता है। वहीं वाहनों से पैदा होने वाले प्रदूषण पर भी समग्रता के साथ शोध की आवश्यकता है, ताकि आरोप प्रत्यारोप से हटकर दिल्ली में वायु प्रदूषण की मूल समस्याओं पर कार्य किया जा सके।

स्रोत-  दैनिक जागरण 

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Post By: Shivendra
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