जल संरक्षण प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन

जल संरक्षण प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन
जल संरक्षण प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन

आज भारत में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में जल उपलब्धता की समस्या विकराल रूप ले रही है। इस समस्या के समाधान हेतु विभिन्न राष्ट्रों की सरकारें तरह-तरह के उपाय कर रही हैं। भारत सरकार भी राष्ट्रीय स्तर पर जल शक्ति मंत्रालय के माध्यम से जल सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक समाधान, लोक सहभागिता के माध्यम से साधने में जुटी है। जलग्रहण क्षेत्र पर आधारित विभिन्न परियोजनाओं के अध्ययनोपरांत यह निष्कर्ष निकला कि 500-1000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में एक गांव या कई छोटे-छोटे गांवों के समूह को प्रबंधन के लिए सक्रिय रूप से भागीदार बनाया जाना चाहिए। इसी स्तर पर जलग्रहण क्षेत्र विकास समिति की स्थापना हो। इसमें अधिकतम भागीदारी ग्रामवासियों तथा कृषकों की ही हो आवश्यकतानुसार विभिन्न अनुसंधान संस्थानों, प्रांतीय कृषि विश्वविद्यालयों तथा राज्य सरकारों के तत्संबंधित विभागों का मार्गदर्शन लेते हुए क्रियान्वयन में सहयोग लिया जाय ।

लोक सहभागिता से जलापूर्ति समस्या का निवारण

जल संसाधनों के संरक्षण एवं उचित प्रबन्धन के लिए एकमात्र सही विकल्प गाँव स्तर पर लोक सहभागिता के माध्यम से छोटे, मझोले और बड़े तालाबों तथा अन्य जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण करना है। प्रत्येक गाँव में छोटे-छोटे तालाबों एवं पोखरों से वर्षा उपरान्त भूमि सतह पर जो जल प्रवाहित होता है, उसका बहुत ही कम समय और कम खर्च में संचयन किया जा सकता है। सैद्धान्तिक रूप से प्रयास ऐसे होने चाहिए कि इकाई क्षेत्र में होने वाली वर्षा तथा उसके फलस्वरूप उत्पन्न होने वाला जल अपवाह उस क्षेत्र के परिधि से बाहर न जाने पाए। जनशक्ति के सामर्थ्य से प्रत्येक जिले में सभी जल संरक्षण पद्धतियों का प्रयोग किया जा सकता है। इससे निकट भविष्य में भारी मात्रा में जल संरक्षण की सतह पर जल उपलब्धता में वृद्धि ही नही बल्कि भूजल संभरण (रिचार्ज) को भी बढ़ाया जा सकता है जिसे हम जल की भविष्य निधि भी कह सकते हैं और यह जल के लिए जब भी आपातकाल की स्थिति हो, उपयोग में लाया जा सकता है।

जल संरक्षण हेतु सरकारी प्रयास

जल संरक्षण, जलग्रहण क्षेत्र विकास और सिंचाई के लिए संचित जल के प्रबंधन तथा जल उपयोग दक्षता और उनके कार्यान्वयन में वृद्धि पर सरकार द्वारा शुरू किए गए विभिन्न कार्यक्रम कालानुक्रमिक क्रम में आगे दर्शाया गया है।

समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम

समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम, पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा 1989-90 से लागू किया गया था, और 1992 में ग्रामीण विकास मंत्रालय को हस्तांतरित कर दिया गया था। इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन में मूल दृष्टिकोण वर्ष 1995 में संशोधित किया गया था जब वाटरशेड दृष्टिकोण के माध्यम से बंजर भूमि के विकास के लिए वाटरशेड विकास के दिशानिर्देश लागू हुए थे। कार्यक्रम का मूल उद्देश्य देश में बंजर भूमि को सूक्ष्म जलग्रहण क्षेत्र उपचार योजनाओं के आधार पर एकीकृत तरीके से विकसित करना है। ये योजनाएँ भूमि की क्षमता, निर्माण स्थल की स्थिति और लोगों की स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की जाती हैं। इसके अलावा इस योजना का उद्देश्य सभी चरणों में बंजर भूमि विकास कार्यक्रमों में लोगों की भागीदारी को बढ़ाने के साथ ग्रामीण रोजगार को भी बढ़ावा देना है। इससे पहले सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम और मरुस्थल विकास कार्यक्रम वर्ष 1987 में ग्रामीण क्षेत्रों और रोजगार मंत्रालय द्वारा लागू किया गया था।

बारानी क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय वाटरशेड विकास कार्यक्रम

यह कार्यक्रम कृषि मंत्रालय के कृषि और सहकारिता विभाग द्वारा वर्ष 1991 में शुरू किया गया था। इस योजना का उद्देश्य बारानी क्षेत्रों में वाटरशेड के आधार पर समग्र विकास करना तथा प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन जैसे मिट्टी और जल संरक्षण, रन-ऑफ प्रबंधन, जल संचयन, ड्रेनेज लाइन ट्रीटमेंट इत्यादि करना है जिससे सिंचित और बारानी क्षेत्रों के बीच क्षेत्रीय असमानता को कम किया जा सके। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) महात्मा गांधी रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 (नरेगा, जिसे बाद में सितंबर 2005 में पारित "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम या मनरेगा के रूप में नाम दिया गया) का उद्देश्य कम से कम 100 दिनों का वेतन प्रदान करके ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा को बढ़ाना है। प्रत्येक घर में एक वित्तीय वर्ष में रोजगार मिलता है जिनके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक श्रम करते हैं, और स्थायी संपत्ति जैसे सड़क, नहर, तालाब और कुएं बनाते हैं। मनरेगा के अंतर्गत जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए देश के विभिन्न राज्यों में सफल प्रयास किए गए हैं। जैसे कि राजस्थान में 'मुख्यमंत्री जल स्वालंबन अभियान' झारखंड में 'डोभा या फार्म तालाबों का निर्माण, तेलंगाना में 'मिशन ककटिया', आंध्र प्रदेश में 'नीरू चेडू, मध्य प्रदेश में कपिल धारा, कर्नाटक में 'बोरवेल पुनर्भरण' इत्यादि ।

समेकित जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन कार्यक्रम

यथार्थवादी और समग्र रूप से नई पीढ़ी के जलग्रहण क्षेत्रों के उपचार और विकास के लिए समन्वित बंजर भूमि विकास कार्यक्रम और बारानी कृषि के लिए राष्ट्रीय वाटरशेड विकास कार्यक्रम को मिलाकर राष्ट्रीय बारानी क्षेत्र प्राधिकरण के माध्यम से भारत सरकार ने जलग्रहण क्षेत्रों की विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन के लिए सामान्य दिशानिर्देश 2008 से क्रियान्वित किये जा रहे हैं।

राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम

पीने के पानी के मुद्दों का समाधान करने के लिए ग्रामीण जल आपूर्ति कार्यक्रम और दिशानिर्देशों को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के रूप में वर्ष 2009 में संशोधित किया गया, जिसका लक्ष्य ग्रामीण भारत में स्थायी पेयजल सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा ग्राम पंचायत स्तर पर प्रारंभिक जल परीक्षण की क्षमता विकसित करके पानी की गुणवत्ता में सुधार करना है। यह कार्यक्रम वर्तमान में जल जीवन मिशन कार्यक्रम में विलय हो गया है।

वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास कार्यक्रम

वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास कार्यक्रम उत्पादकता बढ़ाने और जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिम को कम करने के लिए, एकीकृत खेती प्रणाली पर केंद्रित है। यह प्रणाली जो वर्ष 2011-12 के दौरान शुरू हुई थी के तहत, फसलों / फसल प्रणाली को बागवानी, पशुधन, मत्स्य, कृषि-वानिकी, सामान्य कृषि इत्यादि गतिविधियों के साथ एकीकृत किया जाता है ताकि किसानों को न केवल आजीविका को बनाए रखने के लिए कृषि आय को अधिकतम करने में सक्षम बनाया जा सके, बल्कि सूखे, बाढ़ या बाढ़ के प्रभावों को भी कम किया जा सके।

स्वच्छ भारत मिशन

स्वच्छ भारत मिशन को राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में देशभर में 2014 को लॉन्च किया गया था । भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान सबसे महत्वपूर्ण स्वच्छता अभियान है। इस कार्यक्रम के तहत जल उपचार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। घरों से निकलने वाले गंदे पानी को उपचारित करके पुनः उपयोग किया जा सकता है, जिसके लिए जल प्रौद्योगिकी केंद्र, आई.ए. आर. आई. नई दिल्ली ने 2.2 मिलियन लिटर प्रति दिन क्षमता का एक सीवेज उपचार संयंत्र अपने परिसर में विकसित किया है। जो सुचारू रूप से काम कर रहा है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत जल प्रौद्योगिकी केंद्र के मार्गदर्शन में 9 अन्य सीवेज उपचार संयंत्र देश के विभिन्न स्थानों: कपूरथला (पंजाब), गिलोट (राजस्थान), कासगंज (उत्तर प्रदेश), रसूलपुर (हरियाणा), शिकोहपुर (हरियाणा), बेंगलुरु (कर्नाटक), गोवा, जोबनेर (राजस्थान). मथुरा (उत्तर प्रदेश) में भी लगाये गए हैं।

राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन

यह योजना कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में लॉन्च की गई। इस योजना का उद्देश्य कृषि को अधिक उत्पादक, टिकाऊ / सतत लाभकारी और जलवायु अनुकूल बनाना, मिट्टी और नमी का संरक्षण, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, कुशल जल प्रबंधन प्रथाओं को अपनाना, वर्षा आधारित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना तथा अन्य मिशनों के सहयोग से किसानों और हितधारकों की क्षमताओं का विकास करना है।

नमामि गंगे परियोजना

केंद्र सरकार ने 2014 में गंगा नदी के प्रदूषण को रोकने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 'नमामि गंगे' नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन शुरू किया। इस योजना का क्रियान्वयन केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय द्वारा किया जा रहा था जो अब जल शक्ति मंत्रालय की देख-रेख में हो रहा है। इस परियोजना के अंतर्गत नदी की सतह की सफाई, नदी में प्रवेश करने वाले नगरपालिका और औद्योगिक प्रदूषण को रोकने, नदी को पर्याप्त प्रवाह प्रदान करने इत्यादि कार्य किये जा रहे हैं। इसके अलावा कार्यक्रम के तहत जैव-विविधता संरक्षण, वनरोपण और जल गुणवत्ता की निगरानी भी की जा रही है।

अटल मिशन (अमृत)

भारत सरकार ने कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन फॉर रिजुवेनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन (अमृत) की शुरुआत वर्ष 2015 में की। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक घर को पाइप लाइन द्वारा जलापूर्ति एवं सीवर कनेक्शन उपलब्ध कराना है। इसके अतिरिक्त इस योजना में हरियाली अच्छी तरह से बनाए रखते हुए खुले स्थानों को विकसित करना, पार्कों का सौंदर्यीकरण तथा शहरी परिवहन का विकास भी शामिल है। इस योजना के तहत सभी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास किये जा रहे हैं। यह मिशन तभी फलीभूत होगा जब सभी जागरूक नागरिक जल संचयन को बढ़ाने में अपनी सेवाएं देंगे।

जल क्रांति अभियान

भारत के जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय जो वर्तमान में जल शक्ति मंत्रालय है द्वारा वर्ष 2015 के दौरान जल क्रांति अभियान (या जल आंदोलन पहल) नाम से एक नया कार्यक्रम आरम्भ किया गया। परियोजना के मुख्य उद्देश्य, गाँवों में पानी को पहुँचाना, जमीनी स्तर पर जन सहयोग या भागीदारी को मजबूत करना और ग्रामीण स्तर पर बढ़ावा देना, पारंपरिक और आधुनिक ज्ञान तथा संसाधनों के संरक्षण के लिए मौजूद प्रथाओं को अपनाना है। भारत सरकार ने इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने के लिए गैर-सरकारी संगठनों, शैक्षणिक संस्थानों, नीति निर्माताओं और नागरिकों को एक साथ शामिल किया है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना वर्ष 2015 से कृषि सहकारिता और किसान कल्याण विभाग द्वारा 'हर खेत को पानी और प्रति बूंद अधिक फसल के आदर्श वाक्य के साथ लागू की गई है, जिसका उद्देश्य सिंचाई आपूर्ति श्रृंखला में शुरुआत से अंत तक समाधान प्रदान करना अर्थात जल स्रोत वितरण नेटवर्क और खेत स्तर के अनुप्रयोग करना है। यह योजना न केवल सुनिश्चित सिंचाई के लिए स्रोत बनाने पर ध्यान केंद्रित करती है, बल्कि हर प्रकार से जल संचय और जल सिंचन के माध्यम से सूक्ष्म स्तर पर वर्षा जल का संरक्षण करके सुरक्षात्मक सिंचाई भी करती है। इस योजना के तहत यदि किसान द्वारा सिंचाई के उपकरण खरीदे जाते हैं तो उनको सब्सिडी भी प्रदान की जाती है। सरकार द्वारा इस योजना के माध्यम से ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई आदि को भी बढ़ावा दिया जाता है जिससे कि खेतों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो सके ।

जल जीवन मिशन

जल जीवन मिशन वर्ष 2015 में लांच किया गया था जिसके अंतर्गत जल शक्ति मंत्रालय के पेयजल और स्वच्छता विभाग, ग्रामीण भारत के सभी घरों में 2024 तक हर घर को नल से जल उपलब्ध कराने का लक्ष्य निर्धारित है। कार्यक्रम अनिवार्य तत्वों के रूप में स्रोत स्थिरता उपायों को भी लागू करता है, जैसे कि पुनर्भरण और पुनः उपयोग, अपशिष्ट अथवा ग्रे वाटर मैनेजमेंट, जल संरक्षण, वर्षा जल संचयन आदि-आदि। जल जीवन मिशन पानी के लिए एक सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है और इसमें मिशन के प्रमुख घटक के रूप में व्यापक सूचना, शिक्षा, संचार और प्रचार शामिल हैं।

आकांक्षी जिला कार्यक्रम

वर्ष 2018 में शुरू हुए इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े जिलों की पहचान कर उनके समग्र विकास में सहायता करना है। इस कार्य हेतु देश के 28 राज्यों से 115 ज़िलों की पहचान की गई थी। यह कार्यक्रम मुख्यतः पाँच विषयों (1) स्वास्थ्य एवं पोषण (2) शिक्षा, ( 3 ) कृषि एवं जल संसाधन (4) वित्तीय समावेश एवं कौशल विकास और (5) बुनियादी आधारभूत ढाँचे पर केंद्रित है।

जल शक्ति अभियान

जल शक्ति अभियान 2019 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था। यह भारत सरकार और राज्य सरकारों के विभिन्न मंत्रालयों के सहयोग से देश में जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिए एक अभियान है। अभियान का ध्यान पानी की कमी वाले जिलों और ब्लॉकों पर केन्द्रित है। जल संरक्षण के महत्वपूर्ण उद्देश्य हैं: (i) जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन, (ii) पारंपरिक और अन्य जल निकायों / टैंकों का नवीनीकरण, (iii) पानी का पुनः उपयोग और संरचनाओं का पुनर्भरण, (iv) वाटरशेड विकास और (v) वनीकरण ।

अटल भूजल योजना

जून 2018 में, विश्व बैंक बोर्ड ने इस योजना को मंजूरी दी और यह विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित है। अटल भूजल योजना (या अटल जल) वर्ष 2019 में केंद्र सरकार द्वारा जल जीवन मिशन के तहत शुरू की गई एक भूजल प्रबंधन योजना है। इस योजना का उद्देश्य भारत के सात राज्यों गुजरात, हरियाण, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में भूजल प्रबंधन में सुधार करना है। इस योजना के अंतर्गत लगभग 78 जिलों और 8350 ग्राम पंचायतों को प्रभावित करते हुए सामुदायिक भागीदारी के इन राज्यों के माध्यम से भूजल प्रबंधन में सुधार किया जाएगा। योजना की अवधि 2020 से 2025 तक है तथा बजट 6000 करोड़ रुपये है।

कैच द रेन अभियान

राष्ट्रीय जल मिशन अभियान 'कैच द रेन' की शुरुआत वर्ष 2021 में की गई। इसका उद्देश्य वर्षा जल जहाँ भी गिरे, जब भी गिरे, उसे एकत्रित करना है। इस अभियान के अंतर्गत, रोक बांध (चेक डैम), जल संग्रह गड्डा (वाटर हार्वेस्टिंग पिट), छत से जल का संग्रह ( रूफटॉप जल संचयन संरचनाएं) आदि बनाने के लिए कार्य योजना बनाई गयी है। भंडारण क्षमता को बढ़ाने के लिए अतिक्रमणों और टैंकों की गाद के निष्कासन (डी- सिल्टिंग), जल मार्गों के अवरोधों को हटाना (चैनलों में अवरोधों को हटाना जो जलग्रहण क्षेत्रों आदि से उनके लिए पानी लाते हैं); सीढ़ीदार कुओं की मरम्मत और जलभराव वाले कुओं और अनुपयोगी कुओं का लोगों की सक्रिय भागीदारी से पानी डालकर उपयोग करना इत्यादि पर ध्यान दिया गया है। इन गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के लिए राज्यों से अनुरोध किया गया है कि वे प्रत्येक जिले के कलक्ट्रेट / नगर पालिका या ग्राम पंचायत कार्यालयों में वर्षा केंद्र खोलें।

मिशन अमृत सरोवर

मिशन अमृत सरोवर की शुरुआत वर्ष 2022 में हुई जिसका उद्देश्य सतही और भूमिगत जल की उपलब्धता को बढ़ाने के लिए देश के प्रत्येक जिले में कम से कम 75 तालाबों का "निर्माण या विकास ** करना है। इस मिशन के अंतर्गत प्रत्येक तालाब में कम से कम 1 एकड़ का जल क्षेत्र होगा जिसमें लगभग 10,000 घन मीटर तक की जल धारण क्षमता होगी। इस मिशन का लक्ष्य लोगों की भागीदारी द्वारा तालाबों का निर्माण हर हाल में 15 अगस्त 2023 तक पूरा करना है।

संग्रहीत जल का उपयोग पिछले अध्याय में वर्णित जल संरक्षण और भूजल पुनर्भरण की विभिन्न तकनीकों के माध्यम से संग्रहीत जल को कुशलतापूर्वक उपयोग करने की आवश्यकता हैं और साथ ही उचित सिंचाई समय-सारणी को अपनाना चाहिए। लेकिन यह देखा गया कि अनुचित उपयोग दक्षता यानी सिंचाई के परम्परागत तौर तरीकों से वितरण और भंडारण छमता में कमी आई है। आज चारों ओर इस बात पर बल दिया जा रहा है कि जल एक अमूल्य संसाधन है, अतः यह अत्यंत आवश्यक होगा कि सिंचाई जल के मापन की व्यवस्था एवं व्यावहारिक मूल्य का निर्धारण हो। इसलिए, जल उपयोग दक्षता को बढ़ाने के लिए, माप उपकरण और स्वचालित प्रणाली की उचित स्थापना के साथ सूक्ष्म सिंचाई जैसे आधुनिक सिंचाई विधियों का उपयोग किया जाना चाहिए। जलोपयोग दक्षता वृद्धि के फलस्वरूप जो पानी की अतिरिक्त बचत होगी, उससे असिंचित खेती को सिंचित खेती में परिणत किया जा सकेगा। सिंचाई पद्धतियों जैसे स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए समुचित प्रारंभिक राशि आवंटित करने के साथ सूक्ष्म सिंचाई निधि (इएमएफ) का सृजन किया गया और इस कार्य को नाबार्ड को सौंपा गया जिसे सभी राज्यों में कार्यान्वित किया जा रहा है।

सूक्ष्म सिंचाई पद्धतियाँ

वैज्ञानिकों ने निरंतर अनुसंधान द्वारा ऐसी सिंचाई विधियाँ विकसित की हैं, जिनसे जल व उर्जा की न केवल बचत होती है, बल्कि कृषि उपज भी अधिक प्राप्त होती है। ये पद्धतियाँ हैं- फव्वारा (स्प्रिंकलर) एवं बूँद-बूँद (ड्रिप) सिंचाई प्रणाली । फव्वारा एवं ड्रिप सिंचाई पद्धतियों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि जल का हास नहीं होता, क्योंकि जल पाइप द्वारा प्रवाहित होता है तथा फव्वारा या बूँद-बूँद रूप में दिया जाता है। इन पद्धतियों से 75 से 95 प्रतिशत तक जल खेत में फसल को मिलता है, जबकि प्रचलित सतही विधियों में 40 से 60 प्रतिशत ही फसल को मिल पाता है। इतना ही नहीं फव्वारा एवं ड्रिप सिंचाई पद्धतियों की खरीद पर सरकार 50 से 75 प्रतिशत तक अनुदान भी देती है।

 तालिका  विभिन्न सिंचाई पद्धतियों में विभिन्न फसलों में पानी की आवश्यकता का विवरण दिया गया है, जिससे विदित होता है कि इस पद्धति से 30 से 50 प्रतिशत तक जल की बचत व डेढ़ से दो गुना अधिक पैदावार मिलती है। बूँद-बूँद सिंचाई थोड़ी महंगी है, अतः दो पंक्तियों के बीच एक ड्रिप लाइन 1.20 से 1.50 मीटर की दूरी पर डालने से 50 प्रतिशत खर्चा कम किया जा सकता है। इस विधि द्वारा लवणीय जल भी सब्जियों में दिया जा सकता है तथा साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रख सकते हैं।

 

ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था

संस्थान के फार्म पर किए गए प्रयोगों के आधार पर सतही और ड्रिप सिंचाई विधियों के तहत सिंचाई जल की आवश्यकता के आंकड़े 

इंडिया एग्रीकल्चर रिसर्च  इंस्टिट्यूट

आजकल नये उपकरणों व विभिन्न तरीकों से वर्षाजल का संचयन किया जा रहा है ताकि भूमिगत जल का क्षरण न हो। वर्षाजल संचयन एक ऐसी पद्धति है जिसके प्रयोग का ज्ञान जन सामान्य को होना आवश्यक है क्योंकि यदि हम जल संग्रह व संचय के प्रति जागरूक नहीं हुए तो बढ़ती हुई जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन और अनियंत्रित जल के उपयोग हमारे भविष्य के लिये अति घातक सिद्ध हो सकता है, अतः जो वरदान हमें प्रकृति के द्वारा वर्षाजल के रूप में प्राप्त होता है उसे व्यर्थ न जाने देने के बजाय भविष्य के लिये संचय करें। भारत के उत्तरी मैदानी क्षेत्रों तथा पर्वतीय क्षेत्रों की मृदा में जल अवशोषण क्षमता अपेक्षाकृत अधिक होती है। परंतु पठारी क्षेत्रों तथा काली मिट्टी के क्षेत्रों की जल धारण क्षमताएं अधिक पाई गई हैं। विभिन्न परिस्थितियों में विभिन्न जल संचयन पद्धतियां अपनायी जाती है। इस तकनीकी पुस्तिका में सरलता से कार्यान्वित की जाने वाली पद्धतियों पर अधिक ध्यान दिया गया है। पर्वतीय और अधिक वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों के किसान इन पद्धतियों के आलोक में और
मैदानी क्षेत्रों हेतु सुझाई गयी सूचनाओं के उपयोग से अपने-अपने क्षेत्रों में जल संचयन संरचनाओं का सम्यक निर्माण अवश्य कर सकते हैं जो कि भूमि के कटाव को नियंत्रण करने के साथ-साथ जल अवशोषण करवा कर जड़ों को और अधिक समय तक पोषक तत्वों की आपूर्ति करने में सहायक रहेगा ।

इस प्रकार से पशुओं, मनुष्यों, फसलों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधानों का हर तरह से न मात्र बचाव ही संभव हो सकेगा वरन संसाधनों का समुचित सदुपयोग भी होगा। इसलिए मैदानी एवं पर्वतीय सभी किसानों को सलाह दी जाती है कि वर्षा के आगमन से पूर्व उपरोक्त सभी विधियों को अपने-अपने प्रक्षेत्रों में निर्मित संरचनाओं को व्यवस्थित जलवृष्टि उपरांत इनमें जल संचयन करें। अन्यथा यह कहावत तो सभी को याद ही होगी कि "का वर्षा जब कृषि सुखानी समय चुकी पुनि का पछितानी" । यह अभिसरण, विभिन्न विभागों के जुड़ाव और वाटरशेड के आधार पर लोगों की भागीदारी और क्षमता निर्माण के बिना सफल नहीं हो सकता है। सबसे अंत में सबसे आवश्यक बात यह है कि मृदा और जल जो कृषि का आधार है उसे सहेजना और उसका सम्यक बर्ताव ही सफलता की कुंजी है। कहा भी गया है कि

"एकहि साधे सब सधे सब साधे सब जाय माली सींचे मूल को फूले- फलै अघाय" ।
अतएव मृदा और जल को कृषि का मूल समझ कर इसका सम्यक परिपालन ही यथेष्ट है।

स्रोत :- इंडिया एग्रीकल्चर रिसर्च  इंस्टिट्यूट
 

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Post By: Shivendra
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